मथुरा। संस्कृति विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों के बीच सर्वाधिक पसंददीदा आयोजन संस्कृति स्पोर्ट्स फिएस्टा 25 का आयोजन 27 फरवरी से होने जा रहा है। विश्वविद्यालय में हर वर्ष होने वाले खेलों को समर्पित इस आयोजन की तैयारी युद्ध स्तर पर चल रही है। चार गुटों में बंटे खिलाड़ी अपने-अपने ग्रुप को चैंपियन बनाने की होड़ में जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। खिलाड़ियों के प्रोत्साहन के लिए अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त खेल हस्तियां भी आ रही हैं।
संस्कृति स्पोर्ट्स फिएस्टा 25 के अंतर्गत सभी आउटडोर, इनडोर और एथलैटिक खेलों का आयोजन किया जा रहा है। इस बीच क्रिकेट और फुटबाल के मैच विशेष आकर्षण का केंद्र होंगे। विद्यार्थियों के उत्साहवर्धन के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त खिलाड़ियों के भी आने की संभावना है।
संस्कृति स्पोर्ट्स फिएस्टा 25 के संयोजक मो फहीम ने बताया कि तीन दिवसीय इस खेल आयोजन में 1312 खिलाड़ी 28 खेलों के लिए 40 मैच होंगे। पहले दिन यानि 27 फरवरी को क्रिकेट, फुटबॉल, जैवलिन थ्रो, शॉर्टपुट, रेस, बैडमिंटन, शतरंज, टेबल टेनिस आदि खेल होंगे।
संस्कृति यूनिवर्सिटी स्पोर्ट्स फिएस्टा 27 से एक मार्च तक
छह गांवों को नगर पंचायत बनाने की मांग
- सांसद हेमा मालिनी ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर की मांग
- अडींग, ओल, नौहझील, पैगांव, सोनई तथा मांट प्रस्ताव में शामिल
- बडी ग्राम पंचायतों को नगर पंचायत बनाने से विकास को लगेंगे पंख
मथुरा। सांसद हेमा मालिनी ने जनपद की छह ग्राम पंचायतों को नगर पंचायत का दर्जा प्रदान किए जाने के लिए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है। उन्होंने इसमें गोवर्धन तहसील की अड़ींग व ओल, मांट से नौहझील,छाता से पैगांव, बलदेव की सोनई तथा मांट को नगर पंचायत बनाने का आग्रह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से किया है।
मुख्यमंत्री को उन्होंने अवगत कराया कि संसदीय क्षेत्र मथुरा भगवान कृष्ण की लीला व क्रीडा भूमि है। इसीलिए समूचे विश्व के आकर्षण का केन्द्र है। यहां करोड़ों श्रद्धालु आते हैं। इससे अनेक स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलता है। सरकार इस दिशा में स्वयं प्रगतिशील है। बढ़ते तीर्थाटन के मद्देनजर बृहद जनसंख्या वाली एवं धार्मिक स्थलों के नजदीकी ग्राम पंचायतों को नगर पंचायत बनाने से सरकार की तीर्थ विकास की सोच को गति मिलेगी।

उन्होंने कहा कि कोई भी श्रद्धालु आता है तो वह तीर्थ स्थलों के निकट के स्थलों से भी रूबरू होता है। इसलिए विकास उन स्थानों पर भी होना चाहिए। उन्हें भारतीय जनता पार्टी के जिला प्रतिनिधि दिलीप कुमार यादव ने अवगत कराया कि गोवर्धन क्षेत्र की अड़ींग और ओल को नगर पंचायत बनाने की मांग तीन दशक से की जा रही है। पूर्व में तत्कालीन विधायकों ने विधानसभा में भी सवाल उठाए । बड़ी ग्राम पंचायतों के बेहतर संचालन के लिए संसाधन भी चाहिए जोकि ग्राम पंचायतों के पास नहीं हैं। कयी पंचायत एक से डेढ़ किलोमीटर में फैली हैं और साफ सफाई के लिए तीन चार लोग भी नहीं होते। आदमी हों तो संसाधन नहीं होते। उन्होंने सांसद महोदया का आभार जताया कि उन्होंने ग्रामीण विकास के मुद्दे को गंभीरता से लिया है व सतत रूप से परस्यू करने का आश्वासन दिया है।
जीएलए में सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखने को एकजुट हुए विशेषज्ञ
- जीएलए में ‘भारतीय भाषा परिवारः भारत के भाषाई बंधन’ विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई
मथुरा : जीएलए विश्वविद्यालय, मथुरा के अंग्रेजी विभाग में भारतीय भाषा समिति, भारत सरकार, के सहयोग से “भारतीय भाषा परिवारः भारत के भाषाई बंधन” विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई। कार्यक्रम में राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने, सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और सामाजिक-आर्थिक विकास में योगदान देने में भाषाई विविधता की भूमिका पर ध्यान केंद्रित किया गया।
