Friday, May 3, 2024
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डॉक्टर साहब ने मुझसे कहा आइंदा अकड़ बकड़ की तो टांगे तुड़वा दूंगा

मथुरा। घटना सन् १९८७ की है जिला अस्पताल की इमरजेंसी में लाठी फर्सों से घायल एक व्यक्ति छटपटाते हुए जीवन मृत्यु से संघर्ष कर रहा था और ड्यूटी पर तैनात आपात चिकित्साधिकारी डॉक्टर पी.सी. व्यास उसके परिजनों से कह रहे थे कि पहले मेरी निजी फीस पचास रुपए निकालो तभी इसका इलाज शुरू करूंगा। यदि आप मेरी फीस दोगे तो न सिर्फ अच्छा ट्रीटमेंट दूंगा बल्कि भर्ती भी कर लूंगा और वार्ड में जाकर चेक भी करता रहूंगा।
     संयोग से उस समय मैं भी वहां मौजूद था। मैं डॉक्टर की बात सुनकर हक्का-बक्का रह गया। मैंने डॉक्टर व्यास से कहा कि मरीज की जान खतरे में है और आप बजाय उसका उपचार करने के नाजायज फीस मांग रहे हो कुछ तो इंसानियत का ख्याल करो। मेरे द्वारा डॉक्टर से यह कहते ही डॉक्टर साहब एकदम झल्ला उठे और बोले कि ए मिस्टर आप पब्लिक मैन है और मैं सरकार का गजटेड ऑफिसर हूं। अगर बीच में इंटरफेयर करोगे तो सरकारी कार्य में बाधा पड़ेगी ऐसा करना अच्छा न होगा। इतना सुनने के बाद भी मैंने धैर्य से काम लिया तथा डॉक्टर को समझाते हुए मानवता के नाते तुरन्त मरीज का इलाज करने को कहा। इस पर डॉक्टर व्यास ने कहा कि मुझे जो दिखाई दे रहा है वह मैं कर रहा हूं और आपको जो दिखाई दे वह आप कीजिए और तुरन्त यहां से चले जाओ वर्ना अभी पुलिस को फोन करके बुलाता हूं और आप को गिरफ्तार करा दूंगा। डॉक्टर साहब यहीं नहीं रुके और बोले कि आइंदा फिर कभी यहां आकर अकड़ बकड़ की तो तुम्हारी टांगों को तुड़वा दूंगा।
     इसके पश्चात मेरे सब्र का बांध भी टूट गया। मैंने डॉक्टर से कहा कि मैं यहां से ऐसे ही जाने वाला नहीं मैं तो तभी जाऊंगा जब पुलिस आकर मुझे गिरफ्तार करके ले जायगी। अब तो तुम पुलिस को ही बुलवाओ मैं भी देखता हूं तुम्हारी गजटेड अफसरी। इसके बाद डॉ व्यास कम्पाउंडर से चीख चीख कर कहने लगा कि जरा जल्दी फोन करो पुलिस को किन्तु कम्पाउंडर ने पुलिस को फोन नहीं किया तथा कम्पाउंडर व स्टाफ के अन्य लोग डॉक्टर को समझाने लगे कि आप यह क्या कह रहे हैं? और किससे कह रहे हैं? इसका अंजाम क्या होगा? यह तो सोचो इसके बाद वे लोग मुझे समझा-बुझाकर इमरजेंसी से बाहर लाये और बोले कि यह तो आधा पागल है इसके मुंह मत लगो यह तो किसी के लिए कुछ भी बक देता है। मैंने भी सोचा कि यह लोग सही कह रहे हैं और मामला शान्त हो गया तथा में भी वहां से चला आया। बाद में मरीज के घरवालों ने पैसे दिये या नहीं दिये वह बचा या मरा? मुझे पता नहीं किन्तु मैंने मन ही मन यह ठान लिया कि अब इसके पागलपन का इलाज जरूर करना है।
     एक बात मैं स्पष्ट कर दूं कि डॉक्टर आधा पागल था या पूरा यह तो मुझे पता नहीं किन्तु अपने बारे में जरूर पता है कि कुछ न कुछ पागलपन मुझमें भी है और मेरा यह पागलपन उस समय चरम पर होता है जब मेरे सिर पर क्रोध का भूत सवार हो जाता है। इसके बाद मैंने चतुराई से काम लिया तथा एक अन्य पत्रकार जो लोगों की बातचीत टेप करने में पांच छ: दशक पूर्व से ही सिद्ध हस्त रहे हैं, उनको सारी बात बताई और उनका छोटा सा टेप रिकॉर्डर लिया तथा एक प्लास्टिक के जालीदार झोले में लपेट कर दूसरे दिन पुनः डॉक्टर व्यास के पास जा पहुंचा। टेप रिकॉर्डर को चुपचाप चालू कर डॉक्टर के सामने टेबल पर रख दिया।
