Wednesday, June 4, 2025
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वीपीएस में हुआ साइक्लोथॉन रेस प्रतिस्पर्धा का आयोजन

वृंदावन। मथुरा मार्ग स्थित वृंदावन पब्लिक स्कूल में कक्षा प्री प्राइमरी से यूकेजी के बच्चों के लिए साइक्लोथॉन रेस प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जिसमें सभी बच्चों ने मनोरंजन व आनंद के साथ भाग लिया। बच्चों की साइकिलों को रंग बिरंगे गुब्बारों से सजाया गया। रेस का आरंभ हरी झंडी दिखाकर किया गया।
रेस शुरुआत होते ही बच्चों के उत्साह व जोश का ठिकाना नहीं रहा। एक दूसरे से जीतने की प्रतिस्पर्धा ने उनका मनोबल बढ़ाया। मैदान में उपस्थित सभी गुरुजनों ने तालियां बजाकर बच्चों का उत्साहवर्धन किया।
इस साइक्लोथॉन रेस का मुख्य उद्देश्य खेलकूद व स्वास्थ्य की प्रति बच्चों को जागृत करना था। कार्यक्रम में स्वेका राज, सपना शर्मा, ज्योति शर्मा, राधा प्रजापति, भारती शर्मा, शिवानी, पंकज, तान्या मौजूद रहे। रेस में प्री प्राइमरी से प्रथम स्थान प्राप्त कर कार्तिकेय स्वर्ण पदक व सुदर्शन ने द्वितीय स्थान प्राप्त पर रजत पदक प्राप्त किया। एलकेजी से विहान ने स्वर्ण पदक, स्तुति ने रजत पदक, अथर्व ने कांस्य पदक जीता। यूकेजी से वेद ने ओवर ऑल ट्राफी जीत कर स्वयं को गौरवान्वित किया। वैभवश्री ने रजत पदक व वर्तिका ने कांस्य पदक हासिल किया।

मैप विजार्ड प्रतियोगिता ने की छात्रों की भौगोलिक ज्ञान में वृद्धि

वृंदावन। पुस्तक के ज्ञान के साथ व्यवहारिक ज्ञान भी छात्रों के बौद्धिक विकास में अहम भूमिका निभाता है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए मथुरा मार्ग स्थित वृंदावन पब्लिक स्कूल में सामाजिक अध्ययन विषय पर आधारित मैप विजार्ड प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जिसमें कक्षा 6 से 12वीं तक के छात्रों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।
जिसमें तीन चरणों के मध्य में से छात्रों से भारत के विभिन्न भौगोलिक स्थान की जानकारी ली गई। प्रतियोगिता में प्रतिभागियों ने अपने बुद्धि कौशल से निर्णायक मंडल को अनूठा अनुभव करवाया। प्रतियोगिता में कक्षा 6 से 8 तक के वर्ग में प्रथम, द्वितीय, तृतीय स्थान पर क्रमश: स्पर्श, विनय सैनी व कृष्णा रहे। वहीं वर्ग 9 से 12 में क्रमश: कामिनी, नंदिनी व शालू ने बाजी मारी। प्रधानाचार्य प्रदीप शर्मा ने विजई प्रतिभागियों को शुभकामनाएं दी। इस आयोजन के सफल संयोजन में सामाजिक अध्ययन विभाग के सदस्य रागिनी श्रीवास्तव, दिशी गोस्वामी, गार्गी, अभिलाषा सारस्वत, शिवांगी हरियाणा और निधि गौर ने सफल प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र प्रदान कर सम्मानित किया व उनके उज्जवल भविष्य की कामना की।

विशेष ट्रेनों का आगरा कैंट स्टेशन पर ठहराव और मथुरा स्टेशन पर समय में संशोधन किया है।

रेल प्रशासन द्वारा सर्व साधारण को सूचित किया जाता है की गाडी संख्या -06225/06226 हुब्बली जं.-योग नगरी ऋषिकेश- हुब्बली जं. ग्रीष्मकालीन विशेष ट्रेनों का आगरा कैंट स्टेशन पर ठहराव और मथुरा स्टेशन पर समय में संशोधन किया है। जिसका विवरण इस प्रकार हैं-

गाडी संख्या 06225
हुब्बली जं.-योग नगरी ऋषिकेश स्टेशन गाडी संख्या – 06226
योग नगरी ऋषिकेश -हुब्बली जं.
आगमन प्रस्थान आगमन प्रस्थान

  • 21.45 सोमवार हुब्बली जं. 17.30 शनिवार *
    07.55 08.00 आगरा कैंट 02.35 02.40
    08.43 08.45 मथुरा जं. 01.48 01.50
    18.45 बुधवार * योग नगरी ऋषिकेश * 17.55 गुरुवार

कार्यस्थल में यौन उत्पीड़न रोकना सामूहिक जिम्मेदारी, जीएल बजाज में पीओएसएच अधिनियम पर हुई कार्यशाला

मथुरा। प्रत्येक व्यक्ति को अपने कार्यस्थल पर सुरक्षित, आरामदायक और स्वतंत्र रूप से कार्य करने का अधिकार है। दुर्भाग्य से हमारे यहां 50 फीसदी से अधिक महिलाएं समाज और अपने कार्यक्षेत्र में यौन उत्पीड़न का शिकार हो रही हैं। इसे कैसे रोका जाए इसके लिए सरकार ने पीओएसएच अधिनियम बनाया है लेकिन यदि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकना है तो सभी को इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी। यह बातें जीएल बजाज ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस, मथुरा की महिला सेल द्वारा आयोजित कार्यशाला में अतिथि वक्ताओं ने संकाय सदस्यों, कर्मचारियों तथा बी.टेक और एमबीए के छात्र-छात्राओं को बताईं।
महिला सेल की अध्यक्ष डॉ. शिखा गोविल ने यौन उत्पीड़न, पीओएसएच अधिनियम द्वारा निर्धारित कानूनी ढांचे, एक सुरक्षित और सम्मानजनक कार्यस्थल संस्कृति बनाने, निवारक उपायों और सर्वोत्तम प्रथाओं के बारे में चर्चा की। उन्होंने शिकायतें दर्ज करने और निवारण प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के बारे में भी व्यावहारिक मार्गदर्शन दिया। उन्होंने कहा कि एक नियोक्ता, प्रबंधक या पर्यवेक्षक की यह जवाबदेही है कि वह अपने कर्मचारियों को उत्पीड़न से बचाने को अपनी मौलिक जिम्मेदारी समझे।
डॉ. शिखा गोविल ने बताया कि कोई भी व्यक्ति जो अवांछित यौन व्यवहार का अनुभव करता है, चाहे वह मौखिक हो या शारीरिक, यौन उत्पीड़न की परिधि में आता है। ऐसे व्यवहारों में अवांछित निकटता, स्पर्श करना, व्यक्तिगत प्रश्न पूछने से लेकर मौखिक दुर्व्यवहार तक शामिल है। उन्होंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति अपने प्रति किए गए किसी भी यौन व्यवहार के परिणामस्वरूप असहज महसूस करता है, तो यह यौन उत्पीड़न है। कुछ मामलों में, कोई व्यक्ति कह सकता है कि उनका इरादा किसी को ठेस पहुँचाने या किसी को असहज महसूस कराने का नहीं था, लेकिन यह इसे स्वीकार्य नहीं बनाता है। यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है कि यौन उत्पीड़न को कभी भी ‘मजाक’ या मजाक के रूप में परिभाषित नहीं किया जाना चाहिए और किसी को भी यह महसूस नहीं कराया जाना चाहिए कि असहज महसूस करना गलत है।
कार्यशाला में कार्यक्रम की समन्वयक मेधा खेनवार ने पीओएसएच अधिनियम पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न रोकथाम, निषेध और निवारण अधिनियम, 2013 (पीओएसएच अधिनियम), कार्यस्थल में महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। पीओएसएच अधिनियम पीड़ित महिलाओं के लिए सशक्तीकरण के प्रतीक के रूप में कार्य करता है, जो कार्यस्थल में उनके सम्मान, सुरक्षा और समानता के अधिकार की पुष्टि करता है। यह अधिनियम यौन उत्पीड़न से निपटने और समावेशी कार्य वातावरण बनाने के लिए नियोक्ताओं, सहकर्मियों और समग्र रूप से समाज की सामूहिक जिम्मेदारी को भी रेखांकित करता है।
श्रीमती खेनवार ने कहा कि पीओएसएच अधिनियम कार्यस्थल सम्बन्धों की जटिलताओं पर प्रकाश डालता है, विशेष रूप से पीड़ित महिलाओं और कथित उत्पीड़न में शामिल प्रतिवादियों के बीच बातचीत के संबंध में। यह अधिनियम यौन उत्पीड़न की शिकायतों के समाधान के लिए निष्पक्ष और पारदर्शी तंत्र की आवश्यकता पर जोर देता है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि पीड़ित महिलाओं को प्रतिशोध या उत्पीड़न के डर के बिना समस्या निवारण के अवसर मिलेंगे। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में संकाय सदस्य, कर्मचारी तथा बी.टेक और एमबीए के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन मेधा खेवनार और स्तुति गौतम ने किया।

जाती विशेष को गाली देते युवक की ऑडियो वाइरल, नाराज लोगों ने युवक के खिलाफ थाने में तहरीर दी, पुलिस जांच में जुटी

