विजय गुप्ता की कलम से
*मथुरा। गिर्राज बाबा के प्रचंड भक्त अनंत स्वरूप वाजपेई “देशभक्त” अपने आराध्य के धाम जाने वाले दिन की पूर्व संध्या पर ऐसे हंसे ऐसे हंसे कि हंसते हंसते लोटपोट हो गये।
देशभक्ति जी ऐसे क्यों हंसे यह बात तो बाद में बताऊंगा पर इससे पहले यह दोहा याद आ रहा है उस पर गौर करना “जब हम पैदा हुए जग हंसा हम रोये ऐसी करनीं कर चलौ हम हंसै जग रोये” सचमुच में देशभक्ति जी ने कबीर दास जी के इस दोहे को चरितार्थ करके जनमानस को बड़ा संदेश दिया।
अब बताता हूं लोटपोट के पीछे का मामला। दरअसल जिस दिन उन्होंने देह त्यागी थी उसकी पूर्व संध्या पर उनका फोन आया कि गुप्ता जी आज मैं पहले से अधिक सुकून में हूं। सीने में दर्द की शिकायत जो कभी-कभी होती रहती थी उसमें भी राहत है।
जब मैंने उनका अच्छा मूड़ देखा तो मुझे भी उन्हें गुदगुदी मचाकर हंसाने की इच्छा बलवती हो गई। मैंने गंभीर लहजे में कहा कि वाजपेई जी मेरी रामकिशोर जी से बात हो चुकी है। वे बार-बार कह रहे हैं कि देशभक्ति जी को के.डी. मेडिकल में भर्ती करा दो हर सुख सुविधा उन्हें मिलेगी पूरा स्टाफ उनकी तीमारदारी में मुस्तैद रहेगा।
उन्होंने खास तौर से यह कहा है कि आपके घर के किसी भी सदस्य को रात्रि में भी साथ रहने की जरूरत नहीं क्योंकि एक एक्सपर्ट नर्स जो डॉक्टर जैसी हुनरमंद है आपके साथ रहेगी तथा कब टेंपरेचर नापना है, कब ब्लड प्रेशर चेक करना है, कब दवा देनी है, कब इंजेक्शन लगाना है और ग्लूकोज की बोतल कब चढ़नी है। वगैरा-वगैरा हर बात का पूरा ध्यान रखेगी।
यहां तक तो देशभक्ति जी गंभीरता से चुपचाप सब कुछ सुनते रहे। इसके बाद मैंने मौके का फायदा उठाते हुए धीरे से यह भी सरका दिया कि वाजपेई जी अगर आपको यदि नींद नहीं आ रही होगी तो वह लोरी गाते हुए थपथपी लगाकर सुला भी देगी। बस इतना सुनना था की देशभक्ति जी हंसते-हंसते ऐसे लोटपोट हुऐ कि शायद मैंने अपने जीवन में उन्हें इतना हंसते हुए नहीं देखा। उनके साथ मेरी भी हंसी बड़े जोर से छूटी हम दोनों का हंसी का फव्वारा करीब एक मिनट तक चलता रहा। जब हंसी का दौर कुछ कम हुआ तब वे बोले कि गुप्ता जी आप चिकोटी काटे बिन नहीं मानते जब भी मौका मिलता है छोड़ते नहीं।
अब रामकिशोर जी के बारे में पूरी बात बताना भी जरूरी है। मैंने देशभक्त जी के निधन से लगभग एक सप्ताह पूर्व रामकिशोर जी को उनके स्वास्थ्य के बारे में बताया। इसके बाद उन्होंने तुरंत देशभक्त जी को फोन मिलाकर के.डी. मेडिकल में अच्छे से अच्छा उपचार करने की बात कही, किंतु देशभक्त जी ने उनकी बात टाल दी।
बाद में रामकिशोर जी ने मुझे फोन करके कहा कि देशभक्त जी से कहो कि मुझे अपना बेटा मान लें। मैं खुद उनको लेने आऊंगा यदि मेरे यहां उन्हें लाभ नहीं मिला तो दिल्ली में बड़े से बड़े और अच्छे से अच्छे अस्पताल में इलाज कराऊंगा। देशभक्त जी से कह दो दवा दारू से लेकर हर प्रकार की जिम्मेदारी मेरी होगी। उन्होंने यह भी कहा कि यदि इस समय उन्हें अर्थ की जरूरत हो तो मुझे केवल आप इशारा कर दो।
मैंने यह सब बात देशभक्ति जी को बता दी और कहा कि आपके इशारे की देर है तुरंत एक मोटा लिपाफा आपके घर पहुंच जाएगा। खुद रामकिशोर जी आपके घर आकर आपको के.डी. मेडिकल ले जाएंगे और आप पूर्ण रूप से फिट होकर अपने घर आएंगे तथा जरूरत पड़ी तो दिल्ली में बढ़िया से बढ़िया इलाज कराकर पूर्ण रूप से ठीक करा कर ही दम लेंगे।
