



वृंदावन। परमेश्वरी देवी धानुका सरस्वती विद्या मंदिर में श्री गणेश चतुर्थी का पावन पर्व धूमधाम से मनाया गया। विद्यार्थियों द्वारा विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए।
कार्यक्रम के संयोजक सत्य प्रकाश शर्मा ने भगवान श्री गणेश के स्वरूप एवं उनके आध्यात्मिक चिंतन की चर्चा करते हुए कहा कि आत्म शक्ति विस्तार और सम्पूर्ण चेतना के प्रतीक विघ्नेश्वर श्री गणेश के कई अन्य नाम भी हैं, जैसे विनायक (ज्ञानी), विघ्नेश्वर (विघ्न का नाश करने वाले), गजानन (हाथी के मस्तक वाले) और गणपति अर्थात (नेतृत्वकर्ता)। गणेश में नेतृत्व की अद्वितीय क्षमता है, और जनमानस का ऐसा विश्वास है कि उनकी कृपा होने पर किसी भी काम में सफलता अवश्य मिलती है। उन्होंने बताया कि गणेशजी का हाथी का मस्तक उनकी तीव्र बुद्धि और विशाल चिंतन का प्रतीक है। हाथी का जीवन प्रफुल्लता से पूर्ण होता है, जो गरिमा और आत्म-सम्मान की भावना से आती है जबकि उनके बड़े कान और मुँह हमें बताते हैं कि क्रमशः ‘अधिक सुनों, कम बोलो, और जो कुछ भी अच्छा एवं रचनात्मक हो, उसे ही अपने पास रखो।’
इससे पूर्व विद्यालय के प्रबन्धक शिवेन्द्र गौतम, प्रधानाचार्य विपिन शर्मा और उप प्रधानाचार्य ओमप्रकाश शर्मा ने वरिष्ठ आचार्यों के साथ संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलन और पुष्पार्चन के साथ वंदना सभागार में भगवान श्री गणेश की मूर्ति की स्थापना एवं अनावरण किया तथा अन्य सभी आचार्य बंधुओं ने भगवान श्री गणेश की पुष्प-आरती द्वारा उनके विग्रह का प्रथमार्चन किया।
इस अवसर पर ऋषभ बघेल ने अपने सुंदर शब्दों मे भाषण प्रस्तुत किया l इसके बाद विद्यालय के छोटे-छोटे बालकों द्वारा प्रस्तुत “देवा श्री गणेशा” गीत पर सुंदर नृत्य प्रस्तुति ने उपस्थित जनों का मन मोह लिया तथा जब बालकों ने सुंदर प्रार्थना गीत के माध्यम से गणपति बप्पा को अपने अपने घर आने का आमंत्रण दिया तो सारा सभागार तालियों से गूंज उठा।
प्रधानाचार्य विपिन शर्मा ने कहा कि जीवन में उन्नति के लिए हमें बुद्धिमत्ता और आस्था दोनों की आवश्यकता होती है। अक्सर केवल बुद्धिमत्ता जीवन के ज्वलंत प्रश्नों के उत्तर देने में असमर्थ हो जाती है। जब भी ऐसा होता है, तब ईश्वर में एवं स्वयं में आस्था ही हमें सफल जीवन की ओर ले जाती है । कार्यक्रम का संयोजन सर्वेश कुमार शर्मा और सत्यप्रकाश शर्मा ने किया। संचालन रवींद्र पाण्डेय ने किया।
कार्यक्रम के स्वरूप संयोजन एवं व्यवस्था चिंतन में समस्त आचार्य परिवार का योगदान सराहनीय रहा।