
मथुरा : जीएलए विश्वविद्यालय, मथुरा के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सह-प्राध्यापक डॉ. आलोक भारद्वाज को चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में “विश्व उद्यमिता दिवस” के अवसर पर सम्मानित किया गया।
इस विशेष कार्यक्रम में देशभर से 100 से अधिक नवाचार-आधारित इकाइयों (स्टार्ट-अप) ने अपने उत्पाद प्रदर्शित किए, जिन्हें एग्री बिज़नेस इन्क्यूबेशन सेंटर द्वारा प्रायोजित तथा भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित किया गया तथा भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित किया गया।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने सभी प्रदर्शनी स्टॉलों का अवलोकन किया और 22 श्रेष्ठ नवाचार इकाइयों को सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि नया भारत उद्यमिता की दिशा में तेजी से अग्रसर है, जहां नवाचार से न केवल रोजगार सृजित हो रहे हैं बल्कि कृषि एवं उद्योग के लिए नए उत्पाद भी उपलब्ध हो रहे हैं।
डॉ. आलोक ने अपनी नवाचार इकाई उत्कर्ष टेक्नोवेशन के अंतर्गत ‘जय-गोपाल’ केंचुए की सहायता से वर्मी कम्पोस्ट बनाने की अभिनव तकनीक विकसित की है। इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए उन्हें मुख्यमंत्री द्वारा अनुदान की दूसरी किस्त भी प्रदान की गई।
यही नहीं, डॉ. आलोक को भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय से भी एक शोध परियोजना प्राप्त हुई है। इस परियोजना के अंतर्गत ‘जय-गोपाल’ केंचुए की प्रजाति का उपयोग कर वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने पर उन्हें पांच लाख रुपये का अनुदान प्रदान किया गया है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को जैविक खेती अपनाने के लिए प्रेरित करना तथा उनके बीच जागरूकता बढ़ाना है।डॉ. आलोक ने बताया कि वर्तमान समय में रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग से मिट्टी का स्वास्थ्य तेजी से बिगड़ रहा है, जिसका सीधा असर फसल उत्पादकता और गुणवत्ता पर पड़ रहा है। जबकि वर्मी कम्पोस्ट तकनीक मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने, उसकी संरचना सुधारने और फसलों की पैदावार बढ़ाने में अत्यंत कारगर है। यह केंचुआ मल पोषक तत्वों से भरपूर है और मिट्टी के कार्बन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाशियम सहित कई सूक्ष्म पोषक तत्वों को पुनः समृद्ध करता है।
उन्होंने आगे बताया कि ‘जय-गोपाल’ (पेरियोनिक्स सीलेनेसिस) नामक यह केंचुआ प्रजाति 5°से0 से 43°से0 तक के तापमान में सक्रिय रह सकती है। यह गाय के गोबर व जंगली वनस्पतियों को अत्यंत तेजी से जैविक उर्वरक में परिवर्तित करने की क्षमता रखता है। यही कारण है कि इसे भविष्य की जैविक खेती की आधारशिला माना जा रहा है।जीएलए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अनूप गुप्ता ने वर्मी कम्पोस्ट आधारित जैविक खाद के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि किसानों को इसके उपयोग हेतु प्रेरित करना समय की आवश्यकता है। वहीं विभागाध्यक्ष डा. शूरवीर सिंह ने कहा कि यह उपलब्धि न केवल जैविक खेती को प्रोत्साहन देगी बल्कि किसानों के कल्याण हेतु सरकार के प्रयासों को और गति प्रदान करेगी।