बरसाना। दो जाती विशेष को गाली देने की ऑडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही। जिससे नाराज होकर लोगों नर युवक के खिलाफ थाने में तहरीर दी। पुलिस जांच में जुटी।
कस्बे में वाट्सअप पर कल रात्रि को एक ऑडियो वाइरल हुई जिसमें एक युवक यादव समाज व ठाकुर समाज को गाली दे रहा था। उक्त ऑडियो को सुनने वाले लोगों ने सोशल मीडिया पर देर रात्रि तक भड़ास निकाली । दो समाज के किसी प्रकार की दुश्मनी न हो इसको देखते हुए सुबह ठाकुर समाज के कुछ युवकों के द्वारा उक्त युवक के खिलाफ थाना बरसाना में तहरीर दी जिसमे समाज विद्वेष फैलाने वाले युवक पर कार्यवाही करने की कहा। थाना प्रभारी अरविंद निर्वाल ने बताया कि कुछ लोगों के द्वारा तहरीर दी गई है जिसमे जांच की जा रही। जांच जो भी निकालकर आएगा। उसके हिसाब से कार्यवाही की जाएगी।

गऊ सेवा का चमत्कार

मथुरा। बात लगभग तीन दशक पुरानीं है दोपहर का समय था। मैं अपने यहां मौजूद दो घायल गायों की सेवा में लगा हुआ था।
     हालत मेरी अस्त व्यस्त और जल्दबाजी भी बहुत थी क्योंकि मुझे गायों की चाकरी के बाद स्नान व यमुना जी की हाजिरी लगाने जाना और फिर पेट पूजा की भी जल्दी पड़ रही थी। इसी दौरान स्व. शंकरलाल खंडेलवाल जिनकी होलीगेट पर शंकर मिठाई वालों के नाम से दुकान है तथा स्व. ठाकुर शिव मोहन सिंह प्रेम होटल वाले आ गए।
     क्षण भर की औपचारिक दुआ सलाम के बाद शिवमोहन सिंह जो हमारे बड़े भाई सीताराम जी के सहपाठी व अभिन्न मित्र थे, ने मुझसे कहा कि “भैया बड़ी विकट समस्या आ गई है बामें मैं तुम्हारी मदद की जरूरत है”। मैंने मन ही मन माथा ठोका कि अब यह क्या मुसीबत आ गई। मुझे तो जल्दी पल्दी काम निपटा कर नहाने धोने की पड़ रही है और पता नहीं ये क्या बबाल ले आऐ।
     अचानक मुझे क्या सनक सूझी कि मैंने उनसे कहा कि तुम्हारी मदद की तो बाद में सोचूंगा पहले मेरी मदद तुम करो। वे बोले बताओ क्या सेवा है? मैंने कहा कि गायों का गोबर पड़ा है इसे उठाकर बाहर डाल दो। मेरा इतना कहना था कि दोनों ने बगैर हिचके और बगैर झिझके यह कहते हुए कि अरे यह तो हमारा सौभाग्य है, दोनों हाथों से गोबर उठाकर डालना शुरू कर दिया। जैसे ही उन्होंने एक बार गोबर बाहर डाला मैंने तुरंत रोक कर कहा कि बस अब और रहने दो क्योंकि मुझे मन ही मन अपने कृत्य पर खुद ही शर्मिंदगी सी होने लगी थी। पता नहीं मेरे मुंह से यह बात उस समय कैसे निकल गई। जहां तक मेरा अंदाज है इसलिए निकली होगी कि यदि वे ना नुकुर करेंगे तो फिर मैं भी उन्हें पीठ दिखा दूंगा और वे गऊ माता की सेवा वाली भावना से इस पुनीत कार्य को कर देंगे तब तो मैं भी उनकी मदद में जी जान से जुट जाऊंगा।
     उनकी प्रतीकात्मक सेवा ने मेरे मन को मोह लिया। अब मैं अपनी जल्दबाजी को भूल गया तथा इत्मीनान से उनकी बात सुनी। उन्होंने अपनी व्यथा बताई। दरअसल बात यह थी कि भ्रष्ट सरकारी नौकरशाहों ने मोटी रकम न मिलने पर किसी मामले में “शंकर मिठाई वाला” फर्म को फांस लिया, शायद यह मैटर फूड से संबंधित था। इसके बाद उनके एक पुत्र की गिरफ्तारी भी हो गई। कौन सा पुत्र था तथा उसका क्या नाम था यह मुझे याद नहीं।
     इसके पश्चात इनकी ओर से अदालत में जमानत की अर्जी भी खारिज होने के बाद दूसरे दिन जिला जज के यहां सुनवाई होनीं थी। मामले को जानबूझकर इस प्रकार जटिल बनाया गया कि जिला जज के यहां से भी जमानत न हो तथा हाई कोर्ट से जमानत होने का मतलब कई दिन और घूम जाना था। अतः शंकर लाल जी का परेशान होना स्वाभाविक था। शंकर लाल जी व ठाकुर शिव मोहन सिंह की दांत काटी रोटी थी। किसी प्रकार इन्हें यह पता चला कि मेरे और तत्कालीन जिला जज श्री जगमोहन पालीवाल के मधुर संबंध हैं। अतः इसीलिए यह मेरे पास आऐ।
