Friday, May 3, 2024
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बहुत याद आती है देवराहा बाबा की

मथुरा। ब्रह्म ऋषि देवराहा बाबा को देह त्यागे हुए भले ही लंबा समय हो गया है, पर आज भी वह हमारे जहन में इस कदर समाए हुए हैं कि भुलाए नहीं भूलते। वह दृश्य बार-बार आंखों के सामने नाचता रहता है कि बाबा अपनीं मचान पर बैठे हैं और भक्तों की भीड़ आ रही है तथा आशीर्वाद लेकर जा रही है।
अब तो बाबा का आश्रम चारों ओर से कवर्ड हो गया है। उस समय तो एकदम खुला हुआ था। कैसा मनोरम और शांत वातावरण था सिर्फ कुछ झोपड़ियां थीं। पक्का निर्माण तो था ही नहीं। मुझे वह दिन याद आ रहा है जब बाबा ने देह त्यागी थी। उस दिन योगिनी एकादशी का महान पर्व था। इससे भी कहीं अधिक विलक्षण बात यह थी कि बाबा ने ब्रह्म मलंद विधि से अपने प्राण त्यागे थे। ब्रह्म मलंद विधि को आम बोल चाल की भाषा में ब्रह्मांड फाड़कर प्राण त्यागना बोला जाता है। इस विधि से सर के बीचो-बीच होकर प्राण निकलते हैं। यह विधि सर्वश्रेष्ठ मानीं जाती है। इस दौरान सर के बीचो बीच एक छोटा सा छिद्र हो जाता है और प्राण पखेरू निकल जाते हैं।
सतयुग में तो ऐसी घटनाएं अक्सर होती सुनीं गईं है किंतु इस घोर कलयुग में यह चौंकाने वाली बात है। बाबा का पूरा जीवन चमत्कारों से भरा हुआ है, इसे बताने की जरूरत नहीं सब जानते हैं। जिस समय बाबा को जल समाधि दी जा रही थी उस मौके पर मैं भी मौजूद था। स्व. अटल बिहारी वाजपेई सहित बड़ी-बड़ी हस्तियां मौजूद थीं सभी लोग अलग-अलग नावों में सवार थे। जैसे ही बाबा की पवित्र देह को यमुनाजी में विसर्जित किया गया तुरंत एक जोरदार अंधड़ सा आया और हल्की बूंदाबांदी के साथ बादल घुमड़ने लगे और सभी नावें जोर-जोर से हिचकोले लेने लगीं। ऐसा लगने लगा कि नावों में बैठे लोगों की भी कहीं यमुना में जल समाधि न हो जाय। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और कुछ क्षण के बाद सब कुछ एकदम शांत हो गया।
बाबा के करोड़ों शिष्य इस पृथ्वी पर हैं। मैंने यह महसूस किया कि सर्वप्रिय शिष्य शैलजा कांत मिश्र है, जो उस समय मथुरा के पुलिस कप्तान थे और बाबा की कृपा से ही आज भी मथुरा में रहकर ब्रज की सेवा कर रहे हैं। बाबा ने उसी दौरान कह दिया था कि शैलेज बच्चा तुमको रिटायर होने के बाद फिर दोबारा मथुरा में आकर ब्रज की सेवा करनी है। जिस समय बाबा ने अपनी देह त्यागी थी, उन्होंने शैलजा कांत जी को बुला लिया तथा जब बाबा मचान पर देह त्याग रहे थे, उस समय भी मिश्रा जी मचान के नींचे मौजूद थे। मिश्रा जी के बारे में एक बात और बताना चाहूंगा कि बाल्यावस्था से ही उनकी माताजी बाबा के चरणों को धो-धोकर उन्हें पिलाया करती थीं। कहने का मतलब है कि कई पीढ़ियों से मिश्रा जी का परिवार बाबा को मानता चला आ रहा है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति स्व. डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जी का परिवार भी कई पीढ़ियों से बाबा को मानता चला आ रहा था। यही नहीं उनके ननिहाल की भी कई पीढ़ियां बाबा के प्रति अगाध श्रद्धा रखती थीं।
