Wednesday, August 13, 2025
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राजीव एकेडमी के छात्र-छात्राओं को टैबलेट मिले, चेहरे खिलेविद्यार्थियों का संकल्प, ज्ञानार्जन के लिए करेंगे टैबलेट का सदुपयोग


मथुरा। राजीव एकेडमी फॉर टेक्नोलॉजी एण्ड मैनेजमेंट के छात्र-छात्राओं को मंगलवार को भारत सरकार की डीजी शक्ति स्कीम के तहत टैबलेट प्रदान किए गए। संस्थान के निदेशक डॉ. अभिषेक सिंह भदौरिया के करकमलों से टैबलेट मिलते ही जहां छात्र-छात्राओं के चेहरे पर मुस्कान दिखी वहीं उन्होंने संकल्प लिया कि वे इनका इस्तेमाल ज्ञानार्जन के लिए करेंगे।
छात्र-छात्राओं को टैबलेट प्रदान करने के बाद निदेशक डॉ. अभिषेक सिंह भदौरिया ने कहा कि शिक्षा का स्वरूप बदल रहा है। आज की शिक्षा पूरी तरह से सूचना प्रौद्योगिकी पर निर्भर है, ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से जो टैबलेट उपलब्ध कराए जा रहे हैं, उनका इस्तेमाल आप लोग ज्ञानार्जन के लिए करेंगे, ऐसा विश्वास है। डॉ. भदौरिया ने कहा कि जरूरतमंद छात्र-छात्राओं के लिए यह टैबलेट बहुत उपयोगी साबित होंगे। इनकी सहायता से छात्र-छात्राओं को डिजिटल इंडिया अभियान से जुड़ने में मदद मिलेगी।
डॉ. भदौरिया ने छात्र-छात्राओं को टैबलेट का उपयोग शैक्षिक लक्ष्यों को प्राप्त करने, तकनीकी कौशल विकसित करने तथा विभिन्न विषयों को सीखने में करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि छात्र-छात्राएं इन टैबलेटों के माध्यम से अपनी पढ़ाई में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। इतना ही नहीं शिक्षकों के साथ संवाद कर सकते हैं तथा नई तकनीकों से परिचित हो सकते हैं।
आर.के. एज्यूकेशनल ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. रामकिशोर अग्रवाल ने अपने संदेश में कहा कि स्वामी विवेकानन्द यूथ इम्पावरमेंट स्कीम उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा शुरू की गई एक अभिनव योजना है, इसका उद्देश्य युवाओं को सशक्त बनाना है। यह योजना युवाओं को कौशल विकास, शिक्षा और रोजगार के अवसर प्रदान करके उन्हें सक्षम बनाने के लिए केन्द्रित है। डॉ. अग्रवाल ने कहा कि इन टैबलेटों के माध्यम से छात्र-छात्राएं अपनी पढ़ाई सुचारु रूप से सम्पन्न कर सकेंगे। सरकार द्वारा इस प्रकार की योजनाओं के क्रियान्वयन का मूल उद्देश्य युवाओं को अधिक से अधिक रोजगार मुहैया कराना भी है।
उपाध्यक्ष पंकज अग्रवाल और प्रबंध निदेशक मनोज अग्रवाल ने कहा कि भारत सरकार की डीजी शक्ति योजना का उद्देश्य युवाओं को ऑफलाइन से ऑनलाइन प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराना है, क्योंकि आज के समय में अधिकांश उद्योग-व्यापार ऑनलाइन स्तर पर ही चल रहे हैं। कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ. विकास जैन ने कहा कि जिस देश की सरकार युवाओं को उच्च शिक्षित करने के लिए ऐसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम चला रही है, निश्चित रूप से इस देश की युवा शक्ति अपने स्किल और ज्ञान की शक्ति के बल पर एक दिन विश्व में भारत को प्रथम शक्तिशाली अर्थव्यवस्था वाला देश बना देगी। उन्होंने सभी छात्र-छात्राओं से प्राप्त डिजिटल उपकरण का सटीक उपयोग करने तथा इसके बल पर अपना ऑनलाइन ज्ञान-स्तर बढ़ाने का आह्वान किया।
चित्र कैप्शनः टैबलेट प्राप्त करने के बाद निदेशक डॉ. अभिषेक सिंह भदौरिया के साथ छात्र-छात्राएं।

बड़े डॉक्टर से ठीक होने के बजाय नीम हकीम के हाथ से मर जाना अच्छा

 मथुरा। पुरानीं कहावत है कि नीम हकीम के हाथ से ठीक होने के बजाय डॉक्टर के हाथ से मर जाना अच्छा, लेकिन वर्तमान हालातों के देखते हुए मेरा विचार इसके एकदम उलट है। मेरी सोच अब यह है कि ऊंचे और नामचीन डॉक्टरों के हाथ से ठीक होने के बजाय नीम हकीम के हाथ से मर जाना अच्छा।
 ज्यादातर नामी गिरामी अस्पतालों व डॉक्टरों की स्थिति मरीज का अच्छा उपचार करके उसे ठीक करने वाली सेवा भावना तो रही नहीं। अब तो कैसे धन ऐंठा जाए यह उद्देश्य रह गया है। नयति अस्पताल इसकी जीती जागती मिसाल है। यही कारण रहा की नयति जैसे अत्याधुनिक सुविधा संपन्न अस्पताल को बंद होना पड़ा। अनेक अस्पतालों का दिखावटी रूप स्वरूप भले ही चमक दमक का हो किंतु सही मायने में तो ज्यादातर ये कट्टी घर हो चुके हैं। मरीज को ठीक करने में इनकी रुचि कम और तिल तिल कर मारने और तो और मरने के बाद भी जिंदा बताकर उसका इलाज करने के नाम पर परिजनों से लूटपाट की जाती है। यानी बगैर हथियारों के ही हत्या और डकैती साथ-साथ। न इन पर कोई केस दर्ज होता है और ना ही इनकी गिरफ्तारी होती है।
 ऐसे एक नहीं अनेक मामले सामने आते रहते हैं कि मृतक मरीज को वेंटिलेटर पर बताकर या अन्य कोई भी बहाना लगाकर उसके परिजनों को लूटा जाता है। मृतक मरीज को तो आई.सी.यू. में अंदर पटक दिया जाता है और उसके पास किसी को जाने भी नहीं देते।  ऐसे लोग कसाई के समान है। इनसे तो कम पढ़ाई किए हुए छोटे और अनुभवी कंपाउंडर या नीम हकीम जिन्हें झोलाछाप का बेहूदा नाम दे दिया गया है, अच्छे होते हैं। इसीलिए किसी ने कहा है कि बड़े डॉक्टर मुर्दों का इलाज करते हैं और नीम हकीम जिन्दों का।
 ऐसा लिखकर मैं यह नहीं सिद्ध करना चाहता कि 100% बड़े डॉक्टर या बड़े अस्पताल ऐसे होते हैं। कुछ प्रतिवाद भी हैं। मैं स्वयं का अनुभव भी साझा करता हूं। पिछले वर्ष मुझे प्रोस्टेट की परेशानी हुई और के.डी. मेडिकल कॉलेज में ऑपरेशन कराया तथा एक सप्ताह के लिए भर्ती होना पड़ा। वहां डॉ. मनु गुप्ता जो लीलावती अस्पताल बम्बई में कई वर्षों तक अपनी सेवाएं दे चुके हैं तथा मूलतः मथुरा के लोहवन गांव निवासी हैं, के द्वारा ही मेरा ऑपरेशन किया गया।
 मैं डॉ. मनु गुप्ता की योग्यता और सेवा भाव से चमत्कृत रह गया। उनकी सहयोगी डॉ. विनायका जो बनारस की हैं तथा डॉ. कार्तिकेय जो गोरखपुर के हैं, इन तीनों की टीम के अंदर मैंने जो सेवा भाव देखा उससे मैं अभिभूत हो गया। डॉ. विनायका जिनके पिता बनारस में सुविख्यात चिकित्सक हैं, के बारे में बता रही थीं कि मेरे पिताजी कहते हैं कि मरीज का आधा दुःख तो डॉ. अपने व्यवहार से दूर कर देते हैं। इसके अलावा मैंने के.डी. मेडिकल में नाम मात्र के खर्चे पर मरीजों का जो उपचार देखा वह भी सराहनींय है। यही कारण है कि वहां मरीजों और उनके तीमारदारों की भारी भीड़ लगी रहती है।
 अंत में पुनः वही लौटता हूं जहां से चला था, यानी हम लोगों को ज्यादा बड़े और नामचीन डॉक्टर व अस्पतालों की शरण में जाने की बजाए छोटे व अनुभवी डॉक्टरों की ओर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। भले ही कंपाउंडर या अनुभव का ज्ञान रखने वाला बगैर डिग्री वाला चिकित्सक नीम हकीम या झोलाछाप ही क्यों न हो। यदि हमें बड़ों की शरण में जाना भी हो तो उनकी में जाएं जिनकी साख सेवा भावी वाली ज्यादा और धनोपाजर्न वाली कम हो। एक बात और कहूंगा कि जहां तक हो सके घरेलू उपचार सादा खान-पान शारीरिक श्रम व पेट को साफ रखने का फार्मूला सर्वोत्तम है। यदि आपका पेट साफ रहेगा तो बीमारियां स्वतः ही दूर रहेंगी। यदि बीमारी दूर रहेंगी तो तन और मन दोनों प्रफुल्लित रहेंगे। तन और मन प्रफुल्लित रहेंगे तो फिर आचार विचार और संस्कार भी स्वच्छ रहेंगे। यदि आचार विचार और संस्कार अच्छे रहेंगे तो फिर 84 लाख योनियों के बाद मिला यह अनमोल जीवन ही सार्थक हो जाएगा।

समाधान दिवस बढ़ रही शिकायतें

मथुरा। मुख्य विकास अधिकारी मनीष मीणा की अध्यक्षता में तहसील मॉंट के सभागार में तहसील दिवस का आयोजन किया गया। जिसमें राजस्व विभाग की 24, पुलिस विभाग की 07, वन विभाग की 02, पूर्ति विभाग की 05, विकास विभाग की 05 एवं विद्युत विभाग की 06 कुल 49 शिकायतें प्राप्त हुई, जिनमें से मौके पर 02 शिकायतों का मौके पर ही निस्तारण कराया गया। मुख्य विकास अधिकारी द्वारा समस्त सम्बन्धित विभागों को तहसील दिवस में प्राप्त होने वाली शिकायतों का गुणवत्तापूर्वक निस्तारण करने एवं शिकायतकर्ता को भी अवगत कराये जाने हेतु निर्देशित किया गया। तहसील दिवस में मुख्य विकास अधिकारी के साथ, उपजिलाधिकारी मॉंट, तहसील का समस्त स्टॉफ एवं सम्बन्धित विभागों के अधिकारी उपस्थित रहे।

दो साल के तरुण का के.डी. हॉस्पिटल में हुआ सफल ऑपरेशनशिशु शल्य विशेषज्ञ डॉ. श्यामबिहारी शर्मा ने फेफड़े से निकाली गांठ


मथुरा। के.डी. मेडिकल कॉलेज-हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेण्टर के जाने-माने शिशु शल्य विशेषज्ञ डॉ. श्यामबिहारी शर्मा ने गांव बैरी, जिला मथुरा निवासी हरवान के दो साल के पुत्र तरुण को नया जीवन दिया है। डॉ. शर्मा और उनकी टीम द्वारा बच्चे के फेफड़े की गांठ की सफल सर्जरी की गई। अब बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ है तथा उसकी सांस लेने की परेशानी भी दूर हो गई है।
जानकारी के अनुसार गांव बैरी, मथुरा निवासी हरवान का पुत्र तरुण लगातार खांसी आने तथा सांस लेने की परेशानी से जूझ रहा था। उसे कई जगह दिखाया गया लेकिन चिकित्सकों को बच्चे की असली परेशानी समझ में नहीं आई। आखिरकार उसे के.डी. हॉस्पिटल लाया गया तथा शिशु औषध विभाग में दिखाने के बाद चिकित्सकों ने उसे शिशु शल्य विशेषज्ञ डॉ. श्यामबिहारी शर्मा को दिखाने की सलाह दी। डॉ. शर्मा ने बच्चे का एक्सरा तथा सीटी स्केन कराया जिससे पता चला कि उसके फेफड़े में गांठ है जो दिल (हृदय) से चिपकी हुई है।
बच्चे की नाजुक स्थिति को देखते हुए डॉ. श्याम बिहारी शर्मा ने तुरंत ऑपरेशन की सलाह दी। हरवान की स्वीकृति के बाद डॉ. शर्मा द्वारा आवश्यक औपचारिकताएं पूरी कर बच्चे तरुण का ऑपरेशन किया गया। लगभग तीन घंटे चले ऑपरेशन में डॉ. शर्मा द्वारा बच्चे की गांठ जोकि हृदय से चिपकी हुई थी, उसे पूरी तरह से निकाल दिया गया। गांठ 10 गुणा 8 गुणा 5 सेंटीमीटर की थी तथा द्रव पदार्थ से भरी हुई थी। इस गांठ को पैथोलॉजी विभाग में सूक्ष्मदर्शी यंत्र से जांच के लिए भेज दिया गया है।
इस ऑपरेशन में डॉ. शर्मा का सहयोग डॉ. आशीष, निश्चेतना विशेषज्ञ डॉ. मंजू सक्सेना, डॉ. पुष्पेन्द्र सिंह तथा ओटी टेक्नीशियन योगेश ने किया। ऑपरेशन के बाद बच्चे की देखरेख डॉ. संध्या लता आचार्य शिशु औषध के निर्देशन में हुई। इस ऑपरेशन पर डॉ. शर्मा का कहना है कि दो वर्ष के बच्चे के फेफड़े में गांठ होना अत्यंत दुर्लभ जन्मजात विकृति है। ऐसी परेशानी 50 हजार बच्चों में एकाध को ही होती है। उन्होंने बताया कि मेडिकल भाषा में इसे ब्रोन्कोजेनिक सिस्ट कहते हैं तथा कुछ बच्चों में एंटेरोजीनंस सिस्ट होती है।
डॉ. शर्मा का कहना है कि बच्चे के पूरी तरह से स्वस्थ होने के बाद उसे छुट्टी दे दी गई है। बच्चे का वजन भी बढ़ गया है तथा अब वह सामान्य रूप से भोजन भी करने लगा है। बच्चे के सफल ऑपरेशन के लिए हरवान ने डॉ. श्याम बिहारी शर्मा तथा के.डी. हॉस्पिटल प्रबंधन का आभार मानते हुए कहा कि वह तो नाउम्मीद हो गया था। उसे डर था कि कहीं बच्चे को कुछ हो न जाए।
आर.के. एज्यूकेशनल ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. रामकिशोर अग्रवाल, के.डी. मेडिकल कॉलेज-हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेण्टर के चेयरमैन मनोज अग्रवाल, डीन और प्राचार्य डॉ. आर.के. अशोका, चिकित्सा निदेशक डॉ. राजेन्द्र कुमार ने बच्चे की सफल सर्जरी के लिए डॉ. श्याम बिहारी शर्मा तथा उनकी टीम को बधाई दी।
चित्र कैप्शनः पिता की गोद में तरुण तथा उसका ऑपरेशन करने वाले शिशु शल्य विशेषज्ञ डॉ. श्यामबिहारी शर्मा।

