Sunday, May 19, 2024
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30 साल बाद टूट गया मुलायम परिवार का तिलिस्म, सहकारी ग्राम विकास बैंक पर भाजपा का कब्जा

लखनऊ। यूपी की योगी सरकार में करीब तीन दशक से बाद सहकारी ग्राम विकास बैंक में चला आ रहा मुलायम सिंह यादव परिवार का तिलिस्म टूट गया। वर्ष 1999 में बीजेपी के शासनकाल को छोड़ दें तो 1991 से लेकर अप्रैल 2020 तक इस बैंक पर मुलायम सिंह यादव परिवार का कब्जा रहा या प्रशासक नियुक्त हुए। ऐसा पहली बार है जब बैंक की 323 शाखाओं में से मात्र 19 पर ही विपक्ष काबिज हो सका। कुल दस जगह चुनाव निरस्त और 11 पर निर्वाचन प्रक्रिया नहीं हो सकी। 293 स्थानों पर बीजेपी का परचम फहराया है। सहकारिता की सियासत में सिरमौर माने जाने वाले शिवपाल यादव व उनकी पत्नी अपनी सीट बचाने में कामयाब रहीं, लेकिन पूरब से लेकर पश्चिम तक उनके सभी सिपहसलार मैदान में टिके नहीं रह सके।

अब बीजेपी का कब्ज़ा

यूपी सहकारी ग्राम विकास बैंक के सभापति और उपसभापति पद पर अब बीजेपी का.कब्जा हो गया है। लखनऊ सहकारी ग्राम्य विकास बैंक के सभापति पद पर संतराज यादव निर्विरोध चुने गए हैं। केपी मलिक भी उपसभापति पद के लिए निर्विरोध चुने गए हैं। दोनों पदों पर बीजेपी का कब्जा हुआ. अब तक शिवपाल यादव सहकारी ग्राम्य विकास बैक के सभापति थे।

कोरोना वायरस संक्रमण के दौरान कराए गए बैंक की स्थानीय प्रबंध समितियों व सामान्य सभा के चुनाव में कानपुर व ब्रज क्षेत्र में ही विपक्ष को कुछ राहत मिली, अन्यथा पश्चिम के 59 में से 55, अवध के 65 में 63, काशी के 38 में से 33 तथा गोरखपुर के 34 में 30 स्थानों पर भाजपाई काबिज हो गए। कानपुर क्षेत्र में बीजेपी को 45 में से 34 और ब्रज में 82 में से 78 क्षेत्र में जीत मिली. मथुरा के गोवर्धन व नौझील में नामांकन ही नहीं हो सके, जबकि कुशीनगर की पडरौना, बांदा की बबेरू, फतेहपुर की बिंदकी खागा, सोनभद्र की राबर्टसगंज व कानपुर की घाटमपुर व चौबेपुर में चुनाव निरस्त हो गए।

बसपा भी नहीं तोड़ सकी थी सपा का वर्चस्व

समाजवादी पार्टी का सहकारी ग्राम बैंक में जो वर्चस्व था उसे बसपा भी नहीं तोड़ सकी थी। दरअसल अगर इस बैंक का इतिहास देखें तो वर्ष 1960 में पहले सभापति जगन सिंह रावत निर्वाचित हुए। इसके बाद रऊफ जाफरी व शिवमंगल सिंह 1971 तक सभापति रहे। इसके बाद बैंक की कमान प्रशासक के तौर पर अधिकारियों के हाथ में आ गई। वर्ष 1991 में मुलायम सिंह यादव परिवार की एंट्री हुई। हाकिम सिंह करीब तीन माह के लिए सभापति बने और 1994 में शिवपाल यादव सभापति बने। केवल भाजपा काल में तत्कालीन सहकारिता मंत्री रामकुमार वर्मा के भाई सुरजनलाल वर्मा अगस्त 99 में सभापति निर्वाचित हुए थे। बसपा काल में सपाइयों ने कोर्ट में मामला उलझाकर चुनाव नहीं होने दिया था।

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