मथुरा। मुस्लिम देश मोरक्को में ईद पर बकरों की हत्या प्रतिबंधित कर दी गई है, तो भारत में ऐसा क्यों नहीं हो सकता? विश्व के अन्य सभी देशों को इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। भारत को भी इसका अनुसरण करते हुए इन बेजुबान बेकसूर और निरीह प्राणियों की रक्षा करने का साहसिक एवं मानवीय कदम उठाकर मोरक्को की तरह मिसाल कायम करनी चाहिए।
मोरक्को के राजा सुल्तान मोहम्मद ने ऐतिहासिक साहसिक एवं मानवीय कदम उठाते हुए ईद पर बकरों के कटान वाली इस्लामी परंपरा जिसे कुर्बानी कहा जाता है, को रद्द कर दिया है। सुल्तान मोहम्मद ने आर्थिक, पर्यावरण एवं स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर यह अभिनंदनीय कदम उठाया है। उनके इस फरमान के बाद पूरे मोरक्को में बकरों की खोज में छापेमारी शुरू हो गई है तथा जगह-जगह बकरों को जब्त किया जा रहा है जिससे हड़कंप मच गया है। वहां के कट्टरपंथी लोग इस कदम को अपमानजनक और मुसलमान की धार्मिक स्वतंत्रता व अधिकारों का हनन बताते हुए हाय तौबा मचा रहे हैं।
जब 99% मुस्लिम वाले देश में इस कुप्रथा पर रोक लगाई जा सकती है तो हमारे देश में ऐसा क्यों नहीं हो सकता? इन निरीह प्राणियों की हत्या को भले ही मुसलमान कुर्बानी का नाम दें या हिंदू बलि कहें, यह बिल्कुल गलत है। कुर्बानी अपनी स्वयं की होती है। इसी प्रकार बलिदान से बलि शब्द बना है। बलिदान भी अपना होता है। अगर किसी को कुर्बान होना है या बलिदान होना है तो स्वयं को अल्लाह या देवी देवताओं के आगे समर्पित करके अपने खुद के धड़ से सर को अलग करवा देना चाहिए न कि इन निरीह प्राणियों की गर्दन पर गड़सा चलवा कर।
मोरक्को के राजा ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला भी एकदम सही दिया है। मांसाहार स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। एक छोटा सा उदाहरण देता हूं। एक मरे हुए चूहे या अन्य किसी जानवर को डिब्बे में बंद करके रख दो और उसी प्रकार किसी सब्जी फल या अन्य शाकाहारी वस्तु को डिब्बे में बंद करके रख दो। इसके दो-चार दिन बाद दोनों डिब्बों को खोलो, तो जानवर वाले डिब्बे में इतनी भयंकर दुर्गंध निकलेगी कि आसपास खड़ा भी नहीं हुआ जाएगा किंतु शाकाहारी वाले डिब्बे को खोलने पर उसमें दुर्गंध नहीं निकलेगी सिर्फ फफूंद दिखाई देगी।
हमारे पेट में जो भी भोजन जाता है वह हफ्ते दस दिन तक नलियों में छोटे-छोटे कणों के रूप में रुका रहता है। इसी बात से अंदाजा लगा लो कि जब पेट के अंदर इतनी सड़न और दुर्गंध रहेगी तो गंभीर बीमारियों का प्रकोप नहीं होगा क्या? और ज्यादा क्या कहूं सिर्फ इतना ही कहूंगा कि किसी निर्दोष प्राणी की हत्या करना और उसे मारकर खा जाना संसार की सबसे बड़ी पैशाचिकता है। यदि हम मनुष्य जीवन पाकर भी पिशाच बनें तो इससे अच्छा तो यह है कि हमें पिशाच योनि में जन्म मिलता तो अच्छा रहता।