प्रोफेसर एमबी चेट्टी संस्कृति विवि में पढ़ने को मिलेंगे बड़ा कैरियर बनाने वाले कोर्स

मथुरा। संस्कृति विश्वविद्यालय में समय और इंडस्ट्री की मांग के अनुसार नए नए पाठ्यक्रमों को तैयार कर उन्हें लागू किया जा रहा है। ये पाठ्यक्रम विद्यार्थियों के भावी भविष्य का निर्माण करने में बहुत सहायक सिद्ध होंगे।
संस्कृति विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एमबी चेट्टी ने जानकारी देते हुए बताया कि विवि में कंप्यूटर साइंस, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी और मशीन लर्निंग पाठ्यक्रमों के अलावा बी टेक और बीसीए के विद्यार्थियों को डाटा साइंस एंड बिजनेस एनालिटिक, फुल स्टेक डेवलपमेंट कोर्स भी पढ़ने को मिल रहे है।
प्रोफेसर चेट्टी ने विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि 12वीं के बाद विद्यार्थी 4 साल के बी. टेक इन डेटा साइंस, 3 साल के बीसीए या बीएससी इन डेटा साइंस जैसे कोर्सेस में एडमिशन ले सकते हैं। इनके अलावा, डेटा साइंस में सर्टिफिकेट कोर्स भी किया जा सकता है। इन कोर्सेस के जरिए विद्यार्थी डेटा का इस्तेमाल और डेटा एनालिसिस करने के लिए जरूरी टूल्स और टेक्नीक्स सीख सकते हैं। डेटा साइंटिस्ट के तौर पर विद्यार्थी कठिन डेटा सेट को एनालाइज करके ट्रेंड्स पहचान सकते हैं, अनुमानित करने वाले मॉडल बना सकते हैं और निर्णय लेने के लिए जरूरी इनसाइट्स प्रदान कर सकते हैं।
इसी प्रकार क्लाउड एंड साइबर सिक्युरिटी कोर्स
बदलती तकनीकी दुनिया में विद्यार्थी अपना करियर बना सकते हैं। आज के समय में, तकनीकी ज्ञान और सुरक्षा क्षेत्र में उच्च स्तर का क्लाउड कम्प्यूटिंग और साइबर सिक्युरिटी कोर्स आज के समय में जरूरी हैं और ये करियर को एक नई दिशा में ले जा सकते हैं। उन्होंने बताया कि क्लाउड कम्प्यूटिंग का मतलब होता है डेटा और सॉफ़्टवेयर को इंटरनेट के माध्यम से अपने सर्वरों पर नहीं बल्कि दूसरे सर्वरों पर संग्रहित करना।यह कई अन्य व्यवसायों और व्यक्तिगत उपयोगकर्ताओं के लिए एक मजबूत और सुरक्षित विकल्प है। यह कई उपयोग क्षेत्रों में अपनाया जा रहा है, जैसे कि वेब होस्टिंग, डेटा कलेक्शन, और साइबर सुरक्षा के लिए। साइबर सुरक्षा एक प्रक्रिया और तकनीक है जिसका उद्देश्य सिस्टम, नेटवर्क, और डेटा को सुरक्षित रखना होता है, ताकि ऑनलाइन साइबर हमलों से बचा जा सके। यह साइबर हमलों के खतरों से बचाव के लिए कई तरीकों का अध्ययन करता है, जैसे कि फ़ायरवॉल्स, वायरस स्कैनिंग, और उपयोगकर्ता प्रशिक्षण इत्यादि। क्लाउड कम्प्यूटिंग और साइबर सिक्युरिटी के क्षेत्र में अच्छे अवसर हैं। इन क्षेत्रों में नौकरियों की मांग बढ़ रही है और विद्यार्थियों के पूरे करियर को बना सकते हैं।आज के समय में हमारा जीवन तकनीकी माध्यमों पर निर्भर है। क्लाउड कम्प्यूटिंग और साइबर सिक्योरिटी को जानकर विद्यार्थी नवाचारिक और सुरक्षित तरीके से तकनीकी माध्यमों का उपयोग करसकते हैं।
प्रोफेसर चेट्टी ने बताया कि
फुल स्टैक डेवलपमेंट कोर्स एक ऐसा प्रोग्राम है जो फ्रंट-एंड और बैक-एंड वेब डेवलपमेंट दोनों के बारे में सिखाता है। यह कोर्स आपको वेब एप्लिकेशन के दोनों पहलुओं – यूजर इंटरफेस (फ्रंट-एंड) और सर्वर-साइड लॉजिक और डेटाबेस (बैक-एंड) – को विकसित करने के लिए आवश्यक कौशल प्रदान करता है.
फुल स्टैक डेवलपमेंट कोर्स में कफ्रंट-एंड डेवलपमेंट के अंतर्गत एचटीएमएल, सीएसएस, जावा स्क्रिप्ट
और फ्रेमवर्क/लाइब्रेरी का उपयोग करके वेब एप्लिकेशन के यूजर इंटरफेस को डिजाइन और विकसित करना पढ़ाया जाता है। बैक-एंड डेवलपमेंट के अंतर्गत
सर्वर-साइड लैंग्वेज (जैसे कि पाइथन, नो.जेएस, पीएचएस, रुबी), डेटाबेस मैनेजमेंट सिस्टम और वेब सर्वर का उपयोग करके एप्लिकेशन के बैक-एंड को विकसित करना पढ़ाया जाता है। फुल स्टैक कोर्स में, आप वेब डेवलपमेंट के हर पहलू को सीख सकते हैं, जिससे आपको एक बहुमुखी डेवलपर बनने में मदद मिलती है। फुल स्टैक डेवलपर्स की मांग अधिक होती है क्योंकि वे वेब एप्लिकेशन के सभी पहलुओं को संभाल सकते हैं.
एक व्यक्ति कंप्यूटर के साथ मेज पर बैठा है और फिनटेक में एआई का विश्लेषण कर रहा है।कृत्रिम बुद्धिमत्ता फिनटेक क्षेत्र में एक परिवर्तनकारी शक्ति के रूप में उभरी है, जिसने वित्तीय सेवाओं को वितरित करने और उपभोग करने के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव किया है। वित्तीय सेवा उद्योग में एआई की भूमिका स्वचालन से परे है, यह विश्वास, गति और बुद्धिमत्ता में क्रांतिकारी बदलाव ला रही है।
उन्होंने बताया कि वित्तीय क्षेत्र में एआई का प्रभाव दूरगामी है, जो उद्योग को उसके मूल में बदल रहा है। आँकड़ों की मदद से, हम फिनटेक में एआई अपनाने की वर्तमान स्थिति के बारे में मूल्यवान जानकारी प्राप्त करते हैं और इस सहजीवी संबंध के भविष्य की झलक पाते हैं। हाल के वर्षों में फिनटेक उद्योग ने विस्फोटक वृद्धि का अनुभव किया है, जिसमें एआई ने इस विस्तार को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वैश्विक फिनटेक बाजार वर्तमान में 340.1 बिलियन डॉलर का है। वहीं, फिनटेक में एआई का बाजार मूल्य 44.08 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है। 2.9% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर के साथ, वित्तीय प्रौद्योगिकी में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की हिस्सेदारी अगले पाँच वर्षों में 50 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
प्रोफेसर चेट्टी का कहना है कि संस्कृति विश्विद्यालय में इन सभी उपयोगी विषयों को योग्य और अनुभवी शिक्षकों द्वारा पढ़ाया जा रहा है।