पद्मश्री चामू कृष्ण शास्त्री ने एक रिकॉर्ड किए गए संदेश में भारत भर में भाषाई एकता को बढ़ावा देने में भारतीय भाषा परिवार के महत्व पर जोर दिया। जीएलए के कुलपति प्रो. अनूप कुमार गुप्ता ने संज्ञानात्मक लचीलेपन और अंतर-सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देकर शैक्षणिक परिणामों को बढ़ाने में बहुभाषी कक्षाओं के महत्व पर प्रकाश डाला।
अंग्रेजी विभाग के प्रमुख डा. रामांजने उपाध्याय ने भावी पीढ़ियों के लिए भारत की भाषाई विरासत को संरक्षित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने भाषाई विविधता के विभिन्न पहलुओं को संबोधित किया। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. रमेश चंद शर्मा ने भाषाई एकता को बढ़ावा देने में भारतीय भाषा समिति के प्रयासों पर चर्चा की, जबकि कश्मीर विश्वविद्यालय के प्रो. मुसाविर अहमद ने लुप्तप्राय भाषाओं के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित किया।
अन्य प्रमुख वक्ताओं में एमिटी विश्वविद्यालय के प्रो. अनिल सेहरावत शामिल थे, जिन्होंने राष्ट्र निर्माण में भाषा की भूमिका की खोज की और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के डा. पल्लव विष्णु ने चर्चा की कि शैक्षिक प्रौद्योगिकी बहुभाषी शिक्षार्थियों की कैसे सहायता करती है।
सेमिनार के समन्वयक हरविंदर नेगी ने बहुभाषिकता और राष्ट्र निर्माण में एनईपी 2020 की भूमिका पर बात की।
जीएलए के डा. रामकुलेश ठाकुर और डा. प्रवीण सिंह ने भारत की सांस्कृतिक और ज्ञान प्रणालियों के संरक्षण में भाषा की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने भाषाई विविधता और लुप्तप्राय भाषाओं पर शोध पत्र तैयार करने में भी रुचि पैदा की, जिससे भारत की भाषाई नीतियों पर चल रही बातचीत में योगदान मिला।
एआई और ऑटोमेशन से बदलती भारतीय नौकरियों की तस्वीर
- देश का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो अर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन का भारतीय नौकरियों पर होने वाले प्रभावों से चिंतित है
एजुकेशन डेस्क : गत 23 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम के 119वें एपिसोड के अंतर्गत स्पेस साइंस, हेल्थ टिप्स, महिला सशक्तिकरण, आईसीसी. चैंपियंस ट्रॉफी के साथ-साथ एक बहुत ही अहम् मुद्दे पर चर्चा की। यह विषय था ‘अर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ या एआई।
उन्होंने बताया कि पिछले दिनों पेरिस में आयोजित एक सम्मलेन के दौरान वहां आमंत्रित विभिन्न राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने अर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन के क्षेत्र में भारत के युवाओं और प्रोफेशनल्स की दक्षता और उनके योगदान की एक सुर में बहुत प्रशंसा की। वैश्विक मंच से इस प्रकार की सराहना, निश्चित रूप से भारतीय प्रतिभा और योग्यता पर मुहर लगने जैसा ही है।
परन्तु फिर भी देश का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो अर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन का भारतीय नौकरियों पर होने वाले प्रभावों से चिंतित है। आज के दौर में अर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन उद्योगों में तेजी से बदलाव आ रहे हैं। भारत, जो दुनिया की सबसे बड़ी श्रमशक्ति में से एक है, इस तकनीकी क्रांति के प्रभावों को महसूस कर रहा है। जहां एक ओर एआई और ऑटोमेशन नए अवसर पैदा कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पारंपरिक नौकरियों पर इसका नकारात्मक प्रभाव भी देखा जा रहा है।
भारत में एआई और ऑटोमेशन का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट में एआई आधारित टूल्स का उपयोग बढ़ रहा है, जिससे जटिल कार्य जल्दी और कुशलता से पूरे किए जा रहे हैं। ऑटोमेशन के कारण डाटा एंट्री, टेस्टिंग और बेसिक प्रोग्रामिंग जैसी नौकरियों पर असर पड़ा है। ऑटोमेशन ने फैक्ट्रियों में मशीनों के उपयोग को बढ़ा दिया है, जिससे कई श्रमिकों की जरूरत कम हो गई है। इसके साथ ही ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में रोबोटिक्स का बढ़ता इस्तेमाल भी खूब देखने को मिल रहा है। बैंकिंग सेवाओं में भी एआई आधारित चैटबॉट्स और स्वचालित ग्राहक सेवा समाधान अपनाए जा रहे हैं। जिनमें मुख्यतः लोन अप्रूवल, फर्जीवाड़ा पकड़ने और निवेश की गणना करने में एआई का उपयोग बढ़ रहा है, जिससे बैंक कर्मचारियों की पारंपरिक भूमिकाएं प्रभावित हो रही हैं।
