रिपोर्ट:- विजय कुमार गुप्ता
मथुरा। आपके हसबैंड तो एक्सपायर हो गऐ। यह बात गत दिवस सायंकाल एक सीधी-सादी बुजुर्ग महिला ने
मेरी धर्मपत्नी से फोन पर वार्ता करते हुए कही। दरअसल वह पत्नी को पहचान नहीं पाई थीं। उनके
शब्दों में शोक संवेदना झलक रही थी।
मामला कोई खास नहीं साधारण सी बात थी। भूल चूक और अनजाने में उनके मुंह से अचानक यह
शब्द निकल गऐ। इसमें उनका भी दोष नहीं क्योंकि बहुत लंबे समय (लगभग चार दशक) के बाद मेरी
पत्नी ने उन्हें फोन करके कुशल क्षेम पूछा था। वह मेरी पत्नी को पहचान नहीं पाईं और उन्हें
कोई दूसरी महिला समझ बैठीं जिनके पति का देहांत हो चुका था।
जब दोनों की बात आपस में चल रही थी तब मैं थोड़ी दूरी पर बैठा अपने कार्यों में व्यस्त था
तभी अपनी पत्नी के मुंह से निकले यह शब्द मेरे कानों तक पहुंच गए कि नहीं-नहीं मेरे हसबैंड तो
जिंदा है। आप मुझे पहचानी नहीं मैं फलां-फलां बोल रही हूं मथुरा से। इसके बाद उनको अपनी
भूल का एहसास हो गया और बातों का सिलसिला आगे बढ़ गया। फोन बंद होने के बाद मैंने पूरी बात
को समझा। चूंकि गलतफहमी वाला मामला था और बात हंसी-हंसी में समाप्त हो गई।
दरअसल बात यह थी कि जिन बुजुर्ग महिला को मेरी पत्नी ने फोन किया था वे सपरिवार अहमदाबाद में रह रही
थी और अहमदाबाद में कोरोना का तांडव मचा हुआ है। इसलिये पत्नी ने सोचा कि उनके हाल चाल
कुशल क्षेम पूछ लूं। क्योंकि वह महिला दूर की रिश्तेदारी में थी और काफी समय पूर्व मेरी पत्नी से
मेल मुलाकात रह चुकी थी। इसी कारण उन्हें फोन किया। कोरोना के कारण अब लोग उनसे भी फोन
करके कुशल क्षेम ले रहे हैं जिनसे लंबे समय से संपर्क नहीं रहा हो। करें भी तो क्या करें घर में
बैठे-बैठे मन भी तो नहीं लगता और इसी बहाने समय भी पास होता रहता है।
यह बात तो समाप्त हो गई लेकिन दूसरी बात शुरू हो गई यानीं कि बिना बात का बतंगड़ मेरे मन में बन
गया। कहते हैं कि चैबीस घंटों में कुछ क्षण ऐसे भी आते हैं कि जो मुंह से निकली बात सच हो
जाती है। इसीलिए यह कहा जाता है कि कभी भी अशुभ बात मुंह से नहीं निकालनी चाहिये। अब मेरी सिट्टी
पिट्टी गुम हो रही है और मुझे यह डर सता रहा है कि भूल भुलैया में निकली मेरे एक्सपायर होने वाली
बात कहीं सच न हो जाय। इसी वजह से मैं भारी दहशत में हूं। यह दहशत कोरोना ने और भी बढ़ा
दी है।
वैसे तो दुनिया में आबादी बहुत बढ़ गई है और ब्रह्मलीन परम संत देवराहा बाबा ने जो भविष्यवाणी
की थी कि आगे चलकर ऐसी महामारी फैलेगी जो पूरी दुनिया की तीन चैथाई आबादी समाप्त कर देगी।
मैं सोचता था कि आबादी घट जाए तो कौन सी आफत आ जाएगी। सृष्टि का विस्तार तो एक चैथाई
आबादी से भी आगे बढ़ता रहेगा। कम से कम प्रदूषण तो रुकेगा और पेड़-पौधों के कटान
थमेंगे तथा बचे हुए लोगों को फैल फूटकर रहने का मौका मिलेगा आदि आदि लेकिन जब अपने
एक्सपायर होने के शब्द कानों तक पहुंचे (भले ही वे झूट मूट के थे) तो अब मेरे छक्के छूट
रहे हैं और तन मन सब चकरघिन्नी हुआ जा रहा है।
कहते हैं कि भगतसिंह तो पैदा हो लेकिन हमारे घर में नहीं भले ही पड़ोसी के यहां हो जाय। यही
हाल मेरा हो रहा है कि धरती की तीन चैथाई आबादी भले ही घट जाए किंन्तु मैं सलामत बना
रहूं। अब मैं अपनी तसल्ली के लिए आप सभी का सहयोग चाहता हूं कि आप सभी ईश्वर से प्रार्थना करें कि
कोरोना के कहर के बावजूद मैं और आप सलामत बने रहें। इस प्रार्थना में मेरे को प्राॅयरिटी पर
रखें। मैं आपका आभारी रहूंगा।
एक बात यह भी सुन रखी है कि यदि भूल चूक में किसी जीवित व्यक्ति के मरने की बात प्रचारित हो जाती है तो
उसकी उम्र बढ़ जाती है। ईश्वर करे यह बात मेरे ऊपर सटीक बैठे और उन बुजुर्ग महिला द्वारा भूल चूक
में मेरे मरने की बात कहे जाने का मुझे भरपूर लाभ मिले तथा मेरी उम्र हनुमान जी की पूंछ जितनी
लंबी होती चली जाय। इस सुखद बात की कल्पना करके तो मुझे बड़ी दिलासा मिल रही है। भगवान करें ऐसा ही हो और उन बुजुर्ग महिला जिनके मुंह से मेरे मरने की बात निकली थी उनका भला हो।