मथुरा। पैराट्यूबरकुलोसिस (पैराटीबी)यानि जॉन्स रोग से पीड़ित पशुओं के वैक्सीनेशन की शुरूआत जीएलए विश्वविद्यालय, मथुरा के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के सहयोग से हो चुकी है। पहले चरण में ग्राम जैंत के अन्तर्गत नगला सुम्मेरा में 56 बकरियों को जॉन्स डिजीज वैक्सीन लगायी गयी। साथ ही सभी बकरियों के जॉंच हेतु ब्लड सैंपल भी लिए गए।
आज देश में आधे से अधिक संख्या में गोवंश पैराट्यूबर क्लोसिस/जॉन्स बीमारी (आंत की टीबी) की चपेट में आ चुका है। इसमें गोवंश को रूक-रूक कर दस्त होता है तथा गोवंश तेजी से कमजोर होता जाता है, उसका विकास रूक जाता है, दुधारू गोवंश अनुत्पादक हो जाता है। अन्ततः इस अनुत्पादक गोवंश को बेसहारा छोड़ दिया जाता है। यही बेसहारा गोवंश आज सड़कों और खेतों में घूमते अपनी जान दे बैठता है।
ऐसे ही हालात अपने ब्रज में भी गोवंष में देखने को मिले तो ब्रज के एक वैज्ञानिक तथा सीआईआरजी मखदमू फरह में अपनी सेवाएं दे चुके वर्तमान में जीएलए विश्वविद्यालय, मथुरा में बायोटेक विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. शूरवीर सिंह ने कई वर्षों की रिसर्च के बाद एक जॉनस डिजीज वैक्सीन तैयार की। इस वैक्सीन को तैयार करने में सहायक प्रोफेसर डॉ. सौरभ गुप्ता एवं डॉ. कुंदन कुमार चौबे ने भी योगदान दिया है और आज भी दे रहे हैं।
जीएलए बायोटेक्नोलॉजी के प्रोफेसरों द्वारा तैयार हुई वैक्सीन के बारे में जैंत ग्राम के अन्तर्गत नगला सुमेरा में बकरी फार्म हाउस संचालक भगवत प्रसाद को जानकारी हुई तो उन्होंने जीएलए पहुंचकर बायोटेक विभाग के प्रोफेसर शूरवीर सिंह से संपर्क साधा। जहां संचालक ने बताया कि उनके फार्म हाउस पर कई बकरियों को दस्त और प्रेग्नेंसी की समस्या आ रही है। इसके बाद प्रोफेसर ने स्वयं पहुंचकर बकरियों का हालचाल जाना और वैक्सीन लगाने की ठानी। जिस पर संचालक भी तैयार हो गया।
गुरूवार को बकरी फार्म हाउस पर वैक्सीनेशन कैंप लगाकर 56 से अधिक बकरियों का वैक्सीनेशन किया गया। साथ ही सभी बकरियों का सैंपल लिया गया। वैक्सीनेशन के बारे में जानकारी देते हुए प्रो. शूरवीर ने बताया कि प्रथम चरण के इस वैक्सीनेशन के बाद बकरियों को करीब तीन सप्ताह के अंतराल में बीमारी से कुछ आराम मिलने लगेगा। इसके बाद प्रत्येक माह सभी बकरियों का ब्लड सैंपल लिया जायेगा।
इस सैंपल के माध्यम से यह पता लगाया जा सकेगा कि ब्लड की मात्रा और पैदा होने वाली बीमारी से कितना फायदा मिला है। उन्होंने बताया कि इस वेक्सीन को पूरे देश में जहां अधिक बीमारी होगी वहां कैंप लगाकर वैक्सीनेशन किया जायेगा। वैक्सीनेशन के अवसर पर जीएलए बायोटेक के डॉ. सौरभ गुप्ता, डॉ. कुंदन चौबे, अब्दुल्ला, सुभाश, नवभारत मेंथाना, महु वेटेरिनरी कॉलेज मध्यप्रदेश के डॉ. प्रदीप एवं डॉ. रविकांत उपस्थित रहे।
56 बकरियों में से अब रह गयीं 47
मथुरा। जिस प्रकार बेरोजगारी से उभरने के लिए 8 से 10 लाख रूपये खर्च कर जैंत के भगवत प्रसाद ने बकरी फार्म हाउस खोला, उससे उन्हें सफलता तो मिली नहीं, लेकिन हालात बदतर होते गए। भगवत बताते हैं कि पिछले वर्श सितंबर माह में बकरी फार्म हाउस खोला था, तब 56 बकरियां थीं। कुछ समय बाद ही किसी को दस्त हो गए तो कोई प्रेग्नेंसी की समस्या हो गयी। कमजोर बकरियों की मृत्यु हो जाने के बाद वह फिर उभर ही नहीं सके। बकरियों में बीमारी होने के कारण उनके बच्चे भी संक्रमित हो गए हैं।