Friday, April 26, 2024
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सावधान-होशियार-खबरदार लूटपाट और अराजकता का तांडव मचने वाला है जिसके पास लाठी होगी वही भैंस ले जायगा

रिपोर्टः- विजय कुमार गुप्ता

मथुरा। लाॅकडाउन की आड़ में जिस तरह जनता को घोट घोट कर मारा जा रहा है। उससे लोगों में बुरी तरह हा-हाकार मच रहा है। जनता इस कदर कराह उठी है कि अब तो आत्महत्याऐं भी होने लगी हैं। यदि यही स्थिति रही तो लूटपाट और अराजकता का ऐसा तांडव मचेगा जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की होगी क्योंकि चारों और जनाक्रोश भयंकर रूप से पनप रहा है।
कोरोना तो लोगों को झटके से मार रहा है और लाॅकडाउन जनता को ऐसे मार रहा है जैसे पशु के गले को तड़पा-तड़पा कर गढ़से से धीरे-धीरे काटा जाता है। लोगों में इस कदर हा-हाकार का तांडव मच रहा है कि त्राहिमाम त्राहिमाम हो रही है और जनता चीत्कार कर उठी है। एक कहावत याद आ रही है कि बुड्ढा मरे या जवान इन्हें तो हत्या से काम।
डेढ़ माह से ऊपर हो चुका है लेकिन अभी भी लाॅक डाउन हटने के आसार नहीं दिखाई दे रहे। कहीं केस कुछ ज्यादा मिल गए तो बना दिया हाॅटस्पाॅट रेड जोन और चारों तरफ से सील कर दिया कि सड़ते रहो और मरते रहो घुट घुट कर। कहने को तो कह दिया कि सभी आवश्यक वस्तुऐं आॅनलाइन घरों पर पहुंचेंगी लेकिन वास्तविकता यह है कि जो कुछ व्यवस्थाऐं की जा रहीं हैं वह ऊंट के मुंह में जीरा भी नहीं है। सिर्फ कागजों की खानापूर्ति हो रही है।
कहीं-कहीं तो दूध और पीने के पानी तक को लोग तरस चुके हैं। तेलंगाना का गैस कांड जिसमें अनेकों जाने गई, इसी लाॅकडाउन की देन है और रेल की पटरियों पर महाराष्ट्र में सो रहे ढेरों मजदूरों के चिथड़े उड़ गए। वह भी इसी लाॅकडाउन की देन है। भूखे प्यासे लोग देश भर में ऐसे तड़प रहे हैं जैसे पानी के बाहर निकालकर पटकी हुई मछली झटपटाती है। इसके बाद भी कुछ बेशर्म लोग लाॅकडाउन की हिमायत कर रहे हैं। ये लोग वे हैं जिनके ऊपर किसी भी प्रकार से नहीं बीत रही है। छिके छिकाऐ मदमस्त और सर्व साधन संपन्न। कहते हैं जाके पैर न फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई।
शासन और प्रशासन के पास न कोई व्यवस्था है और ना कोई समाधान। बस एक ही उपाय है कि रेड जोन करके दम घोट दो। जांच के जो उपकरण है वह नाम मात्र के हैं और उनमें भी ज्यादातर दो कौड़ी के हैं। इस बात की पुष्टि स्वयं सरकारी तंत्र कर रहा है और ऐसी खबरें भी समाचार पत्रों में प्रतिदिन पढ़ने को मिल रही हैं। आज किसी को पाॅजिटिव बता दिया और बाद में दूसरे दिन नेगेटिव हो गया। जिसको नेगेटिव बता देते हैं, दूसरे दिन उसकी मृत्यु हो जाती है। क्या तमाशा बना रखा है। इंसान तो इंसान पशु तक भूख के मारे तड़प-तड़प कर मर रहे हैं। इनकी आह उन सभी को छोड़ेगी नहीं जो इस सब तांडव के लिए दोषी हैं। निर्बल को न सताइए जाकी मोटी हाय।
मंत्री, सांसद, विधायक तथा आला अफसरों की फौज हाॅटस्पाॅट के उन क्षेत्रों में खुद क्यों नहीं रेन बसेरा करके उनके दुख सुख की सुध लेती? ठीक उसी प्रकार जैसे पहले गांवों में जाकर रात्रि का पड़ाव रखते और समस्याओं से रूबरू होकर उनका समाधान भी करते थे। केवल कागजी घोड़े दौड़ाने अखबारों और टेलीविजन पर बयान देने तथा लाॅकडाउन के नियमों का पालन करने और सोशल डिस्टेंसिंग रखने के मंत्र का जाप करने के अलावा इन पर और क्या काम है? ये कटु शब्द कुछ लोगों को बुरे जरूर लगेंगे लेकिन यह कटु सत्य है। ऐसा लगता है कि चारों ओर जंगलराज हो चला है। यदि यही स्थिति रही तो लोगों सावधान, होशियार और खबरदार हो जाओ। लूटपाट और अराजकता का तांडव मचाने वाला है, जिसके पास लाठी होगी वही भैंस ले जायगा।

कोरोना का फैलना जरूरी
स्वीडन के बाद अब अमेरिकी वैज्ञानिकों ने भी दावा किया है कि कोरोना की महामारी को रोकने के लिए पहले इसको फैलने देना ज्यादा जरूरी है। इससे लोगों के शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बनेगी और अभ्यस्तता आने लगेगी। इसके लिए विश्व की लगभग साठ प्रतिशत जनता का पाॅजिटिव होना जरूरी है। वैज्ञानिकों का तर्क है कि जब यह बीमारी एक से दूसरे में और दूसरे से तीसरे में तथा ऐसे ही धीरे-धीरे सभी में फैलेगी तब इसके कीटाणु शरीर के अन्दर रम जाएंगे और फिर इसका असर धीरे-धीरे समाप्त होने लगेगा। इस प्रक्रिया के दौरान लोगों का मरना स्वाभाविक है लेकिन आगे चलकर पूरा विश्व लाभान्वित होगा।
ठीक उसी प्रकार जैसे चेचक हैजा पोलियो आदि के टीके हमेशा से लगते आऐ हैं। उन टीकों में उसी बीमारी के कीटाणु शरीर में पहुंचाऐ जाते हैं ताकि वह पहले से ही बीमारियों से निपटने की प्रतिरोधक क्षमता बना लें। यही स्थिति कुत्ते के काटने पर रेबीज के इंजेक्शनों की है। लोहे को लोहा काटता है और जहर को जहर मारता है। यह कहावत हम बचपन से सुनते आऐ हैं किंन्तु कौन समझाए अकल के इन दुश्मनों को?

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