Friday, August 29, 2025
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कभीकबूतरोंकोदानाडालनेकीतोकभीकुत्तोंकोखानाखिलानेकीबातहो – #यहतोदेवासुरसंग्रामहै

 मथुरा। कभी कबूतरों को दाना डालने की और कभी कुत्तों को खाना खिलाने की बात हो। मेरा मानना है कि यह तो देवासुर संग्राम है। हमारा समाज, हमारा धर्म, हमारे वेद शास्त्र, हमारी शिक्षा तथा हमारे संस्कार यानी सब कुछ का केंद्र बिंदु दया और परमार्थ है।तुलसी दया न छोड़िए जब लग घट में प्राण, इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए।
 देवता हमेशा परमार्थी और दयालु होते हैं तथा राक्षसों का धर्म क्या होता है? यह बताने की आवश्यकता नहीं। यदि हम पहले दूसरों का ख्याल रखेंगे तो ईश्वर हमेशा हमारी मदद करेंगे। दूसरों में इंसान से ज्यादा पशु पक्षी हैं। इन पर दया करना इंसानों से भी ज्यादा पुण्यकारी होता है। जो इंसान इन पर दया करता है और हर तरह से उनकी रक्षा करता है वह देवता के समान है और जो इनके साथ क्रूरता बरतता है वह तो साक्षात राक्षस का स्वरूप होता है ऐसा मेरा मानना है।
 अब इसी बात पर एक प्रसंग बताता हूं। एक बार ब्रह्मा जी ने राक्षसों और देवताओं की सम्मिलित दावत रखी। दरअसल बात यह थी कि राक्षस लोग ब्रह्मा जी से बहुत दिन से कह रहे थे कि ब्रह्मा जी एक बढ़िया सी दावत करो। ब्रह्मा जी ने उनकी बात मान ली और देवताओं तथा राक्षसों की संयुक्त दावत रखी। जब राक्षसों को पता चला के ब्रह्मा जी ने केवल हमको ही नहीं देवताओं को भी बुलाया है, तो उन्होंने शर्त रख दी कि पहले हमें खाने का मौका मिले। जब यह बात देवताओं को पता चली तो उन्होंने बड़ी खुशी से मानली और कहा कि पहले राक्षस भरपेट दावत खा लेंगे तो फिर जो बचेगा हम उसी को ग्रहण कर लेंगे।
 असल में राक्षसों की प्लानिंग यह थी कि हम सब कुछ चट कर जाएंगे और देवताओं को कुछ छोड़ेंगे ही नहीं, क्योंकि राक्षस देवताओं से बहुत जलते थे। खैर दावत शुरू होने के पहले एक घंटे का समय तय कर दिया गया यानी कि दोनों को एक-एक घंटे का समय मिलेगा जितना भी छिक कर खा सको खा लो। 
 घंटी बजी और राक्षसों का भोजन करने का समय शुरू किंतु यह क्या? ब्रह्मा जी ने ऐसी माया रच दी कि सभी राक्षसों के हाथ सीधे के सीधे रह गए यानी कोहनी से मुड़े ही नहीं तथा बगैर हाथ मुड़े हुए अपने मुंह में कौर कैसे दें? इस पर उन्होंने ब्रह्मा जी से नाराजी व्यक्त की कि आपने हमारे साथ यह कैसा भद्दा मजाक किया है? ब्रह्मा जी बोले कि मैंने केवल तुम्हारे लिए ही नहीं देवताओं के लिए भी यही नियम रखा है। खैर एक घंटा पूरा हुआ और भोजन समाप्ति की घंटी बज गई। राक्षस भूखे ही उठ खड़े हुए और उन्होंने तय किया कि यदि ब्रह्मा जी ने बेईमानी की और देवताओं के हाथ मुड़ने लगे फिर तो हम न ब्रह्मा जी को छोड़ेंगे और न देवताओं को।
 अब देवताओं के भोजन की घंटी बजी तथा उनके साथ ही भी वही हुआ जो राक्षसों के साथ हो चुका था यानी उनके हाथ भी सीधे के सीधे रह गए। राक्षसों को तसल्ली मिली कि चलो यह भी भूखे रहेंगे। चूंकि देवता तो परोपकारी होते हैं और सभी का भला सोचते हैं। अतः उन्होंने अपने सीधे-सीधे हाथों से पकवान उठा उठा कर एक दूसरे के मुंह में रखने शुरू कर दिये और सभी ने पेट भर के दावत का आनंद लिया। इस पर राक्षसों ने अपना माथा पीट लिया इसके अलावा और कोई चारा भी न था।
 कहने का मतलब यह है कि यदि हमारी सोच केवल अपना ही अपना भला सोचने की रहेगी फिर तो हमारी भी गति राक्षसों जैसी होनी सुनिश्चित है। इसलिए जो लोग अपनी राक्षसी मनोवृति के अधीन रहकर जीव जंतुओं चाहे वह कबूतर हों चाहे कुत्ते हों चाहे गाय भैंस कोई क्यों न हो, के प्रति क्रूरता बरतते हैं, उन्हें आगे चलकर अपनी करनी का फल अवश्य भोगना पड़ता है।
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