Monday, August 18, 2025
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अब तो निमंत्रण भी थैले में क्या आगे ब्रीफकेस की बारी

 मथुरा। कुछ दिन पहले की बात है। मेरे पास एक निमंत्रण पत्र जो मोटा ताजा है। कागजी थैले में रखकर आया। यह निमंत्रण पत्र बहुत पैसे वाले एक सज्जन के परिवार में होने वाले एक मांगलिक कार्यक्रम का था। थैले में रखकर अब तक तो कोई निमंत्रण पत्र आया नहीं, अब पहली बार मैंने देखा तो चौंक गया। अब तक तो सिर्फ लंबे चौड़े और भारी भरकम निमंत्रण पत्रों की स्पर्धा धनाढ्यो में चल रही थी, किंतु अब इनका आकार और भी तगड़ा करके थैलों में ब्याह शादी जनेऊ या अन्य मांगलिक कार्यों के कार्ड देने का नया चलन शुरू हो गया। मुझे तो लग रहा है कि आगे आने वाले समय में इन कार्डो का आकार और भी बढ़ जाएगा तथा ये ब्रीफकेस में रखकर बांटे जाएंगे। 
 हे भगवान यह सब क्या हो रहा है? इसे देखकर तो मुझे ऐसा लगता है कि डालमिया फार्म हाउस में हुए सैकड़ो हजारों पेड़ों के कत्ल में जो एफ आई आर दर्ज हुई है उसमें यह लोग भी नामजद होने चाहिए। कुछ लोग मेरी इस बात को मूर्खता कहेंगे किंतु इन मोटे-मोटे फैंसी कार्डो की खूबसूरती के पीछे कितनी क्रूरता छुपी है यह सोचने की बात है। इन कागजों के निर्माण की पृष्ठभूमि में उझकने से पता चलता है कि यह सब हरे भरे पेड़ों की कटान यानी हत्या का मामला है। जितना ज्यादा और जितनी बढ़िया क्वालिटी के कागजों का इस्तेमाल होगा उतनीं ही अधिक पेड़ों की हत्याएं होगी। 
 चाहे ब्याह शादी, जनेऊ या अन्य किसी भी प्रकार के निमंत्रण पत्र हों या मिठाई के डिब्बे हों अथवा अन्य किसी भी प्रकार के कागज गत्ता आदि इन सभी का अनावश्यक यानी व्यर्थ का उपयोग हम सभी को हत्यारों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर रहा है। मैं जिस कागज पर लिखता हूं बाद में उसी के पीछे भी लिखकर उसका भरपूर उपयोग करके ही रद्दी मानता हूं। हमारे यहां जो मिठाई बाजार से आती है उसके लिए घर से बर्तन भेज कर मंगाई जाती है। हालांकि दुकानदार बड़े आश्चर्यचकित होते हैं कि यह कैसा अजीब ग्राहक है? मिठाई ही क्या अन्य वस्तुओं में भी यथासंभव अपना वारदाना (बर्तन थैला) भेजकर उसमें सामान मंगाया जाता है। इससे मेरे मन को बड़ी तसल्ली या यौं कहें कि शांति मिलती है। एक और तो पेड़ों की रक्षा का ढिंढोरा पीटा जाता है और दूसरी ओर हर कोई करनी ऐसी करने में लगा हुआ है कि ज्यादा से ज्यादा पेड़ों का कटान हो। यह पेड़ भी जीव हैं।
 लिखते लिखते मुझे परम पूज्य देवराहा बाबा की वह बात याद आ रही है जब उनकी मचान के पास पेड़ की एक बड़ी डाली को कटने से बचाने की खातिर उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व• राजीव गांधी का कार्यक्रम स्वयं ही रद्द कर दिया। बात यह थी की सुरक्षा अधिकारियों ने उनकी मचान के पास लगे विशाल पेड़ की एक बड़ी डाली सुरक्षा के कारण से कटवाना चाहा ताकि दूर से बाबा और राजीव गांधी पर नजर बनी रहे। बाबा को जब यह बात पता चली तो उन्होंने साफ मना कर दिया और कहा कि यह पेड़ तो हमारा मित्र है, हम इससे रोजाना बतियाते हैं, किंतु सुरक्षा अधिकारी सुरक्षा की बात कह कर बाबा से बार-बार पेड़ की डाली कटवाने की मिन्नत करने लगे जो बाबा को अच्छा नहीं लगा। बाबा ने उनसे कह दिया कि अच्छा तो मैं तुम्हारे प्रधानमंत्री का कार्यक्रम ही निरस्त किए देता हूं। इसके कुछ देर बाद ही दिल्ली से रेडियो ग्राम आ गया कि प्रधानमंत्री का कार्यक्रम फिलहाल टाल दिया गया है।
 इसके कुछ दिन बाद राजीव गांधी पूज्य देवराहा बाबा का आशीर्वाद लेने आये किंतु पेड़ की डाली नहीं काटी गई। कहने का मतलब है कि इन वृक्षों की हत्या के घोर पाप से बचने के लिए हमें अनावश्यक रूप से कागजों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। भले ही ब्याह शादी या अन्य किसी आयोजन के निमंत्रण पत्र हों मिठाई या अन्य सामान में डिब्बों अथवा तमाम तरह की वस्तुओं की अनावश्यक पैकिंग ही क्यों न हो। कागज के अलावा गत्तों का भी अधिक प्रयोग बहुत गलत है क्योंकि गाय भैंस आदि पशुओं के खाने वाला भूसा इस कार्य में इस्तेमाल किया जाता है। फलस्वरुप भुस की कीमत आसमान छू रही है और पशुओं को अच्छी क्वालिटी का भूसा नसीब नहीं होता।
 अब इस बारे में ज्यादा कुछ कहने की आवश्यकता नहीं समझदार को तो इशारा ही बहुत होता है। मैंने तो अपनी मोटी बुद्धि के हिसाब से बहुत कुछ लिख दिया है। बाकी जिसकी जैसी मर्जी हो करे। करोगे तो आपको माई को न बाप को। जैसा करोगे वैसा भरोगे अर्थात जैसा बोओगे वैसा काटोगे। करनी करे तो क्यों करे करके क्यों पछताय बोऐ पेड़ बबूल के तो आम कहां से खाय। अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गईं खेत। यानी अंत में सिवाय हाथ मलाने के अलावा और कोई चारा बाकी नहीं रहेगा बाकी रहेगा तो सिर्फ मलाल।

