Thursday, May 15, 2025
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मथुरा कोर्ट ने खारिज की श्रीकृष्ण स्थान संपूर्ण जमीन मामले की अपील

  •  याचिकाकर्ता अब करेंगे हाईकोर्ट का रुख
  •  याचिकाकर्ता ने कहा- हमारे लॉ पॉइंट मजबूत है, जीत अवश्य होगी

मथुरा। आयोध्या बाबरी मस्जिद विध्वंस के मामले में 28 साल बाद फैसला सुनाने के बाद अब मथुरा कोर्ट में श्रीकृष्ण जन्म स्थान की संपूर्ण जमीन को लेकर की गई याचिका को लेकर ढाई घंटे से अधिक समय तक बहस चली। आखिरकार सिविल जज सीनियर डिवीजन ने याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता अब इस मुद्दे को लेकर हाईकोर्ट जाएंगे।


बुधवार को सुबह से ही मथुरा कोर्ट में गहमागहमी का माहौल रहा। इस बीच कोर्ट ने केस को स्वीकार करने से पहले दो बातों पर बहस हुई। जिसमें पहला बहस का विषय यह रहा कि क्या बाहरी व्यक्ति मथुरा कोर्ट में सिविल सूट कर सकता है या नहीं। इस पर हिन्दू पक्ष की ओर से वरिष्ठ याचिकाकर्ता रंजना अग्निहोत्री ने कहा कि बहस में केसेज ऑफ वरशिप पर बहस हुई थी। हमने कहा कि हम पर केसेज ऑफ वरशिप लागू नहीं होता है। एक और बहस का विषय उठा था कि याचिकाकर्ता बाहर के हैं। इस पर सीटीसी का व्यवस्था है कि याचिकाकर्ता कहीं का भी हो जो केस किया है वह मुद्दा उसी स्थान का होना चाहिए। हमारे लीगल पॉइंट बहुत मजबूत थे। हिन्दू महासभा भी इस मामले में पक्षकार बनने के लिए कोर्ट में आए हैं तो उनका भी स्वागत है।
इस मामले में एडीजीसी भगवत सिंह आर्य ने कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा जो तथ्य पेश किए गए थे। उन्हें देखा गया, सारी दलील सुनी उसके बाद याचिका खारिज कर दी। याचिकाकर्ता द्वारा जो दस्तावेज प्रस्तुत किए गए उसे देकर न्यायालय ने उसे स्वीकार होने योग्य नहीं पाया है।
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने बताया कि मथुरा कोर्ट ने हमारी अपील को खारिज कर दिया है। श्रीकृष्ण जन्म स्थान विराजमान के केस को लेकर अब हम हाईकोर्ट जाएंगे और मजबूती के साथ अपने तथ्यों को रखेंगे।

आपको बता दें कि मथुरा की सीनियर सिविल जज छाया शर्मा की अदालत में श्रीकृष्ण ठाकुरजी विराजमान सहित कई भक्तगणों को वादी बनाते हुए मांग थी कि 12 अक्टूवर 1968 को हुए समझौता और 20 जुलाई 1973 को हुई डिक्री रद किया जाए। याचिका के जरिए 13.37 एकड़ जमीन पर श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मालिकाना हक मांगा है, जिसमें ईदगाह भी शामिल है। वाद में शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने का अनुरोध किया गया है। यह भी कहा गया है कि श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान को यह समझौता करने का अधिकार नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय के पिता-पुत्र अधिवक्ता हरीशंकर जैन और विष्णु शंकर जैन द्वारा दायर वाद में 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना हक को लेकर 1968 में हुए समझौते को गलत बताया गया है।

57 पेज की थी याचिका
अधिवक्ता विष्णु जैन और हरिशंकर जैन द्वारा सीनियर सिविल जज छाया शर्मा की अदालत में दायर यह याचिका 57 पेज की है। जिसमें उन्होंने अपनी सारी बातें रखी।

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