Monday, May 6, 2024
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होलिका दहन के बाद घर लाएं राख, ऐसे इस्तेमाल करके पाएं उन्नति और सुख-शांति

गोवर्धन। राधाकुंड में होलिका पूजन को सज धज कर महिलाओं ने विभिन्न प्रकार के व्यंजनों से सजी थाली को लेकर नगर पंचायत स्थित पुराने कुआं पर होलीका का पूजन करने पहुंची

और विधिवत पूजन किया। गाढे़ गए डांढे के चारों तरफ से लकड़ी, कंडे या उपले से ढककर निश्चित मुहूर्त में जलाने के लिए रखा गया। इसमें छेद वाले गोबर के उपले, गेंहू की नई बालियां और उबटन जलाया जाएगा, ताकि वर्षभर व्यक्ति को आरोग्य कि प्राप्ति हो और उसकी सारी बुरी बलाएं अग्नि में भस्म हो जाएं और होलिका दहन पर लकड़ी की राख को घर में लाकर उससे तिलक करने की परंपरा भी है।


पंडित ब्रज किशोर के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन बुराई पर अच्छाई का दिन यानि कि इस दिन होलिका दहन किया जाता है। जैमिनी सूत्र में इसका आरम्भिक शब्दरूप ‘होलाका’ बताया गया है। वहीं हेमाद्रि, कालविवेक में होलिका को ‘हुताशनी’ कहा गया है। वहीं भारतीय इतिहास में इस दिन को भक्त प्रहलाद की जीत से जोड़कर देखा जाता है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का अत्यंत बलशाली राजा था जो भगवान में बिल्कुल भी विश्वास नहीं रखता था। लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद श्री विष्णु का परम भक्त था।

होलिकादहन के समय ऐसी परंपरा भी है कि होली का जो डंडा गाडा जाता है, उसे प्रहलाद के प्रतीक स्वरुप होली जलने के बीच में ही निकाल लिया जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार होली जलाने के बाद होली की राख को लाकर घर के आग्नेय कोण, यानी दक्षिण-पूर्व दिशा में रखना चाहिए। क्योंकि आग्नेय कोण का संबंध अग्नि तत्व से है और राख भी अग्नि जलने के बाद ही बनती है। आपको बता दें कि इस दिशा में होली की राख रखने से आपको व्यापार में लाभ मिलेगा। जीवन में आपकी उन्नति होगी।

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