Wednesday, May 14, 2025
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जीएलए के प्रोफेसरों ने खोजी मितव्ययी तकनीक, हुआ पेटेंट पब्लिश


मथुरा।
मितव्ययी भारतीय संस्कृति का प्रमुख आदर्श है, जो केवल बचत का ही दृष्टिकोण नहीं देता है, बल्कि जीवन में सादगी, संयम, अनावश्यक खर्चों पर नियंत्रण कर जीवन को प्राथमिकता देता है। अगर मितव्ययिता व्यक्ति के अंदर आत्मसात हो जाए तो फिजूलखर्ची पर नियंत्रण कर लाभप्रद हो सकता है। इंडस्ट्रीज में फिजूलखर्ची को कहीं हद तक काबू करने के लिए जीएलए विष्वविद्यालय, मथुरा के बीटेक मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसरों ने ‘मितव्ययी निर्माण विधि‘‘ पर एक रिसर्च कर नई सोच को जन्म दिया है और पेटेंट पब्लिश कराया है।


‘मितव्ययी निर्माण विधि‘‘ तकनीकी के द्वारा किसी भी छोटी या मध्यम साइज इंडस्ट्रीज का सबसे पहले सर्वेक्षण किया जायेगा तथा इस इंडस्ट्री के सभी विभागों की कार्यक्षमता व उत्पादकता जानकारी कर इस कार्य के लिए वहां के सुपरवाइजर, इंजीनियर आदि से सहायता ली जायेगी। इस तकनीकी विधि में स्टैंडर्ड प्रश्नों का सैट बनाकर इंडस्ट्री के विभागों को अलग-अलग गु्रप बनाकर हर विभाग की रेटिंग कर उसका टोटल कर छुपे हुए वेस्टेज को प्रश्नावली के माध्यम से खोजा जायेगा।

ऐसा करने से इंडस्ट्रीज के वेस्टेजों का पता लगाने के लिए उसमें 3-4 माइल स्टोन बनाकर कार्य होगा। प्रत्येक माइल स्टोन के प्रभाव की गणना करके वेस्टेज को कम करने के लिए इंडस्ट्री उचित सावधानी या कदम उठायेंगी। मैकेनिकल विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मनोज कुमार अग्रवाल एवं प्रोफेसर डॉ. सुरेन्द्र कुमार ने बताया कि यह विधि (तकनीकी) काफी सरल है तथा कम लागत में अच्छा लाभ आ जाता है। यह इंडस्ट्रीज में छुपे हुए अनुपयोगी वेस्टेजों को कम करने की बहुत आसान विधि है तथा किसी भी स्तर का व्यक्ति इसको समझकर क्रियान्वित कर सकता है। इसको किसी भी निर्माण सेक्टर में आसानी से उपयोग कर सकते हैं। तकनीकी बदलावों व ग्लोबली कम्पटीशन को देखते हुए भविश्य में यह विधि बहुत उपयोगी सिद्ध होगी।

डीन रिसर्च प्रो. अनिरूद्ध प्रधान, विभागाध्यक्ष प्रो. पीयूष सिंघल एवं एसोसिएट डीन रिसर्च प्रो. कमल शर्मा ने कहा कि मितव्ययिता का महत्व शासन की दृष्टि से ही नहीं, व्यक्ति एवं समाज की दृष्टि से भी है। हमारे यहां प्राचीन समाज में मितव्ययिता के महत्व को स्वीकार किया किया है। मितव्ययी को लेकर जीएलए के विभागीय प्रोफेसरों की खोज प्रशंसनीय है और इससे भी अधिक प्रशंसनीय है कि इसका पेटेंट पब्लिश हो चुका है। बहुत जल्द ग्रांट होगा, तो इंडस्ट्रीयों की ओर यह सोच और तकनीक आसानी से कारगर साबित होगी।

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