चित्र परिचय: संस्कृति एफएम की टीम ग्रामीणों को संचारी रोगों के प्रति जागरूक करते हुए।

मथुरा। भारत सरकार के सहयोग से स्मार्ट एनजीओ एवं संस्कृति यूनिवर्सिटी के प्रतिनिधित्व में रेडियो संस्कृति 91.2 एफएम ने मथुरा जिले के प्रत्येक गाँव में संक्रामक रोगों (संचारी रोग) को लेकर जन-जागरूकता अभियान की शुरुआत की है। इस पहल का मुख्य उद्देश्य “मथुरा विजन” के तहत ग्रामीण क्षेत्र के नागरिकों को संक्रामक रोगों के प्रति सचेत करना और उनकी रोकथाम हेतु जरूरी जानकारी पहुँचाना है।
इस अभियान के प्रथम चरण में संस्कृति यूनिवर्सिटी के संरक्षण में संचालित संस्कृति आयुर्वेदिक हॉस्पिटल एंड मेडिकल कॉलेज की विशेषज्ञ टीम तथा रेडियो संस्कृति की टीम ने मथुरा के नगला बिरगा गाँव का दौरा किया।
गाँव में मौजूद ग्रामीण जनों को सरल भाषा में बताया गया कि संक्रामक रोग कैसे फैलते हैं, इनसे कैसे बचा जा सकता है, और कौन-कौन से घरेलू व वैज्ञानिक उपाय अपनाकर स्वस्थ जीवन जिया जा सकता है। साथ ही, वहां मौजूद चिकित्सा विशेषज्ञों ने मुफ्त स्वास्थ्य परामर्श भी प्रदान किया।
संस्कृति यूनिवर्सिटी के प्रवक्ता ने बताया कि इस अभियान को आगे और भी गाँवों तक पहुँचाया जाएगा, ताकि मथुरा का हर नागरिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बन सके। रेडियो संस्कृति 91.2 एफएम इस अभियान को नियमित रूप से प्रसारित करेगा ताकि जानकारी अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचे।
यह अभियान न केवल स्वास्थ्य जागरूकता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह ग्रामीण भारत के सशक्तिकरण की दिशा में भी एक प्रेरणास्पद प्रयास है।

गंगा दशहरा के पावन अवसर पर भगवान परशुराम शोभायात्रा समिति के द्वारा मिल्क रोज की प्याऊ लगाई गई।

