
विजय गुप्ता की कलम से
मथुरा। पांच पांच सौ रुपये की बेशुमार अधजली गड्डियां बरामद होने वाले जस्टिस वर्मा की तो खूब बल्ले बल्ले हो रही है। पूरे देश के समाचार पत्रों में प्रथम पृष्ठ की सुर्खियां बनकर छाए हुए हैं। देश के राष्ट्रपति प्रधानमंत्री संसद और सुप्रीम कोर्ट तक में मामला गर्माने के बावजूद उनकी पूंछ तक नहीं उखाड़ी जा सकी और डंके की चोट पर पद पर बने हुए हैं। मेरा यह दावा है कि भविष्य में भी कोई उनकी पूंछ नहीं उखाड़ पाएगा और डंके की चोट पर मुछ मुंडे होते हुए भी मूंछों पर ताव देते हुए समाज में मौज से रहेंगे और कोई भी उनकी पूंछ तो क्या एक बाल तक नहीं उखाड़ पाएगा।
हे भगवान हमारे देश का यह कैसा कानून? जज कुछ भी कर लें उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही कर पाना इतना जटिल। गिरफ्तार करके जेल भेजना तो दूर प्राथमिकी तक नहीं। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ व अन्य कई जिम्मेदार लोगों ने इस मामले में सही सवाल उठाए थे। यह तो एक बानगी है। इससे कल्पना की जा सकती है कि कहां-कहां क्या-क्या हो रहा होगा? सबसे बड़ा वज्रपात तो उन ईमानदार जजों के ऊपर है जो सही मायने में न्यायाधीश कहलाने के हकदार हैं किंतु बेबस होकर सिर्फ खून का घूंट पीने के अलावा और कोई चारा नहीं।
लोकतंत्र के चारों स्तंभों में सबसे बड़ा स्तंभ न्यायपालिका है। न्यायाधीश का दर्जा भगवान के बाद दूसरा माना जाता है किंतु यह सब क्या हो रहा है? देखकर मन बेहद व्यथित है। हमारे पास भी खून का घूंट पीकर रह जाने के अलावा और कोई दूसरा चारा नहीं।