
विजय गुप्ता की कलम से
मथुरा। बिहारी जी मंदिर के लिए वृंदावन में कॉरिडोर बनाए जाने का विरोध महान संत देवराहा बाबा का विरोध करने के समान है। यह सब घटनाक्रम देवराहा बाबा महाराज की आज्ञानुसार हो रहा है। जिस प्रकार भगवान राम की जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के बारे में बाबा ने काफी समय पूर्व कह दिया था कि मंदिर बनेगा और बगैर किसी विघ्न बाधा के सभी की सहमति और भाईचारे के साथ बनेगा तथा हुआ भी ऐसा ही। भले ही उस समय बाबा की इस बात पर किसी को विश्वास नहीं होता था। ठीक उसी प्रकार बाबा ने बहुत पहले ही अपने परम प्रिय शिष्य संत शैलजा कांत को बता दिया था कि रिटायर होने के बाद तुमको पुनः ब्रजभूमि में आकर यहां की मिट्टी में लोटपोट होते हुए भगवान श्री कृष्ण की इस पावन भूमि की सेवा करनी है।
इस सबसे स्पष्ट होता है कि जो घटनाक्रम हो रहे हैं, वह सभी बाबा की इच्छा और आज्ञानुसार हो रहे हैं। वृंदावन का कॉरिडोर भी उसी का एक भाग है। कोई माने या न माने किंतु यह अकाट्य सत्य है कि राम जन्मभूमि पर मंदिर के निर्माण की पूरी पटकथा बाबा के दिशा निर्देशन में तय हुई थी तथा केंद्र और प्रदेश की हस्तियां गोपनीय रूप से बाबा के आश्रम पर आकर दिशा निर्देश लेती रहती थीं। आज देवराहा बाबा भले ही सशरीर हमारे मध्य नहीं हैं किंतु उनकी दिव्यात्मा मौजूद है और इस ब्रजभूमि को सजाने संवारने का कार्य अपनी देखरेख में करा रही है। ऐसा मेरा पूरा विश्वास है।
पहले जो विरोध हो रहा था वह अब धीरे-धीरे ठंडा होने लगा है तथा समर्थकों का पलड़ा भारी है। विरोध करने वाले कौन हैं? और उनका क्या उद्देश्य है? इस बारे में टीका टिप्पणी करना उचित नहीं। सोशल मीडिया पर चल रही तस्वीरें सब कुछ कह रही हैं। सवाल यह है कि बिहारी जी को कभी जींस पहनना, कभी उनके हाथ में मोबाइल फोन पकड़ा देना तथा अन्य कई तरह की ऊटपटांग हरकतें करने वाले ही उनके ठेकेदार बन गए हैं क्या?
धन बल के आधार पर विरोध कराने वालों को यह बात अब अच्छी तरह समझ लेनीं चाहिए कि उनकी भलाई इसी में है कि अब वे शांत होकर वृंदावन धाम की इस पावन भूमि के उत्थान में सहयोगी की भूमिका निभाते हुए बांके बिहारी और देवराहा बाबा की कृपा और आशीर्वाद के भागी बनें। मेरा यह दावा है कि कॉरिडोर तो हर कीमत और हर सूरत में बनेगा, इसे कोई माई का लाल रोक नहीं पाएगा। दैवीय शक्तियों की इच्छानुसार ही सुप्रीम कोर्ट ने भी सभी विघ्न बाधाओं को दूर करते हुए कॉरिडोर के पक्ष में निर्णय देकर पहले ही रास्ता साफ कर रखा है। समझदार को इशारा काफी है। "ना समझे वो अनाड़ी है"।