गंगा दशहरा के पावन अवसर पर भगवान परशुराम शोभायात्रा समिति के द्वारा मिल्क रोज की प्याऊ लगाई गई।
शहर के चौक बाजार जीवी प्लाजा पर परशुराम शोभायात्रा समिति के कार्यालय पर श्रद्धालुओं के लिए मिल्क रोज वितरण किया गया।
गर्मी के मौसम को देखते हुए ठंडक प्रदान करते हुए समिति ने इस प्याऊ का आयोजन किया जिसमें संरक्षक संस्थापक पंडित मनोज शर्मा,राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित रामगोपाल शर्मा,महामंत्री बंसीलाल शर्मा , सचिव राकेश गौड़ , संजय पिपरिया, लब्बू पंडित जी एवं कोषाध्यक्ष प्रेम बिहारी शास्त्री समस्त टीम के साथ उपस्थित रहे।
यह आयोजन पिछले 25 साल से लगातार कराया जा रहा है।

मोरक्कोमेंईदपरबकरोंकीहत्याप्रतिबंधिततोभारतमेंक्योंनहीं?

 मथुरा। मुस्लिम देश मोरक्को में ईद पर बकरों की हत्या प्रतिबंधित कर दी गई है, तो भारत में ऐसा क्यों नहीं हो सकता? विश्व के अन्य सभी देशों को इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। भारत को भी इसका अनुसरण करते हुए इन बेजुबान बेकसूर और निरीह प्राणियों की रक्षा करने का साहसिक एवं मानवीय कदम उठाकर मोरक्को की तरह मिसाल कायम करनी चाहिए।
 मोरक्को के राजा सुल्तान मोहम्मद ने ऐतिहासिक साहसिक एवं मानवीय कदम उठाते हुए ईद पर बकरों के कटान वाली इस्लामी परंपरा जिसे कुर्बानी कहा जाता है, को रद्द कर दिया है। सुल्तान मोहम्मद ने आर्थिक, पर्यावरण एवं स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर यह अभिनंदनीय कदम उठाया है। उनके इस फरमान के बाद पूरे मोरक्को में बकरों की खोज में छापेमारी शुरू हो गई है तथा जगह-जगह बकरों को जब्त किया जा रहा है जिससे हड़कंप मच गया है। वहां के कट्टरपंथी लोग इस कदम को अपमानजनक और मुसलमान की धार्मिक स्वतंत्रता व अधिकारों का हनन बताते हुए हाय तौबा मचा रहे हैं।
 जब 99% मुस्लिम वाले देश में इस कुप्रथा पर रोक लगाई जा सकती है तो हमारे देश में ऐसा क्यों नहीं हो सकता? इन निरीह प्राणियों की हत्या को भले ही मुसलमान कुर्बानी का नाम दें या हिंदू बलि कहें, यह बिल्कुल गलत है। कुर्बानी अपनी स्वयं की होती है। इसी प्रकार बलिदान से बलि शब्द बना है। बलिदान भी अपना होता है। अगर किसी को कुर्बान होना है या बलिदान होना है तो स्वयं को अल्लाह या देवी देवताओं के आगे समर्पित करके अपने खुद के धड़ से सर को अलग करवा देना चाहिए न कि इन निरीह प्राणियों की गर्दन पर गड़सा चलवा कर।
 मोरक्को के राजा ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला भी एकदम सही दिया है। मांसाहार स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। एक छोटा सा उदाहरण देता हूं। एक मरे हुए चूहे या अन्य किसी जानवर को डिब्बे में बंद करके रख दो और उसी प्रकार किसी सब्जी फल या अन्य शाकाहारी वस्तु को डिब्बे में बंद करके रख दो। इसके दो-चार दिन बाद दोनों डिब्बों को खोलो, तो जानवर वाले डिब्बे में इतनी भयंकर दुर्गंध निकलेगी कि आसपास खड़ा भी नहीं हुआ जाएगा किंतु शाकाहारी वाले डिब्बे को खोलने पर उसमें दुर्गंध नहीं निकलेगी सिर्फ फफूंद दिखाई देगी।
 हमारे पेट में जो भी भोजन जाता है वह हफ्ते दस दिन तक नलियों में छोटे-छोटे कणों के रूप में रुका रहता है। इसी बात से अंदाजा लगा लो कि जब पेट के अंदर इतनी सड़न और दुर्गंध रहेगी तो गंभीर बीमारियों का प्रकोप नहीं होगा क्या? और ज्यादा क्या कहूं सिर्फ इतना ही कहूंगा कि किसी निर्दोष प्राणी की हत्या करना और उसे मारकर खा जाना संसार की सबसे बड़ी पैशाचिकता है। यदि हम मनुष्य जीवन पाकर भी पिशाच बनें तो इससे अच्छा तो यह है कि हमें पिशाच योनि में जन्म मिलता तो अच्छा रहता।

भावी दंत चिकित्सकों को दी आधुनिक जांच और उपचार की जानकारीके.डी. डेंटल कॉलेज में आयोजित सीडीई में डॉ. सलोनी मिस्त्री ने साझा किए अनुभव


