Tuesday, May 7, 2024
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गोवर्धन पूजा के दिन भूलकर भी न करें ये गलतियां, नहीं तो बिगड़ जाएंगे बनते हुए काम

दिवाली के अगले दिन यानि आज गोवर्धन पूजा की जाती है. वैसे तो ये पर्व पूरे देश में मनाया जाता है पर ब्रज में इसका खास महत्व है। भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा में खास तौर से गोवर्धन पूजा होती है। इस दिन गाय पूजन का भी बड़ा महत्व माना जाता है। श्रीकृष्ण से गोवर्धन पूजा की कहानी जुड़ी हुई है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, इस दिन प्रकृति के आधार के रूप में गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है और समाज के आधार के रूप में गाय की पूजा होती है। इस साल गोवर्धन पूजा 5 नवंबर यानी शुक्रवार को है। गोवर्धन पूजा को लोग अन्नकूट पूजा के नाम से भी जानते हैं। दिवाली की तरह कुछ काम ऐसे होते हैं जो आज के दिन नहीं करने चाहिए।


परिवार के लोग साथ करें पूजा

परिवार के सभी लोग एक साथ मिलकर पूजा करें। अलग-अलग होकर गोवर्धन पूजा करना अशुभ माना जाता है। गोवर्धन पूजा के दिन गंदे कपड़े पहनकर गोवर्धन की परिक्रमा न करें। परिवार के लोग साफ कपड़े पहनें।

नंगे पैर करें परिक्रमा


गोवर्धन की परिक्रमा हमेशा नंगे पैर करनी चाहिए। वहीं, अगर कोई व्यक्ति कमजोर हो तो वो रबड़ या कपड़े के जूते पहन सकता है। अगर आपने गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा शुरू कर दी हो तो कभी भी उसे बीच में अधूरा नहीं छोड़ें। गोवर्धन की परिक्रमा बीच में छोड़ना अशुभ माना जाता है।

न करें नशीली चीजों का सेवन


गोवर्धन पूजा या परिक्रमा करते समय किसी भी प्रकार की नशीली वस्तु का सेवन नहीं करना चाहिए। पूजन में सम्मिलित लोग हल्के पीले या नारंगी रंग के वस्त्र पहनें तो उत्तम रहेगा. भूलकर भी काले रंग के कपड़े न पहनें।

किसी को इस दिन न सताएं


गोवर्धन पूजा और अन्नकूट का आयोजन बंद कमरे में न करें। गायों की पूजा करते हुए ईष्टदेव या भगवान कृष्ण की पूजा करना न भूलें। गोवर्धन पूजा के समय गाय, पौधों, जीव जंतु आदि को भूलकर भी न सताएं और न ही कोई नुकसान पहुंचाएं।

गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त


तिथि- कार्तिक माह शुक्ल पक्ष प्रतिपदा (5 नवंबर 2021)
गोवर्धन पूजा प्रात:काल मुहूर्त – सुबह 06:36 बजे से 08:47 बजे तक.
गोवर्धन पूजा सांयकाल मुहूर्त – दोपहर 03:22 बजे से शाम 05:33 बजे तक
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ – नवंबर 05, 2021 को दोपहर 02:44 बजे
प्रतिपदा तिथि समाप्त – नवंबर 05, 2021 को रात 11:14 बजे

गोवर्धन पूजा विधि

इस दिन सुबह शरीर पर तेल लगाकर स्नान करना चाहिए। घर के मुख्य द्वार पर गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाएं। पास में ग्वाल बाल, पेड़-पौधों की भी चित्र बनाएं। उसके बीच में भगवान कृष्ण की मूर्ति रख दें। इसके बाद भगवान कृष्ण, ग्वाल-बाल और गोवर्धन पर्वत का पूजन करें। पकवान और पंचामृत का भोग लगाएं. गोवर्धन पूजा की कथा सुनें। कथा सुनने के बाद लोगों में प्रसाद बांटे।

श्री कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा के ब्रज में उन्होंने अनेकों लीलाएं की हैं। यह सभी लीलाएं उनके बाल्यकाल की हैं इसलिए ब्रज को स्वर्ग का हिस्सा माना जाता है। इसे वृंदावन धाम और ब्रजधाम भी कहा जाता है। भगवान कृष्ण की तमाम लीलाओं में गोवर्धन पूजा की लीला भी प्रमुख है।

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