अब तो निमंत्रण भी थैले में क्या आगे ब्रीफकेस की बारी

अब तो निमंत्रण भी थैले में क्या आगे ब्रीफकेस की बारी

विजय गुप्ता की कलम से

 मथुरा। कुछ दिन पहले की बात है। मेरे पास एक निमंत्रण पत्र जो मोटा ताजा है। कागजी थैले में रखकर आया। यह निमंत्रण पत्र बहुत पैसे वाले एक सज्जन के परिवार में होने वाले एक मांगलिक कार्यक्रम का था। थैले में रखकर अब तक तो कोई निमंत्रण पत्र आया नहीं, अब पहली बार मैंने देखा तो चौंक गया। अब तक तो सिर्फ लंबे चौड़े और भारी भरकम निमंत्रण पत्रों की स्पर्धा धनाढ्यो में चल रही थी, किंतु अब इनका आकार और भी तगड़ा करके थैलों में ब्याह शादी जनेऊ या अन्य मांगलिक कार्यों के कार्ड देने का नया चलन शुरू हो गया। मुझे तो लग रहा है कि आगे आने वाले समय में इन कार्डो का आकार और भी बढ़ जाएगा तथा ये ब्रीफकेस में रखकर बांटे जाएंगे। 
 हे भगवान यह सब क्या हो रहा है? इसे देखकर तो मुझे ऐसा लगता है कि डालमिया फार्म हाउस में हुए सैकड़ो हजारों पेड़ों के कत्ल में जो एफ आई आर दर्ज हुई है उसमें यह लोग भी नामजद होने चाहिए। कुछ लोग मेरी इस बात को मूर्खता कहेंगे किंतु इन मोटे-मोटे फैंसी कार्डो की खूबसूरती के पीछे कितनी क्रूरता छुपी है यह सोचने की बात है। इन कागजों के निर्माण की पृष्ठभूमि में उझकने से पता चलता है कि यह सब हरे भरे पेड़ों की कटान यानी हत्या का मामला है। जितना ज्यादा और जितनी बढ़िया क्वालिटी के कागजों का इस्तेमाल होगा उतनीं ही अधिक पेड़ों की हत्याएं होगी। 
 चाहे ब्याह शादी, जनेऊ या अन्य किसी भी प्रकार के निमंत्रण पत्र हों या मिठाई के डिब्बे हों अथवा अन्य किसी भी प्रकार के कागज गत्ता आदि इन सभी का अनावश्यक यानी व्यर्थ का उपयोग हम सभी को हत्यारों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर रहा है। मैं जिस कागज पर लिखता हूं बाद में उसी के पीछे भी लिखकर उसका भरपूर उपयोग करके ही रद्दी मानता हूं। हमारे यहां जो मिठाई बाजार से आती है उसके लिए घर से बर्तन भेज कर मंगाई जाती है। हालांकि दुकानदार बड़े आश्चर्यचकित होते हैं कि यह कैसा अजीब ग्राहक है? मिठाई ही क्या अन्य वस्तुओं में भी यथासंभव अपना वारदाना (बर्तन थैला) भेजकर उसमें सामान मंगाया जाता है। इससे मेरे मन को बड़ी तसल्ली या यौं कहें कि शांति मिलती है। एक और तो पेड़ों की रक्षा का ढिंढोरा पीटा जाता है और दूसरी ओर हर कोई करनी ऐसी करने में लगा हुआ है कि ज्यादा से ज्यादा पेड़ों का कटान हो। यह पेड़ भी जीव हैं।
 लिखते लिखते मुझे परम पूज्य देवराहा बाबा की वह बात याद आ रही है जब उनकी मचान के पास पेड़ की एक बड़ी डाली को कटने से बचाने की खातिर उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व• राजीव गांधी का कार्यक्रम स्वयं ही रद्द कर दिया। बात यह थी की सुरक्षा अधिकारियों ने उनकी मचान के पास लगे विशाल पेड़ की एक बड़ी डाली सुरक्षा के कारण से कटवाना चाहा ताकि दूर से बाबा और राजीव गांधी पर नजर बनी रहे। बाबा को जब यह बात पता चली तो उन्होंने साफ मना कर दिया और कहा कि यह पेड़ तो हमारा मित्र है, हम इससे रोजाना बतियाते हैं, किंतु सुरक्षा अधिकारी सुरक्षा की बात कह कर बाबा से बार-बार पेड़ की डाली कटवाने की मिन्नत करने लगे जो बाबा को अच्छा नहीं लगा। बाबा ने उनसे कह दिया कि अच्छा तो मैं तुम्हारे प्रधानमंत्री का कार्यक्रम ही निरस्त किए देता हूं। इसके कुछ देर बाद ही दिल्ली से रेडियो ग्राम आ गया कि प्रधानमंत्री का कार्यक्रम फिलहाल टाल दिया गया है।
 इसके कुछ दिन बाद राजीव गांधी पूज्य देवराहा बाबा का आशीर्वाद लेने आये किंतु पेड़ की डाली नहीं काटी गई। कहने का मतलब है कि इन वृक्षों की हत्या के घोर पाप से बचने के लिए हमें अनावश्यक रूप से कागजों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। भले ही ब्याह शादी या अन्य किसी आयोजन के निमंत्रण पत्र हों मिठाई या अन्य सामान में डिब्बों अथवा तमाम तरह की वस्तुओं की अनावश्यक पैकिंग ही क्यों न हो। कागज के अलावा गत्तों का भी अधिक प्रयोग बहुत गलत है क्योंकि गाय भैंस आदि पशुओं के खाने वाला भूसा इस कार्य में इस्तेमाल किया जाता है। फलस्वरुप भुस की कीमत आसमान छू रही है और पशुओं को अच्छी क्वालिटी का भूसा नसीब नहीं होता।
 अब इस बारे में ज्यादा कुछ कहने की आवश्यकता नहीं समझदार को तो इशारा ही बहुत होता है। मैंने तो अपनी मोटी बुद्धि के हिसाब से बहुत कुछ लिख दिया है। बाकी जिसकी जैसी मर्जी हो करे। करोगे तो आपको माई को न बाप को। जैसा करोगे वैसा भरोगे अर्थात जैसा बोओगे वैसा काटोगे। करनी करे तो क्यों करे करके क्यों पछताय बोऐ पेड़ बबूल के तो आम कहां से खाय। अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गईं खेत। यानी अंत में सिवाय हाथ मलाने के अलावा और कोई चारा बाकी नहीं रहेगा बाकी रहेगा तो सिर्फ मलाल।

