Sunday, December 8, 2024
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पुरानी यादों के झरोखे से भिखमंगे कोढ़ी की दरियादिली ईमानदारी और नैतिकता की मिसाल पेश की

विजय कुमार गुप्ता
मथुरा। बात लगभग छः दशक पुरानी है। हमारे घर के सामने एक बाजीगर ने मजमा लगाया। मजमे में उसने
कई शानदार करतब और जादूगरी के कुछ तमाशे दिखाऐ।
लगभग एक घंटे तक दिलचस्प कार्यक्रम चला। सौ पचास लोगों की भीड़ एकत्र हो गई। जब कार्यक्रम का
समापन हुआ तो बाजीगर ने सभी तमाशबीनों के आगे झोली पसारी। बमुश्किल दस पांच लोगों ने झोली
में कुछ सिक्के डाले और बाकी के लोग चुपचाप खिसकने लगे। इसी दौरान एक भिखारी जो बेचारा
कोढ़ी भी था। उसके हाथ और पैरों की सभी उंगलियां कोढ़ से पूरी तरह गल चुकीं थी।
भीड़ में से निकलकर बाजीगर के पास आया। उसके एक हाथ की कलाई पर एक डिब्बा लटक रहा था जो लोहे
के तार से बंधा हुआ था।
भिखारी ने दूसरे हाथ से उस डिब्बे को बाजीगर की झोली में पलट दिया। उस डिब्बे में रखे कुछसिक्के झोली में जा गिरे। यह देख सभी लोग अचंभित हो उठे। बाजीगर ने फोकट में तमाशा देख कर
इधर-उधर खिसकने वालों से कहा कि इस भीख मांगने वाले को देखो, जो तुम लोगों से कहीं
ज्यादा अच्छा और समझदार इंसान है। मैं उस समय लगभग सात आठ साल का था। मैंने भी उस वाकये को
देखा। उस दिन मैंने उस भीख मांगने वाले कोढ़ी व्यक्ति से सीख ली और उसे एक आदर्श व्यक्ति माना।
आज भी जब मुझे वह घटना याद आती है तो उस भिखारी की दरियादिली ईमानदारी तथा नैतिकता के प्रति
मन श्रद्धानत हो उठता है।
वह व्यक्ति भले ही भिखारी था किन्तु उसने अपने इस कर्म से यह सिद्ध कर दिया कि वह उन लोगों से बहुत
ऊंचा है, जो धनवान होते हुए भी दूसरे के हक को मारने के लिए उतावले रहते हैं। भीख मांग कर
खाना तो उसकी मजबूरी थी, क्योंकि इसके अलावा उसके पास कोई और चारा नहीं था। एक प्रकार से
भीख मांगना उसका व्यवसाय था किन्तु भीख के पैसों में से उसने कुछ सिक्के देकर बाजीगर का ऋण
चुकाया क्योंकि वह मुफ्त में तमाशे का लुफ्त नहीं लेना चाहता था। यह उसकी नैतिकता और
ईमानदारी थी।
धन्य है वह कुष्ठ रोगी भिखारी जिसकी सोच और संस्कार इतने महान थे और उससे भी ज्यादा धन्य
उसके वे माता-पिता जिन्होंने उसे इतने अच्छे संस्कार दिये। संभवतः उसके पिछले जन्मों में हुए
पापों के कारण उसे यह गति प्राप्त हुई हो किन्तु उस समय जो उदाहरण उसने प्रस्तुत किया वह बेमिसाल था।
उस कुष्ठ रोगी भिखारी के सुन्दर कृत्य के लिए मेरा सलाम। हम सभी को उस कुष्ठ रोगी भिखारी से
प्रेरणा लेकर अपने जीवन को सफल बनाना चाहिये। ऐसा न हो कि अब वर्तमान में दूसरों का माल मारने
वाले पाप हमें आगे के जन्म में भिखारी जैसी गति में पहुंचा दें।
शिक्षा हमें सभी से लेनी चाहिए चाहे कोई भी क्यों न हो। दत्तात्रेय जी ने तो चैबीस गुरु बनाये
जिनमें एक कुत्ता भी था।

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