Friday, May 10, 2024
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एक बार मथुरा में ऐसे महापुरुष का घृणित अपमान हुआ जिसके आगे पूरा राष्ट्र नतमस्तक रहता‌ था

मथुरा। पिछले दिनों मैंने फेसबुक पर पिंजरे में बंद तोते का एक प्रसंग लिखा था उसी को लेकर संगीतकार डॉ० राजेंद्र कृष्ण अग्रवाल से बातचीत चल रही थी, वे उस लेख से बड़े प्रभावित थे। उनका मानना था कि यह एक प्रेरक प्रसंग है। क्योंकि उस लेख में गीतकार प्रदीप के लिखे और खुद ही गाए गीत कि “पिंजरे के पंछी रे तेरा दर्द न जाने कोय” की लाइनें भी समाहित थीं, इसलिए उन्होंने प्रदीप जी से जुड़ा एक ऐसा किस्सा सुनाया जिससे मेरा सिर शर्म से झुक गया।
     डॉ० राजेंद्र कृष्ण बताते हैं कि प्रदीप जी से उनके पिताजी स्व० श्री रघुनाथ दास जी जो बहुत बड़े साहित्यकार व प्रकाशक थे, से बहुत अच्छे सम्बन्ध थे। एक बार प्रदीप जी किसी कार्यवश मथुरा आये और उन्होंने सोचा कि अपने मित्र से भी मिलते चलें। अतः वह अपने तीन चार साथियों जिनमें एक महिला भी थीं, के साथ छत्ता बाजार स्थित गली सेठ भीक चन्द स्थित उनके मकान को तलाशते हुए पहुंचे। राजेंद्र जी के अनुसार ये सभी लोग सिनेमा उद्योग से जुड़े हुए थे। महिला जो थीं वे शायद सुप्रसिद्ध गायिका आशा भौंसले थीं। यह बात लगभग पैंतालीस वर्ष पुरानीं है।
     प्रदीप जी जब भीक चन्द सेठ वाली गली में उनके मकान के पास पहुंचे तो उन्होंने राठी टाइप सेंटर के मालिक, जो उस समय अपनी टाइप की दुकान पर बैठे थे, से पूंछा कि रघुनाथ दास जी का मकान कौन सा है? राठी के मन में एक बहुत गंदी और भद्दी मजाक सूझी जिसे उन्होंने अपनी मानसिकता व स्वभाव के अनुरूप कार्यरूप में परिणित कर दिया। उस घृड़ित मजाक को लिखने तक में मुझे घिन हो रही है।
     दरअसल बात यह थी कि जिस किराए के मकान में राजेंद्र कृष्ण जी का पूरा परिवार रहता था, उसका मुख्य द्वार तो छोटा सा था और शौचालय का द्वार जो मुख्य द्वार की भांति सड़क पर ही खुलता था, उससे अधिक बड़ा था। देखने पर शौचालय का द्वार मुख्य द्वार जैसा महसूस होता था। पुराने जमाने में फ्लैश के शौचालय न के बराबर थे अधिकांशतः लोगों के घर में कमाने वाले शौचालय ही थे। उनमें लोग शौच करते और सफाई करने वाली महिलाओं व पुरुषों द्वारा रोजाना या एक-दो दिन छोड़कर मल को परात में भरकर ले जाया जाता था।
     अब आगे बताता हूं कि राठी ने निम्न स्तर की पराकाष्ठा से भी आगे जाकर क्या किया। जब प्रदीप जी ने राठी से पूछा कि रघुनाथ दास जी का मकान कौन सा है? तो राठी ने शौचालय वाले द्वार की ओर इशारा करके कहा कि यह है। सीधे-साधे प्रदीप जी राठी जी की चालबाजी को जरा भी नहीं भांप सके और उन्होंने किबाड़ों पर धक्का मारकर खोला और झट से पांव अंदर रख दिया क्योंकि वहां अंधेरा सा था और वे कुछ देख व समझ नहीं पाए।
     जैसे ही उन्होंने पांव अंदर रखा और एक दो कदम आगे बढ़ाए तो वे बेचारे गंदगी में फिसल गए तथा उनकी धोती कुर्ता भी गंदे हो गए। तब उन्हें समझ आई कि माजरा क्या है। इसके बाद उन्होंने जैसे-तैसे अपने को संभाला और बाहर आकर राठी से कहा कि भाई तुमने यह क्या किया? शौचालय के दरवाजे को घर का दरवाजा क्यों बता दिया? देखो मेरी क्या हालत हो गई। इस पर राठी ने जो जवाब दिया वह और भी ज्यादा गंदा और घृणित था। राठी ने सीधे सच्चे देव तुल्य इंसान से कहा कि तुम क्या अंधे थे? तुम्हें नहीं दिखाई दे रहा था क्या? इस घटनाक्रम के बाद प्रदीप जी व उनके साथ आए सिनेमा जगत के नामचीन लोगों की क्या स्थिति हुई होगी? इसकी कल्पना की जा सकती है।