मिश्रा जी जो गृहस्थ के विलक्षण संत हैं, के माध्यम से ही मुझे बाबा का आशीर्वाद मिला था। बाबा मुझे गुप्ता भगत कहकर पुकारते थे। एक मौका ऐसा भी आया जब बाबा ने मेरी जान बचा दी। मेरी ही नहीं मेरी पत्नी व दोनों बच्चों की जान भी बचाई। हुआ यह कि मैं अपनी लूना (विक्की) से पत्नी व दोनों बच्चों को लेकर बाबा के दर्शनार्थ जा रहा था। जैसे ही वृंदावन के पौंन्टून पुल के पास पहुंचा मेरी लूना अचानक बंद हो गई। लाख जतन किए पर लूना चली ही नहीं। शाम का समय था इस ऊहापोह में अंधेरा छाने लगा। इसी दौरान मुझे सामने से आती हुई एक गाड़ी की सर्च लाइट दिखाई दी मैंने हाथ देकर उसे रोका तो पता चला कि वह गाड़ी उस समय के सी.ओ. सिटी एस.एन. सिंह जी की थी। वे भी बाबा के आश्रम जा रहे थे।
एस.एन. सिंह जी ने जैसे ही मुझे देखा तो वे गाड़ी से नींचे उतर आए तथा सारा माजरा समझा। उन्होंने अपनीं गाड़ी में बैठे एक पुलिस वाले से कहा कि तुम गुप्ता जी की लूना को ठीक करके मथुरा पहुंचा दो। फिर इसके बाद वे हम चारों को अपनी गाड़ी में लेकर पौन्टून पुल की ओर बढ़े। वहां का नजारा देखकर तो हम सभी के पैरों के नींचे से जमीन खिसक गई। दरअसल कुछ देर पहले ही यमुना में पानी का बहाव अचानक तेज होने की वजह से पूरा पौन्टून पुल ही बह गया। इसका मतलब यह हुआ कि यदि हमारी लूना खराब नहीं होती तो हम चारों की जल समाधि होना तय थी। यह सब बाबा महाराज की कृपा का ही परिणाम था।
इसके बाद हम लोगों ने तय किया कि अब तो हमें बाबा के दर्शन करने ही हैं। अतः गाड़ी को वापस किया तथा मांट होकर बाबा के आश्रम पहुंचे। उस समय रात हो चुकी थी संयोग ऐसा कि वहां शैलजा कांत जी भी पहले से मौजूद थे। बाबा को सारी घटना सुनाई तो बाबा बस मुस्कुरा दिए ऐसा लगा कि बाबा को तो सब कुछ पहले से ही पता था। खैर बाबा का आशीर्वाद लेने के बाद जब हम सभी वापस लौटने को हुए तो बाबा ने मिश्रा जी को हिदायत दी कि “शैलेज बच्चा गुप्ता भगत और इनके बाल बच्चों को अपने साथ अपनीं गाड़ी में लेकर जाओ तथा इन्हें घर पर छोड़कर फिर अपने घर जाना” इस बात को बाबा ने मिश्रा जी से दो बार दोहराया। इससे पता चलता है कि बाबा की मेरे और मेरे परिवार के ऊपर कितनी जबरदस्त कृपा थी।
लिखने को तो बाबा के बारे में बहुत कुछ है किंतु लेख को ज्यादा लंबा खींचने के बजाय सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि भले ही आज सशरीर बाबा हमारे मध्य नहीं हैं, किंतु उनकी दिव्यात्मा ब्रज के कण-कण में आज भी विद्यमान हैं। बल्कि यदि मैं यौं कहूं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बाबा महाराज की आत्मा आंशिक रूप से संत शैलजा कांत जी के अंदर भी विराजमान हैं। परमपिता परमात्मा और बाबा महाराज जो स्वयं ईश्वर के अंशावतार थे, की कृपा हम सब ब्रज वासियों के ऊपर संत शैलजा कांत जी के माध्यम से लंबे समय तक इसी प्रकार बरसती रहे।

विजय गुप्ता की कलम से

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