वृन्दावन-भारतीय धर्म,दर्शन, साहित्य, संस्कृति को विश्वव्यापी स्वरूप प्रदान करने में भागवत धर्म वैष्णव भक्ति परम्परा की महत्वपूर्ण भूमिका मानी गयी है। वैष्णव साधकों ने सनातन संस्कृति के उन्नयन के लिये अनेकानेक भक्ति सिद्वांत प्रतिपादित किये। मध्य युगीन काल जब भारतवर्ष पश्चिमी आक्रांताओं के आक्रमण से लगातार जूझ रहा था। विविध बाहरी संस्कृतियो का प्रभाव जीवन शैली पर होने लगा। उसी समय 13 वीं शताब्दी में करीब सवा सात सौ वर्ष पूर्व एक ऐसे महा मानव का अवतरण प्रयाग की पवित्र धरा पर हुआ। जिसने समाज को नई दिशा प्रदान की।
सद्गृहस्थ पंडित पुण्य सदन की पत्नी सुशीला देवी की कोख से जन्मे बालक रामानन्द में बाल्यकाल से धर्म ज्ञान के प्रति अभिरुचि देखकर विद्याध्ययन के लिये काशी भेजा गया। काशी के प्रतिष्ठित श्री मठ में स्वामी राघवानन्द के आचार्यत्व में बालक रामानन्द ने वेद,शास्त्र, पुराण व्याकरण आदि का गहन अध्धयन कर उसके सार तत्व को ग्रहण किया। लेकिन युवावस्था की ओर बढ़ रहे रामानन्द का ध्येय कुछ और ही था।समाज मे व्याप्त जात पात, छुआछूत, कटुता,वैमनस्यता के विरुद्ध जनजागृति सन्त रामानन्द के जीवन का अगला पड़ाव था। समाज मे वैचारिक क्रांति से समन्वयवाद स्थापित का आंदोलन प्रारंभ हो गया।
सन्त रामानन्द ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के आदर्श जीवन चरित्र को अपनी भक्ति साधना का केंद्र बिंदु बनाया।हिमालय की पावन उचाईयों से रामभक्ति को समाज के निचले तबके तक पहुंचाने का कार्य किया। स्वामी रामानन्द ने ” जात पात पूछें नही कोई, हरि का भजे सो हरि का होई'” मूलमंत्र देकर रामभक्ति की अविरल धारा उत्तर से दक्षिण तक प्रवाहित की। श्री वैष्णव सम्प्रदाय के प्रवर्तक सन्त रामानुज स्वामीजी के कृपापात्र स्वामी रामानंदाचार्य ने आचार्यपाद की अनुमति से रामानंद या रामावत सम्प्रदाय की स्थापना की।जिसने राममयजगत की भावधारा की अवधारणा को पुष्ट किया।
जगद्गुरु रामानन्दाचार्य धर्मजगत के एकमात्र सन्त थे।जिनकी शिष्यपरंपरा में सगुण व निर्गुण उपासना के सन्तजन थे। जहां कबीर, रैदास निर्गुण राम के उपासक थे।वही अन्नतानन्द,सुखानन्द, नाभादास, भावानन्द,नरहर्यानंद, पीपासेन, धन्ना सगुणोपासक थे। जगद्गुरु रामानन्दाचार्य ने रामभक्ति के साथ साधुसेवा को प्रधानता प्रदान की। जो आज भी धार्मिक नगरी में रामनन्दीय सम्प्रदाय के प्रमुख स्थान सुदामाकुटी में दर्शनीय है। भजनभक्ति के साथ साधुओं की सेवा को साकेतवासी तपनिष्ठ सन्त सुदामादास महाराज ने करीब आठ दशक पूर्व प्रारम्भ किया था। जो वर्तमान समय मे सन्त सुदामादास महाराज के संकल्प को सार्थक कर रही है।
वर्तमान महन्त सुतीक्ष्ण दास महाराज ने बताया कि जगद्गुरु रामानन्दाचार्य जयंती महोत्सव मनाने की प्रेरणा सद्गृहस्थ सन्त भक्तमाली जी महाराज ने सन्त सुदामादास जी को दी थी।तब से ये महोत्सव पूर्ण श्रद्धा व आस्था के साथ निरंतर जनसाधारण को भक्ति के लिए प्रेरित कर रहा है। हाल ही में गोलोकगमन करने वाले महन्त भगवान दास महाराज ने इस प्रकल्प को आगे बढाया। वर्तमान में महन्त अमरदास द्वारा सेवा प्रकल्पों का संचालन किया जा रहा है।