मथुरा। डी.एन. साहब के नाम से प्रसिद्ध श्रद्धेय दीनानाथ चतुर्वेदी के बारे में बहुत कम लोगों को ही पता है कि रिलायंस समूह के असली जन्मदाता ये ही थे। धीरूभाई अंबानी की भूमिका तो सिर्फ नाम मात्र की थी। जड़ में तो डी.एन. साहब का ही सारा खेल था। वे बम्बई के नंबर वन चार्टेड अकाउंटेंट थे तथा अल्प शिक्षित धीरूभाई से उनकी निकटता या यौं कहें कि मित्रता ऐसी रंग लाई कि आज पूरी दुनियां में रिलायंस की धाक है।
चली बात पर यह भी बता दूं कि धीरुभाई व डी.एन. साहब की सांठ गांठ कैसे हुई? दरअसल गिरधर मुरारी परिवार अंबानी परिवार का पुरोहित है। पुरोहित और यजमान का रिश्ता एक प्रकार से साझेदारी में बदल गया। शुरू से ही उन्होंने रिलायंस का फाइनेंस का पूरा काम स्वयं देखा तथा रिलायंस के डायरेक्टर रहे। धीरूभाई और डी.एन. साहब की प्रगाढ़ता मैंने स्वयं अपनी आंखों से देखी है। लगभग चार दशक पूर्व धीरूभाई ने हमारे घर के बराबर स्थित गिरधर मुरारी गेस्ट हाउस जो दीनानाथ जी का है, मैं एक विशाल नेत्र शिविर लगवाया था। उस दौरान धीरूभाई ने एक पत्रकार वार्ता भी की जिसमें में स्वयं भी था। उस समय कुछ दिन धीरूभाई इसी गेस्ट हाउस में रुके तथा एक दिन गेस्ट हाउस के आगे सड़क पर बने पत्थर के चबूतरे पर दीवाल से तकिया लगाकर धीरुभाई को विश्राम करते हुए मैंने देखा था।
उन दिनों धीरूभाई बम्बई की सबसे ऊंची बिल्डिंग "ऊषा किरन" में रहते थे जिसे सेठ राम प्रसाद खंडेलवाल ने बनवाया था। मथुरा में चमेली देवी खंडेलवाल और अनार देवी खंडेलवाल महिला पॉलिटेक्निक भी राम प्रसाद खंडेलवाल की ही देन है। बाद में धीरूभाई ने अपना एक बड़ा बंगला बनवा लिया और ऊषा किरन बिल्डिंग में डी.एन. साहब और उनका परिवार रहने लगा। डी.एन. साहब तीन भाई थे। सबसे बड़े जमुना दास जी, उनसे छोटे दीनानाथ जी और सबसे छोटे बाल किशन जी। तीनों ही भाई बड़े सज्जन और विनम्र थे। इनके पिताजी चौगानी भाई तो एक तरह से देवता समान थे। इनके यहां गिरधर मुरारी धर्मशाला में एक छोटा सा मंदिर है वहां बड़े मनोयोग से ठाकुर जी की पूजा होती मैं बचपन से ही देखता आया हूं। जब तक जमुना दास जी बालकिशन जी जिंदा थे, वे स्वयं ही ठाकुर जी का श्रृंगार व सेवा करते थे। इस परिवार में दान पुण्य, धरम करम बहुत होता है। ईश्वर सेवा और दान पुण्य का ही परिणाम है कि आज गिरधर मुरारी परिवार को बड़ी श्रद्धा व सम्मान के साथ देखा जाता है। यह एक ऐसा पवित्र नाम है कि मथुरा से लेकर बम्बई तक इसकी अनूठी सुगंध है। यह मेरा सौभाग्य है कि श्रद्धेय डी.एन. साहब की मेरे ऊपर बड़ी कृपा थी। जब भी मैं उनसे मिलता तो वे बड़े खुश होते और खूब आशीर्वाद देते। एक दो बार तो हमारे नलकूप की सेवा में अपनीं ओर से आर्थिक मदद की पेशकश तक की।
एक बात जो इस परिवार की खास है तथा लीक से हटकर भी। वह यह कि ये लोग कभी उनसे भी नहीं उलझते जो इनसे विरोध मानते हैं। इनका सबसे बड़ा हथियार या यौं कहें कि अच्छी जिंदगी जीने का फॉर्मूला बड़े अजब गजब का है। इस फाॅर्मूले का सार एक मंत्र है जिसे इन्होंने सिद्ध कर रखा है। उस सिद्ध मंत्र का जाप ये जुबान से या मन ही मन नहीं करते बल्कि अपनीं जीवन पद्धति में उतार कर करते हैं। यह मंत्र है कि "नींच की गारी हंसकर टारी" इस बात का अनुभवी मैं स्वयं भी हूं। यदि हम लोग भी गिरधर मुरारी परिवार के इस मंत्र को अपने जीवन में उतार लें तो जीवन की बगिया महक उठेगी। आज मैं अपने अंतर्मन से न सिर्फ डी.एन. साहब बल्कि उनके सभी पूर्वजों को भी नमन करता हूं जिन्होंने अपने वंशजों को इतने अच्छे संस्कार दिए।