मथुरा। "कबिरा खड़ा बाजार में सबकी मांगे खैर ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर" वाले सिद्धांत पर चलने वाले संत शैलजा कांत का 75 वे वर्ष में प्रवेश हो रहा है। 27 जून को जन्मे शैलजा कांत जी को महान संत देवराहा बाबा के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी होने का गौरव प्राप्त है। हम सब बृजवासियों का यह बड़ा सौभाग्य है कि संत शैलजा कांत जैसे दुर्लभ व्यक्तित्व के धनी हमारे मध्य रहकर इस ब्रजभूमि को संवारने में लगे हुए हैं। यह सब विलक्षण संत पूज्य देवराहा बाबा की कृपा का ही परिणाम है। बाबा ने तो उसी समय जब ये मथुरा में पुलिस कप्तान थे, कह दिया था कि बच्चा शैलेश तुमको रिटायर होने के बाद फिर यहीं आना है और इसी मांटी में लोटपोट होकर भगवान श्री कृष्ण की इस जन्मभूमि की सेवा करनी है।
यह बड़े सौभाग्य की बात है कि भगवान ने पहले तो ऐसे दुर्लभ संत पूज्य देवराहा बाबा महाराज को इस ब्रजभूमि में भेजा जो त्रिकाल दर्शी थे। बाबा की दिव्य शक्ति का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपनी देह त्याग का दुर्लभ दिन योगिनी एकादशी चुना और पहले ही आश्रम बासियों को बता दिया। इससे भी बड़ी बात यह है कि उन्होंने अपने प्राण ब्रह्म मलंद विधि से त्यागे जिसे आम बोलचाल भाषा में ब्रह्मांड फाड़कर देह त्यागा जाना कहा जाता है। इसमें सिर के बीचों-बीच छोटा सा छिद्र होकर प्राण निकलते हैं। ऐसी दुर्लभ गति शायद ही करोड़ों में किसी को प्राप्त होती होगी। हम सभी के लिए बड़े गौरव की बात यह है कि उस समय बाबा ने अपने परम प्रिय लाड़ले शिष्य शैलजाकांत जी को अपने पास बुलाकर अपने हाथों से अपनी बेशुमार दुर्लभ वस्तुएं जिनमें, उनकी चरण पादुका, मृगछाला, शालिग्राम जी जिनकी बाबा पूजा करते थे आदि सौंप दीं। जिस समय बाबा अपनी देह त्याग रहे थे उस समय उनकी मचान के नींचे संत शैलजा कांत ध्यान मग्न होकर मौजूद थे।
यह सब बातें सिद्ध करती हैं कि शैलजा कांत जी का स्थान करोड़ों शिष्यों में सबसे ऊपर है। इसीलिए इन्हें बाबा का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी माना जाता है। भले ही ये साधारण रूप में रहकर गृहस्थ जीवन जी रहे हैं। किंतु मनुष्य के रूप में कौन हैं? यह समझ पाना मुश्किल है। इनकी खास बात यह है कि "ना सावन सूखे ना भादों हरे" हमेशा नॉर्मल रहते हैं नपा तुला बोलते हैं और एक-एक शब्द बड़ा ही मर्यादित और सधा बंधा होता है। शांत स्वभाव और स्वाभिमानी जिंदगी इनका गहना है।
संत शैलजाकांत जी की सबसे बड़ी गुणवत्ता इनके मन की निर्मलता है। ये अपने से दुश्मनीं मानने वालों का भी बुरा नहीं सोचते "ना काहू से दोस्ती और ना काहू बैर" वाली कहावत इनके ऊपर सटीक बैठती है। मैंने इनके बारे में पाया है कि ये भले ही इंसानों से दोस्ती और दुश्मनी नहीं रखते किंतु अच्छाइयों से तो इनका दोस्ती जैसा गहरा नाता है और बुराइयों से दुश्मनीं जैसी नफरत।
एक बार मैंने इनसे कहा कि भले ही ऊपरी तौर पर ना किसी से दोस्ती ना किसी से दुश्मनीं रखते हैं किंतु आप दोस्ती भी मानते हैं और दुश्मनीं भी। इस पर इन्होंने पूंछा कि किससे? तब मैंने कहा कि दोस्ती अच्छाइयों से और दुश्मनीं बुराइयों से। इस पर इनका जो उत्तर था वह बड़ा ही चौंकाने वाला था। इन्होंने कहा कि मैं दुश्मनीं तो किसी से नहीं मानता भले ही बुराई क्यों न हो, हां बुराइयों से बचकर रहता हूं। इनका कहना था की दुश्मनीं का भाव आते ही मन में तनाव और अशांति पैदा होती है। इसके अलावा इन्होंने और भी कुछ कहा जो बड़े अच्छे शब्दों में था। वह मुझे याद नहीं। इनका मतलब था की दुश्मनीं करने से हमारी सात्विक विचारधारा क्षीण होकर तामसी पन की ओर बढ़ जाती है, जो अनिष्टकारी है। धन्य हैं संत शैलजा कांत और उससे भी ज्यादा धन्य वह जननी हैं, जिन्होंने इनको न सिर्फ जन्म दिया बल्कि इतने अच्छे संस्कार दिए तथा इससे भी कहीं अधिक धन्य पूज्य देवराहा बाबा हैं जिन्होंने इन्हें ऐसे सांचे में ढाला जो जग को जगमगाये। परम पिता परमात्मा से प्रार्थना है कि ये शतायु हों और घर में शैलजा कांत जन्में और ब्रज में सतयुग का बोल वाला हो। साथ ही हर मोहल्ले में एक विजय कुमार गुप्ता भी जरूर जन्मे ताकि कलयुग का अस्तित्व भी बना रहे।