रिपोर्टः- विजय कुमार गुप्ता
मथुरा। सौंठ मिर्च पीपर इन्हें खाय कै जीपर वाला नुस्खा कोरोना से बचाव के लिए कारगर नुस्खा है। इस बात पर आयुष मंत्रालय ने भी अपनी मुहर लगा दी है।
आखिरकार सरकार को यह मानना ही पड़ा कि कोरोना की महामारी को आयुर्वेद द्वारा पछाड़ा जा सकता है। इस सम्बन्ध में श्रीकृष्ण जन्मस्थान के सचिव कपिल शर्मा ने अपने आलेखों के द्वारा लगभग एक माह से मुहिम चला रखी थी तथा दैनिक स्वदेश ने भी सौंठ मिर्च पीपर इन्हें खाय कै जीपर शीर्षक से समाचार भी प्रकाशित किया था।
भारत सरकार के आयुष मंत्रालय (आयुर्वेद एवं यूनानी उपचार) के निर्देशानुसार उत्तर प्रदेश शासन के आयुष विभाग के अनुसचिव राजेंद्र प्रसाद यादव द्वारा एक एडवाइजरी जारी की है जिसमें जनपद के सभी यूनानी एवं आयुर्वेदिक अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि वह आयुर्वेदिक उपचार के द्वारा कोरोना जैसी जघन्य महामारी को परास्त करने की दिशा में कारगर कदम उठाऐं।
इस संबंध में मथुरा के आयुष प्रभारी डाॅ. नरेंद्र कुमार ने जानकारी देते हुए बताया कि मथुरा में सोलह टीमें गठित की गई हैं जो जिला प्रशासन के निर्देशन में एनजीओ व सामाजिक संगठनों के माध्यम से घर-घर जाकर आयुर्वेद की अपनी प्राचीन पद्धति अपनाने का प्रचार प्रसार करेंगी और सौंठ मिर्च पीपल के त्रिकुटा की पुड़िया बांटेंगी व काढ़ा पिलाऐंगी।
उत्तर प्रदेश के आयुष विभाग के अनुसचिव द्वारा मंगलवार 5 मई को जारी पत्र में आयुर्वेद उपचार के बारे में विस्तार से बताया गया है जिसमें सौंठ, काली मिर्च और छोटी पीपल का त्रिकुटा जो आयुर्वेदिक कंपनियों द्वारा बना बनाया भी मिलता है के प्रयोग की बात प्रमुखता से कही है। यह त्रिकुटा प्रातः चैथाई चम्मच तथा एक चम्मच शहद में मिलाकर चाटा जा सकता है अथवा एक चुटकी पाउडर खौलती चाय में डालकर भी सेवन किया जा सकता है।
इसके अलावा रात को सोने से पहले दूध में चैथाई चम्मच हल्दी मिलाकर पीने की सलाह दी गई है। तुलसी की पत्तियों का सेवन भी अति लाभकारी बताया गया है। तुलसी, दाल चीनी, काली मिर्च, सौंठ तथा मुनक्का आदि का काढ़ा भी अत्यंत लाभकारी बताया गया है। साथ ही नारियल का तेल, तिल का तेल या देसी घी भी नाक के अंदर लगाने का सुझाव दिया है। पोदीना व च्यवनप्राश का सेवन भी करते रहना लाभप्रद बताया है।
इस सम्बन्ध में सुविख्यात वैद्य श्याम बिहारी शास्त्री बताते हैं कि त्रिकुटा चूर्ण के सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता आती है और फैफड़ों व श्वास नली में मजबूती के साथ-साथ संक्रमण को बढ़ने से रोकने में मदद मिलती है। वैध जी कहते हैं कि त्रिकुटा के अलावा काढ़ा पीना व दूध के साथ हल्दी लेना और तमाम आयुर्वेदिक उपचार शरीर के लिए कोई नुकसान भी नहीं करते, जबकि ऐलोपैथिक दवाइयां शरीर को हानि ज्यादा और लाभ कम करती हैं।
उल्लेखनीय है कि श्रीकृष्ण जन्म संस्थान के सचिव कपिल शर्मा लगभग एक माह से भी अधिक समय से इस दिशा में प्रयासरत थे। उन्होंने आयुर्वेद पद्धति के ऊपर कई प्रमाणिक लेख लिखे और देश की तमाम बड़ी-बड़ी हस्तियों के पास भेजकर समझाया। इसके पश्चात गहनता से उनकी बात पर विचार विमर्श हुआ और आयुष मंत्रालय द्वारा त्रिकुटा व काढ़े को अनेक कोरोना पीड़ितों को पिलाकर रिसर्च किया जो लगभग पन्द्रह दिन चला जिसके परिणाम आश्चर्यजनक रूप से सफल रहे। तत्पश्चात आयुष मंत्रालय द्वारा कोरोना से बचाव हेतु आयुर्वेदिक पद्धति अपनाने और उसका प्रसार-प्रचार करने का निर्णय लिया गया। इसके लिये कपिल जी साधुवाद के पात्र हैं। उन्हें आयुर्वेद का अति श्रेष्ठ ज्ञान है। ईश्वर उन्हें चिरायु करें।
संत शैलजाकांत अतिथियों को पिलाते हैं काढ़ा
संत शैलजाकांत अपने अतिथियों को चाय काॅफी या विभिन्न ठंडे पेय न पिलाकर आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों वाला काढ़ा पिलाकर उनका स्वागत करते हैं।
संतजी का मानना है कि इस काढ़े में जो गुण हैं, वे अति दुर्लभ हैं। उसका कोई मुकाबला नहीं है। शायद वे काढ़े को पिलाकर अपने अतिथियों को स्वस्थ और प्रसन्न चित्त देखना चाहते हैं। इसीलिये वे हानिकारक पेयों के बजाय काढ़ा पिलाते हैं। भगवान संतजी जैसी सद्बुद्धि हम सभी को दें।