Thursday, May 15, 2025
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इन पर विश्वास करनाअपने साथ विश्वास घात जैसा

विजय गुप्ता की कलम समथुरा। गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा था अपने पूरे हाथ को तेल के बर्तन में डुबो दो और फिर उसे तिल से भरे बोरे में ठूंस दो। उसके बाद हाथ में जितने भी तिल चिपकें यदि ये लोग उतनी बार भी कसम खाकर किसी बात का विश्वास दिलाएं तब भी इनके ऊपर विश्वास मत करना।
गुरु गोविंद सिंह जी के पुत्रों को केवल इसलिए दीवाल में जिंदा चिनवा दिया कि उन्होंने अपना सिख धर्म त्याग कर मुसलमान बनना स्वीकार नहीं किया। यह बात सौ प्रतिशत सच है कि इन लोगों पर विश्वास करना अपने आपके साथ विश्वास घात करने के समान है। इनकी फितरत रही है कि जिस थाली में खाना उसी में छेद करना। हमारे देश का खाते हैं और हमारे देश के प्रति ही बेवफा होकर पाकिस्तान के प्रति वफादारी रखते हैं। यह हाल यहां ही नहीं पूरे विश्व में है। वर्मा जिसे आजकल म्यांमार कहा जाता है, से मार मार कर इन्हें इसीलिए भगाया गया था। जैसे बंदर का स्वभाव होता है कि खाना और घुर्राना ठीक यही स्वभाव इनका है।
ये सगे किसी के नहीं होते कोई इनके लिए कितना भी पचे मरे किंतु इन पर उसका कोई एहसान नहीं बल्कि मौका लगते ही एहसान फरामोशी से बाज नहीं आते बंग्लादेश इसकी जीती जागती मिशाल है। पिछले वर्ष दिल्ली में एक हिंदू युवक ने अपने मुसलमान पड़ोसी को खून देकर उसकी जान बचाई किंतु कुछ दिन बाद ही किसी बात पर कहा सुनी हो गई तो मुसलमान ने उसी हिंदू का खून कर दिया जिसने उसे खून देकर जीवन दान दिया था। मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान के ऊपर 17 बार हमला किया और हर बार पराजित होने के बाद भी पृथ्वीराज चौहान ने उसे क्षमादान देकर छोड़ दिया, किंतु 18 वीं बार पृथ्वीराज चौहान हार गए। मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को एक बार भी नहीं बख्सा और तुरंत मरवा दिया। 18 वीं बार भी पृथ्वी चौहान जीतते किंतु उनके सेनापति जयचंद ने गद्दारी की और मुहम्मद गौरी से मिलकर अपने ही राजा को हरवा कर मरवा दिया।
उसके बाद जयचंद नाम इतना घृणित हो गया कि किसी ने अपने पुत्र का नाम जयचंद नहीं रखा बल्कि गद्दारों को जयचंद कहकर संबोधित किया जाने लगा। भले ही कोई अपनी औलाद का नाम जयचंद न रखें किंतु जयचंद का वंश आज भी चल रहा है। हमारे देश में जयचंद का कुनबा इतना बढ़ चुका है कि ये लोग बुरी तरह हावी हैं। अपने देश के साथ दुश्मनीं मानने वालों के साथ मिलकर देशद्रोहिता कर रहे हैं। क्यों कर रहे हैं? सिर्फ वोटो की खातिर। इन देशद्रोहियों के वोटो की बैसाखी उनकी बहुत मदद जो करती है। देशद्रोहियों से ज्यादा देशद्रोहियों के हिमायती जयचंदों को बारंबार धिक्कार है। और धिक्कार है हम लोगों को जो मूक बनकर तमाशबीन बने रहते हैं। सबसे ज्यादा धिक्कार उनको है जो सब कुछ जानते बूझते हुए भी जातिवाद और क्षेत्रवाद के नाम पर ऐसे नराधमों को वोट देते हैं।
इस सब को लिखने के पीछे मेरा मतलब यह नहीं कि सभी मुसलमान गलत होते हैं। ऐसे ऐसे मुसलमान भी हुए हैं जो इतने अच्छे थे कि उनके पैरों को धोकर पी लिया जाए। क्या कबीर मुसलमान नहीं थे? क्या रहीम मुसलमान नहीं थे? क्या सांई बाबा मुसलमान नहीं थे? क्या अब्दुल हमीद जिन्होंने हाथगोला अपने सीने से लगाकर टैंक उड़ा दिया मुसलमान नहीं थे? क्या ए.पी.जे. अब्दुल कलाम मुसलमान नहीं थे? ऐसे महान लोगों को मेरा कोटि-कोटि नमन।

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