Monday, August 11, 2025
HomeUncategorizedसंसद भवन बेकार और ऊधमी सांसद तो और भी कंडम

संसद भवन बेकार और ऊधमी सांसद तो और भी कंडम

 मथुरा। नये संसद भवन के फोटो जब-जब में अखबार मैं देखता हूं तब तब मुझे बड़ी झुंझलाहट होती है। इसके अलावा जब मैं संसद के अंदर सांसदों की उद्दंडता वाली खबरें पढ़ता हूं तब तो मुझे इतनी जोर की गुस्सा आती है कि इनकी खोपड़ी से अपनी खोपड़ी बजा डालूं। अब बताता हूं कि संसद भवन बेकार क्यों है? नये संसद भवन को देखते ही ऐसा लगता है जैसे यह कोई ताबूत है।पुराना संसद भवन कितना सुंदर और कितना मजबूत था किंतु मात्र इसलिए उसे रिजेक्ट कर दिया कि यह तो अंग्रेजों का बनाया गया यानी गुलामी का प्रतीक है। चलो ठीक है गुलामी की निशानी मिटादी और देशभक्ति का सेहरा अपने सर बांध लिया।
 अब मैं एक छोटी सी मिसाल बताता हूं। हमारे घर के पास एक रेल का पुल है। जब अंग्रेजों ने उसे बनाया था तब उसकी मियाद 100 वर्ष रखी थी। अब उसे बने हुए 200 वर्ष होने जा रहे हैं किंतु अभी तक उसका बाल बांका तक नहीं हुआ है। उसे भी तोड़कर नया पुल बनाना चाहिए। इसके अलावा एक बात और बताऊं कि हमारे बचपन में इस रेल वाले पुल पर होकर यातायात यानी मोटर, कार, तांगा, रिक्शा आदि सभी निकलते थे, उन्हें बंद कर दिया गया तथा उनके लिए दूसरा नया पुल बनवा दिया गया। अब वह नया पुल बूढ़ा हो चुका है। कई वर्ष पूर्व उसे बंद करके तीसरा एक और नया पुल बनवा दिया। अब उसमें भी फुंसी फोड़े होने लगे हैं तथा कुछ वर्षों के बाद एक और चौथा नया पुल बनेगा। कहने का मतलब है कि हमारे देश में अंग्रेजों की बनाई हुई लाखों चीजें हैं उनकी गुणवत्ता को न देख सिर्फ यह देखना चाहिए कि यह तो गुलामी की निशानियां है और सभी को तोड़ डालना चाहिए।
 अब आता हूं सांसदों की ऊधम बाजी पर। संसद भवन की लोकसभा हो या राज्यसभा अथवा विधानसभायें ही क्यों न हों। इनमें जो कुछ अराजकता होती है वह कितनी शर्मनाक है? ऐसा लगता है कि यह जनप्रतिनिधियों का नहीं अपराधियों का अड्डा है। इनका सबसे अच्छा इलाज तो मेरी नजर में यह है कि पुराने समय की भांति संसदीय कार्यवाही का प्रसारण दूरदर्शन पर बंद कर देना चाहिए। पुराने समय में संसदीय कार्यवाही को सार्वजनिक नहीं किया जाता था। जिसको संसद की कार्यवाही देखनी हो पास बनवाकर दर्शक दीर्घा से देख सकता था।
 मेरा मतलब यह है कि यह हुल्लड़ बाजी सिर्फ अपना चौखटा चमकाने और अखबारों में नाम छपवाने के लिए ज्यादा होती है। यदि इनका प्रसारण बंद हो जाय तो हुल्लड़ बाजी पर बहुत कुछ विराम लग जाएगा। मैं बार-बार सोचता हूं कि संसद या विधानसभायें देश की जनता का भला करने के लिए होती हैं या अपना भला करने और अराजकता फैलाने के लिए? ऐसे उपद्रवी सदस्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने के बजाय हो-हो हू-हू करते हैं। मैं यह नहीं कहता कि सभी सदस्य ऐसे होते हैं किंतु कुछ उद्दडी किस्म के लोग पूरे माहौल को बिगाड़ देते हैं।
 मुझे यह कहने में कोई हिझक या झिझक नहीं कि अनेक ऐसे लोग चुनकर संसद या विधानसभाओं में पहुंच जाते हैं, जिन्हें जेल में होना चाहिए। बल्कि कुछ तो फांसी के पात्र भी हैं। हमारे देश में चुनाव की प्रक्रिया और कानून को धता बताकर ये अपराधी नेता बनकर हम लोगों के ऊपर राज करते हैं। एक कहावत है कि दुकानदारी नरमी की और हाकिमी में गरमी की। यदि देश को देशद्रोहियों से बचाना है तो "लातों के भूत बातों से नहीं मानते" वाला फार्मूला ही अपनाना होगा। अब देखना है कि भगवान हमारे देश को उत्तर कोरिया या चीन जैसी हुकूमत कब देंगे? भले ही हम चीन को कोसते रहें किंतु पूरे विश्व में चीन का डंका इसीलिए बजता है क्योंकि वहां देशद्रोहियों को तुरंत गोली से उड़ा दिया जाता है और कोढ़तंत्र जैसी कोई चीज नहीं है।
 यह सब लिखते लिखते मुझे फिर याद आ गई आपातकाल की। चलो माना आपातकाल जुल्म ज्यादतियों का काल था। इसीलिए जनता ने इंदिरा गांधी को नकार कर चारों खाने चित्त कर दिया किंतु फिर दोबारा दो तिहाई से भी ज्यादा प्रचंड बहुमत से जिताकर क्यों सर आंखों पर बैठाया। है किसी के पास कोई जवाब?.......
RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments