Sunday, April 28, 2024
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संत शैलजा कांत के बाबा को स्वयं नेहरू जी ने टिकट दिया था

विजय कुमार गुप्ता

  मथुरा। संत शैलजाकांत मिश्र के बाबा पं. बृजबिहारी मिश्र आजमगढ के सम्मानित व्यक्ति थे। वे आजमगढ़ जिले के अतरौलिया क्षेत्र से दो बार विधायक रहे। एक ओर जहां लोग पार्टियों का टिकट प्राप्त करने के लिए क्या-क्या नहीं करते वहीं दूसरी ओर पं. बृज बिहारी जी को घर बैठे टिकट मिल गई वह भी देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के द्वारा।
 बृजबिहारी मिश्र जी के द्वारा टिकट प्राप्त करने का कोई प्रयास नहीं हुआ था। जब सन 1952 में कांग्रेस हाईकमान की बैठक चल रही थी, कि आजमगढ़ जिले के किस-किस क्षेत्र से कौन कौन व्यक्ति को मैदान में उतारा जाय, तो नेहरु जी ने खुद ही मिश्र जी का नाम अतरौलिया सीट से प्रस्तावित किया और उनका प्रस्ताव सर्वसम्मति से मान्य हुआ तथा दूसरे दिन पार्टी की ओर से टेलीग्राम आ गया उनके घर पर कि अतरौलिया सीट से नामांकन की तैयारी करो। उल्लेखनींय है कि अतरौलिया सीट क्षत्रिय बहुल क्षेत्र है वहां पर किसी ब्राह्मण को टिकट देना और फिर उसका बड़े मतों से जीतना यह साबित करता है कि प्रत्याशी कितना ज्यादा लोकप्रिय है।
 यह सब कुछ मुझे इसलिए लिखना पड़ रहा है कि गत दिनों मैंने संत शैलजाकांत के व्यक्तित्व को लेकर एक लेख फेसबुक पर लिखा था। इस लेख की जबरदस्त चर्चा रही तथा फेसबुक पर लाइक कमेंट और शेयरों की बाढ़ सी आ गई इसी कारण मेरा उत्साह भी फुदकने और कुदकने लगा। मैंने सोचा कि मौके का फायदा उठाया जाना चाहिए। इसके बाद मैंने संत शैलजाकांत जी को फोन मिलाया व कुरेदा कुरादी करके उनके परिवार के बारे में और जानकारी हासिल की। कुछ जानकारी तो मुझे पहले से थी तथा कुछ इनसे पता चली।
 हालांकि संत जी बड़े संकोची स्वभाव के हैं तथा अपनी और अपने परिवार की बैकग्राउंड के बारे में कभी मुंह नहीं खोलते क्योंकि इनका स्वभाव अंतर्मुखी जो है। खैर अब आगे बढ़ता हूं तथा संतजी के बाबा भी कम संत नहीं थे, के बारे में कुछ और जानकारी बताता हूं। इनके बाबा भी इन्हीं की तरह खुद्दार और अति स्वाभिमानी स्वभाव के थे। सबसे बड़ी बात जो मुझे पहले लिखनी चाहिए थी किंतु लेख के प्रारंभ करते समय भूल गया, वह यह कि वे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे तथा जाने-माने परम देशभक्त चंद्रशेखर आजाद के निकट सहयोगियों में थे। चंद्रशेखर आजाद की मदद और अंग्रेजों की मुखालफत की वजह से इनके बाबा को जेल भी जाना पड़ा था। पं. बृज बिहारी मिश्र आजमगढ़ के गिने-चुने वरिष्ठ एवं प्रतिष्ठित अधिवक्ताओं में से एक थे।
 जब ये आजमगढ़ की अतरौलिया सीट से पहली बार विधायक बने तो तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. श्री गोविंद बल्लभ पंत ने इन्हें बद्रीनाथ केदारनाथ धाम तीर्थ कमेटी का अध्यक्ष बनाया। यह जिम्मेदारी उन्होंने इनकी धार्मिकता व ईमानदारी की वजह से दी। दूसरी बार जब ये विधायक बने तब तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. श्री चंद्रभान गुप्त ने इन्हें पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी की जिम्मेदारी देने की पेशकश की जो मंत्री पद का दर्जा प्राप्त होती है, किंतु इनके बाबा ने उस पर अपनी सहमति नहीं दी फिर बाद में पं. कमलापति त्रिपाठी के परामर्श पर स्वीकार कर ली।
 संत शैलजाकांत को मध्य प्रदेश की पहली महिला जज स्व. प्रभा शर्मा जो जबलपुर की जिला जज थीं, के दामाद होने का सौभाग्य प्राप्त है। इनकी धर्मपत्नी श्रीमती मंजरी देवी के नाना जी स्व. श्री ठाकुर प्रसाद शर्मा प्रतिष्ठित वकील थे उनकी पुत्री प्रभा शर्मा आजीवन कुंवारी रहीं। प्रभा मंजरी देवी की सगी मौसी थीं। प्रभा शर्मा जो पिछले लगभग चार माह पूर्व देह त्याग चुकी हैं, ने अपनीं बहन की बेटी मंजरी को छोटी सी उम्र में ही गोद ले लिया तथा पाल पोस व पढ़ा लिखा कर शादी भी हीरा जैसा अनमोल दामाद ढूंढकर की। यह भी उनका सौभाग्य था कि उन्हें अनमोल हीरा जैसा दुर्लभ दामाद मिला।
