Sunday, May 19, 2024
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चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के दूत से मिलने के बाद प्रचंड ने भारत से मांगी मदद

नई दिल्ली। नेपाल के संसदीय दल के नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड ने अब भारत, अमेरिका और यूरोप से नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन को रोकने में मदद मांगी है। प्रचंड ने नेपाल के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, स्पीकर सहित कम्युनिस्ट के सभी शीर्ष नेताओं से मुलाकात की, लेकिन उन्हें विभाजन को रोकने के मामले में कोई हल नहीं निकला। इसलिए अब उन्होंने आगे बढ़कर भारत, अमेरिका और यूरोप से पूर्व प्रधानमंत्री केपी. शर्मा ओली के कदम का विरोध करने को कहा है। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन को रोकने के लिए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नेपाल में एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल को भेजा है।

नेपाल मुद्दे पर भारत की चुप्पी पर की प्रचंड ने टिप्पणी…

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के विदेश विभाग उपप्रमुख नेतृत्ववाले प्रतिनिधिमंडल से मिलने के बाद नेपाल के एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में प्रचंड ने कहा कि भारत हमेशा ही नेपाल के लोकतांत्रिक आंदोलन का समर्थन करता आया है। प्रचंड ने कहा कि नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली द्वारा संसद विघटन करते हुए लोकतंत्र की हत्या किए जाने के बावजूद भारत की ख़ामोशी समझ से परे है।

प्रचंड ने यह भी कहा कि दुनिया भर में खुद को लोकतंत्र का पहरेदार बताने वाला भारत अमेरिका और यूरोप के तमाम देशों की ख़ामोशी आश्चर्यजनक है। उन्होंने कहा कि अगर भारत सही में लोकतंत्र का हिमायती है तो उसे नेपाल के प्रधानमंत्री के द्वारा उठाए गए इस अलोकतांत्रिक कदम का विरोध करना चाहिए।

चीन के समर्थन पर प्रचंड ने चुप्पी साधी

जब प्रचंड से चीन के समर्थन की बात पूछी गई तो कुछ भी जवाब देते नहीं बना। प्रचंड का भारत से मदद मांगना, चीन के प्लान का भी हिस्सा हो सकता है क्योंकि चीन, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन को रोकने के लिये प्रचंड को भी प्रधानमंत्री बनाने को तैयार है। चीन विभाजन को रोकने में असफल रहा है इसलिये प्रचंड ने भारत के दखल की मांग की है।

नेपाल में निर्ममतापूर्वक संविधान को कुचला गया: प्रचंड

प्रचंड ने कहा कि अपने आपको लोकतान्त्रिक कहने वाले देश, पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी के सबसे बड़े प्रवक्ता के रूप में अपने आपको बताने वाले अमेरिका हो या यूरोप, या फिर भारत हो या कोई और देश सभी नेपाल के मामले में चुप हैं। उन्होंने कांतिपुर टीवी से बातचीत में कहा कि नेपाल में निर्ममतापूर्वक संविधान को कुचला गया है, असंवैधानिक तरीके से संसद की हत्या की गई है, लेकिन फिर भी ऐसे समय में लोकतंत्रवादी देश क्यों नहीं बोल रहे हैं?

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