Sunday, June 2, 2024
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कोलाहल और चमक-दमक से दूर भौतिकता से परे धार्मिक स्थल है टटिया स्थान


वृन्दावन। परिक्रमा मार्ग स्थित एक धर्म स्थल है टटिया स्थान। यह स्थान बाहर से आए यात्रियों की ट्रेवलिंग लिस्ट में शायद ही शुमार हो। होगी भी क्यूं भला, न वहां किसी तरह का शोर है ना तस्वीर ही ले सकते हैं। वहां ऐसा कुछ नहीं जो भौतिक रूप से सहेजा जा सके। वहां ज़ोर-ज़ोर से जयकारे नहीं लगते जैसे कि बांकेबिहारी मंदिर में होता है। जन्मभूमि जैसे चलचित्र भी नहीं है वहां। यात्रियों को ऐसा कोलाहलपूर्ण स्थान चाहिए जहां लोगों की चहल पहल के साथ थोडी सी मस्ती हो लेकिन यह स्थान आध्यत्म दुनिया का ऐसा स्थान जहां संत और आराध्य के बीच बस एक ही रास्ता है वह है भक्ति का और कुछ नहीं। वह है टटिया स्थान।

स्वामी हरिदास की गद्दी पर बैठने वाले सातवें संत ललिल किशोरीजी ने इसे अपनी तपोस्थली चुना। स्वामी हरिदास ने निधिवन को चुना था। वही निधिवन जहां आज भी हर रात कृष्ण रास रचाते हैं, ब्रज में इसकी बड़ी मान्यता है। निधिवन के वृक्ष बहुत विशिष्ट हैं, लंबाई में छोटे जड़ें पतली और बहुत फैली हुई। कहते हैं कि यही वृक्ष रात में गोपी बन जाते हैं, और रास करते हैं। स्वामी हरिदास ने इस स्थान की स्थापना की और सखी संप्रदाय की भी ।

इसी संप्रदाय के ललित किशोरीजी ने निधिवन को छोड़ टटिया स्थान को अपनाया। यहां वृक्ष पहली दृष्टि में सामान्य हैं, वही कदंब, नीम और पीपल। लेकिन ध्यान से देखें तो इन वृक्षों पर राधा का नाम गुदा है। ललित किशोरी जी ने पूरे स्थान को बांस यानी टटिया से ढकवाया तो यह टटिया कहलाया। कुछ लोग इसे तटीय स्थान भी कहते हैं, यमुना तट से निकटता इसकी वजह हो सकती है।

पूरा स्थान रेत से ढका है, कुछ सीढ़ियां ऊपर चढ़कर बड़े से प्रांगण में एक कमरे के भीतर ईश्वर का विग्रह है। जिस दिन जो प्रसाद चढ़ता है, वह उसी दिन बांट दिया जाता है। फ़ोटो खींचना और बातें करना दोनों मना हैं। प्रांगण में रेत पर बैठे संत तानपूरा, सितार आदि लेकर बहुत मद्धम स्वर में केलिमाल के पद गाते हैं। सबसे विशिष्ट ये है कि यहाँ के संतों ने बिजली नहीं ली है और न ही चूल्हा, पानी के लिए भी कोई मोटर नहीं है। कुएं से पानी भरते हैं, लकड़ी पर भोजन बनाते हैं और कुप्पी जलाते हैं, कितनी ही गर्मी में हाथ का पंखा झलते हैं।

स्वामी हरिदास महाराज की गद्दी पर बैठे संत वहां से बाहर नहीं जाते, सदैव स्थान में ही बने रहते हैं। वास्तविकता में, टटिया स्थान है ही उन लोगों के लिए जो सदैव अन्दर रहते हैं। जिसे भीतर के आनंद का ज्ञान हो जाए, वह बाहर क्यों पांव रखे।

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