प्रकृति के किसी भी कार्य की निंदा ईश्वर की निंदा के समान – देवराहा बाबा

मथुरा। ब्रह्म ऋषि पूज्य देवराहा बाबा कहा करते थे कि प्रकृति के किसी भी कार्य की निंदा करना ईश्वर की निंदा के समान है। बाबा कहते थे कि चाहे भीषण गर्मी पड़े अथवा कड़ाके की ठंड या फिर मूसलाधार वर्षा ही क्यों न हो हमें इनकी आलोचना नहीं करनी चाहिए।
     बाबा द्वारा कही गई बातों को संत शैलजाकांत द्वारा पिछले काफी दिनों पूर्व उस समय दोहराया जब मेरी उनसे फोन पर वार्ता हो रही थी। मैंने उनसे कहा कि मिश्रा जी ठंड बहुत कड़ाके की पड़ रही है पता नहीं कब इससे पिंड छूटेगा? मतलब मैंने ठंड की आलोचना सी की थी। शैलजाकांत जी कहते हैं कि सर्दी, गर्मी, वर्षा ही नहीं आंधी, तूफान, भूकंप आदि जो कुछ भी प्रकृति के कार्य हैं, वे सभी ईश्वर द्वारा संचालित हैं। उनका कथन है कि ईश्वर ने प्रकृति के हर कार्य को अपने नियंत्रण में रखा है।
     वे कहते हैं कि प्रकृति सभी के साथ न्याय करती है। संत जी का कहना है कि जैसे मूसलाधार वर्षा होती है, उससे नदियों में बाढ़ आ जाती है। सब तरफ पानी ही पानी दिखाई देता है। उससे भी बहुत लाभ होता है क्योंकि ताल तलैया भर जाते हैं और धरती के नीचे भी जीवन है, उन जीवों के लिए भी पानी की जरूरत होती है। वे भी ईश्वर की कृपा पर निर्भर हैं।
     शैलजाकांत जी कहते हैं कि ये सभी बातें बाबा मुझे बताया करते थे। उनका कथन था कि यदि प्रकृति के किसी भी कार्य से किसी को नफा नुकसान जो भी हो उसे उसको ईश्वरीय प्रसाद के रूप में स्वीकार करना चाहिए क्योंकि चाहे फायदा हो या नुकसान सब कुछ अपने कर्मों के अनुसार निर्धारित होता है। हमें ईश्वर द्वारा दिए गए किसी भी भोग की आलोचना करके अपने पाप की गठरी को बढ़ाना नहीं चाहिए।
     पूज्य देवराहा बाबा द्वारा कही गई गूढ़ रहस्य की ये दुर्लभ बातें बड़ी अनमोल हैं। इनका महत्व हम मोटी और क्षुद्र बुद्धि वाले स्वार्थी लोग अगर समझ लें तो मानो जीवन सफल हो गया। इसके अलावा एक और बहुत दुर्लभ बात शैलजाकांत जी ने मुझे बहुत समय पहले बताई थी। जिसे मैं पहले भी लिख चुका हूं अब पुनः बताता हूं।
     बात कई वर्ष पूर्व की है उनसे मेरी फोन पर बात चल रही थी। वह बता रहे थे की किस्सा उस समय का है जब महान संत गया प्रसाद जी जीवित थे। देवराहा बाबा महाराज के देह त्याग के पश्चात शैलजाकांत जी कभी-कभी संत गया प्रसाद जी के पास जाया करते थे। एक बार वे लंबे समय तक नहीं जा पाए जब वे अरसे के बाद गया प्रसाद जी के पास पहुंचे तो गया प्रसाद जी ने पूछा कि बहुत दिन बाद आए हो क्या बात है? इस पर शैलजाकांत जी ने कहा कि महाराज जी मेरी तबीयत ज्यादा खराब हो गई इसलिए नहीं आ पाया।
     इसके बाद शैलजाकांत जी ने गया प्रसाद जी से कहा कि महाराज जी अच्छा हुआ जो मेरी तबीयत खराब हो गई। हो सकता है मुझे कोई पाप हो गया होगा, जो कट गया। इतना सुनते ही गया प्रसाद जी बड़े जोर से हंसे और ताली बजाने लगे। जोर से हंसने और तड़ातड़ ताली बजाने के बाद बाबा बोले कि हां बिल्कुल ठीक कहा तुमने, पर लोग समझते कहां हैं इस बात को। कितनी गूढ़ और दुर्लभ बात थी जो इन दो संतों के मध्य हुए वार्तालाप से उपजी।
     इन बातों के इस रहस्य को हम मूर्ख लोग अगर गहराई से समझ लें तब तो फिर बात ही क्या है। औरों की क्या कहूं मैं खुद इस कसौटी पर फैलियर महसूस करता हूं। भगवान करे मुझे सद्बुद्धि मिले। एक बात और जो मुझे बताने की इच्छा बलवती हो रही है, क्योंकि यह बात शायद आज तक किसी ने नहीं सुनी होगी। संत शैलजाकांत जी के मुंह से मैंने कई बार सुना है कि घर में कोई व्याधि आ जाए तो उसकी चर्चा ज्यादा नहीं करनी चाहिए। इससे व्याधि देवता प्रसन्न होकर वहीं जमे रहते हैं। वे कहते हैं कि इस घर में तो मेरी खूब आवभगत हो रही है। अतः वे लंबे समय तक जमे रहते हैं। इस बात को ऐसे समझो जैसे अचानक कोई आपदा आ गई अर्थात बीमारी लग गई या दुर्घटना हो गई तो हर समय हर किसी से उस बात का रोना मत रोओ कि हाय हाय से हाय यह हो गया वह हो गया। बस पूरे दिन वही एक ही राग अलापना। यह सब व्याधि देवता को प्रसन्न कर व्याधि को अपने घर में बनाए रखने के लक्षण हैं। संत जी कहते हैं कि यह सब रहस्यमयी बातें बाबा मुझसे कहा करते थे। उनका कथन है कि जो कुछ घटित हो रहा है उसे सहन करते हुए बुरे समय को निकालो फिर तो व्याधि देवता स्वयं ही चुपके से खिसक लेंगे।
     हम लोगों का यह बड़ा सौभाग्य है कि ब्रजभूमि में एक से बढ़कर एक दुर्लभ संतों का समागम हुआ है। उनकी विलक्षण बातों के सार रूपी अमृत को यदि हम अपने जीवन में घोल लें तो जीवन की बगिया महक उठेगी। अर्थात 84 लाख योनियों के बाद मिला यह इंसानी जीवन सार्थक हो जाएगा। इससे भी बड़ा फायदा यह होगा कि देखा देखी हमारी अगली पीढ़ियां भी जिनकी खुशहाली के लिए हम लोग प्रयासरत रहते हैं, का भी लोक और परलोक आनंदमयी होगा।

