Sunday, September 14, 2025
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जीएलए में इंटर स्कूली शिक्षकों ने जानीं जैव प्रौद्योगिकी की बारीकियां

-जीएलए में नई तकनीक और विज्ञान के क्षेत्र में हो रहे बदलावों के बारे में जानकर खुश हुए इंटर स्कूली शिक्षक

मथुरा : विज्ञान का अर्थ है विशेष ज्ञान। मनुष्य ने अपनी आवश्यकताओं के लिए जो नए-नए आविष्कार किए हैं, वे सब विज्ञान की ही देन हैं। आज के इस युग में विज्ञान ने अपनी नई तकनीकियों को जन्म दिया है। नई तकनीक और इनोवेशन के क्षेत्र में विज्ञान के महत्व को साझा करने के लिए जीएलए विश्वविद्यालय, मथुरा ने इंटर स्कूली शिक्षकों हेतु ‘पुनश्चर्या पाठ्यक्रम‘ आयोजित किया।

जीएलए विश्वविद्यालय, मथुरा के जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा आयोजित ‘पुनश्चर्या पाठ्यक्रम‘ में मथुरा के विद्यालयों रतनलाल फूल कटोरी देवी सीनियर सेकेंडरी स्कूल, एलीट न्यू जेनरेशन इंटरनेशनल स्कूल, सरस्वती विद्या मंदिर स्कूल कोसीकला, केंद्रीय विद्यालय नंबर 2 बाद मथुरा, बीबीआर इंटरनेशनल स्कूल, ज्ञानदीप शिक्षा भारती के जीवविज्ञान शिक्षकों ने भाग लिया।

इस दौरान बायोटेक विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. शूरवीर सिंह ने बताया कि जीव विज्ञान छात्रों के लिए एक कॅरियर विकल्प हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि विज्ञान के क्षेत्र में हो रहे बदलाव और इनोवेशन से संबंधित ज्ञान इंटर स्कूली शिक्षकों को मिले। जिससे यह शिक्षक शिक्षा प्रदान करने के दौरान छात्रों को ऐसी शिक्षा दें जिससे छात्रों का कॅरियर एक अच्छे रास्ते पर चल पड़े और देष के विकास में अह्म योगदान दे।
इस पुनश्चर्या पाठ्यक्रम का समन्वय एसोसिएट हेड प्रो. अंजना गोयल, एसोसिएट प्रोफेसर डा. विशाल खंडेलवाल के द्वारा किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्वलन एवं सरस्वती वंदना से किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत में प्रतिकुलपति प्रो. अनूप कुमार गुप्ता ने प्रतिभागियों को प्रेरित किया और स्वास्थ्य, पर्यावरण और ऊर्जा में जैव प्रौद्योगिकी के महत्व पर जोर दिया। इस पाठ्यक्रम में मुख्य रूप से पांच मॉड्यूल शामिल थे। डीएनए आइसोलेशन और फिंगर प्रिंटिंग, रियल टाइम पीसीआर, एलिसा द्वारा एंटीबॉडी का पता लगाना, एंटीबायोग्राम परख और बायोरिएक्टर में लैक्टिक एसिड उत्पादन।

रमनलाल शोरावाला पब्लिक स्कूल और श्रीजी बाबा एसवीएम स्कूल के प्रतिभागियों के कार्यक्रम के बाद पुनश्चर्या की पाठ्यक्रम की काफी सराहना की। उन्होंने बताया कि ऐसे कार्यक्रम से शिक्षकों के सीख लेने के बाद छात्रों को अवश्य ही सीख मिलेगी। क्योंकि ये सीख होती हैं, जो कि अपने तक सीमित न रखकर एक दूसरे तक पहुंचाकर उस पर अध्ययन करना और कराना जरूरी है।

कार्यक्रम की समन्वयक एसोसिएट हेड प्रो. अंजना गोयल ने बातचीत के दौरान कहा कि नई उन्नत तकनीकों को सीखने के लिए इस प्रकार के पाठ्यक्रम नियमित रूप से आयोजित किए जाने चाहिए, क्योंकि स्कूलों में इस तरह की शोध सुविधाएं नहीं हैं। पाठ्यक्रम के अंत में एसोसिएट प्रोफेसर डा. विशाल खंडेलवाल ने इस पाठ्यक्रम को सफल बनाने के लिए सभी प्रतिभागियों, संकाय सदस्यों और पीएचडी विद्वानों को धन्यवाद दिया।

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