
विजय गुप्ता की कलम से
मथुरा। एक कहावत है कि "ऐसा सोना किस काम का जिससे कान फटें" ठीक यही स्थिति हमारे देश को मिली आजादी की है, यानी ऐसी आजादी किस काम की जो गुलामी से भी ज्यादा बुरी हो।अगर तुलना की जाए तो अंग्रेजों के जमाने से कहीं ज्यादा अन्याय और अत्याचार अब हो रहे हैं। इससे तो अच्छा यह रहता कि हम गुलाम बने रहते। हो सकता है मेरी बात कुछ लोगों को बुरी लगे किंतु यह अकाट्य सत्य है। हमारे देश की जनता उस समय इतनी दुःखी नहीं थी जितनी अब है।
अब देख लो कि आजाद भारत में सभी आजाद हैं। नेता घोटाला करने के लिए आजाद, प्रशासन योजना बनाकर गवन करने के लिए आजाद, हर तबके के छोटे बड़े सभी अपराधी अपराध करने के लिए आजाद, सरकारी कार्यालय का बाबू पीड़ित को धमकाकर वसूली करने के लिए आजाद, व्यापारी मिलावटी सामान बेचने और मनमाने पैसे वसूलने के लिए आजाद, पुलिस की तो पूंछो ही मत वह तो इनकी अम्मा है।
अब मैं अपनी बिरादरी की तरफ रुख करता हूं यानी पत्रकारों को तो ब्लैकमेलिंग करने की पूरी आजादी मिली हुई है। ये तो चाकू और तमंचे की जगह कलम का इस्तेमाल करते हैं। डॉक्टर सेवक के बजाय कसाई बनने के लिए आजाद। न्याय व्यवस्था को छोड़ना तो इस लेख के साथ ना इंसाफी होगी। न्याय व्यवस्था का जीता जागता नमूना महामहिम जस्टिस वर्मा हैं। जो मूंछ न होते हुए भी मूंछों पर ताव देते हुए ठाट वाट से रह रहे हैं और बाल बांका तक नहीं हो पाया। बल्कि शौहरत की ऊंचाइयां इतनी ऊंची उड़ गए कि अंतरिक्ष की ऊंचाई भी शर्माने लगी।
यह सब लिखने का मेरा मतलब यह नहीं कि हर वर्ग में सभी लोग गलत हैं। ऐसे भी हैं जो अपनी ईमानदारी और नैतिकता की कसौटी पर खरे हैं। देखा जाए तो आज पृथ्वी ऐसे लोगों पर ही टिकी हुई है। मतलब की बात यह है कि आज हमारा देश भ्रष्टाचार की भेंट इस कदर चढ़ चुका है कि हाल फिलहाल में कुछ सुधार होता दिखाई नहीं देता।
अब मैं घूम फिर कर फिर अपनी पुरानी बात पर आता हूं कि "हाकिमी गर्मी की और दुकानदारी नरमी की" यदि हाकिमी करनी है तो बगैर गर्मी के काम नहीं चलेगा। यानी "लातों के भूत बातों से नहीं मानते। जब तक हमारे देश से कोढ़तंत्र और रिजर्व तंत्र जैसी महामारी का सफाया नहीं होगा तब तक यह सब कुछ चलता ही रहेगा। यह दोनों महामारी कोरोना से भी अधिक खतरनाक व कष्टदाई हैं। जब तक इनकी वैक्सीन नहीं बनेगी तब तक देश का उद्धार संभव नहीं।
वैक्सीन कौन बनाएगा? और कब तक बनेगी? यह कहना तो संभव नहीं पर इतना जरूर है जब तक हमारे देश में कोई हिटलर पैदा नहीं होगा तब तक तो यह सब चलता ही रहेगा और देश दिन दूनीं और रात चौगुनीं गति से रसातल की ओर जाता रहेगा। भले ही हम तुम्मन खां बनकर अपनी पीठ खूब ठोकलें और चिल्ला चिल्ला कर कहते रहें कि भारत विश्व की बहुत बड़ी ताकत बन गया है। सच बात तो यह है कि यह कोढ़तंत्र और आरक्षण तंत्र देश को गर्त में लिए जा रहे हैं। यदि यही स्थिति रही तो शायद मुगलों और अंग्रेजों के बाद अब चीन की बारी न आ जाए।