Wednesday, May 1, 2024
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कल है शनि प्रदोष व्रत, जानें शुभ मुहूर्त और पूजन की विधि

जीवन में आईं परेशानियों को दूर करने के लिए ज्योतिषाचार्य उनकी राशि और ग्रहों के अनुसार प्रदोष व्रत करने का मार्ग दिखाते हैं। इस बार प्रदोष व्रत 12 दिसंबर शनिवार को है। प्रदोष व्रत का महत्व और महिमा वार के अनुसार अलग-अलग होती है। शनिवार के दिन प्रदोष व्रत होने कारण इसे शनि प्रदोष व्रत कहा जा रहा है। शास्त्रों में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। प्रदोष व्रत फलदायी माना जाता है। इसे कृष्ण प्रदोष व्रत भी कहा जा रहा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शनिदेव भगवान शिव को गुरु मानते हैं इसलिए शनिवार के दिन दोनों देवों की पूजा-अर्चना करने वाले जातकों की हर मनोकामना पूरी होगी।

शनि प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त

प्रारम्भ – दिसंबर 12 को 07:02 बजे से
समापन – दिसंबर 13 को 03:52 बजे

पूजन की विधि

सबसे पहले जागकर स्नान करें। इसके बाद पवित्र होकर बादामी रंग के वस्त्र धारण करें। एक सफेद कपड़े पर स्वास्तिक बनाएं। अब भगवान गणेश जी का ध्यान करें और उस पर चावल, चावल चढ़ाएं। इसके बाद महादेव की प्रतिमा विराजित करें और उन्हें सफेद फूलों के हार पहनाएं। इसके बाद दीप और धूप भी जला दें। अब ओम नम: का 108 बार जाप करें और शिव चालीसा, शिव स्तुति और शिव आरती करें। इसके बाद भगवान शिव को सफेद मिठाई का भोग लगाएं।

प्रदोष व्रत का है विशेष महत्व

हिंदू पंचांग के अनुसार हर महीने के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाता है। इस व्रत को बहुत ही पावन माना जाता है. मान्यता है जो व्यक्ति हर माह की दोनों त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखेगा, उसे महादेव की कृपा मिलेगी। इस व्रत में भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा की जाती है। एक पौराणिक कथा के अनुसार चंद्र देव ने महाराजा दक्ष की 27 पुत्रियों से विवाह किया था। मगर इन सबमें उन्हें एक बहुत प्रिय थी। इस बात से क्रोधित होकर महाराजा दक्ष ने चंद्र देव को क्षय रोग होने का श्राप दे दिया। कुछ समय बाद यह श्राप उन्हें लग गया और वह मृत्यु अवस्था में पहुंच गए। इसके बाद महादेव की कृपा से प्रदोष काल में चंद्र देव को पुनर्जीवन मिला। इसके बाद से ही त्रयोदशी के दिन प्रदोष व्रत रखा जाने लगा।

नोट : इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य जानकारी पर आधारित हैं।

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