     इनकी बात सुन और समझ कर मैंने इनसे कह दिया कि अब आप जाओ और जो भी संभव होगा मैं प्रयास करूंगा। मैं इनकी गऊ सेवा वाले भाव पर मुग्ध हो गया तथा मुझे पक्का विश्वास था कि गऊ माता की कृपा व आशीर्वाद से शंकर लाल जी की परेशानीं समाप्त हो जायगी। मैंने अपने बाकी के कार्यों को जल्दी पल्दी निपटाया और शाम को जिला जज पालीवाल जी के यहां पहुंच गया। मुझे अपने घर आया देख पालीवाल जी जो बड़े सज्जन और मिलनसार स्वभाव के थे, खुश हो उठे तथा बोले कि गुप्ता जी आज आपको कैसे टाइम मिल गया? आप तो कभी आते नहीं क्या कोई खास बात है?
     जज साहब की बात सुनकर मैंने झूठ बोल दिया कि कोई खास बात नहीं है। बहुत दिन से आपसे भेंट नहीं हुई आपकी याद आई और चला आया। वैसे तो मैं सच बोलने का कट्टर समर्थक हूं और अपने आप को बहुत बड़ा सच्चाधारी मानता हूं तथा लोग भी मुझे सच्चा इंसान समझने की गलत फहमी में रहते हैं किंतु उस दिन तो मेरे मुंह से सफेद भक्क झूठ निकल पड़ा। खैर इस गैरजरूरी प्रसंग को आगे बढ़ाना ठीक नहीं है। अब मैं असली बात पर आता हूं।
     जज साहब के बगीचे में मुझसे पहले ही कुछ अन्य व्यक्ति बैठे थे, उनमें एक हमारे स्नेही स्व. ब्रजेश पालीवाल भी थे, जो मथुरा के पूर्व जिलाधिकारी डॉ हरीकृष्ण पालीवाल के साले लगते थे, क्योंकि उनकी बहन हरिकृष्ण जी के भाई को ब्याही थीं। सब लोगों में बातचीत चल रही थी तथा इसी दौरान सरकारी अफसरों के भ्रष्टाचार का मुद्दा चल उठा। मैं तो ऐसे ही मौके की तलाश में था। मैने जज साहब से कहा कि ये भ्रष्ट और निकम्मे लोग देश को घुन की तरह चाटे जा रहे हैं। अभी हाल फिलहाल का ही वाकया देख लो शंकर मिठाई वालों के साथ कैसा अन्याय हो रहा है जबकि वे बेचारे कितने सज्जन व धर्मात्मा हैं तथा शंकर लाल जी के बारे में सब कुछ बताया।
     जज साहब चुपचाप सब सुनते रहे ज्यादा कुछ बोले नहीं शायद सिर्फ उन्होंने यह पूंछा कि आप उन्हें जानते हैं क्या? मैंने कहा कि मैं ही नहीं पूरा शहर उनको व उनकी भलमन साहत को अच्छी तरह जानता है। खैर कुछ देर बातचीत के बाद मैं अपनी व्यस्तता का हवाला देकर वहां से टरक लिया।
     घर पहुंचे हुए मुझे बमुश्किल एक घंटा भी नहीं हुआ होगा कि शिवमोहन सिंह जी का फोन आ गया। वे बोले कि “भैया आज तौ तैनैं कमाल कर दौ” मैंने कहा कि “का कमाल है गयौ” इस पर उन्होंने बताया कि मोय सब मालुम पड़ गई है। फिर उन्होंने वह सब कुछ मुझे बता दिया जो वहां बातचीत हुई थी। दरअसल वहां मौजूद स्व. ब्रजेश पालीवाल या अन्य किसी व्यक्ति ने शंकर लाल जी को फोन करके सारा वृत्तांत बता दिया था।
     शिव मोहन सिंह जी ने कहा कि अब कोई ताकत नहीं जो जमानत को रोक पाए और मुझे तो पहले से ही आत्मविश्वास था कि गऊ माता की सेवा और शंकर लाल जी के सद्कर्म जरूर अपना कार्य करेंगे। हुआ भी यही यानीं कि दूसरे दिन सुबह ही जज साहब ने जमानत स्वीकार कर गऊ सेवा रूपी यज्ञ में अपनी भी आहुति डाल दी।
     जिस गऊ माता में तेतीस करोड़ देवी देवताओं का वास होता है उस गऊ माता की सेवा बड़े भाग्य से मिलती है तथा यह सेवा कब किस रूप में फलीभूत होकर वरदान बन जाय कुछ कहा नहीं जा सकता। आज हम लोग केवल इसलिए सुखी नहीं है कि कमोवेश हम सभी ने गऊ माता को दुखी कर रखा है। इस बात का यह अर्थ नहीं है कि सिर्फ गाय को ही सुखी रखो बाकी को मारकर खा जाओ या अन्य तरह तरह से उन पर अत्याचार करो।
     हर प्राणी में ईश्वर का अंश है हां इतना जरूर है कि गाय तो केंद्र बिंदु है। बाकी सभी को भी तो जीने का अधिकार है। आज हम इन निरीह प्राणियों के अधिकारों का हनन करेंगे तो कल हमारे अधिकारों की क्या गति होगी? शायद वही जो आज इन निरीहों हो की हो रही है। विजय गुप्ता की कलम से
    

