विजय गुप्ता की कलम से
मथुरा। कबीर दास जी का एक दोहा है "जब हम पैदा हुए जग हंसा हम रोऐ, ऐसी करनी कर चलौ हम हंसैं जग रोऐ"। यह दोहा चरितार्थ होते हुए एक बार मैंने मथुरा के रेलवे स्टेशन पर देखा। संत कबीर ने तो यह दोहा जग छोड़ते वक्त के लिए लिखा था किंतु इसका प्रतिबिंब एक जिलाधिकारी के जनपद छोड़ने के समय दिखाई दे रहा था।
लगभग साढ़े तीन दशक पुरानीं बात है। मथुरा जंक्शन के प्लेटफार्म नंबर दो और तीन के मध्य का वाकया है, लोगों की भारी भीड़ लगी हुई थी। उनमें से कुछ तो फूट फूट कर ऐसे रोए जा रहे थे, जैसे इनके घर का कोई मर गया हो। उस भीड़ में स्वयं मैं भी था। भले ही मैं खुद तो नहीं रो रहा था, किंतु मेरा मन जरूर रो रहा था। रोने का कारण किसी की मौत नहीं बिछोह था, ठीक उसी प्रकार जैसे शादी के बाद लड़की की विदाई के समय घर वालों का होता है।
यह बिछोह था मथुरा के तत्कालीन जिलाधिकारी श्री गोपबंधु पटनायक के यहां से स्थानांतरित होकर लखनऊ जाने के समय का। इस जमघट के मध्य एक लंबी लाइन भी लगी हुई थी। लाइन में लगे लोग माला हाथ में लिए अपनी बारी आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। माला पहनाने को आतुर लोगों की लाइन में स्वयं मैं भी था। जहां तक मुझे याद है यह लाइन घंटों चली तथा जितने लोग आगे से कम होते उतने ही पीछे से जुड़ जाते। पटनायक जी सभी के हाथ से माला पहन और फिर उन्हें गले लगाकर भावनात्मक विदाई सत्कार स्वीकार कर रहे थे।
अब सोचने की बात है कि आखिर पटनायक जी में ऐसी कौन सी ख़ास बात थी? जो ऐसा अभूतपूर्व मेला सा लगा हुआ था रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर। खास बात उनकी दुर्लभता थी, वे बड़े ईमानदार तो थे ही साथ ही उनकी सौम्यता और भोलापन सभी को लुभाता था। शांत स्वभाव के मितभाषी पटनायक जी के चेहरे पर छोटे बच्चों जैसा सलौनापन बहुत प्यारा और मनमोहक लगता था। उड़िया लहजे में हिंदी बोलना तो बड़ा लुभावना होता यानी सौने में सुगंध का काम करता था। कहते हैं कि दुकानदारी नरमी की और हाकिमी गरमी की। पटनायक जी ने इस कहावत को पलटकर रख दिया यानी बड़ी नरमी के साथ सफलतापूर्वक ऐसी हाकिमी कर गए जिसे लोग आज भी याद करते हैं। मैंने उन्हें कभी किसी पर यहां तक कि अपने मातहतों तक पर भी गुस्सा होते नहीं देखा। गुस्सा तो क्या ऊंची आवाज तक उनके मुंह से कभी नहीं सुनी जो बड़े अचंभे की बात है। पटनायक जी की एक और खास बात यह थी कि वे हमेशा ना सावन सूखे और ना भादौ हरे रहते थे यानी कि ना काहू से दोस्ती और ना काहू से बैर।
मैंने सुबह सुबह इस लेख को लिखने की शुरुआत ही की थी कि आकाशवाणी के प्राचीन काल वाले उद्घोषक तथा 117 वर्ष तक का जीवन जीने और अपनी मृत्यु के दिन और समय की पूर्व घोषणा कर देने वाले गृहस्थ के सच्चे संत बाबा शीतल दास के नाती श्रीकृष्ण शरद का कासगंज से फोन आया कि "विजय बाबू आज क्या लिख रहे हो"? मैंने उन्हें बताया कि शरद जी आज तो मैं गोपबंधु पटनायक जी के बारे में लिख रहा हूं और साथ ही मैंने इस लेखन का शुरुआती अंश भी सुनाया। पहले तो भी वाह-वाह की रटना लगाते रहे और फिर उन्होंने जो कहा उससे मैं अवाक सा रह गया।
