मथुरा। हाल ही में घटित एक हृदय विधायक घटना ने मेरे मन को झकझोर कर रख दिया। उत्तराखंड में एक मित्तल परिवार के सभी सात सदस्यों ने विषपान करके अपनीं आत्महत्या कर ली। यह खबर देश भर में गूंजी। यह परिवार आर्थिक तंगी और मोटे कर्ज से त्रस्त था। मृतकों में बुजुर्गों से लेकर बच्चे तक सभी शामिल थे।
मैं सोचता हूं कि महाराजा अग्रसेन जी के वे उपदेश कहां गए कि आपस में एक दूसरे का सहारा बनो। कहां गई उनकी एक ईंट और एक रुपए वाली शुरू की गई परंपरा। वैश्य समाज जिसकी गणना उदारता के साथ दान पुण्य धर्म-कर्म आदि परमार्थी कार्यो में आस्था रखने वाली बिरादरी में होती आई है। आज वही वैश्य वर्ग किस स्थिति में आ पहुंचा? यह सब देखकर मन व्यथित है। एक ओर तो महाराजा अग्रसेन जी की शोभा यात्राएं निकाली जाती हैं। जगह-जगह उनकी मूर्तियां स्थापित की जाती हैं और दूसरी ओर उनके आदर्शों और उपदेशों को पैरों से रोंदा जा रहा है। यह सब देखकर अग्रसेन जी की आत्मा भी रोती होगीं। लानत है संपूर्ण वैश्य समाज पर।
मैंने सुन रखा है कि पुराने जमाने में वैश्यों में यदि कोई दिवालिया हो जाता तो सभी लोग मिलकर एक ईंट और एक रुपया देकर उसे संभाल लेते, पर आज की स्थिति एकदम विपरीत है। अब तो यदि सगा भाई भी आर्थिक तंगी में जकड़ा हुआ हो तो भी दूसरा संपन्न भाई उसकी तरफ मुंह करके देखता भी नहीं। उसके भांय तो कल मरता हो तो आज मर जा और आज मरता हो तो अभी मर जा। उसके ऊपर कोई असर नहीं।
अब मैं आता हूं अपने मन की बात पर। मेरी सोच तो यह है कि भले ही कोई भाई हो या रिश्तेदार अथवा जात बिरादरी का, इससे कोई फर्क नहीं। बल्कि मेरा मानना तो यह है कि कोई गैर जात का हो या फिर किसी गैर योनि का ही क्यों न हो। गैर योनि से मेरा अभिप्राय है कि पशु पक्षी या किसी भी प्रजाति का प्राणी क्यों न हो हम लोगों को हर ऐसे जीव की मदद करनी चाहिए जो दुःखी हो, केवल मानव जाति का ही ठेका नहीं। मैंने भागवत में पढ़ा है कि कीड़े मकोड़े तक में पुत्रवत भाव रखना चाहिए।
आज जो लोग मदान्ध होकर मौज मस्ती में इतने डूब चुके हैं कि उन्हें सिवाय अपना ही अपना दिखाई देने के अलावा और कुछ नहीं दिख रहा। आगे आने वाले समय में उनकी भी दुर्गति होनी सुनिश्चित है। भले ही अल्प समय के बाद हो या दीर्घकाल के बाद। हो सकता है अभी उनके बकाया पुण्य क्षींण नहीं हुए हों। तो फिर अगले जन्म में सही पर करनीं का फल जरुर मिलेगा, यह सुनिश्चित है। अभी भी जाग जाओ और चौरासी लाख योनियों के बाद मिली मनुष्य रूपी इस अनमोल धरोहर का सदुपयोग कर लो वर्ना "अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गईं खेत" अर्थात सिवाय हाथ मलने के और कुछ शेष नहीं रहेगा।