रिपोर्ट:- विजय कुमार गुप्ता
मथुरा। सच्चे देशभक्त और सज्जनता की प्रतिमूर्ति एवं नवल नलकूप के संस्थापक समाजसेवी स्व. लाला नवल किशोर गुप्ता की फितरत ऐसी थी कि वह खुद भले ही कसर खा लेते पर औरों को चोट न लगे, इस बात का विशेष ध्यान रखते थे।
इस संबंध में एक किस्सा याद आ रहा है। बात बहुत पुरानी है, ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ गवाही देकर उन्होंने मथुरा में हुए एक बम कांड में फंसे कुछ देशभक्तों को बचाने में मदद की थी जिससे क्रुद्ध होकर तत्कालीन शहर कोतवाल पृथ्वी सिंह ने गोविंद गंज स्थित उनकी पैतृक आढ़त के सभी 14 लाइसेंस कैंसिल करा कर उनके व्यवसाय को तहस-नहस कर दिया। उसके पश्चात वे बेरोजगार हो गए और धीरे-धीरे घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ती गई और हालात यहां तक पहुंच गए कि तमाम बोहरों का कर्ज तथा ऊपर से बड़ी लड़की की शादी सर पर आ गई।
इस संकट से उबरने के लिए लाला जी ने लाला गंज स्थित अपनी पैतृक जायदायदों को बेचने का मन बनाया और सभी किरायेदारों से बात की। एक किराएदार श्रीनाथ दास जी मैदा वालों को छोड़कर बाकी सभी गरीब थे। उनमें बड्डन भड़बूजा, चेता कोरिया, कल्लू मल्लू चुनी भुसी वाले आदि थे। श्रीनाथजी मैदा वाले श्री ग्रुप वाले पप्पन जी के ताऊ जी थे। पप्पन जी के पिताजी जमुनादास जी व श्रीनाथ दास जी दोनों भाई साथ-साथ रहते थे।
श्रीनाथजी मैदा वाले चूंकि शहर के बहुत बड़े प्रतिष्ठित और संपन्न व्यक्ति थे। अतः उन्होंने लाला नवल किशोर जी से कहा कि भाई साहब आप क्यों इतने झंझट में पढ़ते हो, पूरी की पूरी जायदाद हमें बेच दो और जितना इन सभी किरायेदारों से मिले उससे ज्यादा हम से ले लो। आपको ज्यादा झंझट भी नहीं होगा और आर्थिक लाभ भी रहेगा।
लालाजी ने उनसे कहा कि भाई साहब आप भले ही मेरे हित की बात कर रहे हो, किंन्तु आप इन सभी से जगह खाली करा लोगे तो इनका घोंसला उजड़ जाएगा और ये सभी बेघर हो जायेंगे। मैं इनकी बद्दुआ नहीं लूंगा। मुझे तो यह बेचारे जो कुछ दे देंगे, वह ले लूंगा पर आपको नहीं बेचूंगा और उन्होंने किया भी यही। जिसने जो दिया, वह चुपचाप लेकर उन्हीं को जगह बेची, जो उस में बसे हुए थे। उन दिनों कानून मकान मालिकों के पक्ष का था, आज जैसा नहीं। उस समय मकान मालिक जब चाहे तभी अल्प समय में अपनी जगह किरायेदारों से खाली करा लिया करते थे।
एक और घटना याद आ रही है। लाला जी के घर नवल नलकूप के निकट एक हलवाई थे, जिनका नाम था नत्थी लाल। नत्थी लाल ने लालाजी की दुकान से खरीदे सामान का काफी पैसा रोक लिया और देने से इनकार कर दिया। लालाजी ने कानूनी कार्यवाही की तथा मुकदमे में वे जीते और नत्थी लाल के खिलाफ डिग्री हो गई तथा कुर्की के आदेश हो गए लेकिन उन्होंने उस पर अमल इसलिए नहीं किया क्योंकि उन्हें पता चला कि उस दौरान नत्थी लाल आर्थिक रूप से काफी दयनीय स्थिति में आ गए थे। यह मेरा सौभाग्य है कि मैं उनका पुत्र हूँ।