आरआईएस के छात्र-छात्राओं ने दिल्ली में फहराया अपनी मेधा का परचम, 43वीं राष्ट्रीय ब्रेनोब्रेन अबेकस प्रतियोगिता में जीती चैम्पियंस ट्रॉफी

मथुरा। राजीव इंटरनेशनल स्कूल के छात्र-छात्राओं ने एक बार फिर से अपनी बौद्धिक और मानसिक क्षमता का नायाब उदाहरण पेश कर समूचे मथुरा जनपद को गौरवान्वित किया है। देश की राजधानी नई दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम में आयोजित 43वीं राष्ट्रीय ब्रेनोब्रेन अबेकस प्रतियोगिता में राजीव इंटरनेशनल स्कूल के होनहारों ने न केवल स्वर्ण और रजत पदक जीते बल्कि चैम्पियंस ट्रॉफी भी अपने नाम कर ली।
कम उम्र से ही छात्र-छात्राओं के सम्पूर्ण मस्तिष्क का विकास सुनिश्चित करने तथा उनकी गणितीय क्षमता को बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष ब्रेनोब्रेन अबेकस प्रतियोगिता विभिन्न शहरों में आयोजित की जाती है। इसी कड़ी में विगत दिनों नई दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम में 43वीं राष्ट्रीय ब्रेनोब्रेन अबेकस प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस प्रतियोगिता में राजीव इंटरनेशनल स्कूल के छात्र-छात्राओं ने न केवल सहभागिता की बल्कि कुछ मिनट के अंदर ही सैकड़ों कठिन सवालों के सही उत्तर देकर स्वर्ण तथा रजत पदक के साथ ही चैम्पियन ट्रॉफी अपने नाम कर ली।
इस प्रतियोगिता में आरआईएस की अन्वी गुप्ता, हिमाद्री सिंह, मायरा माहेश्वरी (कक्षा 5-ए), आराध्या माहेश्वरी (कक्षा 6-सी), नक्ष गुप्ता (कक्षा 4-ए), पर्णिका गर्ग (कक्षा 4-बी), निमिष गुप्ता (कक्षा 6-सी) तथा सिद्धार्थ सिंह (कक्षा 2) ने चैम्पियंस ट्रॉफी जीतकर कर समूचे जनपद और राज्य में विद्यालय का नाम रोशन किया। प्रतियोगिता में नक्षिता सारस्वत, प्रतिष्ठा भारद्वाज (कक्षा 6-सी), मानस सारस्वत (कक्षा 5-सी),प्रत्यक्षा शर्मा (कक्षा 5-ए), शौर्य चौधरी (कक्षा 3-ए), वेदांशी लवानियां (कक्षा 8-ए) ने जहां स्वर्ण पदक जीते वहीं दैविक गुप्ता (कक्षा 3-सी) को रजत पदक से संतोष करना पड़ा।
आर.के. एज्यूकेशनल ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. रामकिशोर अग्रवाल ने नई दिल्ली में शानदार सफलता हासिल करने वाले छात्र-छात्राओं को बधाई देते हुए कहा कि सिर्फ किताबी ज्ञान से सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास नहीं हो सकता। इसीलिए राजीव इंटरनेशनल स्कूल द्वारा प्रत्येक विद्यार्थी की रुचि को ध्यान में रखते हुए उसे प्रतिस्पर्धी अवसर प्रदान किए जाते हैं। डॉ. अग्रवाल ने कहा कि ब्रेनोब्रेन अबेकस जैसी प्रतियोगिताओं से विद्यार्थियों की बौद्धिक तथा गणितीय क्षमता का विकास होता है।
प्रबंध निदेशक मनोज अग्रवाल ने विजेता छात्र-छात्राओं को बधाई देते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की। श्री अग्रवाल ने कहा कि आज के समय में प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चे की गणितीय तथा सीखने की क्षमता को लेकर चिंतित रहते हैं। आरआईएस प्रत्येक बच्चे को जल्दी और प्रभावी ढंग से सीखने, कल्पना करने, ध्यान केंद्रित करने के लिए लगातार प्रशिक्षित करता है ताकि वह अपने मस्तिष्क को पहले से कहीं अधिक प्रभावी ढंग से उपयोग में ला सकें। उन्होंने कहा कि शिक्षा ही एक ऐसा क्षेत्र है जहां हर समस्या का समाधान है। यदि बचपन से ही बच्चों को प्रतिस्पर्धात्मक माहौल मिले तो वह हर मुश्किल काम को आसान कर सकते हैं।
विद्यालय की शैक्षिक संयोजिका प्रिया मदान ने बताया कि राजीव इंटरनेशनल स्कूल के छात्र-छात्राओं ने नई दिल्ली में अपनी बौद्धिक और मानसिक क्षमता से शानदार सफलता हासिल की है। उन्होंने कहा कि आरआईएस का उद्देश्य छात्र-छात्राओं के ज्ञान और कौशल में इजाफा करना है ताकि बच्चे हर क्षेत्र में सफलता के नए प्रतिमान स्थापित करें। प्रिया मदान ने इस शानदार उपलब्धि के लिए सभी छात्र-छात्राओं को बधाई देते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की।