 अब यह आप लोग तय करें कि किसका सौभाग्य बड़ा था। मध्य प्रदेश की पहली महिला जज जो जबलपुर की जिला जज थीं के दामाद बनने का? या शैलजाकांत जैसे अनमोल हीरा जैसे युवक की सास बनने का? और यदि सौभाग्यशाली की इस प्रतिस्पर्धा में मंजरी भावीजी भी शामिल हो जांय तो मैं दावे से कह सकता हूं कि वे बाजी मार जाएंगी।
 अब बाजी मारने वाली बाजीगरी से हटकर एक महत्वपूर्ण बात बताता हूं। वह यह कि संतजी के संतत्व से प्रभावित होकर में गला फाड़ फाड़ कर अक्सर उनकी प्रशंसा करता रहता हूं। हालांकि ये कभी-कभी मुझे टोकते भी रहते हैं कि विजय बाबू ये निजी जीवन की बातें हैं और मुझे इतना ज्यादा महिमामंडित मत करो। एक बार तो यहां तक कह चुके हैं कि विजय बाबू आपसे बतियाना बड़ा खतरनाक होता है गत दिवस तो इन्होंने अपनी मूर्ति लगवाने तक का व्यंग मुझ पर कर दिया। मैंने भी कह दिया कि पत्थर की मूर्ति से क्या होगा आपकी मूर्ति तो लोगों के दिलों में लगी है।
 पिछले लेख को पढ़कर भी इन्होंने अपनी सफाई दी कि मोर के मरने की बात के पीछे मेरी कोई आध्यात्मिकता नहीं थी। मैंने तो सिर्फ इसलिए कहा था कि यह मोर रोजाना छत पर आकर दाना खाता है और फिर खुशी से नांचने लगता है। यह क्रम पिछले काफी दिनों से चल रहा था। मिश्रा जी आगे कहते हैं कि नांचते समय उसके पंख लंबे होकर फैल जाते थे। चूंकि छत पर बिजली के तारों के जॉइंट लगे हुए थे अतः मुझे लगा कि कहीं इसे करंट न लग जाय और संयोग ऐसा जो उसी दिन शाम के समय मोर को अचानक करंट लगा और वह बेचारा मर गया। वैसे तो ये कम बोलते हैं तथा उस समय धाराप्रवाह बोलते गए और कहने लगे कि जैसे प्रतिभावान छात्र को देखकर लोग अंदाज से कहते हैं कि यह आगे चलकर बहुत तरक्की करेगा या बहुत अधिक शराब पीने वाले को देख कर कहते हैं कि कहीं गुर्दे, किडनी खराब होकर यह मर न जाय। बाद में पता चलता है कि छात्र तरक्की कर के ऊंचे ओहदे पर चला गया व शराबी के भी गुर्दे किडनी खराब हो गए और वह भी जाता रहा। ठीक यही स्थिति मोर की थी।
 संतजी ने मोर वाली बात को तो तूल दे दिया किंतु ड्राइवर वाली अंदरूनी भविष्यवाणी पर चुप्पी साधे रहे। जहां तक मेरा अंदाज है, वे इसलिए बच बच कर चल रहे हैं कि कहीं लोग उन्हें सिद्ध पुरुष समझ कर अपनी समस्याओं को लेकर न आने लगें और कहने लगें कि महाराज जी हमारी समस्या का समाधान करो तथा ऐसा आशीर्वाद दो जो सभी समस्याएं चुटकियों में उड़नछू हो जांय।
 अब और ज्यादा इनके बारे में कुछ नहीं लिखूंगा क्योंकि लेख लंबा होता जा रहा है। जबकि कि हमारे आजीवन साथी मनोज तौमर बार-बार यह कहते रहते हैं कि बाबूजी छोटे से छोटा लेख लिखा करो ताकि लोग पढ़ लिया करें क्योंकि सभी के पास समय का अभाव है। आखिरी में कुछ समय आप लोगों का और लूंगा क्योंकि अंदर की एक बात जो बड़े राज की है और बतानी है।
 बात यह है कि मैं तो गला फाड़ फाड़ कर इनकी प्रशंसा में पुल निर्माण करता ही रहता हूं किंतु ये भी मौका लगते ही दबी जुबान से जब कभी लोगों से मेरी तारीफ में पुलिया निर्माण जरूर कर डालते हैं और मुझ जैसे असंत को भी संत का दर्जा देने से भी नहीं चूकते। इस बात का राज यह है कि इनके और मेरे बीच में एक करार हो चुका है सिद्ध साधक वाला। यानी कि हम दोनों एक दूसरे की तारीफ करते रहें। बात चली थी मिश्रा जी के बाबाश्री से और पहुंच गई सिद्ध साधकों तक। अब मैं सबसे पहले देवराहा बाबा और फिर बृजबिहारी बाबा तथा अंत में शैलेज बाबा की जय बोलते हुए अपनी कलम को विश्राम देता हूं।
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