मथुरा। भावी दंत चिकित्सकों को डिजिटल कार्य वातावरण से अवगत कराने तथा व्यावहारिक कारीगरी में गहरी समझ पैदा करने के उद्देश्य से के.डी. डेंटल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल में तीन दिवसीय सीडीई का आयोजन किया गया। प्रो. (डॉ.) सलोनी मिस्त्री प्रमुख डॉ. जी.डी. पॉल फाउंडेशन, वाईएमटी डेंटल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल, नवी मुंबई ने दंत चिकित्सकों को बताया कि आकर्षक संयोजन डेंटल टेक्नोलॉजी की विविध और बहुआयामी पेशेवर यात्रा की तलाश करने वाले युवाओं के लिए एक शानदार विकल्प है।
प्रोस्थोडॉन्टिक्स में परम्परा और नवाचार पर आयोजित तीन दिवसीय सीडीई के पहले दिन प्रो. (डॉ.) सलोनी मिस्त्री ने प्रोस्थोडॉन्टिक्स के स्नातकोत्तर छात्र-छात्राओं को सीपीडी के माध्यम से पारम्परिक से लेकर डिजिटल लीप तक की जानकारी दी। उन्होंने भावी दंत चिकित्सकों को सीपीडी डिजाइनिंग पर प्रदर्शन और परीक्षा उन्मुख दृष्टिकोण के साथ रोगी कास्ट पर सीपीडी के सर्वेक्षण और डिजाइनिंग पर व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया। उन्होंने बताया कि डिजिटल कार्य वातावरण और व्यावहारिक कारीगरी का आकर्षक संयोजन डेंटल टेक्नोलॉजी को विविध और बहुआयामी बनाता है।
प्रो. (डॉ.) सलोनी मिस्त्री ने छात्र-छात्राओं को बताया कि कई डेंटल प्रयोगशालाओं ने सदियों पुराने शिल्प कौशल को संरक्षित करने तथा डिजिटल क्षेत्र को अपनाने, परम्परा और व्यवधान के बीच सामंजस्य स्थापित करने तथा आवश्यक परिवर्तनों की आवश्यकता के साथ स्थापित मूल्यों को समेटने के बीच के नाजुक संतुलन को कुशलता से अपनाया है, जिसका लाभ दंत चिकित्सा क्षेत्र को मिल रहा है।
सीडीई के दूसरे दिन प्रो. (डॉ.) सलोनी मिस्त्री ने केस चर्चा के साथ पारम्परिक से लेकर डिजिटल एल्गोरिदम तक इंप्रेशन और इम्प्लांट प्रोस्थोडॉन्टिक्स पर व्याख्यान दिया। उन्होंने 15-15 परास्नातकों को पांच समूहों में विभाजित कर केस परिदृश्य की एक उपचार योजना प्रस्तुत की। सीडीई के तीसरे दिन प्रोस्थो, एंडो और पेडो के स्नातक तथा परास्नातक छात्र-छात्रा प्रशिक्षुओं के लिए सिरेमिक पर एक व्याख्यान आयोजित किया गया था, जिसमें सौंदर्यपूर्ण पुनर्स्थापनात्मक सामग्री के उचित विकल्प के लिए सटीक निर्णय लेने के लिए विभिन्न परिदृश्यों पर प्रकाश डाला गया। इस अवसर पर भावी दंत चिकित्सकों ने प्रो. (डॉ.) सलोनी मिस्त्री से उपयोगी केस चर्चा भी की।
के.डी. डेंटल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल के डीन और प्राचार्य डॉ. मनेश लाहौरी ने प्रो. (डॉ.) सलोनी मिस्त्री का स्वागत करते हुए कहा कि उन्होंने स्नातक तथा परास्नातक छात्र-छात्राओं को दंत चिकित्सा की जो आधुनिकतम उपचार की जानकारी दी, वह भविष्य में उनका मार्गदर्शन करेगी। डॉ. लाहौरी ने कहा कि दंत चिकित्सा क्षेत्र की यांत्रिक विशेषताएं थोक सामग्री के अंतर्निहित गुणों से जुड़ी हुई हैं, मौखिक ऊतकों के साथ उनकी अंतःक्रिया सतह की विशेषताओं पर बहुत अधिक निर्भर करती है। सीडीई में के.डी. डेंटल कॉलेज के संकाय सदस्यों डॉ. अनुज गौड़, डॉ. सिद्धार्थ सिसौदिया, डॉ. जूही, डॉ. मनीष भल्ला तथा डॉ. राजीव आदि ने भी अपने-अपने अनुभव साझा किए। सीडीई के समापन अवसर पर छात्र-छात्राओं को प्रमाण-पत्र प्रदान किए गए।
चित्र कैप्शनः सीडीई के समापन अवसर पर प्रो. (डॉ.) सलोनी मिस्त्री के साथ स्नातक तथा परास्नातक छात्र-छात्राएं तथा संकाय सदस्य।

राजीव एकेडमी की शैक्षिक व्यवस्थाओं में आया क्रांतिकारी बदलाववातानुकूलित कक्षाएं और शैक्षिक व्यवस्थाएं लगा रहीं युवाओं के सपनों को पंख