शरद जी ने कहा कि इनकी माधुर्यता और विलक्षणता के कारण तो मुझे जो भी पटनायक मिलता है उसे श्रद्धा और सम्मान की नजर से देखता हूं। वे यहीं नहीं रुके, आगे उन्होंने कहा कि पटनायक जी ने कटक जहां के ये रहने वाले हैं, ही नहीं पूरे उड़ीसा का नाम सिर्फ रोशन ही नहीं किया बल्कि पटनायक शब्द को भी शोभित और आनंदित किया है। उनकी ये बातें मुझे हक्का-बक्का सा कर गईं। मुझे लगा कि उनकी बातों में कुछ ज्यादा ही अतिशयोक्ति है किंतु मेरी अंतरात्मा कहने लगी कि यह सुगंधित बयार बनावटी या दिखावटी नहीं यह तो सुसंस्कृत परिवार से मिले संस्कारों की देन है जो चहुंओर अपनी महक बिखेर रही है। अरे मूर्ख इसे अतिशयोक्ति समझने की गलती मत कर और अंतरात्मा की आवाज मेरी सोच पर भारी पड़ गई तथा मैंने यू-टर्न ले लिया। शरद जी से वार्तालाप के दौरान एक बार तो मैं भावुक हो उठा और क्षण भर के लिए मेरी आवाज बंद हो गई। यही स्थिति कुछ-कुछ शरद जी की भी हो उठी।
इसके बाद मेरी बातचीत मूर्धन्य विद्वान तथा उत्तर प्रदेश रत्न स्वर्गीय वासुदेव कृष्ण चतुर्वेदी के सुपुत्र श्री हरदेव कृष्ण चतुर्वेदी से हुईं। जब उन्हें यह पता चला कि आज में गोप बंधु पटनायक जी के बारे में लिख रहा हूं तो वे बड़े आनंदित हो उठे तथा चतुर्वेदियों वाले बोलचाल के अंदाज में बोले कि "यै तौ दूसरे शैलजा कान्त हैं, सचमुच में बृज के विरक्त संत गुप्ता जी इनपै तौ जरूर लिखौ, मौय बड़ी खुशी होयगी"। इसके बाद उन्होंने पटनायक जी के गुणगान करने शुरू कर दिए।
हरदेव चतुर्वेदी लगातार तीन चार दशक तक सभी जिलाधिकारियों के निजी सहायक रहे तथा इनकी विद्वता के कारण रिटायरमेंट के बाद भी कई जिलाधिकारी इन्हें अपने साथ जोड़े रहे व मार्गदर्शन लेते रहे किंतु पारिवारिक दुखों मुख्यतः पुत्र वियोग के कारण आगे चलकर हरदेव जी ने जिलाधिकारी कार्यालय से अपने आपको को अलग कर लिया। कहने का मतलब है कि इन्हें दर्जनों जिलाधिकारियों की नस नस की जानकारी है कि कौन विरक्त संत है और कौन आसक्त चंट है।
अब मैं पटनायक जी के बारे में अपने निजी अनुभव बताता हूं। मेरे सबसे छोटे भाई सुनील कुमार की शादी थी। स्वागत समारोह घर के निकट भिवानी वाली धर्मशाला में था। पटनायक जी उस दिन रात्रि में वृंदावन में थे। उन दिनों मोबाइल तो बहुत दूर की बात है आमतौर पर घरों में भी फोन नहीं होते थे। पटनायक जी ने वृंदावन से हमारे घर के बराबर गिरधर मोरारी गेस्ट हाउस में फोन करके कहा कि मैं यहां फंसा हुआ हूं। आने की पूरी कोशिश करूंगा यदि नहीं आ सकूं तो क्षमा कर देना।
इसके काफी देर बाद लगभग अर्धरात्रि के समय पटनायक जी आऐ। उस समय वर-वधू खाना खाने को बैठे ही थे। मैंने पटनायक जी से कहा कि मैं अभी बुलाता हूं वर वधु को। पटनायक जी ने मुझे रोक दिया तथा कहा कि गुप्ता जी उन्हें डिस्टर्ब मत करो। मैं इंतजार कर लूंगा तथा हाथ में फूलों का गुलदस्ता लिए काफी देर तक चहल कदमी करते रहे। जब वर-वधू खाना खाकर बाहर आए तो उन्हें अपना आशीर्वाद देकर पटनायक जी विदा हुए।
दूसरी घटना उस समय की है जब ये लखनऊ में उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन के चेयरमैन थे। हमारे घर से कुछ दूरी पर सुभाष इंटर कॉलेज के निकट एक ट्रांसफॉर्मर बिना बैरिकेडिंग का था, उससे चिपक कर कई गाय मर चुकी थीं किंतु स्थानीय अधिकारी लापरवाही कर रहे थे। मैंने पटनायक जी को फोन करके यह बात बताई उन्होंने तुरंत अधीनस्थों को आदेश दिया कि शीघ्र बैरिकेडिंग लगवाई जाय।
संयोग ऐसा कि दूसरे दिन फिर एक गाय मर गई। मैंने पटनायक जी से कहा कि आपके आदेश का पालन नहीं हुआ और आज फिर एक गाय और मर गई। उससे थोड़ी देर बाद बिजली विभाग के आला अधिकारियों की गाड़ियों की लाइन लग गई तथा आनन-फानन में यानी शाम तक बैरिकेडिंग लगा दी गई इस दौरान पटनायक जी बराबर पूंछते रहे कि अभी बैरिकेडिंग लगनी शुरू हुई या नहीं। इस घटना से सिद्ध होता है कि यह सच्चे गोपबंधु हैं। यह लिखते समय मुझे वह दृश्य याद आ रहा है जब गोपाष्टमी मेले में इन्होंने धोती कुर्ता पहनकर शिरकत की थी।