     इसके पश्चात प्रदीप जी ने घर के अंदर प्रवेश करने वाले दरवाजे को खटखटाया तो राजेंद्र कृष्ण जी की बहन ने दरवाजा खोला। प्रदीप जी ने कहा कि बेटी रघुनाथ दास जी हैं क्या? इस पर रघुनाथ दास जी की पुत्री ने कहा कि वे तो बम्बई में हैं। इस पर उन्होंने फिर राजेंद्र कृष्ण जी के बारे में पूंछा तो उन्होंने बताया कि वे भी ट्यूशन पढ़ाने गए हैं। तब फिर प्रदीप जी ने अपना परिचय देकर सारी बात बताई और फिर राजेंद्र जी की बहन बाल्टी में पानी भरकर लाईं और उन्होंने अपने हाथ पैर व धोती कुर्ते आदि साफ किए तथा घर के बाहर से ही वापस लौट गए।
     इसके बाद में प्रदीप जी ने बम्बई जाकर राजेंद्र जी के पिताजी स्व० श्री रघुनाथ दास जी को अपने साथ घटित हुए इस घृणित वाकये को बताया। इस पर रघुनाथ दास जी अत्यंत दुखी हुए और उन्होंने मथुरा आकर राठी को अत्यंत रोष के साथ उलाहना दिया कि तुमने एक बहुत ही प्रतिष्ठित इंसान के साथ ऐसी घृणित मजाक क्यों की? इस पर राठी ने फिर उन्हें भी वही बेहूदा उत्तर दिया जो प्रदीप जी को दिया था। राठी ने कहा कि अगर मैंने मजाक में कह भी दिया तो क्या गजब हो गया? क्या वे अंधे थे? उनकी आंखें नहीं थी क्या? उन्होंने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल क्यों नहीं किया आदि आदि। यानी उल्टा चोर कोतवाल को डांटे।
     राठी कि इस वेहूदगी से रघुनाथ जा दास जी अत्यंत दुखी हुए और उन्होंने शीघ्र ही उस मकान को खाली कर दिया तथा दूसरे स्थान पर जाकर रहने लगे। उनकी सोच थी कि अब मैं कभी राठी का मुंह भी नहीं देखना चाहता। यदि इस मकान में रहूंगा तो रोजाना राठी की शक्ल देखनीं पड़ेगी। प्रदीप जी के मन पर भी ऐसा आघात पहुंचा कि वे फिर कभी मथुरा नहीं आये।
     एक बात और जो प्रसंग से हटकर है, भी बताता हूं कि रघुनाथ दास जी के बड़े भाई रामजी दास गुप्ता थे। वे जिला पंचायत व जिला कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके थे। स्वतंत्रता आंदोलन के वे भी योद्धा थे। महत्वपूर्ण बात यह है कि जिला पंचायत व जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहते हुए भी रामजी दास जी के पुत्र समाचार पत्र बांटते यानी हॉकरी का कार्य करते थे। रामजी दास की एक छोटी सी दुकान छत्ता बाजार में पुस्तकों की थी, जो अंत तक रही उसी से परिवार की गुजर बसर होती थी। कहने का मतलब यह है कि यह पूरा परिवार नितांत ईमानदार और सिद्धांत वादी रहा है।
     प्रदीप जी वह महापुरुष थे, जिनकी इज्जत पूरा राष्ट्र करता था यहां तक कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री स्तर तक के लोग उन्हें बड़ा सम्मान देते थे। उनके सदाबहार गीत जिन्हें वे खुद लिखते थे और खुद ही गाते थे गीत नहीं अनमोल मोती थे। भले ही यह दुखद घटना पैंतालीस साल पुरानीं है, किंतु है दिल दहलाने वाली। विगत दिवस जब से मैंने इसे सुना है तभी से मेरा हृदय रो रहा है। यदि यह घटना सत्य है तो भगवान राठी को ऐसा दंड दें कि वह  सात जन्म तक न भूले। यदि गलत हो तो उसका जुर्माना राजेंद्र कृष्ण जी पर लगे क्योंकि उन्हीं की जुबानी मुझे पता चली। हास परिहास करने का हक मुझे भी तो है किंतु हास परिहास स्वस्थ और स्वच्छ होना चाहिए न कि सीवर लाइन की गंदगी जैसा। चाहे सजा राठी को मिले या जुर्माना राजेंद्र जी पर हो अपने को क्या अपन ने तो बच निकलने की युक्ति खोज ही ली।
     अंत में अपने मन की एक बात और कहना चाहूंगा कि प्रदीप जी के सभी गाने जो भजन से भी ज्यादा उच्च स्थान रखते हैं, मैं भी सर्वश्रेष्ठ पिंजरे के पंछी वाला गाना मुझे इतना भाता है कि यदि आज वे जिंदा होते और मैं उनसे कभी मिलता तो शायद सबसे पहले उनके चरण धोकर उस पवित्र जल को पी कर अपना जीवन सफल करता। धन्य हैं प्रदीप जी और धिक्कार है राठी को।
डॉ० राजेंद्र कृष्ण अग्रवाल का संपर्क नंबर 9897247880 है।

विजय गुप्ता की कलम से

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