     मुझे देखते ही डॉ व्यास की पुनः भृकुटी तनी किन्तु तब तक वह कुछ कहें और हम दोनों में कोई विवाद शुरू हो उससे पहले ही मैंने बड़े धैर्य और प्यार से पूछा कि डॉक्टर साहब आखिर आपको ऐसा क्यों करना पड़ता है? जबकि आपको अच्छा वेतन भी मिलता है। इस पर डॉक्टर साहब का रुख कुछ नरम हो गया। गुलाबी नगरी जयपुर के मूल निवासी डॉक्टर व्यास अपने चेहरे पर गुलाबी मुस्कान लाकर बोले कि अरे भाई मुझे क्या ज्यादा वेतन मिलता है कुल छत्तीस सौ, जबकि मेरे साथी तीस हजार रूपए महीना कमा रहे हैं विदेशों में।
     डॉक्टर व्यास मुझसे बोले कि आप छोटी-छोटी बातों को लिये फिरते हैं। लोकपति त्रिपाठी जो हमारा हेल्थ मिनिस्टर है, खूब रिश्वत लेता है दस दस हजार तक बटोर रहा है। उन्होंने कहा कि सेक्रेटरी रिश्वत लेता है, डायरेक्टर रिश्वत लेता है और तो और हमारा एस.एम.एस. (वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक) भी पक्का चोर है वह तो खूब रिश्वती है सबसे रिश्वत लेता है ठेकेदारों से भी रिश्वत ले रहा है इसीलिए अस्पताल में घटिया निर्माण हो रहा है।
     डॉक्टर व्यास का धारा प्रवाह व्याख्यान रुकने का नाम नहीं ले रहा था, वे बोले कि हमारे जिला अस्पताल में एक्सपायरी दवाएं भरी पड़ी हैं। उपचार के नाम पर मरीजों का उत्पीड़न हो रहा है। यदि रोकना है तो पहले इन्हें रोको। डॉक्टर व्यास ने मुझे नसीहत देते हुए कहा कि तुम अगर इस प्रकार के मामलों में पड़ोगे और उलझोगे तो एक न एक दिन धोखा खा जाओगे। अतः भूल कर भी अब कभी किसी चक्कर में मत पड़ना वर्ना कोई किसी न किसी रूप में बदला ले ही डालेगा। उन्होंने कहा कि इन सब बातों को कहीं अखबार में मत छाप देना वर्ना समझ लेना। और फिर उन्होंने मुझसे पुनः पूंछा कि समझे या नहीं? मैंने भी उनकी हां में हां मिलाते हुए कहा कि हां डॉक्टर साहब आप सही कह रहे हो मैंने आपकी बात अच्छी प्रकार समझ ली है।
     डॉक्टर व्यास बोले कि हमारी सरकार और हमारे अफसर भी तो हमारा उत्पीड़न करते हैं। हमारे साथ ज्यादती कर के पैसों के चक्कर में हमारी वेतन वृद्धि भी रोक रखी है। अतः हमारे पास भी एक मात्र यही चारा है। इसी प्रकार हम भी अपनीं आर्थिक क्षति की पूर्ति करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि देने वाला हमें मांगने से नहीं अपनी गर्ज के लिए देता है बिना गर्ज के कोई किसी को एक धेला भी नहीं देता। अंत में डॉक्टर व्यास बोले कि जिन्दगी खूब कमाने और मौज मस्ती के लिए है आदर्शवाद और मानवता में कुछ नहीं रखा। मैं अपना काम पूरा करके यानीं कि डॉक्टर साहब की पूरी बात टेप में रिकॉर्ड करके घर आया तथा तभी तसल्ली हुई जब टेप की पूरी वार्ता सुन ली।