तीसरी एक और बात जो सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, भी बताता हूं। हमारे घर पर बिजली की जो सप्लाई आती है उसे गोकुल क्षेत्र से आने वाली सप्लाई के चालू होने के बाद पुरानीं केंट वाली सप्लाई से विच्छेदित कर दिया गया। फलस्वरूप आंधी तूफान आदि के कारण गोकुल वाली सप्लाई जो जंगली इलाके की वजह से बार-बार बाधित होती थी। एक बार तो बड़े फॉल्ट के कारण लगातार दो दिन तक बंद रही। मैंने पटनायक जी से कहा कि मुझे नलकूप चलाने में बहुत दिक्कत होती है जबकि शहर की बड़ी आबादी हमारे नलकूप के पानीं पर ही निर्भर है। लगातार लंबे समय तक जनरेटरों का चलाना भी कठिन हो रहा है। इसके अलावा गोकुल वाली सप्लाई के बाधित होने से शहर का बहुत बड़ा भाग भी विद्युत विहीन हो जाता है।
पटनायक जी जो उस समय रिटायर हो चुके थे, ने इस बात को गंभीरता से लिया तथा पावर कॉरपोरेशन के तत्तकालीन चेयरमैन संजय अग्रवाल से कहा भी किंतु सरकारी कामकाज वाली स्थिति के चलते मामला लंबित होता गया। इसके बाद पटनायक जी स्वयं पावर कारपोरेशन के कार्यालय गए तथा चेयरमैन संजय अग्रवाल को सारी वस्तु स्थिति विस्तार से समझाई। जिसका परिणाम यह हुआ कि लगभग एक करोड़ की लागत से एक स्पेशल लाइन कैंट बिजली घर से लेकर शमशान घाट बिजलीघर तक डाली गई। आज इस लाइन की वजह से मथुरा शहर का बहुत बड़ा हिस्सा भी लाभान्वित हो रहा है।
एक और घटना बताए बगैर नहीं रहा जा रहा। करीब पच्चीस तीस वर्ष पुरानीं बात है। उड़ीसा के जिला बालासोर के भद्रक कस्बे में बहुत बड़ा हिंदू मुस्लिम दंगा हो गया। हमारी बहन बहनोई व उनका परिवार मुस्लिम आक्रमण कारियों से घिर चुका था। चारों ओर आगजनी व उपद्रव मचा हुआ था। बड़ी मुश्किल से उनकी जान तो बची किंतु दुकान गोदाम आदि सबकुछ जलकर राख हो गया। मैंने तुरंत पटनायक जी को फोन किया और पटनायक जी ने भी उसी समय जिला बालासोर के कलेक्टर से बात की तथा कहा कि जितनी भी हो सके उनकी मदद करें। उस दौरान पटनायक जी राज्यपाल के प्रमुख सचिव थे। इस घटना के बारे में मैंने रविकांत गर्ग जी को भी बताया उन्होंने अटल जी को उपद्रवियों द्वारा किए गए अत्याचारों के बारे में अवगत कराया। इसके बाद अटल जी खुद भद्रक गए व पीड़ितों के प्रति गहरी सहानुभूति व्यक्त की।
अब फिर एक और गजब की बात बताऊं शायद पांच सात वर्ष पुरानीं बात है। उन दिनों पटनायक जी जल निगम के चेयरमैन थे। हमारे घर के पास जल निगम ने बहुत बड़ी खुदाई कर दी तथा अपना काम पूरा करने के बाद सड़क की मरम्मत नहीं की और वाहन दुर्घटनाग्रस्त होने लगे। कई माह बीतने पर भी यथा स्थिति बनी रही। फिर एक दिन मैंने शाम को 6-7 बजे के करीब पटनायक जी को फोन करके सब कुछ बताया। थोड़ी देर में जल निगम के एक्सईएन का फोन आया और उसके कुछ देर बाद जेसीबी मशीन व अन्य मेटेरियल भी पहुंच गए। रात काम चला सुबह सूर्योदय से पहले ही पूरी सड़क टनाटन हो गई अब मैं और क्या क्या लिखूं पटनायक जी की पटकथा।
लिखने को तो और बहुत है किंतु लेख लंबा होता जा रहा है इसलिए यहीं विराम देता हूं। पटनायक जी ने यहां से जाने के बाद भी बृज वासियों को अपने हृदय में समाहित कर रखा है तथा कोई भी व्यक्ति अपने दुख को लेकर इनसे मदद की गुहार करता है तो ये हमेशा उसके मददगार साबित होते हैं। ऐसे एक नहीं अनेक मामले मैंने देखे और सुने हैं। धन्य है वह माता जिसने ऐसा सपूत जना, मैं उस मां को भी नमन करते हुए ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि घर-घर में गोपबंधु जन्में।