संस्कृति विवि के मंच पर बिखरा पलक मुच्छल का जादू

मथुरा। संस्कृति विश्वविद्यालय स्पार्क 2025 के दूसरे दिन मुख्य मैदान में सजे मंच पर प्रसिद्ध गायिका पलक मुच्छल के गीतों की धूम रही। इस दौरान जहां एक ओर विद्यार्थियों का जबरदस्त शोर रहा वहीं दूसरी ओर तालियों ने पूरे माहौल को गरमा दिया।
स्पार्क 2025 के मुख्य आकर्षण के रूप में दूसरे दिन प्रसिद्ध गायिका पलक मुच्छल की गीतों भरी शाम शुरू हुई। तेज संगीत और विद्यार्थियों के बीच अनेक अनेक गीतों को एक लड़ी में प्रयोग कर पलक मुच्छल ने अपनी शाम की शुरुआत की। जब वे मंच पर आई तो विद्यार्थियों का शोर अपने चरम पर पहुंच गया। जैसे ही जिया जाए, जिया जाए ना मोरे पिया रे गाते हुए मंच पर आई तो संस्कृति के छात्र छात्राओं ने तालियां के साथ उनका जोरदार स्वागत किया। उन्होंने शुरुआत की एमएस धोनी फिल्म के प्रसिद्ध गीत, जब-जब सांसे भर्ती हूं ..कौन तुझे प्यार करेगा जैसे मैं करती हूं, से की। इसके बाद उन्होंने अपने प्रसिद्ध गीत आशिकी 2, हम तेरे बिन रह नहीं सकते, तेरे बिन अब जीना क्या, क्योंकि तुम ही हो, तुम ही हो तुम ही हो..। पलक के गीतों का यह क्रम जारी था और उनके गीतों पर युवा छात्र-छात्राएं झूम रहे थे। इसके बाद उन्होंने प्रसिद्ध गीत मेरे रश्के कमर तूने पहली नजर, जो नजर से मिलाई मजा आ गया। एक तो यह गीत ही बहुत लोकप्रिय है दूसरा पलक ने जिस अंदाज से इसको गया उसने सारे श्रोताओं के दिल और दिमाग पर जादू सा बिखैर दिया। सभी सुनने वाले गीतों की धुन पर ठुमकने लगे। इसके बाद उन्होंने प्रसिद्ध गीत सनम तेरी कसम गया और फरमाइशी गीतों को गाकर पलक लगातार विद्यार्थियों का दिल बहलाती रहीं। इनमें तेरी दीवानी, तेरे नाम से जी लूं तेरे नाम से मर जाऊं, गब्बर इस बैक का प्रसिद्ध गीत, सनम तू मेरा, तेरी मेरी कहानी, अभी चलता हूं दुआओं में याद रखना, सुनाया। ढेर सारी फरमाइशों को देखते हुए उन्होंने अपने गाए सभी गीतों को एक लड़ी में पिरोकर सुनना शुरू कर दिया, मैं तेनू समझावां की, तू है तो फिर क्या चाहिए, दिल एक दरिया, केसरिया तेरा इश्क है पिया सुनाया।
पलक ने अपने गीतों के बीच अपने भाई पलाश पलाश मुच्छल को भी इंट्रोड्यूस किया। उन्होंने काफी गीत सुनाए और कुछ देर के लिए पलक को विश्राम भी दिया। पलाश मुच्छल के बाद फिर से पलक आई और उन्होंने अपनी शुरुआत के गीतों जिसमें प्रेम रतन धन पायो, जैसे गीत सुन कर युवा विद्यार्थियों का खूब मनोरंजन किया।
इस गीतों भरी शाम का शुभारंभ संस्कृत विश्वविद्यालय की परंपराओं के अनुसार मां सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलन से हुआ। दीप प्रज्वलन संस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ सचिन गुप्ता ने कुलपति प्रोफेसर बीएम चेट्टी, सीईओ श्रीमती मीनाक्षी शर्मा और अन्य अतिथियों के साथ किया। संस्कृति विवि के प्रो चांसलर राजेश गुप्ता ने शानदार आयोजन के लिए सभी को शुभकामनाएं दीं।इस मौके पर दिव्यांग बच्चों द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम भी बहुत सराहा गया। विद्यार्थियों ने गीतों भरी शाम को देर रात तक खूब एंजॉय किया पलक मुच्छल के बाद प्रसिद्ध डीजे ने जब मंच पर गीतों की संख्या शुरू की तो समय कब गुजर गया पता ही नहीं चला श्याम लगभग 7:30 बजे से शुरू हुआ यह कार्यक्रम देर रात 12:00 के बाद तक चला।

बेसहारा बच्चों की बड़ी मदद करती हैं पलक
अपनी दिल को छूने वाली आवाज के साथ बॉलीवुड, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक जैसे प्लेटफार्म पर राज करने वाली पलक सात वर्ष की उम्र से गा रही हैं। उन्होंने बताया कि वे अपनी कमाई का 99 प्रतिशत से अधिक हृदय रोगी बच्चों के ऑपरेशन के लिए खर्च कर देती हैं। अब तक तीन हजार चार सो अट्ठासी बच्चों के हार्ट का ऑपरेशन कराकर उनको स्वस्थ जीवन दे चुकी हैं, जिसके लिए उन्हें राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिल चुकी है। इसके लिए उन्होंने विशेष रूप से बॉलीवुड स्टार सलमान खान के सहयोग की प्रशंसा की।

मन से खेलें और सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन से जीतें सभी का दिलः अमित पचहराआईपीएल स्टार ने किया के.डी. डेंटल कॉलेज में स्पर्धा-2025 का शुभारम्भ

