मथुरा। आज की युवा पीढ़ी को शिक्षा के साथ ही भारतीय संस्कृति का ज्ञान होना बहुत जरूरी है। स्पिक-मैके यानि सोसाइटी फार द प्रमोशन आफ इंडियन क्लासिकल म्यूजिक एण्ड कल्चर एजस्ट यूथ का उद्देश्य स्कूल-कालेज के छात्र-छात्राओं को देश के पारम्परिक रीति-रिवाजों के साथ ही उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत, लोक-नृत्य, कविता, रंगमंच, पारंपरिक चित्रों, शिल्प और योग की जानकारी प्रदान करना है। मंगलवार को आनलाइन ओरिएंटेशन कार्यक्रम में स्पिक-मैके के संस्थापक डा. किरण सेठ ने युवाओं से भारतीय संस्कृति से जुड़ने का आह्वान किया।
पद्मश्री डा. किरण सेठ ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी का अपनी संस्कृति से कम होता लगाव चिन्ता की बात है। हम अपनी संस्था के माध्यम से युवाओं में भारतीय संस्कृति के प्रति लगातार दिलचस्पी पैदा कर रहे हैं। डा. किरण सेठ ने युवाओं को समाज से विलुप्त हो रही भारतीय संस्कृति को अपनाने को प्रोत्साहित किया। संस्थान के आदित्य राघवन ने कुछ चित्रों तथा वीडियो के माध्यम से छात्र-छात्राओं और शिक्षकों को भारतीय सांस्कृतिक खूबियों से अवगत कराया। स्पिक-मैके के नेशनल एडवाइजर प्रो. ऊषा रवि चन्दन ने क्लासिकल म्यूजिक तथा भारतीय सिनेमा के बारे में विस्तार से जानकारी दी। प्रो. सुजाता महापात्रा जोकि स्पिक-मैके की हेरिटेज क्लब का संचालन करती हैं, ने जीएल बजाज में क्लब के संचालन की जानकारी दी।
प्रो. बबिता मिश्रा ने कहा कि स्पिक-मैके दो प्रकार की श्रृंखलाओं (विरासत तथा फेस्ट) के माध्यम से स्कूल-कालेजों में कार्यक्रम कराता है। विरासत का आयोजन सितम्बर से दिसम्बर तथा फेस्ट का जनवरी से अप्रैल के महीने में किया जाता है। प्रो. अरुण सहाय ने कहा कि आज के युवाओं को अच्छी शिक्षा के साथ-साथ भारतीय संस्कृति के प्रति प्रोत्साहित करना जरूरी है ताकि वह भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ा सकें। प्रो. सुषमा जैकब ने भी स्पिक-मैके के अपने अनुभव साझा किये। इस कार्यक्रम में 260 से अधिक छात्र-छात्राओं तथा प्राध्यापकों ने प्रतिभाग किया।
ओरिएंटेशन प्रोग्राम में जी.एल. बजाज की निदेशक डा. नीता अवस्थी ने बताया कि 1984 में जब वह एच.बी.टी.आई. कानपुर की छात्रा थीं तब उन्होंने स्पिक-मैके ज्वाइन किया था। उसके बाद वह इस संस्था के साथ समय-समय पर जुड़ती रहीं। वह जी.एल. बजाज में स्पिक-मैके द्वारा आयोजित कार्यक्रमों को समय-समय पर कराना चाहती हैं। स्पिक-मैके के आयोजन में डा. शिल्पी सक्सेना, प्रो. करिश्मा मित्तल, प्रो. आशीष अग्रवाल, प्रो. अनुज कुमार, प्रो. संतोष कुमार स्वर्णकार, प्रो. हेमन्त गौतम, प्रो. अनु मेहंदीरत्ता, प्रो. प्रज्ञा द्विवेदी आदि ने विशेष योगदान दिया।
जी.एल. बजाज के छात्र-छात्राएं भारतीय संस्कृति से हुए रूबरू
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