मथुरा। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में राजीव एकेडमी फॉर टेक्नोलॉजी एण्ड मैनेजमेंट संस्थान सिर्फ मथुरा ही नहीं समूचे उत्तर प्रदेश में अपनी विशिष्ट शिक्षा सुविधाओं तथा नवाचारी प्रयासों के लिए जाना जाता है। प्रतिवर्ष यहां के छात्र-छात्राएं शिक्षा ही नहीं रोजगार के क्षेत्र में भी अपनी मेधा का परचम फहरा रहे हैं। इसकी मुख्य वजह राष्ट्रीय शिक्षा नीति के नवाचारी प्रयासों को आत्मसात कर यहां अध्ययन करने वाले छात्र-छात्राओं में नया विश्वास पैदा करना है। राजीव एकेडमी की वातानुकूलित कक्षाओं का आरामदायक और ध्यान केंद्रित करने वाला वातावरण भी छात्र-छात्राओं में नई ऊर्जा का संचार करता है।
आर.के. एज्यूकेशनल ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. रामकिशोर अग्रवाल का कहना है कि राजीव एकेडमी ने अपने स्थापना काल से ही छात्र-छात्राओं को बदलते समय के अनुरूप उच्चस्तरीय शैक्षिक सुविधाएं प्रदान की हैं। यहां अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को रटने नहीं बल्कि सीखने की सीख दी जाती है। छात्र-छात्राएं शांत वातावरण में ठंडी हवा के बीच अध्ययन करें इसके लिए एयर-कंडीशंड क्लास-रूम की व्यवस्था को मूर्तरूप दिया गया। इस बदलाव से छात्र-छात्राओं के व्यवहार और प्रदर्शन में न केवल बदलाव आया बल्कि वे पढ़ाई को लेकर ज्यादा सतर्क दिखे। डॉ. अग्रवाल का कहना है कि वातानुकूलित कक्षाओं से जहां बेहतर शैक्षणिक परिणाम मिले वहीं छात्र-छात्राओं की याददाश्त और संज्ञानात्मक कार्य में भी बहुत सुधार आया।
निदेशक डॉ. अभिषेक सिंह भदौरिया का कहना है कि आज के प्रतिस्पर्धात्मक और सूचना क्रांति के दौर में प्रत्येक युवा राजीव एकेडमी के व्यावहारिक और व्यावसायिक माहौल में प्रवेश लेकर अपने सपनों को साकार करना चाहता है। उसे पता है कि यहां उसे हर वह सुविधा और मार्गदर्शन मिलेगा, जोकि उनकी जरूरत है। डॉ. भदौरिया का कहना है कि राजीव एकेडमी में छात्र-छात्राओं को औद्योगिक क्षेत्र के अनुरूप तैयार करने की व्यवस्थाएं जहां सुदृढ़ हैं वहीं युवा पीढ़ी को कारपोरेट जगत के तौर-तरीके और इंडस्ट्रियल ढांचे के अनुरूप नॉलेज प्रदान करने के लिए संस्थान का कम्पनी टैली, अपग्रेड, इन्फोसिस फाउण्डेशन, बजाज फिनिसर, डुकैट आदि से भी अनुबंध है।
छात्र-छात्राओं के अभिज्ञान में बढ़ोत्तरी के लिए यहां सामान्य रूप से सेमिनार तथा कार्यशालाओं के माध्यम से विषय विशेषज्ञों के अनुभवों का लाभ उन्हें दिलाया जाता है। नियमित रूप से आयोजित होने वाली कार्यशालाओं से छात्र-छात्राओं को एडवांस एक्सल, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी, मशीन लर्निंग, डिजिटल मार्केटिंग, साइबर सिक्योरिटी कम्युनिकेशन एण्ड स्किल एनहॉसमेंट आदि की गूढ़तम जानकारी मिलती है। राजीव एकेडमी में साल भर छात्र-छात्राओं को अतिथि विषय विशेषज्ञों का मार्गदर्शन भी मिलता रहता है।
शिक्षा की उच्चस्तरीय व्यवस्थाएं होने से यहां के दर्जनों छात्र-छात्राएं विभिन्न संकायों में विश्वविद्यालय स्तर पर अपनी मेधा का परचम फहरा चुके हैं। यही मेधावी भावी पीढ़ी का प्रेरणास्रोत होते हैं। तृप्ति कश्यप, सुरभि अग्रवाल जहां विश्वविद्यालय स्तर पर बीसीए में अपनी विशिष्ट छाप छोड़ चुकी हैं वहीं मनीषा गौतम ने एमएड में गोल्ड मेडल जीता है। राजीव एकेडमी में कई शासकीय प्रोजेक्टों पर भी काम होता है, जिसका लाभ विद्यार्थियों को मिलता रहता है। प्लेसमेंट की बात करें तो यहां के छात्र-छात्राओं के एक हाथ में डिग्री तो दूसरे हाथ में जॉब लेटर होता है। इस साल यहां के छात्र-छात्राओं को राष्ट्रीय तथा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में उच्च पैकेज पर जॉब मिले हैं। एक छात्र का 25 लाख रुपये सालाना के पैकेज पर चयन हुआ है।
चित्र कैप्शनः वातानुकूलित कक्षा में अध्ययन करते राजीव एकेडमी के छात्र-छात्राएं।