मेडिकल सेवाओं में भी एआई आधारित डायग्नोसिस टूल्स और रोबोटिक सर्जरी का चलन निरंतर बढ़ रहा है। टेलीमेडिसिन और स्वचालित स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं से पारंपरिक डॉक्टरों और कर्मचारियों की मांग में बदलाव देखने में आ रहा है। इसी तरह से ई-कॉमर्स और लॉजिस्टिक्स सेक्टर में भी स्वचालित वेयरहाउस, रोबोटिक्स और ड्रोन डिलीवरी जैसी तकनीकों से श्रमिकों की मांग कम हो रही है। एआई आधारित कस्टमर सपोर्ट और चैटबॉट्स ने कॉल सेंटर नौकरियों को काफी हद तक प्रभावित किया है।
हालांकि, एआई और ऑटोमेशन केवल नौकरियों को खत्म ही नहीं कर रहे, बल्कि नए रोजगार के अवसर भी पैदा कर रहे हैं, जैसे डेटा साइंस, मशीन लर्निंग, साइबर सिक्योरिटी, क्लाउड कंप्यूटिंग जैसे नए क्षेत्रों में पेशेवरों की अत्यधिक मांग है। सरकार और निजी संस्थाएं ढेरों स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम चला रही हैं ताकि लोग नई तकनीकों से जुड़ सकें। एआई आधारित उत्पादों के डेवलपर, रोबोटिक्स इंजीनियर, साइबर सिक्योरिटी विशेषज्ञ और डिजिटल मार्केटिंग जैसी नई नौकरियाँ उभर रही हैं। भारत में स्टार्टअप्स और टेक्नोलॉजी कंपनियों को एआई आधारित समाधान विकसित करने के लिए कुशल पेशेवरों की आवश्यकता है। अब इंसान और मशीन मिलकर हाइब्रिड वर्क मॉडल के तहत काम कर रहे हैं, जिससे नए प्रकार की नौकरियों का जन्म हो रहा है।
इस तेज़ी से बदलते हुए माहौल में सरकार, और बहुत सी निजी कंपनियां एक बहुत बड़ी भूमिका निभा रही हैं, जिनमे विशेष रूप से शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाना, नए स्टार्टअप और निवेश का माहौल बनाना और साथ ही आसान नीतियाँ एवं कानून को लागू करना है। भारत सरकार अर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एंड मशीन लर्निंग पर आधारित विभिन्न कोर्स और प्रशिक्षण कार्यक्रम चला रही है। डिजिटल इंडिया और स्किल इंडिया जैसी योजनाओं से युवाओं को नई तकनीकों से जोड़ा जा रहा है। सरकार और निजी कंपनियाँ मिलकर एआई स्टार्टअप्स को बढ़ावा दे रही हैं, जिससे नए रोजगार के अवसर पैदा हो रहे हैं। इनके साथ-साथ, सरकार को ऐसी नीतियाँ बनानी होंगी जो ऑटोमेशन से प्रभावित लोगों को सुरक्षा प्रदान कर सकें। न्यूनतम वेतन, श्रमिक अधिकार और बेरोजगारी भत्ते जैसी योजनाओं को भी लागू करने की आवश्यकता है।
एआई और ऑटोमेशन भारत की अर्थव्यवस्था को यकीनी तौर पर बदल रहे हैं। हालांकि, इससे कुछ पारंपरिक नौकरियां खत्म तो हो रही हैं, लेकिन यह भी सच है कि नए अवसर भी तेजी से उभर रहे हैं। सरकार, उद्योगों और शिक्षा प्रणाली को मिलकर काम करना होगा ताकि लोग इस बदलाव के लिए तैयार हो सकें। यदि उचित दिशा में कदम उठाए जाएं, तो भारत न केवल इस तकनीकी क्रांति में लंबे समय तक अग्रणी भूमिका निभा सकता है, बल्कि अन्य देशों के लिए मार्गदर्शक भी बन सकता है। सच तो यह है कि एआई से डरने की जरूरत नहीं है, बल्कि इसे समझकर और अपनाकर निरंतर आगे बढ़ने की आवश्यकता है।
लेखक –
डा. निखिल गोविल
[email protected]
राजीव एकेडमी के जॉब फेयर में चमकी छात्र-छात्राओं की किस्मत
- तीस से अधिक कम्पनियों ने 150 से अधिक युवाओं का उच्च पैकेज पर किया चयन
मथुरा। छात्र-छात्राओं को शिक्षा के साथ ही उनके करियर को नया आयाम देने के लिए राजीव एकेडमी फॉर टेक्नोलॉजी एण्ड मैनेजमेंट में एक सप्ताह के मेगा जॉब फेयर का आयोजन किया गया। जॉब फेयर में आई 30 से अधिक कम्पनियों ने अलग-अलग स्ट्रीम के 150 से अधिक छात्र-छात्राओं को उच्च पैकेज पर जॉब हेतु चयनित किया है। जानी-मानी कम्पनियों में मिले सेवा के अवसर से छात्र-छात्राएं ही नहीं उनके माता-पिता भी खुश हैं।
आर.ए.टी.एम. और क्रोमा कैम्पस कम्पनी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक सप्ताह के उक्त जॉब फेयर में जॉब पाने की होड़ में सभी कोर्सों के हजारों छात्र-छात्राओं ने भाग लिया और अपनी-अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। इस जॉब फेयर में तीस से अधिक बड़ी कम्पनियों द्वारा छात्र-छात्राओं के स्किल और प्रतिभा का विभिन्न तरीके से मूल्यांकन किया गया। छात्र-छात्राओं की मेधा और कौशल से प्रभावित होने के बाद कम्पनी पदाधिकारियों ने उन्हें जॉब आफर किया।
इस जॉब फेयर में राजीव एकेडमी फॉर टेक्नोलॉजी एण्ड मैनेजमेंट के 532 छात्र-छात्राओं ने अलग-अलग कम्पनियों के सामने अपनी बौद्धिकता की बानगी पेश की। कुछ विद्यार्थी इस प्रकार के अगले कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए पूरी लगन और मेहनत से तैयारी कर रहे हैं। जॉब फेयर में कम्पनियों द्वारा काफी सकारात्मक रुख अपनाए जाने से छात्र-छात्राओं में प्रसन्नता और उल्लास का वातावरण है। चयनित छात्र-छात्राओं ने सफलता का श्रेय राजीव एकेडमी की उच्चस्तरीय पठन-पाठन प्रणाली तथा प्रयोगात्मक गतिविधियों को दिया है। जॉब कन्फर्मेशन के बाद अब छात्र-छात्राओं को ऑफर लेटर मिलने की प्रतीक्षा है।
आर.के. एज्यूकेशन ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. रामकिशोर अग्रवाल ने जॉब फेयर के आयोजन की प्रशंसा करते हुए कहा कि इससे छात्र-छात्राओं को अपनी प्रतिभा का मूल्यांकन करने का मौका मिलता है। डॉ. अग्रवाल ने कहा कि जब तक छात्र को अपनी योग्यता का पता नहीं चलता, वह भ्रमित रहता है। जॉब फेयर में प्रतिभागी को स्वयं का मूल्यांकन होने के साथ ही अपनी कमियों का भी पता चलता है। जब छात्र को स्वयं की कमियां मालूम हो जाती हैं तब उसे आगे की रणनीति तैयार करने में काफी मदद मिलती है।
उपाध्यक्ष पंकज अग्रवाल तथा प्रबंध निदेशक मनोज अग्रवाल ने चयनित छात्र-छात्राओं को बधाई देते हुए कहा कि ऐसे जॉब फेयर का सभी को फायदा उठाना चाहिए। संस्थान के निदेशक डॉ. अभिषेक सिंह भदौरिया ने सभी विद्यार्थियों से परिश्रमपूर्वक अध्ययन करने का आह्वान किया। डॉ. भदौरिया ने जिन छात्र-छात्राओं का चयन नहीं हुआ उन्हें निराश न होने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि भविष्य में इसी प्रकार के और भी आयोजन होंगे, इसलिए छात्र-छात्राएं अभी से तैयारी प्रारम्भ कर दें।
संस्थान के ट्रेनिंग एण्ड प्लेसमेंट प्रमुख डॉ. विकास जैन ने बताया कि चूंकि राजीव एकेडमी में कम्पनियों को प्रतिभावान तथा कौशल से परिपूर्ण छात्र-छात्राएं मिल जाते हैं इसीलिए बड़ी-बड़ी कम्पनियां यहां कैम्पस प्लेसमेंट को हमेशा तैयार रहती हैं। डॉ. जैन ने कहा कि राजीव एकेडमी उद्योग जगत (इण्डस्ट्रीज) का अधिकाधिक ध्यान आकृष्ट कर रही है। कम्पनियों के लगातार कैम्पस प्लेसमेंट के लिए आने से यहां अध्ययनरत छात्र-छात्राओं को भी लाभ मिल रहा है।
मथुरा रिफाइनरी ने उन्नत मोतियाबिंद सर्जरी के लिए रामकृष्ण मिशन, वृन्दावन को फेको मशीन सौंपी
मथुरा । मथुरा रिफाइनरी ने अपनी स्थापना के बाद से ही विभिन्न सीएसआर पहलों के अंतर्गत स्थानीय निवासियों के लाभ के लिए काम किया है। मथुरा रिफाइनरी में बुनियादी ढांचे का विकास, शौचालयों का निर्माण, स्कूल के लिए फर्नीचर उपलब्ध कराना, महिला सशक्तिकरण, कौशल विकास, चिकित्सा सुविधाएं आदि कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी के प्रमुख क्षेत्र हैं।
इसी क्रम में वित्त वर्ष 2024-25 के लिए कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत, मथुरा रिफाइनरी ने रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम, वृन्दावन को फेकोइमल्सीफिकेशन मशीन प्रदान की। मथुरा रिफाइनरी की इस पहल से आरकेएमएस में नेत्र उपचार सुविधाओं में बढ़ोतरी होगी और लोगों को काफी फायदा मिलेगा। श्री मुकुल अग्रवाल, कार्यकारी निदेशक व रिफाइनरी प्रमुख, मथुरा रिफाइनरी ने हाल ही में आरकेएमएस में आयोजित एक समारोह के दौरान इस मशीन का उद्घाटन किया और इसे स्वामी सुप्रकाशानंद, सचिव आरकेएमएस को सौंपा|
फेकोइमल्सीफिकेशन मशीन मोतियाबिंद के इलाज की नवीनतम तकनीक है। यह मशीन धुंधले लेंस को तोड़ने और हटाने के लिए अल्ट्रासोनिक ऊर्जा का उपयोग करती है और फिर उसके स्थान पर एक आईओएल (इंट्रा ओकुलर लेंस) प्रत्यारोपित किया जाता है। इस मशीन में इस्तेमाल की गई तकनीक बहुत उन्नत है। यह मशीन मथुरा रिफाइनरी द्वारा 76.49 लाख. रुपये की लागत से आरकेएमएस को सौंपी गई है।
रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम एक प्रतिष्ठित संस्थान है जिससे मथुरा रिफाइनरी कई वर्षों से जुड़ी है | पिछले कई सालों में रिफाइनरी की ओर से आरकेएमएस के उद्देश्य का समर्थन किया है और सहायता प्रदान की गयी है जैसे:
- वित्तीय वर्ष 2015-16 में रु. 14 लाख की लागत से एक एम्बुलेंस।
- महिला छात्रों को उनके जीएनएम पाठ्यक्रमों के लिए वर्ष 2019-20 से लगातार दो बैचों को 63 लाख रुपये से प्रायोजित किया है |
- वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान 62.00 लाख रुपये की लागत से 200 किलोवाट रूफ टॉप ऑन ग्रिड सौर ऊर्जा संयंत्र प्रदान किया है |
देश के जाने-माने विशेषज्ञों ने पीजी छात्रों को पढ़ाया हड्डी रोगों के सटीक उपचार का पाठ
- के.डी. मेडिकल कॉलेज में आर्थोपेडिक्स स्नातकोत्तर शिक्षण पाठ्यक्रम का समापन
- पाठ्यक्रम की यूपी, हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड के परास्नातक छात्रों ने की सराहना
मथुरा। समाज को बेहतर चिकित्सा और विशेषज्ञ चिकित्सक उपलब्ध कराने के उद्देश्य से के.डी. मेडिकल कॉलेज-हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेण्टर में आयोजित दो दिवसीय आर्थोपेडिक्स स्नातकोत्तर शिक्षण पाठ्यक्रम में देश के जाने-माने हड्डी रोग विशेषज्ञों एवं शल्य चिकित्सकों ने कई राज्यों से आए परास्नातक छात्रों को हड्डी रोगों के उपचार की कारगर विधियों की विस्तार से जानकारी दी। रविवार शाम परास्नातक छात्रों को प्रमाण-पत्र प्रदान कर आर्थोपेडिक्स स्नातकोत्तर शिक्षण पाठ्यक्रम का समापन हुआ।
उत्तर प्रदेश मेडिकल काउंसिल तथा मथुरा आर्थोपेडिक्स एसोसिएशन के सहयोग से के.डी. मेडिकल कॉलेज में पहली बार आयोजित आर्थोपेडिक्स स्नातकोत्तर शिक्षण पाठ्यक्रम के दूसरे दिन देश-दुनिया के ख्यातिलब्ध चिकित्सकों डॉ. अनिल जैन (पूर्व प्राचार्य और डीन फैकल्टी आफ मेडिकल साइंस) यूसीएमएस नई दिल्ली, प्रो. (डॉ.) ललित मैनी (एमएएमसी), इंडियन आर्थोपेडिक्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. सुधीर कपूर (डीन ईएसआईसी पीजीआईएमएसआर दिल्ली) तथा प्रो. (डॉ.) अब्दुल कय्यूम खान (विभागाध्यक्ष आर्थोपेडिक्स, एएमयू) आदि ने के.डी. मेडिकल कॉलेज के साथ ही मथुरा, अलीगढ़, आगरा, सैफई, देहरादून, लखनऊ, अमृतसर, पानीपत, रोहतक आदि से आए परास्नातक ऑर्थोपेडिक्स छात्रों को हड्डी रोगों से पीड़ित मरीजों का अधिक सटीक निदान, उपचार और बेहतर शल्य क्रिया की विस्तार से जानकारी दी।
स्पाइन सर्जरी में अपनी विशिष्टता तथा ऑर्थोपेडिक्स में कई पुस्तकें लिख चुके डॉ. अनिल जैन ने छात्रों को बताया कि चिकित्सा क्षेत्र में निरंतर तकनीकी बदलाव हो रहे हैं। नवीनतम सर्जिकल तकनीकों से उपचार में सहजता हो रही है लिहाजा प्रत्येक भावी सर्जन को तकनीकी बदलावों से हमेशा अपडेट रहना चाहिए। इसी तरह प्रो. (डॉ.) ललित मैनी (एमएएमसी), डॉ. सुधीर कपूर (डीन ईएसआईसी पीजीआईएमएसआर दिल्ली) तथा प्रो. (डॉ.) अब्दुल कय्यूम खान (विभागाध्यक्ष आर्थोपेडिक्स, एएमयू) आदि ने वीडियो व्याख्यान, नैदानिक परीक्षण के प्रदर्शन, केस-आधारित शिक्षण, एक्स-रे प्रदर्शन, सिद्धांत नोट्स, ओएससीई स्टेशन, शल्य चिकित्सा प्रक्रिया आदि के माध्यम से पीजी छात्रों को उपचार की जानकारी दी।
आर्थोपेडिक्स स्नातकोत्तर शिक्षण पाठ्यक्रम के आयोजन अध्यक्ष डॉ. विक्रम शर्मा, सचिव डॉ. विवेक चांडक, कोषाध्यक्ष डॉ. अमित अग्रवाल ने के.डी. मेडिकल कॉलेज को आयोजन का महती दायित्व सौंपने के लिए उत्तर प्रदेश मेडिकल काउंसिल का आभार माना। डॉ. विक्रम शर्मा ने कहा कि के.डी. मेडिकल कॉलेज नवाचार को बढ़ावा देने तथा चिकित्सा क्षेत्र को कुशल चिकित्सक मिलें, इसके लिए भविष्य में भी ऐसे आयोजन करेगा। डॉ. विवेक चांडक ने बताया कि इस शिक्षण पाठ्यक्रम से परास्नातक आर्थोपेडिक्स छात्रों को बेहतर उपचार और सर्जरी आदि में मदद मिलेगी। मथुरा जिला ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. आदेश शर्मा, डॉ. अमित शर्मा, डॉ. हेमराज सैनी, डॉ. आर.के. गुप्ता विभागाध्यक्ष (हड्डी रोग) केएम मेडिकल कॉलेज, डॉ. अश्वनी सदाना विभागाध्यक्ष (हड्डी रोग) एफएच मेडिकल कॉलेज, डॉ. डीपी गोयल, डॉ. निर्विकल्प अग्रवाल, डॉ. अमन गोयल आदि ने भी अपने-अपने अनुभवों से छात्रों का मार्गदर्शन किया। पाठ्यक्रम में सहभागिता करने वाले छात्रों ने विशेषज्ञों के सुझावों पर अमल करने का संकल्प लिया।