इधर बुरा विचार मेरे मन में आया उधर भगवान ने मजा चखाया

  मथुरा। अब तक तो मैं पचास साठ साल पुराने तक के किस्सों को लिखकर गड़े मुर्दों को उखाड़े जा रहा था किंतु आज एक ऐसा ताजा और रोचक किस्सा बताता हूं जिसका मैं खुद भुक्तभोगी हूं।
     बात अभी पन्द्रह बीस दिन पहले की है। अखबार में मैंने एक समाचार पढ़ा कि किसी ने किसी की आंखों में फेवीक्विक डालकर दुश्मनीं निकाली। वैसे  फेवीक्विक है बड़ी खतरनाक चीज एक बूंद भी अगर उंगली से लग जाए और वह भूल चूक में दूसरी उंगली या शरीर के किसी अन्य भाग से छू जाय तो क्षण भर में ऐसी चिपक जाती है कि फिर बगैर ऑपरेशन किए छूटती नहीं। यदि किसी की आंख में एक बूंद भी डल गई तो फिर समझ लो उसकी आंख हमेशा के लिए गई।
     इस समाचार को पढ़कर मेरे मन में बड़े अजब गजब के आइडिया आने लगे। मैं सोचने लगा कि जघन्य अपराधियों को लंबे या आजीवन कारावास अथवा फांसी आदि के बजाय आंख कान नाक अथवा मुंह में फेविक्विक डालने की सजा दी जानी चाहिए। यानी जैसा जिसका अपराध वैसी उसकी सजा। फांसी वालों के तो आंख, कान, नाक व मुंह में फेविक्विक डाल देनी चाहिए ताकि वे तड़फ तड़फ कर मरें।
     इसके अलावा एक कुविचार भी मेरे शैतानी मन में घुटमन घुटमन चलने लगा कि कभी मुझे भी किसी ने दुश्मनीं निकालनी हो तो क्यों न मौका लगते ही उसकी आंख में फेविक्विक की एक बूंद टपका देनी चाहिए? दरअसल मेरे अंदर एक दैत्य है और एक देवता। इन दोनों की अंदर ही अंदर कुश्ती चलती रहती है। वैसे तो अधिकतर देवता का साम्राज्य रहता है किंतु कभी-कभी दैत्य महाराज भी देवता पर भारी पड़ जाते हैं क्योंकि कलयुग जो है। और वैसे भी प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में कई जगह उल्लेख मिलते हैं कि राक्षस देवताओं पर भारी पड़ गए और देवताओं को सिर पर पैर रखकर भागना पड़ा।
     मेरे मन में ही क्या सुर असुर तो सभी के अंदर विद्यमान रहते हैं फर्क इतना है कि किसी के अंदर का सुर बड़ा होता है और किसी का असुर। मन के अंदरूनी विचारों पर किसी की लगाम तो है नहीं। कहते हैं कि चित्त तो बड़ा चंचल होता है तथा चलायमान रहता है अभी यहां है और क्षणभर में कलकत्ता बम्बई पहुंच जाय। वैसे सही बात बताऊं कि भले ही कोई मेरा कितना भी बड़ा दुश्मन क्यों न हो ऐसा खुराफाती काम तो मैं प्रैक्टिकल में कभी भी नहीं कर सकता। यह तो सिर्फ मन की अंदरूनी खुराफात थी। खैर अब मैं मतलब की बात पर आता हूं। अखबार में पढ़ी फेवीक्विक वाली खबर के कुछ ही दिन बाद एक घटना घटी।