मथुरा। पढ़ाई से समय निकाल कर आप खेल में सहभागिता करने जा रहे हैं, यह अच्छी बात है। खेलों में सहभागिका का जो अवसर मिला है, उसमें मन से खेलें तथा सद्भाव के वातावरण में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए अपने टीम साथियों का दिल जीतें। यह सारगर्भित उद्गार के.डी. डेंटल कॉलेज की स्पर्धा-2025 के शुभारम्भ अवसर पर मुख्य अतिथि भारतीय अण्डर 19 टीम के पूर्व बल्लेबाज अमित पचहरा ने छात्र-छात्राओं को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। स्पर्धा-2025 का शुभारम्भ आईपीएल स्टार अमित पचहरा, मुख्य कार्यकारी अधिकारी अरुण अग्रवाल, डीन और प्राचार्य डॉ. मनेष लाहौरी ने राष्ट्रगान के बाद गुब्बारे उड़ाकर किया।
डॉ. लाहौरी ने मुख्य अतिथि अमित पचहरा तथा कार्यकारी अधिकारी अरुण अग्रवाल का स्वागत किया। वीरेंद्र सहवाग और सुरेश रैना की बल्लेबाजी शैली के मुरीद अमित पचहरा ने आयोजन की प्रशंसा करते हुए कहा कि खेलों से ही हम फिजिकल फिट रह सकते हैं। जो छात्र-छात्राएं नियमित रूप से किसी न किसी खेल में हिस्सा लेते हैं वे अन्य छात्र-छात्राओं की अपेक्षा अधिक स्वस्थ और तरोताजा रहते हैं। उन्होंने कहा कि शरीर के विकास के लिए सिर्फ पोषक पदार्थों से युक्त भोजन ही नहीं बल्कि अच्छी सेहत और बेहतर मानसिक विकास के लिए खेलना भी जरूरी है। आर.के. एज्यूकेशनल ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. रामकिशोर अग्रवाल तथा प्रबंध निदेशक मनोज अग्रवाल ने अपने संदेश में छात्र-छात्राओं से आपसी मेलजोल के साथ खेलों में शिरकत करने का आह्वान किया। डॉ. अग्रवाल ने कहा कि शिक्षा और खेल एक-दूसरे के पूरक हैं। नियमित खेलने से इंसान तन-मन से स्वस्थ रहता है।
अपने सम्बोधन में प्राचार्य डॉ. लाहौरी ने कहा कि आज हर व्यक्ति स्वस्थ रहना चाहता है, समाज में खेल संस्कृति के प्रति चेतना आई है। लोग खेलों के महत्व को स्वीकारने लगे हैं। खेलकूद न केवल छात्र-छात्राओं का मनोरंजन करते हैं अपितु उनके स्वास्थ्य को भी उत्तम बनाते हैं। डॉ. लाहौरी ने कहा कि स्वस्थ रहने का अर्थ रोगरहित तन का होना ही नहीं बल्कि तनावमुक्त मन का होना भी है। शरीर और मन दोनों की स्वस्थता जीवन में सफलता के साथ आनंदमय जीवन जीने का सूत्र है। अंत में उन्होंने छात्र-छात्राओं से खेलभावना के साथ विभिन्न प्रतियोगिताओं में शिरकत करने का आह्वान किया।
स्पोर्ट्स आफीसर डॉ. सोनू शर्मा ने स्पर्धा-2025 की जानकारी देते हुए कहा कि छात्र-छात्राओं को छह ग्रुपों में बांटा गया है। छात्र वर्ग की कप्तानी हर्षित चौहान तथा छात्रा वर्ग की कप्तानी जितिन लाहौरी को सौंपी गई है। प्रतियोगिता के व्यवस्थित संचालन की जवाबदेही स्पोर्ट्स आफीसर लोकेश शर्मा, लक्ष्मीकांत चौधरी, राहुल सोलंकी आदि सम्हाल रहे हैं। एक पखवाड़े तक चलने वाली स्पर्धा-2025 में क्रिकेट, शतरंज, बास्केटबाल, वॉलीबाल, फुटबाल, कबड्डी, रस्साकशी, बैडमिंटन, कैरम, पंजा-कुश्ती, थ्रोबाल, एथलेटिक्स आदि स्पर्धाएं होंगी।
स्पर्धा का आगाज रस्साकशी प्रतियोगिता से हुआ। छात्र वर्ग की रस्साकशी प्रतियोगिता इंटर्न ने पीजी को हराकर जीती जबकि छात्रा वर्ग के फाइनल में पीजी की छात्राओं ने बीडीएस प्रथम वर्ष टीम को शिकस्त दी। शानदार मार्चपास्ट में बीडीएस दूसरा वर्ष विजेता तथा बीडीएस प्रथम वर्ष उप-विजेता रहा। स्पर्धा-2025 के शुभारम्भ अवसर पर डॉ. अजय नागपाल, डॉ. शैलेन्द्र चौहान, डॉ. नवप्रीत कौर, डॉ. सुषमा, डॉ. अनुज, प्रशासनिक अधिकारी नीरज छापड़िया तथा बड़ी संख्या में खिलाड़ी छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन अदिति शर्मा और अदिति अग्रवाल ने किया।
चित्र कैप्शनः के.डी. डेंटल कॉलेज में गुब्बारे उड़ाकर स्पर्धा-2025 का शुभारम्भ करते हुए आईपीएल स्टार अमित पचहरा, मुख्य कार्यकारी अधिकारी अरुण अग्रवाल, डीन और प्राचार्य डॉ. मनेष लाहौरी आदि। दूसरे चित्र में मैदान में उपस्थित खिलाड़ी।

चित्र परिचयः संस्कृति विवि में आयोजित कार्यशाला में उपस्थित विशेषज्ञ वक्ता संस्कृति विवि में विशेषज्ञों ने छात्रों को बताए उद्यमी मानसिकता के गुर

मथुरा। संस्कृति विश्वविद्यालय के उद्यमी क्लब ने ‘उद्यमी मानसिकता: लचीलापन और अनुकूलनशीलता विकसित करना’ विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यशाला में उद्योग जगत के प्रतिष्ठित पेशेवर और विश्वविद्यालय के गणमान्य लोग उद्यमिता, लचीलापन और अनुकूलनशीलता पर बहुमूल्य जानकारी देने के लिए एक साथ आए।
कार्यशाला में मुख्य वक्ता के रूप में ईटन एडवाइजर्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक प्रहलाद त्रिपाठी ने विद्यार्थियों के बीच वित्त और स्टॉक ब्रोकिंग में अपने विशाल उद्योग अनुभव को साझा किया। उन्होंने उद्यमशीलता की यात्रा में वित्तीय साक्षरता, रणनीतिक जोखिम उठाने और दृढ़ता के महत्व पर चर्चा की। उनका सत्र विशेष रूप से दिलचस्प था क्योंकि उन्होंने वास्तविक दुनिया के व्यावसायिक परिदृश्यों को उद्यमशीलता की रणनीतियों से जोड़ा। वहीं यूनीकौशल की सह-संस्थापक और सीईओ सुश्री मृदुला त्रिपाठी ने महत्वाकांक्षी उद्यमियों के साथ अपने अनुभव और विशेषज्ञता साझा की। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्कृति विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डॉ.) एम. बी. चेट्टी ने की। उन्होंने इस अवसर पर छात्रों को भविष्य के करियर के लिए तैयार करने में उद्यमशीलता शिक्षा के महत्व पर जोर दिया। छात्रों ने वक्ताओं के साथ सक्रिय रूप से बातचीत की और उद्यमशीलता की चुनौतियों का सामना करने और नवाचार एवं अनुकूलनशीलता की मानसिकता को बढ़ावा देने के बारे में व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया। कार्यशाला के समन्वयक डॉ. गजेंद्र सिंह, सीईओ संस्कृति इंक्युबेशन सेंटर थे। प्रबंधन एवं वाणिज्य विद्यालय से डॉ. शांतम बब्बर और सुश्री रूबी देवी ने भी इस कार्यशाला के आयोजन में विशेष सहयोग दिया।
कार्यशाला के दौरान ज्ञानवर्धक चर्चाएं, संवादात्मक सत्र और विशिष्ट अतिथियों का सम्मान किया गया। इससे पूर्व प्लेसमेंट सेल की सुश्री ज्योति यादव ने विशिष्ठ अतिथियों का परिचय कराते हुए स्वागत के दौरान इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे अनुकूलनशीलता और लचीलापन सहित उद्यमी कौशल को केंद्रित शिक्षा और वास्तविक दुनिया के संपर्क के माध्यम से पोषित किया जा सकता है।। सत्र का समापन प्रबंधन एवं वाणिज्य विद्यालय के डीन प्रो. (डॉ.) मनीष अग्रवाल के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। कार्यक्रम को छात्रों और संकाय सदस्यों से जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली, जिससे यह संस्कृति विश्वविद्यालय में उद्यमशीलता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बन गया।कार्यक्रम में स्टूडेंट वेलफेयर विभाग के डीन डा. डीएस तोमर भी मौजूद रहे। कार्यक्रम के अंत में स्कूल ऑफ मैनेजमेंट एंड कॉमर्स के डीन (प्रो.) डॉ. मनीष अग्रवाल द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया।

संस्कृति विवि में आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने वाले संस्कृति स्कूल आफ नर्सिंग के विद्यार्थी एवं वक्ता।

