Tuesday, September 23, 2025
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जो सवाल मैंने शंकर दयाल शर्मा से किया था वही द्रौपदी मुर्मू से

 मथुरा। बात उस समय की है जब हरि कृष्ण पालीवाल जिलाधिकारी, हरिश्चंद्र सिंह पुलिस अधीक्षक तथा रविकांत गर्ग मंत्री थे। यह पूरा घटनाक्रम इन तीनों के सामने का है। उस समय डॉ. शंकर दयाल शर्मा उपराष्ट्रपति थे। वे सपत्नीक मथुरा आए तथा कुछ देर के लिए एम.ई.एस. के डाक बंगले में विश्राम किया और उसके बाद उन्हें फिर वृंदावन जाना था। कुछ पत्रकार एम.ई.एस. के डाक बंगले पर पहुंच गए, जिनमें मैं स्वयं भी था। मध्यान का समय था शंकर दयाल जी आराम के बाद एकदम फ्रेश होकर प्रसन्नचित स्थिति में पत्रकारों से रूबरू हुए। मैंने उनसे पूंछा कि शर्मा जी आपका मथुरा आना कैसे हुआ? इस पर उन्होंने कहा कि मैं तो आगरा आया था सोचा कि आगरा तक तो आया हूं अतः मथुरा भी होता चलूं। दर्शन वगैरा हो जाएंगे वैसे कोई खास प्रयोजन तो था नहीं।
 मैंने उनसे कहा कि आपका तो बिना किसी प्रयोजन सिर्फ घूमने फिरने के लिए आना हुआ और जनता को कितनी परेशानी हो रही है। इसका अंदाजा है आपको? तीन दिन से तमाम रास्तों को बंद करके फ्लीड की रिहर्सल हो रही है। हजारों लोगों की परेशानी के अलावा पूरे प्रशासन की ताकत इस प्रोटोकॉल के चक्कर में लगी हुई है। क्या यह उचित है? ऐसी स्थिति में आप क्या सोचते हैं? मेरा इतना कहना हुआ कि शंकर दयाल जी ने अपना माथा ठोकते हुए कहा कि मैंने यहां आकर बहुत बड़ा गुनाह कर दिया। अब मैं मथुरा कभी नहीं आऊंगा। उनके तेवरों से जिलाधिकारी हरिकृष्ण पालीवाल के चेहरे की हवाइयां उड़ने लगी और पुलिस अधीक्षक हरिश्चंद्र सिंह जो मजाकिया स्वभाव के थे, मुंह पर हाथ रखकर अपनी हंसी को दबाने का प्रयास करने लगे तथा रविकांत गर्ग भी एकदम किकर्तव्य मूढ स्थिति में पहुंच गए। रविकांत जी शंकर दयाल जी के साथ आगरा से मथुरा हेलीकॉप्टर में ही आए थे।
 शंकर दयाल जी का मूड एकदम ऑफ हो गया और वे वृंदावन जाने के लिए उठ खड़े हुए। इसके बाद एक गाड़ी में शंकर दयाल जी और रविकांत जी बैठे तथा दूसरी गाड़ी में शंकर दयाल जी की धर्मपत्नी श्रीमती विमला शर्मा व रविकांत जी की धर्मपत्नी श्रीमती मीरा गर्ग बैठीं और वृंदावन के लिए उनका काफिला निकल गया। पूरे रास्ते भर शंकर दयाल जी ने रविकांत जी से बस यही चर्चा की कि मैंने बहुत बड़ा गुनाह कर दिया मथुरा आकर अब कभी नहीं आऊंगा। यह बात मुझे बाद में रविकांत जी ने बताई।
 इस घटना के कुछ माह बाद शंकर दयाल जी राष्ट्रपति बन गए। उनके राष्ट्रपति बनने के बाद गिर्राज जी मंदिर के पुरोहित जो शंकर दयाल जी से परिचित थे, गिर्राज जी की प्रसादी आदि लेकर शंकर दयाल जी के पास राष्ट्रपति भवन गए और गिर्राज जी आने का निमंत्रण दिया। शंकर दयाल जी ने फिर वही प्रसंग छेड़ दिया और कहा कि मथुरा में एक पत्रकार ने मुझसे इस प्रकार की बात कह दी जिससे मेरा मन बहुत दुःखी है। अब तो मेरा मथुरा आने का कतई मन नहीं है।
 यह बात मुझे यौं पता चली कि गिर्राज जी के पुरोहित का पुत्र व हमारे बड़े भाई सीताराम जी वृंदावन स्थित स्टेट बैंक में साथ-साथ कार्यरत थे। भाई साहब के सहकर्मी ने यह पूरा वृतांत बैंक में सभी को सुनाया। शंकर दयाल जी बहुत भावुक, धार्मिक और संवेदनशील व्यक्ति थे उन्हें मेरी बात जो प्रोटोकॉल के विपरीत थी, का अखरना स्वाभाविक था। किंतु सवाल यह है कि ये वी.वी.आई.पी. व्यवस्था और प्रोटोकॉल जनता को सताने के लिए ही हैं क्या?
 अब राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मू पधार रही हैं। प्रदेश के आला अफसर यहां डेरा डाले हुए हैं। जिला प्रशासन की पूरी शक्ति झोंक दी गई है। केंद्र और सेना के उच्चाधिकारी भी यहां आकर मॉनिटरिंग कर रहे हैं। सारे राजकाज बंद हैं। जनता त्राहिमाम त्राहिमाम कर रही है। मथुरा वृंदावन को नो फ्लाइंग जोन घोषित कर दिया गया है न कोई जहाज उड़ेगा यहां के आसमान से न ड्रोन। और तो और गुब्बारे या पतंग उड़ाना भी जुर्म है। जबकि वे स्पेशल रेलगाड़ी से मथुरा आ रही हैं हेलीकॉप्टर से नहीं। क्या अजीब तमाशा है? ऐसा लगता है कि इनका बस चले तो नो फ्लाइंग जोन पक्षियों पर भी लागू कर दें और जो भी पक्षी आसमान में उड़ता दिखाई दे उसे गोली मारने के आदेश हों। न तो मुझे शंकर दयाल जी से कोई विरोध और न ही द्रौपदी मुर्मू से कोई शिकायत किंतु यह जो व्यवस्था है वह सामंती जमाने के अन्याय और अत्याचारों की सीमाओं को भी लांघ रही है। यह सब देखकर तो मेरे तन बदन में आग सी लग जाती है। मेरा मानना है कि यह वी.वी.आई.पी. कल्चर हमारे देश का सबसे बड़ा दुश्मन है। हे भगवान इससे कब मुक्ति मिलेगी?
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