     हमारे आजीवन साथी मनोज तौमर की लगभग चार साल की पुत्री गनुश्री जो हम सभी परिवारी जनों की आंखों का तारा है। अपनी प्लास्टिक की चप्पल लेकर मेरे पास दौड़ी दौड़ी आई और बोली कि “बाऊजी मेरी चप्पल टूट गई है इसे सई कर दो” मैंने कहा कि मैं कोई मोची तो हूं नहीं जो जूते चप्पलों की मरम्मत करूंगा और वैसे भी इस समय में लिखने में व्यस्त हूं तू जा बाद में बात करना। खैर वह मेरे बार-बार समझाने के बाद भी डटी रही और जिद पकड़ बैठी कि “नहीं तुम ही सई करो और अभी करो”। असल में उसकी कॉपी किताब का कोई पन्ना फट जाता है तो वह मेरे कमरे में आ जाती है और फिर मैं सेलो टेप से उसे जोड़ देता हूं उसी तर्ज पर वह चप्पल लेकर आ गई।
     जब मेरी पेश नहीं खाई तो फिर हार झक मारकर मैंने उसके हाथ से चप्पल ली व उलट पलट कर देखा कि कैसे टूट गई और किस प्रकार यह सही होगी। उसका स्टेप आगे से निकल गया था। मैंने सोचा कि यह तो चुटकियों में सही हो जाएगी। और फिर स्टेप की बटन नुमा घुंडी को उसके छेद में पार करके जिस खांचे में घुंडी बैठती है उसमें दो चार बूंद फेवीक्विक टपका दिया ताकि वह हमेशा के लिए चिपक जाय। जब मैंने उस घुंडी को उसके खांचे में बैठाना चाहा तो वह थोड़ी टाइट सी लगी यानी उसके अंदर नहीं गई। इस पर मैंने अंगूठे की ताकत लगाकर जैसे ही बैठाया तो पिच्च की हल्की सी आवाज के साथ वह बैठ तो गई किंतु बड़ा गजब हो गया।
     गजब यह हुआ कि इधर पिच्च की आवाज से वह खांचे में बैठी उधर फेवीक्विक की सूक्ष्म बूंदे छिटक कर मेरी आंखों के उस खांचे में पहुंच गईं जो पलकों के अंदर होता है। अब तो तुरंत मेरी आंखों में जलन हुई लेकिन भगवान ने मुझे सद्बुद्धि दे दी और मैंने तुरंत पलकों को बड़ी तेजी से खोलना और बंद करना शुरू कर दिया तथा कमरे के बाहर लगे नल पर भागा व दना दन पानीं के छमके आंखों में मारे। ईश्वर की ऐसी कृपा हुई कि एकाध मिनट में ही फेवीक्विक का असर जाता रहा और मैं सूरदास होते-होते बाल-बाल बच गया। गनु अपनी चप्पल चिपकने से खुश और मैं अपनी आंख न चिपकने की वजह से बेहद खुश।
     मैं उसी दिन से बार बार सोचता हूं कि भगवान ने मुझे बुरा विचार मन में आने की सजा दी या यौं कहा जाए कि यह चेतावनी दी कि आगे से कभी कोई खोटी बात मन में मत लाना अथवा मेरे साथ मजाक किया कि हे भक्त तू तो सभी से ठिठोली करता रहता है। आज मैं भी तेरे साथ दिल्लगी कर लूं। यह भी हो सकता है कि भगवान ने एक तीर से दो शिकार किए हों यानी कि बुरे विचार के दंड स्वरूप हल्की-फुल्की चेतावनी भी दे दी और दिल्लगी भी कर ली। यानी की आंखों में फेविक्विक भी छिड़क दी और बाल बांका भी नहीं होने दिया। अर्थात गोली तो सीने में लग गई किंतु जान जाने की बात तो दूर घाव तक नहीं हुआ। इसी को कहते हैं ईश्वरीय कृपा का चमत्कार।