     बाद में मुझे पता चला कि यह डॉक्टर तो बड़ा जल्लाद है। यह तो सामान्य या असामान्य किसी भी प्रकार से रोगियों की हुई मौतों पर भी नहीं पसीजता और डेड बॉडी देने में तब तक हील हुज्जत करता है तब तक कि इसे पैसे न मिल जांय वर्ना एक दिन आगे के लिए टरकाऐ रखता है। इसका ट्रांसफर पिछले कुछ दिन पूर्व मैनपुरी के लिए हो गया था किन्तु यह रिश्वत देकर रुकवा लाया तथा यह बात भी उसने बातचीत के दौरान मुझसे डंके की चोट पर स्वीकारी थी।
     इसके दूसरे दिन मैंने पूरे घटनाक्रम व डॉक्टर से हुई बातचीत को ब्योरे के साथ चार कॉलम का लम्बा चौड़ा समाचार “आज” अखबार में छाप दिया। समाचार के छपते ही चारों और हड़कम्प मच गया। इस सब के बावजूद मैं फिर बेशर्मी के साथ जिला अस्पताल के इमरजेंसी रूम पर डॉक्टर व्यास के सामने जा पहुंचा। मुझे देखते ही डॉक्टर व्यास की स्थिति ऐसी हो गई जैसे वह मुझे कच्चा ही चबा जायगा तथा मुझे किसी भी कीमत पर न छोड़ने की धमकी देते हुए कहा कि अब मैं भी तुझे मजा चखा कर ही मानूंगा। मैंने उसकी प्रतिशोधात्मक एवं मानसिक स्थिति को देखते हुए बजाय उसके मुंह लगने के लौट कर आना ही उचित समझा। मैं उससे लड़ने के लिए नहीं मैं तो सिर्फ आग में घी डालने के लिए गया था।
     संयोग ऐसा हुआ कि इस घटनाक्रम के दो-तीन दिन बाद ही स्वास्थ्य मंत्री लोकपति त्रिपाठी जो पूर्व मुख्यमंत्री पंडित कमलापति त्रिपाठी के पुत्र थे, का मथुरा आगमन हुआ। भाई लोग ऐसे लगे कि जिसको देखो उसी के हाथ में १४ अगस्त १९८७ का “आज” अखबार और उस अखबार को जैसे भी हो स्वास्थ्य मंत्री के हाथों में पहुंचाने की होड़ सी लग गई। स्वास्थ्य मंत्री ने पूरा समाचार पढ़ा तो फिर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ.भगवान सहाय कुलश्रेष्ठ व मुख्य चिकित्सा अधीक्षक बी.आर. सिंह के द्वारा मुझे सूचना भिजवा कर मिलने की इच्छा जताई। मैं उनके पास पी.डब्ल्यू.डी. डांक बंगले पर गया तथा टेप रिकॉर्ड चालू करके सब कुछ सुनवा दिया। उस समय अन्य तमाम अफसरों के अलावा सी.एम.ओ. भगवान सहाय कुलश्रेष्ठ व सी.एम.एस. बी.आर. सिंह भी मौजूद थे।
     जिस समय डॉक्टर व्यास का धाराप्रवाह व्याख्यान चल रहा था उस समय में बार-बार कभी स्वास्थ्य मंत्री लोकपति त्रिपाठी व कभी सी.एम.एस. आर.बी सिंह के चेहरे को देखता उनकी स्थिति उस समय बड़ी नाजुक थी यानीं कि काटो तो खून नहीं वह बेचारे सिर झुकाऐ अपनी पोल पट्टी खुलते सुन रहे थे। इस सबको सुनने के बाद स्वास्थ्य मंत्री ने डॉक्टर व्यास को बुलाया किन्तु डॉक्टर व्यास उनसे मिलने नहीं गया। इसके पश्चात कुछ दिनों तो मामला ठंडे बस्ते में चला गया यानी कि कोई कार्यवाही नहीं हुई किन्तु काफी दिन बाद यानी करीब पन्द्रह बीस दिन बाद डाक्टर व्यास को शासन स्तर के आदेशानुसार रानींखेत यानी पहाड़ों पर ऐसी जगह स्थानांतरित करके फेंक दिया गया जहां कोई जाने को तैयार नहीं होता था। इस घटनाक्रम को पढ़ने के बाद उन लोगों को मेरे बारे में अपने विचार बदल देने चाहिए जो मुझे सीधा साधा इंसान समझते हैं। हो सकता है वे सही हों और मैं सीधा साधा इंसान होऊं अगर  सीधा भी हूं तो जलेबी की तरह।

विजय गुप्ता की कलम से

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