मथुरा। संस्कृति स्कूल आफ नर्सिंग और जिला रोजगार कार्यालय के सम्मिलित प्रयासों से रोजगार के क्षेत्र में विवि के विद्यार्थियों को नए अवसर मिले हैं। संस्कृति स्कूल आफ नर्सिंग के विद्यार्थियों को इज़राइल, जापान और जर्मनी में उच्च वेतनमान पर नौकरी करने का अवसर मिला है।
संस्कृति विश्वविद्यालय के सभागार में संस्कृति स्कूल आफ नर्सिंग, संस्कृति प्लेसमेंट सेल और जिला रोजगार कार्यालय के समन्वित प्रयासों से विदेशों में रोजगार के अवसरों के प्रति एक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम की मुख्य वक्ता जिला रोजगार कार्यालय अधिकारी सुश्री सुगंधा जैन ने विशेष रूप से नर्सिंग के विद्यार्थियों को जानकारी देते हुए बताया कि आपने इस कोर्स में प्रवेश लेकर अपने सुनिश्चित भविष्य का चयन किया है। हमारे देश में ही नहीं विदेशों में नर्सिंग सेवाओं के लिए बड़ी संख्या में प्रशिक्षित और डिग्रीधारक विद्यार्थियों की जरूरत है। उन्होंने विद्यार्थियों को विश्वसनीय पोर्टल की सूची बताते हुए कहा कि यहां आप अपना रजिस्ट्रेशन कराकर विदेशों में बहुत ही अच्छे वेतनमान पर रोजगार पा सकते हैं। उन्होंने कार्यक्रम के दौरान ही विभिन्न वेबसाइट पर रोजगार कार्यालय के माध्यम से विद्यार्थियों के रजिस्ट्रेशन कराए। उन्होंने बताया कि इजराइल, जापान और जर्मनी में इस समय नर्सिंग के क्षेत्र में बहुत सारे अवसर हैं।
कार्यक्रम के दौरान संस्कृति नर्सिंग स्कूल के प्राचार्य डा. केके पाराशर ने बताया कि रोजगार कार्यालय मथुरा के सहयोग से 42 विद्यार्थियों ने विदेशों में नौकरी के लिए रजिस्ट्रेशन कराए हैं। डा. पाराशर ने बताया कि यह एक ऐसा क्षेत्र हैं जहां कोर्स करने के बाद शत-प्रतिशत रोजगार की संभावना होती है। आपका परिश्रम और समर्पण आपको बहुत आगे तक ले जा सकता है। उन्होंने कहा कि भारत में नर्सिंग के क्षेत्र में प्रशिक्षित लोगों की बड़ी जरूरत है लेकिन विदेशों में उच्च वेतनमान के कारण विद्यार्थियों का वहां जाने के प्रति विशेष आकर्षण रहता है।
कार्यक्रम के मध्य संस्कृति प्लेसमेंट सेल के जयवर्धन नगाइच ने विभिन्न देशों में रिक्तियों की जानकारी देते हुए बताया कि संस्कृति विवि के बच्चे किस-किस देश में नौकरी कर रहे हैं। कार्यक्रम में मुकुल, अमनदीप दुबे भी मौजूद रहे। अंत में संस्कृति स्कूल आफ इंजीनियरिंग की डा. रीना रानी से सभी वक्ताओं का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया।

राजीव एकेडमी के छात्र-छात्राएं एआई और ऑटोमेशन के अंतर से हुए रूबरूएआई और ऑटोमेशन तकनीकें व्यवसाय के कुशल संचालन में मददगार

मथुरा। एआई और ऑटोमेशन दोनों ही महत्वपूर्ण तकनीकें हैं जो व्यवसायों के कुशल संचालन तथा उत्पादकता बढ़ाने में मददगार हैं। एआई मशीनों को मानव जैसी सोच और निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करती है जबकि ऑटोमेशन मानव श्रम को कम करने और कार्यों को स्वचालित करने पर केन्द्रित है। इन तकनीकों को एक साथ मिलाकर संगठनों को और भी अधिक कुशल तथा उत्पादक बनाया जा सकता है। यह बातें इन्फोटेक प्रा.लि. के निदेशक मनु कपूर ने राजीव एकेडमी फॉर टेक्नोलॉजी एण्ड मैनेजमेंट के छात्र-छात्राओं को बताईं।
आर्टिफिशियल इण्टेलिजेंसी एण्ड ऑटोमेशन विषय पर बोलते हुए अतिथि वक्ता मनु कपूर ने कहा कि यह मशीनों को मनुष्यों की तरह सोचने और काम करने में सक्षम बनाता है। इसके कई फायदे हैं जैसे कि यह बड़ी मात्रा में डेटा को प्रोसेस कर सकता है। यह डेटा से सीखता है और निर्णय लेता है तथा यह गतिशील वातावरण में भी काम कर सकता है। उन्होंने कहा कि एआई ऑटोमेशन का उपयोग करके व्यवसायों को अपनी प्रक्रिया को स्वचालित करके मानव त्रुटियों को कम करके दक्षता में सुधार करने में मदद मिल सकती है।
श्री कपूर ने कहा कि एआई व ऑटोमेशन के उपयोग से व्यवसायों को अपनी उत्पादकता में सुधार करने में मदद मिल सकती है क्योंकि वे कम समय में अधिक काम कर सकते हैं। इसके प्रयोग से व्यवसायों को मानव कार्यबल से राहत मिल सकती है। एआई का उपयोग करके व्यवसायों के डेटा का विश्लेषण करके और बेहतर निर्णय लेने में मदद मिल सकती है। छात्र-छात्राओं को सम्बोधित करते हुए इनोवर्क इन्फोटेक के सीनियर ट्रेनिंग आफिसर नितिन कुमार ने कहा कि एआई और ऑटोमेशन दोनों ही तकनीक महत्वपूर्ण हैं। इनका अधिक से अधिक प्रयोग कर व्यवसाय को अधिक कुशल, उत्पादक और प्रतिस्पर्धी बनाया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि एआई का उपयोग स्वचालन को बेहतर बनाने के लिए किया जा सकता है। इससे मशीनें जहां जटिल कार्यों को कर सकती हैं वहीं मानव हस्तक्षेप की आवश्यकता भी कम हो जाती है। उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इण्टेलिजेंसी के निरन्तर कार्यान्वयन से व्यवसायों को अपनी उत्पादकता में सुधार करने में मदद मिल सकती है। यह ग्राहक-सामना करने वाले उद्योगों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। विशेषज्ञों ने छात्र-छात्राओं को जहां मशीन लर्निंग और डीप लर्निंग के अन्तर से रूबरू कराया वहीं डीप लर्निंग और न्यूरल नेटवर्क पर भी विस्तार से जानकारी दी।
कार्यक्रम में छात्र-छात्राओं ने डेटा माइनिंग और बिग डेटा की जानकारी भी जुटाई। इस अवसर पर एसएमओसी सोशल मीडिया के बारे में छात्र-छात्राओं को समाधान देते हुए अनालिटिक्स और क्लाउड पर विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया गया। विशेषज्ञों ने अंतिम वर्ष के छात्र-छात्राओं को अपने प्रोजेक्ट बनाने के लिए कई प्रकार के सम्भावित टॅापिक्स बताए गए। इतना ही नहीं उन्हें बैंकिंग सेक्टर में करिअर निर्माण हेतु महत्वपूर्ण टिप्स भी दिए। अंत में संस्थान के निदेशक डॉ. अभिषेक सिंह भदौरिया ने अतिथि वक्ताओं का छात्र-छात्राओं को बहुमूल्य समय देने के लिए आभार माना।
चित्र कैप्शनः राजीव एकेडमी के छात्र-छात्राओं को एआई और ऑटोमेशन की जानकारी देते हुए इन्फोटेक प्रा.लि. के निदेशक मनु कपूर।

