Wednesday, September 17, 2025
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गिरिधर के अनुराग के रसरंग भीग रह्यो चहुँधा बरसानो…..

नारायण भट्ट ने शुरु कराई थी सबसे पहले लठामार होली

हुरियारिनों को दी शक्ति स्वरूपा की उपाधी

बरसाना की लठामार होली के दौरान नंदगांव के हुरियारों पर लट्ठ बरसाती हुरियारिन।

रिपोर्ट- राघव शर्मा, बरसाना

बरसाने की वाम…।’ लट्ठ धरे कंधा फिरे जबहि भगावत ग्वाल, जिमि महिषासुर मर्दिनी चलती रण में चाल। दक्षिण के मुदरैपट्टनम से आए श्रील नारायण भट्ट के वंशज हरीगोपाल भट्ट की नंदगांव बरसाना की लठामार होली पर सैकड़ों वर्ष पूर्व लिखी ये पंक्तियां सशक्त नारी के आधुनिक स्वरूप को दर्शाती हैं। विश्व प्रसिद्ध ब्रज की लठामार अपने आप में अनोखा पर्व है। यह पर्व न सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति का प्रतीक है बल्कि नारी सशक्तिकरण को भी दर्शाता है। फागुन शुक्ल की नवमीं को बरसाना में लठामार होली का आयोजन होता है।

राधाकृष्ण के प्रेम व अनुराग के रंग में रंगी बरसाना की लठामार होली वैसे तो विश्व विख्यात है लेकिन इस अद्भुत होली का शुभारंभ आज से साढ़े पांच सौ वर्ष पहले श्रील नारायण भट्ट ने नन्दगांव व बरसाना के ग्वाल वालों को साथ लेकर शुरु कराया था। वहीं श्रील नारायण भट्ट की सातवीं पीढ़ी में जन्में श्रील जानकी दास भट्ट ने लठामार होली को नया स्वरुप दिया। जिसमें उन्होंने नन्दगांव के हुरियारे व बरसाना की हुरियारिनों के मध्य लठामार होली का आयोजन कराया। नारायण भट्ट चरित्रामृत व रंग नाटक पुस्तक में श्रील जानकी दास भट्ट ने लठामार होली का जिक्र भी किया है। वहीं लाख बार अनुपम बरसानो पुस्तक में भी श्रील हरिगोपाल भट्ट ने बरसाना की लठामार होली का वर्णन किया है। जिसमें उन्होंने बरसाना की हुरियारिनों की तुलना शक्ति स्वरूपा से की है। आज भी नन्दगांव व बरसाना के लोग एक दूसरे को राधाकृष्ण का पूरक मानते है। आज भी प्राचीन परंपरा को निभाते हुए नन्दगांव के हुरियारे हाथ मे ढाल व सिर पर पाग, पीली बगलबंदी धारण किए बरसाना आते हैं। नन्दगांव के हुरियारों की टोली सबसे पहले बरसाना के पीली पोखर पर आती है। जहां बरसाना के लोग उनका आदर व सत्कार करते हैं। जिसके बाद हुरियारे लाडिली जी मंदिर जाते हैं जहां उन पर रंगों की बौछार होती है। अबीर गुलाल व रंग में सराबोर होकर हुरियारों की टोली रंगीली गली पहुचती है। जहां वह हुरियारिनों से हंसी ठिठोली करते हैं। इसी हास-परिहास के मध्य हुरियारिनें अपनी प्रेमपगी लाठियां हुरियारों पर बरसाती हैं।

वर्जन—
वैसे तो राधाकृष्ण की होली अनादिकाल से चली आ रही है लेकिन राधारानी की प्रेरणा से लठामार होली की सबसे पहले शुरुआत श्रील नारायण भट्ट ने नन्दगांव व बरसाना के ग्वालों को साथ लेकर शुरु कराई थी। जिसका वर्णन रंग नाटक पुस्तक व नारायण भट्ट चरित्रामृत में किया गया है। बाद में नंदगांव व बरसाना के पुरुष महिलाओं को समल्लित कर श्रील जानकी भट्ट जी ने इस होली को नया रूप सन 1757 में दिया था।
घनश्यामराज भट्ट प्रवक्ता
ब्रजाचार्य पीठ ऊंचागांव।

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