आर.के. एज्यूकेशनल ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. रामकिशोर अग्रवाल तथा प्रबंध निदेशक मनोज अग्रवाल ने के.डी. मेडिकल कॉलेज को आर्थोपेडिक्स स्नातकोत्तर शिक्षण पाठ्यक्रम के आयोजन का दायित्व मिलने पर खुशी जताते हुए कहा कि ऐसे शिक्षण पाठ्यक्रमों से ब्रज क्षेत्र सहित देश को अच्छे विशेषज्ञ चिकित्सक और सर्जन मिलेंगे, जिसका समाज को लाभ मिलेगा। डॉ. अग्रवाल ने कहा कि देश के जाने-माने हड्डी रोग विशेषज्ञों द्वारा मेडिकल छात्रों को दी गई जानकारी उनके काफी काम आएगी। पाठ्यक्रम के समापन अवसर पर डॉ. विक्रम शर्मा, डॉ. विवेक चांडक, डॉ. अमित रे, डॉ. प्रतीक अग्रवाल, डॉ. हेमराज सैनी, डॉ. सौरभ वशिष्ठ आदि ने अपना बहुमूल्य समय और अनुभव देने के लिए सभी विशेषज्ञ चिकित्सकों का आभार माना। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अमित अग्रवाल तथा डॉ. अनन्या ने किया।
जैसे हज वाले हाजी जी वैसे कुम्भ वाले कुम्भी जी
विजय गुप्ता की कलम से
मथुरा। जिस प्रकार हज यात्रा करने वालों को हाजी जी कहा जाता है वैसे ही कुम्भ में जाकर स्नान करने वालों को भी कुम्भी जी कहना चाहिए। यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं कि जो कुम्भ में जाकर स्नान कर आए वे तो अब महान हो गए, अब उन्हें साधारण इंसान नहीं माना जा सकता क्योंकि वर्तमान हालातों से तो यही प्रतीत हो रहा है।
बचपन में अक्सर टिड्डी दल को देखा करते थे ठीक वही स्थिति अब दिखाई दे रही है। बल्कि यौं कहा जाए कि जानबूझकर मरने के लिए इस तरह बेताब हो रहे हैं जैसे पतंगे आग में जाने के लिए। अब तक हजारों मर चुके फिर भी पागलपन का नशा नहीं उतर रहा।
लोग कहेंगे कि हजारों कैसे मर गए? तो मैं अभी सिद्ध किये देता हूं कि हजारों की संख्या पक्की है। पहले तो कुम्भ में मची भगदड़ में मरे, उसके बाद दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर। इन मृतकों से भी कहीं ज्यादा तो तभी से मर रहे हैं जब से कुंभ की शुरुआत हुई थी। लोग कहेंगे कि वह कैसे? तो इसका जवाब यह है कि रोजाना तमाम खबरें पूरे देश के विभिन्न हिस्सों से मिल रही हैं, कि फलां जगह वाहन टकराये, बस पलटी, असंतुलित होकर गड्ढे में जा गिरी आदि आदि। अखबारों में छपी खबरों में लिखा रहता है कि ये लोग कुम्भ जा रहे थे या कुम्भ से लौट रहे थे। अनेक कुम्भ यात्री मौत के मुंह में जा रहे हैं और उससे भी ज्यादा घायल हो रहे हैं। क्या इनकी संख्या कुम्भ से नहीं जुड़ेगी?
मेरे कहने का मतलब यह नहीं कि मैं कोई सनातन विरोधी हूं। पर यह तो सोचना चाहिए कि ऐसी भीड़ में हम क्यों जाएं? यदि कुम्भ नहीं जाएंगे तो क्या आगे की जिंदगी नहीं चलेगी? या कुम्भ न जाने पर समाज में अछूत की तरह माने जाएंगे। मैं यह देख रहा हूं कि लोग अपने घटिया कर्मों को तो त्याग नहीं रहे और कुम्भ में जाने के लिए पगलाए जा रहे हैं। हत्यारे, चोर, उचक्के, दुराचारी, लुटेरे, बेईमान, झूठ बोलने वाले, मांसाहारी, शराबी तथा भ्रष्टाचारी आदि दुर्गुण संपन्न भी कुम्भ में डुबकी लगाने की होड़ा-होड़ी में मरे जा रहे हैं। ये लोग सोच रहे होंगे कि अब तो हमारे सभी पाप पुण्य के रूप में परिवर्तित हो जाएंगे और स्वर्ग लोक की गारंटी पक्की।
मेरा मानना तो यह है की कुम्भ में तो सिर्फ उन्हीं लोगों को जाना चाहिए जो ईश्वर में आस्था रखने वाले सदाचारी हों हर प्रकार के दुर्गुणों से दूर रहकर अपनी जिंदगी को सादगी और परमार्थ के साथ जी रहे हों। नास्तिक सोच रखने वाले धूर्त लोगों के जाने से तो गंगा जमुना और भी दूषित होंगी। अंत में मुझे सिनेमा का वह गाना याद आ रहा है कि “राम तेरी गंगा मैली हो गई पापियों के पाप धोते-धोते।
संस्कृति विवि में राष्ट्रीय शिक्षा नीति(एनईपी 2020) पर हुई गंभीर चर्चा
मथुरा । संस्कृति विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एजुकेशन द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 पर एक एक महत्वूर्ण सेमिनार का आयोजन विश्वविद्यालय के सभागार में आयोजित किया गया। सेमिनार में भारत में शिक्षा के भविष्य पर चर्चा के लिए संकाय सदस्यों और छात्रों को एक मंच पर बोलने का मौका दिया गया। वक्ता शिक्षकों और विद्यार्थियों ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के परिवर्तनकारी पहलुओं पर अपनी अंतर्दृष्टि साझा की।