कुत्तों पर अत्याचार करने वाले भी कुत्ते और मूक बनकर तमाशबीन बने रहने वाले तो महाकुत्ते

मथुरा। सभी जानते हैं कि कुत्ता वफादार जानवर है। वह मालिक की खातिर अपनी जान की बाजी लगाने से भी पीछे नहीं हटता। यह कुत्ते रात रात भर जाग कर हम लोगों की पहरेदारी करते हैं। पुराने समय से ही यह चलन रहा है कि पहली रोटी गाय की और आखिरी रोटी कुत्ते की, लेकिन बड़ी दुखद और शर्मनाक बात यह है कि आजकल इन्हीं के साथ न सिर्फ क्रूरता हो रही है बल्कि इनकी प्रजाति को ही समाप्त करने का कुचक्र रचा जा रहा है।
     मेरा मानना है कि कुत्तों पर अत्याचार करने वाले तो कुत्ते हैं ही पर मूक बनकर तमाशबीन बने रहने वाले हम लोग महाकुत्ते हैं। किसी को बुरा लगे या भला किंतु यह बात एकदम खरी है। आजकल नगर निगम द्वारा इन निरीह प्राणियों के ऊपर जो अत्याचार किए जा रहे हैं, वह अक्षम्य हैं।
     इन कुत्तों पर अत्याचारों का सिलसिला अभी शुरू नहीं हुआ है यह तो लंबे समय यानी कई माह से चल रहा है। महाकुत्तों वाली श्रेणी में तो कुछ कुछ मैं अपने को भी मानता हूं, क्योंकि पिछली गर्मियों में मैंने कुत्तों को जाल में दबोच कर नगर निगम के सफाई कर्मियों को ले जाते हुए देखा था। तब से अब जाकर मेरा मुंह खुला है।
     जब मैंने होली गेट के पास कुत्तों को सुबह-सुबह जाल में फंसाते देखा तो जानकारी करने पर पता चला कि उनकी नसबंदी की जाएगी और बाद में जहां से पकड़ा जा रहा है वहीं लाकर छोड़ा जाएगा। तमाम तरह की समस्याओं के चलते में खाली सोचता ही रह गया किया कुछ नहीं। फिर कुछ दिन बाद हमारे निवास “नवल नलकूप” से मेरी अनुपस्थिति में कुत्तों के पूरे झुंड को पड़कर सुबह-सुबह ले गए सिर्फ दो कुतियाओं को कुछ लोगों ने छुपा लिया वह बच गईं बाकी सभी चले गए।
     रोजाना सुबह सूर्योदय से पूर्व गेट खुलने से पहले कुत्तों का झुंड हमारे दरवाजे पर खड़ा मिलता था क्योंकि उन्हें टोस्ट खिलाये जाते थे किंतु अब सिर्फ दो कुतिया ही आती हैं। इससे यह दावा झूठा सिद्ध हो गया कि जहां से कुत्तों को पकड़ कर ले जाया जाता है। नसबंदी के बाद उन्हें वापस वहीं छोड़ा जाता है।
     कुछ दिन पूर्व मैंने अपने संवाददाता दिनेश कुमार को इस बात का पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपी कि पकड़ कर ले जाने के बाद कुत्तों को कहां रखा जाता है और उनकी क्या गति होती है? दिनेश जी ने सहायक नगर आयुक्त श्री रामजी लाल जो इस कार्य के नोडल अधिकारी हैं, से बात की और पूंछा कि कुत्तों को कहां रखा जाता है? इस पर उन्होंने बताया कि मुझे नहीं पता। हमने तो एक एन.जी.ओ. (प्राइवेट संस्था) को यह जिम्मेदारी दे रखी है। राम जी लाल जी ने एक चिकित्सक का फोन नंबर दे दिया तथा कहा कि इनसे पता कर लो।
     जब चिकित्सक से बात की तो उन्होंने बताया कि डी.एम. निवास के पिछवाड़े में डेयरी फार्म के निकट यमुना किनारे पर इनका ठिकाना है। दिनेश जी जब वहां पहुंचे तो पता चला कि यहां का ठिकाना तो अभी निर्माणाधीन है। इस समय तो कुत्ते बाद के निकट राधा टाउन कॉलोनी के एक बाड़े में हैं। इसके बाद दिनेश जी राधा टाउन पहुंचे तो वहां कुत्तों की बड़ी दुर्गति हो रही थी। कुछ कुत्ते जाल में फंसे छटपटा रहे थे तथा कुछ एक बड़े पिंजरे में भयभीत से पड़े हुए थे। वहां के लोगों ने बताया कि कभी-कभी यह कुत्ते पिंजरे के अंदर आपस में बुरी तरह लड़ते झगड़ते हैं और घायल भी हो जाते हैं।
     इस सब घटनाक्रम से अंदाज लगाया जा सकता है कि कुत्तों के साथ कितनी क्रूरता हो रही है। कैसे इन्हें खिलाया पिलाया जाता होगा? क्या होता होगा भगवान ही जाने। जब हमारे घर के पास के कुत्तों का छ: माह से अभी तक आता पता नहीं तो फिर मथुरा वृंदावन क्षेत्र के सैकड़ो हजारों कुत्तों की क्या गति हुई होगी? कितने मरे होंगे कितने जिंदे बचे होंगे? क्या-क्या हुआ होगा? और क्या-क्या नहीं हुआ होगा? इस सब का अंदाजा लगाया जा सकता है। कहने का मतलब है कि सब कुछ अंधेरे में है और अखबारों में खबर ऐसी छपवाई जाती हैं जैसे इनकी मेहमानों की तरह खातिरदारी होती है और डॉक्टरों व कर्मचारियों की टीम हर समय कुत्तों की सेवा में लगी रहती है।
     अब इस सब माथा पच्ची से अलग हटकर मैं यह पूछना चाहता हूं कि कुत्तों को पड़कर उनकी नसबंदी का क्या औचित्य है? कुछ लोग कहेंगे कि कुत्ते बहुत ज्यादा हो गए हैं, लोगों को काट भी लेते हैं। आदि आदि। मैं पूछना चाहता हूं कि क्या इंसानों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी नहीं बढ़ रही है? क्या यह लोग हिंसक होकर मार काट लूटपाट आदि घिनौने अपराध नहीं कर रहे? फिर तो इंसानों को भी पकड़ पकड़ कर उनकी भी नसबंदी होनी चाहिए।
     बताया गया है कि इन कुत्तों की नसबंदी के नाम पर प्रति कुत्ता लगभग एक हजार व्यय होता है। इसमें कितना खर्च होता होगा और कितने में बंदर बांट होती होगी यह तो राम जाने। पर इतना जरूर है कि इन बेचारों के साथ यह जघन्यता अक्षम्य है। इन बेजुबान निरीह प्राणियों के साथ यह क्रूर अत्याचार मथुरा वृंदावन ही नहीं देशभर में हो रहे हैं।
     ऐसा लगता है कि कुत्ता विरोधी विचारधारा वाले लोग इस प्रजाति को ही समाप्त करना चाहते हैं। मेरी सोच यह है कि जो लोग कुत्तों की बहु संख्या व उनके आक्रामक होने के नाम पर जुल्म ढाने के समर्थक हैं, उन्हें सबसे पहले अपनी और अपने परिवार के सभी सदस्यों की नसबंदी कर लेनी चाहिए क्योंकि इंसान भी तो कुकुरमुत्ते की तरह उगते चले जा रहे हैं, उनमें भी तो कुछ हिंसक होकर जघन्य अत्याचार कर रहे हैं।
     अंत में यह भी कहूंगा कि जो कुत्ता विरोधी विचारधारा के लोग हैं और उन पर हो रहे अत्याचारों में सहयोगी हैं। अगले जन्म में वे जरूर कुत्ते बनेंगे और जैसे जुल्म इन कुत्तों पर हो रहे हैं उससे भी अधिक जुल्म उन पर होंगे।
     एक बात और कहनी है वह यह कि अगर हम सभी लोग बगैर तनखा वाले इन पहरेदारों को कुछ न कुछ खिलाते रहेंगे तो फिर कोई भी कुत्ता हिंसक नहीं होगा। ये भूख प्यास से भी चिड़चिड़े और हिंसक हो जाते हैं। हम सभी को मिल जुल कर कुत्तों को नसबंदी के नाम पर पकड़ कर उन पर अत्याचार करने का विरोध करना चाहिए ना कि अपनी जुबान पर ताला लगा तमाशबीन बने रहकर महाकुत्ता वाली श्रेणी में अपना नाम दर्ज कराना चाहिए।

