Saturday, September 21, 2024
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मूर्खता की हद हो गई

विजय गुप्ता की कलम से

ब्याह शादियों में महंगे कार्ड अंग्रेजी में छपाई और ऊपर से पन्नी का कवर

मथुरा। ब्याह शादियों के चक्कर में निमंत्रण पत्रों में आजकल होड़ा होड़ी से मूर्खता की सभी हदें पार हो रही हैं। समझ में नहीं आता कि एक दूसरे की देखा देखी और कोरी अदाबाजी का यह विकृत स्वरूप आगे चलकर और क्या-क्या नये गुल खिलाएगा।
     ऐसे समझदार लोग तो अब सिर्फ उंगलियों पर गिनने लायक रह गए हैं, जो हिंदी में साधारण सा शादी का कार्ड छपवाते हैं और ऊपर प्लास्टिक की पन्नी का कवर नहीं चढ़वाते। जब कोई मेरे पास शादी का कार्ड लेकर आता है और यदि कई कार्ड अंग्रेजी में हो, अत्यंत कीमती तथा किताब काफी जैसी मोटाई का लंबा चौड़ा हो तथा उस पर प्लास्टिक की पन्नी और चढ़ी हुई हो, तब तो मेरे तन बदन में आग सी लग जाती है। इन तीनों में अगर एक भी मूर्खता होती है तो भी मैं खरी खोटी सुनाऐ बगैर नहीं रहता चाहे किसी को बुरी लगे या भली। मेरे मन की भड़ास निकले बगैर नहीं रहती।
     मेरा मानना है कि जिसके पास अनाप-शनाप यानी बगैर श्रम की कमाई होती है वही लोग ज्यादा इतराते इठलाते हैं। अधिकतर लोग कहते हैं कि हम क्या करें अपने बच्चों का मन रखना भी जरूरी होता है। जहां तक बच्चा शब्द की बात है तो मुझे उन धींगरों को भी बच्चा कहना बुरा लगता है जो बाप बनने जा रहे हैं। बच्चे वे कहलाते हैं जो मां का दूध पीते हैं घुटमन या उंगली पकड़कर चलते हैं इन्हें तो बेटा अथवा लड़का कहना चाहिए।
     मुझे लगभग पचास वर्ष पुरानीं एक बात याद आ रही है। जिला कांग्रेस के अध्यक्ष थे स्व. श्री पी.एल. मिश्रा उनके यहां कोई शादी थी। उन्होंने शादी का कार्ड छपवाने के बजाय पूरे कागज के आधे पन्ने पर साइक्लोस्टाइल से मैटर छपवाया और एक छोटे से लिफाफे के अंदर रखकर सभी को बतौर निमंत्रण पत्र वितरित कराया। मुझे मिश्रा जी का यह अनुकरणींय कार्य बहुत अच्छा लगा। उस समय फोटोस्टेट की शुरुआत नहीं हुई थी तथा टाइप होता था। दो चार प्रति निकलवाने होतीं तो कार्बन लगाया जाता था और बहुत ज्यादा प्रतियों की आवश्यकता होने पर एक प्रति टाइप करा कर साइक्लोस्टाइल से निकलवा ली जाती थी।
     जितना भी ज्यादा मोटा और लंबा चौड़ा कार्ड होगा उसकी एवज में उतने ही अधिक पेड़ कटेंगे। इसके अलावा प्लास्टिक वाली पन्नी चढ़ाने का मतलब तो मेरी समझ से परे है इससे तो पर्यावरण को नुकसान होता है। कार्ड आया उसे लोग सरसरी नजर से देखते हैं तथा किस तारीख की शादी है और कहां जाना है देखने के बाद फिर तो वह रद्दी हो जाता है। दो हजार के नोटों को तो साधारण तरीके से रखेंगे और शादी के कार्ड को ऐसे सहेज कर प्लास्टिक की पन्नी चढ़ा कर देंगे जैसे जिंदगी भर रोजाना गीता, भागवत, रामायण की तरह इसे पढ़ा जाएगा तथा माथे से लगाकर उसकी पूजा आरती की जाएगी।
     अब रही अंग्रेजी में छपवाने की बात तो जहां तक मेरा अनुमान है हमारे समाज खास तौर से इस ब्रजभूमि में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो हिंदी नहीं जानता होगा। साथ ही अधिकांश लोग ऐसे हैं जो अंग्रेजी नहीं जानते (ऐसे लोगों में एक व्यक्ति में स्वयं भी हूं) किंतु अंग्रेजी में कार्ड छपवाने से इनका स्टैंडर्ड तो बढ़ ही जाता है। भले ही कोई पढ़ पाए या नहीं।
     ये मूर्ख लोग इसी प्रकार की बेवकूफी से अपने स्टैंडर्ड का पैमाना नापते हैं। कुछ लोगों की अंग्रेजीयत की अदाबाजी पर तो मुझे बड़ी हंसी सी आती है। दरअसल अंग्रेज लोग ‘त’ नहीं बोल पाते इसलिए वह ‘त’ को ‘ट’ बोलते हैं। जैसे बोतल की जगह बौटल, हम लोग तौलिया बोलते हैं और अंग्रेज टावेल। हमारे अंग्रेज पुत्र ‘त’ बोलने में सक्षम होते हुए भी अंग्रेजी की अदाबाजी में बोतल को बौटल कहने में ज्यादा शान समझते हैं। इसी प्रकार तौलिया उनके मुंह से नहीं निकलता टावेल कहने में बड़ी शान बढ़ती है।
     खैर सौ की सीधी बात यह है कि मुझे तो अपनी भड़ास निकालनी थी, सो निकाल ली। अब चाहे कोई हजार की कीमत का मोटे से मोटा कार्ड छपवाऐ, अंग्रेजी में छपवाऐ या उर्दू में और फिर कार्ड पर प्लास्टिक की पन्नी तो छोड़ो, हर पन्ने की लेमिनेशन और करा ले मुझे क्या लेना-देना जिसकी जो मर्जी हो करें किंतु इतना जरूर कहूंगा कि इन लोगों के लिए, जहां पैसे खर्च करने होते हैं वहां तो धेला भी नहीं खर्चते और व्यर्थ का खर्च करने में अपनी शान समझते हैं।
     मेरा मानना है कि चाहे ब्याह शादी के कार्ड हों अथवा किसी भी प्रकार की दिखावट, बनावट वाली फिजूलखर्ची से हमेशा बचना चाहिए। ये सभी पतन के लक्षण हैं। सबसे श्रेष्ठ और कल्याणकारी तो सादगी का जीवन और विचारों की पवित्रता होती है। हम लोगों को निर्धन और असहायों की मदद तथा जीव जंतु व पशु पक्षियों की सेवा के भाव अपने हृदय में समाहित करके चौरासी लाख योनियों के बाद मिले मनुष्य जीवन को सार्थक बनाना चाहिए।

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