देशभक्ति जी ने रामकिशोर जी के प्रति कृतज्ञता में पता नहीं क्या-क्या कह डाला तथा कहा कि इनके तो मेरे ऊपर पहले से ही बहुत एहसान हैं। और कितना बोझ अपने ऊपर लूं। उन्होंने यह भी कहा कि मेरा बस चले तो अमरनाथ विद्या आश्रम में एक बड़ा आयोजन करके राम किशोर जैसे महान व्यक्ति का अभिनंदन करूं।
अब राम किशोर पुराण को विराम देते हुए कुछ दिन पहले ही देशभक्त जी के लोटपोट होने का एक किस्सा और बताने का मन है। बात देशभक्त जी के निधन से दो-चार दिन पहले की है। प्रख्यात संगीतकार डॉ राजेंद्र कृष्ण अग्रवाल ने देशभक्त जी की प्रशंसा करते हुए एक प्रसंग सुनाया।
उन्होंने कहा की एक कार्यक्रम में सात साल के एक बच्चे ने ऐसा गजब का पखावत बजाया कि लोग दंग रह गये। उसके पखावत बाजन पर बच्चे की मां ने नृत्य किया। दूसरे दिन सुबह-सुबह देशभक्त जी राजेंद्र कृष्ण जी के घर जा पहुंचे गाड़ी लेकर तथा कहा कि चलो मेरे साथ होटल में, जहां ये कलाकार ठहरे हुए थे। यह वाकया कई दशक पूर्व का था। होटल पहुंच कर देशभक्त जी ने उस बच्चे को दंडवत करके नमन किया और जी भरके शाबाशी दी।
इस पूरे घटनाक्रम को सुनते ही मैंने देशभक्त जी को फोन करके कहा कि राजेंद्र जी ने मुझे यह किस्सा सुनाया है क्या यह बात सही है? इस पर उन्होंने कहा कि हां, तब मैंने फिर अपनी ऊधम बाजी शुरू कर दी और कहा कि वाजपेई जी आपने दंडवत बच्चे के लिए की या मां बेटे दोनों के लिये? इस पर वे असहज से होते हुए तपाक से बोले की मां के लिए क्यों करूंगा? मैंने तो सिर्फ बच्चे को दंडवत की थी। तब मैंने अपने अंदर छिपी ऊधम बाजी उगल दी और कहा कि बाजपेई जी कभी-कभी ऐसा होता है कि “कहीं पर निगाहें होती हैं और निशाना कहीं और” इतना सुनते ही वे बोले कि गुप्ता जी आप चिकोटी काटने का कोई मौका नहीं छोड़ते और हम दोनों खूब हंसे। मैंने कहा कि वाजपेई जी मैं चिकोटी काटने के लिए नहीं आपको गुदगुदी मचाकर हंसाने के लिए यह ऊधम बाजी कर रहा हूं।
देशभक्त जी के गौलोकवास से पहले और बाद के पूरे घटनाक्रम की यदि समीक्षा की जाय तो रामकिशोर अग्रवाल मुझे हीरो नजर आते हैं तथा उनका बड़ा बेटा अरविंद जीरो, जिसने अपनी जिद के आगे किसी की नहीं चलने दी यहां तक कि अपनी मां की भी अरविंद ने उनकी अंत्येष्टि पवित्र दिन अमावस्या को नहीं होने दी। वाजपेई जी का निधन महाशिवरात्रि को हुआ दूसरे दिन अमावस्या थी। अंतिम संस्कार अमावस्या को सुबह होना सुनिश्चित था किंतु अरविंद ने केवल इसलिए हठधर्मिता की कि कनाडा से मेरी बहन जाकर डैडी का मुंह देख ले। अमावस्या के दूसरे दिन मध्यान में उनका अंतिम संस्कार हुआ तब तक पार्थिव शरीर का रंग रूप भी परिवर्तित हो चुका था। एक होती है हत्या और एक होती है गैर इरादतन हत्या तो इसने पिता से गैर इरादतन दुश्मनीं निकाली सिर्फ इसलिए की बहन बाप का मुंह देख ले। अब देशभक्त जी के श्राद्ध अमावस्या को न होकर अगली तिथि को हुआ करेंगे क्योंकि मृत्यु का दिन वह माना जाता है जब उनका अंतिम संस्कार हो।
अब मुझे एक बात याद आ रही है जो हमारी माताजी मेरे उत्पात से तंग आकर बचपन में कहती थीं “पूत कपूत न देय विधाता जासै भलौ नरक कौ भाता।*