सेमिनार संस्कृति विश्वविद्यालय की स्कूल ऑफ एजुकेशन की डीन डॉ. रैनू गुप्ता के दूरदर्शी मार्गदर्शन में आयोजित किया गया। कार्यक्रम का प्रारंभ देवांशु के स्वागत भाषण से हुआ। उन्होंने भारत की शिक्षा प्रणाली को नया आकार देने में एनईपी 2020 के महत्व पर जोर दिया। चर्चा में विद्यार्थियों के बराबर से भाग लेने के कारण विषय की बारीकियों पर खुलकर बात हुई। प्रत्येग वक्ता ने अपने विचारों को पूरी स्वतंत्रता के साथ विस्तार से रखा। छात्र प्रवीण और अतुल (बी.एससी., बी.एड. सेमेस्टर 4) ने इस बात पर जोर दिया कि कैसे एनईपी 2020 रटने से दूर जाता है, जबकि छात्र विकास और लक्ष्य (बी.ए., बी.एड. सेमेस्टर 2) ने नीति का एक संपूर्ण अवलोकन प्रदान किया। छात्र कृष ने एनईपी 2020 के जटिल विवरणों को समझाया और छात्र शिव (बीए, बीएड सेमेस्टर 4) ने अपने वक्तव्य को भाषा नीति पर केंद्रित किया।
संकाय सदस्यों ने अपने विशेषज्ञ दृष्टिकोण से चर्चा को और समृद्ध किया। डॉ. अर्चना ने इस बात पर जोर दिया कि कैसे ये प्रौद्योगिकियां शिक्षा को अधिक संवादात्मक, अनुभवात्मक और भविष्य के लिए तैयार बनाकर क्रांतिकारी बदलाव लाएंगी। डॉ. पूनम ने मूलभूत शिक्षा के महत्व पर जोर देते हुए प्राथमिक शिक्षा स्तर पर एनईपी 2020 के प्रभाव पर प्रकाश डाला। डॉ. निशा ने एक व्यापक सिंहावलोकन प्रदान किया, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि छात्र नीति के पीछे समग्र दृष्टिकोण को समझ सकें।
सत्र के सबसे प्रभावशाली क्षणों में से एक सुश्री शुभ्रा पांडे का भाषण था, जिन्होंने विचारोत्तेजक सादृश्य के माध्यम से एनईपी 2020 के सार को समझाया। उन्होंने पेंटिंग में उत्कृष्ट लेकिन गणित में संघर्ष कर रहे एक बच्चे की एक ज्वलंत तस्वीर चित्रित की, जिसमें बताया गया कि कैसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति छात्रों को कठोर शैक्षणिक संरचनाओं तक सीमित हुए बिना अपनी ताकत का पीछा करने की अनुमति देती है। उन्होंने 5+3+3+4 शिक्षा मॉडल का स्पष्ट और आकर्षक विवरण भी प्रदान किया, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि विद्यार्थी, शिक्षक एनईपी 2020 द्वारा शुरू किए गए प्रमुख संरचनात्मक सुधारों को समझ सकें।
सेमिनार का समापन सुश्री शुभ्रा पांडे के हार्दिक धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ, जिन्होंने संकाय, समन्वयकों और छात्रों के योगदान की सराहना की। छात्रों की उत्साही भागीदारी और संकाय के व्यावहारिक योगदान के साथ, सेमिनार ने शैक्षिक सुधारों पर सार्थक चर्चा को बढ़ावा देने और छात्रों को विकसित शैक्षणिक परिदृश्य को नेविगेट करने के लिए ज्ञान से लैस करने के लिए संस्कृति विश्वविद्यालय की प्रतिबद्धता पर सफलतापूर्वक प्रकाश डाला।
ऑर्थोपेडिक्स निरंतर सीखने का व्यापक विषयः डॉ. अनिल ढल
- के.डी. मेडिकल कॉलेज में आर्थोपेडिक्स स्नातकोत्तर शिक्षण पाठ्यक्रम आयोजित
- पाठ्यक्रम में यूपी, हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड के परास्नातक छात्रों ने लिया हिस्सा
मथुरा। चिकित्सा क्षेत्र में निरंतर तकनीकी बदलाव हो रहे हैं, ऑर्थोपेडिक्स भी इससे अछूता नहीं है। नवीनतम सर्जिकल तकनीकों से लेकर नवीनतम इम्प्लांट तकनीकों तक ऑर्थोपेडिक सर्जनों के लिए उपलब्ध उपकरण और विधियां लगातार परिवर्तनशील अवस्था में हैं, ऐसी स्थिति में प्रत्येक परास्नातक मेडिकल छात्र का यह दायित्व है कि वह अपने आपको हमेशा अपडेट रखे। यह बातें शनिवार को के.डी. मेडिकल कॉलेज-हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेण्टर में उत्तर प्रदेश मेडिकल काउंसिल तथा मथुरा जिला ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन के सहयोग से आयोजित दो दिवसीय आर्थोपेडिक्स स्नातकोत्तर शिक्षण पाठ्यक्रम के शुभारम्भ अवसर पर देश के जाने-माने हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. अनिल ढल ने विभिन्न राज्यों से आए परास्नातक छात्रों को बताईं।
