
चित्र परिचयः संस्कृति विश्वविद्यालय के संतोष मैमोरियल आडिटोरियम में “एनो-रेक्टल बीमारियों के लिए मिनिमल इनवेसिव टेकनीक” पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में मंच पर आसीन विद्वान वक्ता।
मथुरा। संस्कृति विश्वविद्यालय के संतोष मैमोरियल आडिटोरियम में संस्कृति आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल द्वारा कुलाधिपति डॉ. सचिन गुप्ता और सीईओ डॉ. मीनाक्षी शर्मा के मार्गदर्शन में “एनो-रेक्टल बीमारियों के लिए मिनिमल इनवेसिव टेकनीक” पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार ‘मिक्स-कॉन 2025’ का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया । राष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्वानों ने आयुर्वेद के विद्यार्थियों के क्लीनिकल ज्ञान की वृद्धि और प्रैक्टिशनर्स को आयुर्वेद में नई थेराप्यूटिक, पैरा सर्जिकल तकनिकियों से अवगत कराया।
उद्घाटन सत्र की शुरुआत सरस्वती वंदना और धन्वंतरि वंदना और गणमान्य व्यक्तियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन कर हुई। मुख्य अतिथि डॉ. एम बी चेट्टी ने समकालीन समाज में आयुर्वेदिक डॉक्टरों के कर्तव्यों, जिम्मेदारियों और नैतिक भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आयुर्वेदिक चिकित्सक न केवल उपचार करने वाले हैं, बल्कि भारत की पारंपरिक ज्ञान प्रणाली के मशालवाहक भी हैं और उन्हें करुणा, ईमानदारी और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना के साथ समाज की सेवा करनी चाहिए। उन्होंने निवारक स्वास्थ्य सेवा, जीवनशैली संबंधी विकारों और सामुदायिक स्वास्थ्य सेवाओं में आयुर्वेद डॉक्टरों की बढ़ती आवश्यकता पर जोर दिया और युवा विद्वानों से पेशे की गरिमा और मूल्यों को बनाए रखने का आग्रह किया।
इस सत्र में आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज के छात्रों के लिए व्यावहारिक कौशल और क्लिनिकल अनुभव के महत्व पर प्रकाश डाला गया। पहले तकनीकी सत्र को प्रसिद्ध सर्जन और कई आयुर्वेद विशेषज्ञता केंद्रों के निदेशक डॉ. धनवंतरी त्यागी संबोधित किया। उन्होंने एक आयुर्वेदिक मल्टी-स्पेशियलिटी क्लिनिक के कामकाज पर चर्चा की और दिन-प्रतिदिन की प्रैक्टिस में सामान्य विकारों के प्रबंधन के लिए आवश्यक कौशल पर जोर दिया। स्वागत भाषण डॉ. शुभम गुप्ता ने दिया। वाइस प्रिंसिपल डॉ. एकता कपूर ने सभी विद्यार्थियों से इस दो दिवसीय संगोष्ठी में दिए गए ज्ञान का कुशलता से उपयोग करने की सलाह दी। संस्कृति आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल के प्रिंसिपल डॉ. मोहनन एम ने आयुर्वेद में क्लिनिकल स्किल्स, रिसर्च ओरिएंटेशन और इनोवेशन को मजबूत करने में एकेडमिक कॉन्फ्रेंस के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मिनिमली इनवेसिव तकनीकें आयुर्वेदिक सर्जिकल प्रैक्टिस का भविष्य हैं और रोगी के आराम और परिणामों को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
बाद के सत्रों में शल्य तंत्र विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शुभम गुप्ता द्वारा सफल केस स्टडीज की प्रस्तुतियों के साथ एनोरेक्टल विकारों को कवर किया गया। दूसरे सेशन में प्रतिभागियों को क्लिनिकल अप्रोच और असरदार इलाज के तरीकों के बारे में बताया गया। पहले दिन का समापन छात्रों की प्रतिभा को दिखाने वाले एक सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ हुआ।
सेमिनार के दूसरे दिन पेपर और पोस्टर प्रेजेंटेशन हुए, जिसमें लगभग 20 प्रतिभागियों ने अलग-अलग क्लिनिकल और थेराप्यूटिक तरीकों पर अपना काम पेश किया। तीसरा सेशन शल्य तंत्र विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. विनोद कुमार ने क्षारसूत्र थेरेपी के अलग-अलग तरीकों पर लिया। प्रो. पी. हेमंता कुमार, प्रो-वाइस चांसलर और विभागाध्यक्ष एनआईए ने आयुर्वेद में सर्जिकल तरीकों पर विशेषज्ञ वक्तव्य दिए और मौजूदा क्लिनिकल स्थिति पर चर्चा की। मिनिमली इनवेसिव क्षारसूत्र थेरेपी पर एक सेशन में हाल के इनोवेशन और नतीजों पर प्रकाश डाला गया।
सेमिनार के समापन पर डा. विनोद कुमार ने संगोष्ठी पर समीक्षा प्रस्तुत की। इस दौरान संस्थान के ई-न्यूज़लेटर ‘आयुष संस्कृति’ को गणमान्य व्यक्तियों द्वारा औपचारिक रूप से जारी किया गया। ई-न्यूज़लेटर के संकलन के पीछे की पहल और समर्पित प्रयास डॉ. शिवप्रसाद शर्मा और डॉ. मनीष तोमर ने किए। डॉ. पादुर सुब्रमण्य शास्त्रीगल, प्रोफेसर और हेड-संस्कृत और एस्ट्रोवेदिक अध्ययन विभाग ने किया और अष्टांग आयुर्वेद के बारे में बताया और शास्त्र और शास्त्र ज्ञान के महत्व पर चर्चा की। वाइस प्रिंसिपल डॉ. एकता कपूर ने राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के सफल समापन पर बधाई दी। संस्कृति पी.जी. आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के प्रिंसिपल डॉ. मोहनन एम ने विद्वानों को लगातार सीखने और नैतिक अभ्यास के लिए प्रेरित किया। प्रो. पी. हेमंता कुमार ने अपने अनुभव साझा किए और छात्रों को शल्य तंत्र का नैतिक और कुशलता से अभ्यास करने के लिए प्रेरित किया। डॉ. श्रीविद्या सुब्रमण्यम ने धन्यवाद प्रस्ताव दिया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. साइमीरा और डॉ. आकांक्षा ने किया। मंच की व्यवस्था में डॉ. सुरभि का विशेष योगदान रहा।