के.डी. हॉस्पिटल में हुई महिला के आंतों की मुश्किल सर्जरी, डॉ. मुकुंद मूदड़ा और उनकी टीम के प्रयासों से बची लीना की जान

दिल्ली और जयपुर के चिकित्सकों ने ऑपरेशन से कर दिया था इंकार
मथुरा। दिल्ली और जयपुर से निराश लौटी वृंदावन मथुरा निवासी लीना जॉनसन (28) पत्नी अनूप जॉनसन के लिए के.डी. मेडिकल कॉलेज-हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेण्टर के जाने-माने गैस्ट्रो सर्जन डॉ. मुकुंद मूंदड़ा भगवान साबित हुए। डॉ. मूंदड़ा और उनकी टीम ने कोई चार घंटे की मुश्किल सर्जरी के बाद महिला की आंतों को यथोचित स्थान पर शिफ्ट करने में सफलता हासिल की। अब लीना पूरी तरह से स्वस्थ है तथा उसे छुट्टी दे दी गई है।
जानकारी के अनुसार कोई छह महीने पहले लीना जॉनसन के पित्त की थैली का ऑपरेशन मथुरा के ही एक चिकित्सालय में किया जा रहा था। वहां के चिकित्सकों की असावधानी के चलते लीना की आंतों में कई जख्म हो गए। स्थिति बिगड़ती देख वहां के चिकित्सकों ने गैस्ट्रो सर्जन डॉ. मुकुंद मूंदड़ा से सम्पर्क किया। डॉ. मूंदड़ा और उनकी टीम ने वहां पहुंच कर न केवल मरीज की बिगड़ती स्थिति को संभाला बल्कि आंत का रास्ता बाहर निकाल कर लीना की जान बचाने में सफलता हासिल की। डॉ. मूंदड़ा का कहना है कि उस समय मरीज की स्थिति ऐसी नहीं थी कि उसे के.डी. हॉस्पिटल लाया जाता।
लगभग छह महीने बाद आंतों को वापस अंदर डलवाने के लिए परिजन लीना को पहले दिल्ली फिर जयपुर ले गए लेकिन वहां के चिकित्सकों ने ऑपरेशन करने से मना कर दिया। आखिरकार 16 अप्रैल को लीना को के.डी. हॉस्पिटल लाया गया। गैस्ट्रो सर्जन डॉ. मुकुंद मूंदड़ा ने लीना की विभिन्न जांचों को देखने के बाद ऑपरेशन का निर्णय लिया। 19 अप्रैल को डॉ. मूंदड़ा और उनकी टीम द्वारा लगभग चार घंटे की मशक्कत के बाद लीना की आंतों को यथोचित स्थान पर शिफ्ट किया गया। लीना को तीन-चार दिन गहन चिकित्सा इकाई में रखा गया तथा पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद छुट्टी दे दी गई। इस मुश्किल ऑपरेशन में डॉ. मूंदड़ा का सहयोग डॉ. यतीश शर्मा, डॉ. प्रदीप, निश्चेतना विशेषज्ञ डॉ. जगत सिंह, डॉ. अनुराग तथा टेक्नीशियन शिवम और बालकिशन ने दिया।
डॉ. मूंदड़ा का कहना है कि यह काफी मुश्किल सर्जरी थी, इसमें मरीज के जान जाने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने बताया कि इंसान के शरीर में आंत को दूसरा मस्तिष्क कहते हैं। इसमें एक रीढ़ की हड्डी से ज्यादा न्यूरॉन होते हैं और ये शरीर के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से बिल्कुल अलग काम करता है। आंत का जटिल काम हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। आंत का नियंत्रण आंतरिक तंत्रिका तंत्र करता है। यह सीधे तौर पर पाचन प्रणाली के लिए जिम्मेदार होता है। व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए आंतों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। रोग प्रतिरोधक प्रणाली की 70 फीसदी कोशिकाएं आंत में होती हैं लिहाजा सर्जरी के दौरान विशेष सावधानी जरूरी होती है।
आर.के. एज्यूकेशनल ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. रामकिशोर अग्रवाल, प्रबंध निदेशक मनोज अग्रवाल, डीन और प्राचार्य डॉ. आर.के. अशोका, उप प्राचार्य डॉ. राजेन्द्र कुमार ने बड़ी और सफल सर्जरी के लिए चिकित्सकों की टीम को बधाई दी। लीना के पति अनूप जॉनसन ने कम पैसे में सफल सर्जरी के लिए के.डी. हॉस्पिटल के चिकित्सकों तथा प्रबंधन का आभार माना। उन्होंने कहा कि यदि के.डी. हॉस्पिटल न आते तो पत्नी का जीवन बचाना मुश्किल हो जाता।

संस्कृति विवि के विद्यार्थियों को अमेरिका, तुर्की, दुबई में मिली नौकरी

मथुरा। संस्कति स्कूल आफ टूरिज्म एंड होटल मैनेजमेंट के विद्यार्थियों को विश्वस्तरीय कंपनियों ने उच्च वेतनमान पर अपने यहां नौकरी दी है। विद्यार्थियों के इस चयन पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने हर्ष व्यक्त करते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की है।
संस्कृति विवि के स्कूल आफ टूरिज्म एंड होटल मैनेजमेंट के डीन रतिश शर्मा और असिस्टेंट प्रो. मनोज शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि हमारे यहां से डिग्री लेने वाले विद्यार्थियों को देश-दुनिया के होटलों में हाथों-हाथ लिया जा रहा है। पिछले सत्र में में भी हमारे यहां के विद्यार्थियों को दुनिया के कई देशों में ख्यातिप्राप्त होटल श्रंखलाओं में नौकरी के अवसर प्राप्त हुए हैं। हाल ही में संस्कृति स्कूल आफ टूरिज्म एंड होटल मैनेजमेंट के विद्यार्थी नरेश सिंह को अमेरिका में एमरिस्टार ब्लैक हॉक में नौकरी का अवसर प्राप्त हुआ है। इसी प्रकार हमारे यहां के रामवीर, मोहित कुमार, पुष्पेंद्र कुमार को दुबई के प्रसिद्ध तंदूरी मसाला रेस्टोरेंट में उच्च वेतनमान पर काम करने का अवसर मिला है। छात्र उमेश कुमार को तुर्की के फेरन गार्डन होटल, छात्र परवेज खान और छात्र अजय सिंह को तुर्की के प्रसिद्ध माइलस्टोन टेंपल होटल में नौकरी हासिल हुई है।
संस्कृति विवि की सीईओ श्रीमती मीनाक्षी शर्मा ने विद्यार्थियों को बधाई देते हुए कहा कि विश्वविद्याल प्रशासन की सोच के अनुरूप हमारे यहां के शिक्षक और विद्यार्थी निरंतर मेहनत कर रहे हैं। उनकी मेहनत का ही यह परिणाम है कि उन्होंने विश्वस्तर पर अपनी उपयोगिता सिद्ध की है। विश्वविद्यालय प्रशासन का प्रयास है कि हमारे विद्यार्थी स्वयं का उद्दम खड़ा करें और एक दिन रोजगार मांगने वाले नहीं बल्कि रोजगार देने वाले बन सकें। इस दिशा में विवि द्वारा निरंतर वह सभी कदम उठाए जा रहे हैं जो जरूरी हैं।