के.डी. मेडिकल कॉलेज में आयोजित दो दिवसीय आर्थोपेडिक्स स्नातकोत्तर शिक्षण पाठ्यक्रम का शुभारम्भ डीन और प्राचार्य डॉ. आर.के. अशोका तथा देश के विभिन्न शहरों से आए हड्डी रोग विशेषज्ञों द्वारा विद्या की आराध्य देवी मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित कर किया गया। आर्थोपेडिक्स स्नातकोत्तर शिक्षण पाठ्यक्रम के आयोजन अध्यक्ष डॉ. विक्रम शर्मा तथा सचिव डॉ. विवेक चांडक ने हड्डी रोग विशेषज्ञों का परिचय देते हुए उनका स्वागत किया तथा के.डी. मेडिकल कॉलेज को आयोजन का दायित्व सौंपने के लिए उत्तर प्रदेश मेडिकल काउंसिल का आभार माना। डॉ. विक्रम शर्मा ने पाठ्यक्रम में हिस्सा ले रहे के.डी. मेडिकल कॉलेज के साथ ही अलीगढ़, आगरा, सैफई, देहरादून, लखनऊ, अमृतसर, पानीपत, रोहतक आदि के परास्नातक ऑर्थोपेडिक्स छात्रों का आह्वान किया कि दो दिवसीय पाठ्यक्रम में विशेषज्ञों से जो अनुभव और ज्ञान मिले उसे आत्मसात कर उस पर अमल करने की कोशिश करें।
परास्नातक ऑर्थोपेडिक्स पाठ्यक्रम में हिस्सा ले रहे छात्रों को सम्बोधित करते हुए डॉ. अनिल ढल डीन ईएसआईसी, फरीदाबाद (पूर्व प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष ऑर्थोपेडिक्स एमएएमसी) ने कहा कि ऑर्थोपेडिक्स चिकित्सा में लगातार परिवर्तन हो रहे हैं, ऐसे में प्रत्येक छात्र को उपकरणों और कामकाज के तरीकों में हो रहे बदलाव पर सतत नजर रखनी होगी। उन्होंने कहा कि ऑर्थोपेडिक्स में निरंतर सीखने के लिए सबसे व्यापक प्रेरकों में से एक तकनीकी उन्नति है। जिसे कभी क्रांतिकारी ऑर्थोपेडिक प्रक्रिया माना जाता था, वह अब चिकित्सा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास के कारण रोजमर्रा की बात हो गई है। न्यूनतम इनवेसिव सर्जरी, रोबोट-सहायता प्राप्त प्रक्रियाएं और 3डी-प्रिंटेड इम्प्लांट कुछ ऐसे परिवर्तन हैं जो हाल के वर्षों में चलन में आए हैं।
डॉ. संदीप कुमार विभागाध्यक्ष आर्थोपेडिक्स हमदर्द इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस ने पीजी छात्रों को बताया कि ऑर्थोपेडिक्स में निरंतर सीखने से सबसे ज़्यादा फायदा मरीज़ों को होगा। जब विशेषज्ञ सर्जन नवीनतम विकास से अवगत रहते हैं तो मरीज को अधिक सटीक निदान, कम आक्रामक उपचार, बेहतर शल्य चिकित्सा परिणाम, स्वास्थ्य लाभ की अवधि कम तथा बेहतर दीर्घकालिक परिणाम मिलते हैं। इसके अतिरिक्त जो शल्य चिकित्सक निरंतर सीखते रहते हैं, वे कठिन मामलों को संभालने में बेहतर रूप से सक्षम होंगे तथा प्रत्येक रोगी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए व्यक्तिगत देखभाल प्रदान कर सकेंगे।
आर्थोपेडिक्स स्नातकोत्तर शिक्षण पाठ्यक्रम में मेडिकल पीजी छात्रों को वीडियो व्याख्यान, नैदानिक परीक्षण के प्रदर्शन, केस-आधारित शिक्षण, एक्स-रे प्रदर्शन, सिद्धांत नोट्स, ओएससीई स्टेशन, शल्य चिकित्सा प्रक्रिया आदि के माध्यम से समझाया गया। इस अवसर पर मथुरा जिला ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. आदेश शर्मा, डॉ. अमित शर्मा, डॉ. आर.के. गुप्ता विभागाध्यक्ष (हड्डी रोग) केएम मेडिकल कॉलेज, डॉ. अश्वनी सदाना विभागाध्यक्ष (हड्डी रोग) एफएच मेडिकल कॉलेज, डॉ. डीपी गोयल, डॉ. निर्विकल्प अग्रवाल, डॉ. अमन गोयल आदि ने भी अपने-अपने अनुभवों से छात्रों का मार्गदर्शन किया।
ब्रज क्षेत्र में पहली बार के.डी. मेडिकल कॉलेज में आयोजित आर्थोपेडिक्स स्नातकोत्तर शिक्षण पाठ्यक्रम की सराहना करते हुए आर.के. एज्यूकेशनल ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. रामकिशोर अग्रवाल ने कहा कि विशेषज्ञों से मिली जानकारी भावी सर्जनों के जीवन भर काम आएगी। प्रबंध निदेशक मनोज अग्रवाल ने कहा कि ऑर्थोपेडिक मामलों में निरंतर सीखना आवश्यकता नहीं बल्कि अनिवार्यता है। श्री अग्रवाल ने कहा कि नई तकनीकों को अपनाना, निरंतर प्रशिक्षण और हाल के अनुसंधानों से अपडेट रहना ऑर्थोपेडिक पेशेवरों को यह आश्वस्त करने की अनुमति देता है कि वे अपने रोगियों को सर्वोत्तम सेवा प्रदान करते हैं। डॉ. विक्रम शर्मा, डॉ. विवेक चांडक, डॉ. अमित रे, डॉ. प्रतीक अग्रवाल, डॉ. सौरभ वशिष्ठ आदि ने इस कार्यक्रम को परास्नातक छात्रों के लिए मील का पत्थर करार दिया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अमित अग्रवाल तथा डॉ. अनन्या ने किया।