वार्षिक शैक्षणिक परिणाम और यूकेजी स्नातक समारोह में झूमे बच्चे

वृंदावन। सारंग हाई इम्पैक्ट स्कूल, वृंदावन ने गर्व के साथ वार्षिक शैक्षणिक परिणाम की घोषणा की और एक भावपूर्ण समारोह में अपर किंडर गार्डन (यूकेजी) से अपने सबसे कम उम्र के विद्यार्थियों के स्नातक होने का जश्न मनाया। यह कार्यक्रम बच्चों, उनके परिवारों और स्कूल समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।
सभी बच्चों को उनके शैक्षणिक परिणाम, एक पदक और उपलब्धि का प्रमाण पत्र दिया गया। खास बात यह थी कि सभी बच्चों को उनके विशेष गुणों के अनुसार उपाधियाँ दी गईं, जिससे उन्हें प्रेरणा मिली और हर चेहरे पर मुस्कान आ गई।
स्नातक समारोह भी हंसी, खुशी के आंसुओं और उपलब्धि की भावना से भरा एक जीवंत और आनंदमय अवसर था। यूकेजी की स्नातक कक्षा ने अपने स्नातक गाउन और टोपी पहने हुए आकर्षक प्रदर्शनों की एक श्रृंखला के माध्यम से अपनी वृद्धि और सीखने का प्रदर्शन किया।
स्नातक दिवस समारोह की शुरुआत कार्यक्रम के परिचय और निदेशक खुशबू सोढ़ी, मार्तंड उपाध्याय के माता-पिता, मेजर जनरल लायन सुभाष ओहरी, उनके समकक्ष, विशेष आमंत्रितों और प्यारे माता-पिता के स्वागत के साथ हुई। कार्यक्रम में बच्चों ने नृत्य, भाषण और कविताओं और श्लोकों के पाठ से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। प्रत्येक प्रदर्शन ने यूकेजी में अपने कार्यकाल के दौरान उनके द्वारा अर्जित कौशल और ज्ञान को दर्शाया।
फिर विशेष आमंत्रित, मेजर जनरल लायन सुभाष ओहरी को युवा स्नातकों को सम्मानित करने के लिए मंच पर आमंत्रित किया गया। उन्होंने उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए स्नातकों और उनके माता-पिता को बधाई देते हुए कहा कि हम अपने बच्चों की उपलब्धियों, विकास और यूकेजी वर्ष में उनके द्वारा बनाई गई अद्भुत यादों का जश्न मना रहे हैं। हमने उन्हें सीखते, हंसते और आत्मविश्वासी और जिज्ञासु शिक्षार्थी बनते देखा है जो इन बच्चों के प्रदर्शन में बहुत स्पष्ट है। हम सभी बच्चों को अपनी शुभकामनाएं देते हैं।
समारोह का मुख्य आकर्षण रोल ऑफ ऑनर्स, सर्टिफिकेट ऑफ अचीवमेंट, मेडल और स्मृति चिन्हों का वितरण किया गया। प्रत्येक बच्चा मंच पर आया और दर्शकों की तालियों की गड़गड़ाहट के साथ अपने प्रमाण पत्र प्राप्त किए। माता-पिता ने भी सत्र के दौरान अपने बच्चों के पालन-पोषण के बारे में अपनी भावनाएँ व्यक्त कीं और कहा कि स्कूल बहुत बढ़िया काम कर रहा है और भविष्य के प्रयासों में स्कूल को शुभकामनाएँ दीं। फिर सभी बच्चों ने एक ग्रेजुएशन शपथ ली जिसमें कहा गया कि वे निरंतर विकास और खोज की यात्रा पर निकलने का संकल्प लेते हैं और सभी के प्रति दयालु होने और नई चीजें सीखते रहने का वादा करते हैं। उन्होंने हमेशा सीखने, चमकने, मुस्कुराने और खुश रहने का भी संकल्प लिया। उन्होंने आगे आजीवन सीखने के लिए प्रतिबद्ध रहने और अपने आस-पास की दुनिया में हमेशा सकारात्मक योगदान देने का प्रयास करने का वादा किया। कार्यक्रम का समापन वोट ऑफ थैंक्स, एक ग्रुप फोटो सेशन और जलपान के साथ हुआ। माता-पिता, शिक्षकों और छात्रों ने खुशी के पल साझा किए और इस खास दिन की यादों को संजोया।
‘सारंग’ अपने शिक्षार्थियों के लिए एक पोषण और प्रेरणादायक वातावरण प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है, जो उनके भविष्य की शैक्षणिक सफलता के लिए एक मजबूत नींव रखता है। यह समारोह समग्र विकास के प्रति स्कूल के समर्पण और प्रत्येक बच्चे की अद्वितीय क्षमता के उत्सव का प्रमाण है।