Saturday, April 20, 2024
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इंसान से धरती से जाने के बाद इन सवालों के जवाब भला कहां मिल सकते हैं?

किसी इंसान को आप कितना जान सकते हैं? उसके किये हुए कार्यों, अलग-अलग परिस्थितियों में उसके द्वारा लिए गए फैसलों, उसके कहे शब्दों आदि से ही हम उसके बारे में अपनी धारणा बना सकते हैं। पर उस व्यक्ति का हृदय कैसा था? उसके हृदय में क्या भाव उठते थे? वह किन विषयों पर क्या सोचता था? ऐसा क्या था उसके मन में जिसे वह सबसे साझा नहीं करता था? इंसान से धरती से जाने के बाद इन सवालों के जवाब भला कहां मिल सकते हैं!

कोसीकलां के पत्रकार सोनू सिंघल के पिता श्री राजेन्द्र प्रसाद का स्वर्गवास 15 सितंबर को हो गया। आज उन्हें अपने पिता की अलमारी से एक डायरी मिली जिसमें राजेन्द्र प्रसादजी द्वारा लिखी गई कविताएं थीं। सोनू के लिए उनके पिता का यह पहलू बिल्कुल अनजाना था। उन्हें पता ही नहीं था कि उनके पिता कविताएं भी लिखते थे। सोनू से मुझे जब उनके पिता की लिखी हुई कविताओं के बारे में जानकारी हुई तो यह जरूरी लगा कि आप सबको भी स्व. राजेन्द्र प्रसाद जी की कविताओं से परिचित कराया जाए। जिन राजेन्द्र अंकलजी को अभी तक हम/आप रिटायर्ड एसडीओ व आर्य समाज के प्रधान के तौर पर ही पहचानते रहे, उनकी कविताओं से उनके व्यक्तित्व से हम और अधिक परिचित हो पाएंगे। जिस तरह स्व. राजेंद्रजी ने अपनी कविताओं को छुपा कर रखा, शायद उनका इरादा उन्हें कभी प्रकाशित कराने का नहीं रहा होगा, पर अब सोनू चाहते हैं कि उनके पापा का काव्य संग्रह प्रकाशित हो।

आइए नजर डालते हैं श्री राजेन्द्र सिंघल की कुछ पंक्तियों पर

श्री राजेंद्र अपनी कविताओं में गरीब, कमजोर और पीड़ित की आवाज उठाते नजर आते हैं। सिंचाई विभाग की अपनी नौकरी में उन्होंने किसानों का जो दर्द महसूस किया उसे उन्होंने कुछ इस तरह शब्दों में पिरोया-

जन-जन को खाने को देता, कृषक बना मोहताज है!

अवसरवादी चापलूस फिर, करता उन पर राज है!

डनलप के गद्दों पर सोते, कुत्ते भी मौज उड़ाते हैं!

अत्याचारों की चक्की में, मेहनतकश पीसे जाते हैं!’

गरीबों की बदहाली उन्हें व्यथित करती साफ झलकती है। इसी लिए पूरी संवेदना के साथ उन्होंने गरीब-मजलूम के स्वर को शब्द दिए हैं –

‘राशन के शासन पर निर्भर, निर्धन आज बेचारा है!

नंगा मानव ठिठुर-ठिठुर, भूखा रोटी को तरस रहा!

दूध की बूंद-बूंद को तरसे, मां का बच्चा प्यारा है!

अंधकार में पड़ा हुआ है, रोगी बालक तड़फ रहा!

आज रुदन करता है हृदय, निरख करुण इंसानों को!

तुझे संभालूं भारत जननी, या फिर तेरे जवानों को!’

बदलती राजनीतिक परिस्थितियों में गांधी और नेहरू के सपनों के भारत में जिस तरह गांधी और नेहरू की राह से उनके उत्तराधिकारियों के भटकने को उन्होंने कुछ इन शब्दों में बयां किया है।

‘चाचाजी के समाजवाद की, गाथा बनकर रह गई;

नेहरू की वो नहरें, फिर उल्टी होकर बह रहीं;

नाहर डूबे उन नहरों में, फिर रक्षा भला करेगा कौन;

शांति के मेरे पुजारी बोलो, बोलो रहते हो क्यों मौन;

नेहरू के समाजवाद को जब कार्यान्वित किया जाएगा;

उस दिन मेरे भारत में, गणतंत्र मनाया जाएगा;

शिक्षा विभाग में बढ़ते भ्रष्टाचार पर उनकी कलम कुछ इस तरह चली है –

‘शिक्षा के सदनों में बैठे, स्वार्थी हैं घुसपैठ करें;

अधिकारों की आड़ लिए ये, जीवन से खिलवाड़ करें!’

युवाओं से बदलाव की उम्मीद लगाते राजेंद्र जी उनका आवाह्न करते हैं रू

‘आस लगाती तुझसे जननी, फिर से तुझे निहार रही है;

कामी पापी की पीड़ा से, अबला फिर चीत्कार रही है;

संकट आया मानवता पर, भारत मात कराह रही है;

जागो-जागो युवकों जागो, भारत मात पुकार रही है!’

युवाओं का आवाह्न कुछ इन शब्दों में भी

‘कह दो कह दो फिर से कह दो, जाग उठी तरुणाई है;

दुष्टों से फिर से तुम कह दो, युवकों की बारी आई है;

सावधान गर जगा नहीं तू, आफत तुझ पर आई है;

नेताओं की तू आस छोड़ दे, यह आवाज लगाई है!’

कुछ जानकारी राजेन्द्र प्रसाद जी के बारे में

राजेंद्र प्रसाद जी का जन्म मथुरा जनपद क्षेत्र के गांव मानागढ़ी में तीन जनवरी 1955 को हुआ। उनके पिता स्वं श्री रामस्वरूप जी महाशय को भारतीय जनता पार्टी एवं राष्ट्रीय स्वम् सेवक संघ के कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में जाना जाता था।जिन्होंने अपने जीवनकाल में पार्टी के लिए अनेको कार्य किये। अपने पिता के पदचिन्हों पर चलकर उन्होंने सिंचाई विभाग में कर्मठता ओर ईमानदारी के साथ नौकरी की और 2015 में एसडीओ के पद से सेवानिवृत्त हुए। सेवा के दौरान उन्होंने किसानों के हित के लिए कई महत्त्वपूर्ण कार्य किये। सेवानिवृत्त होने के बाद ये समाज सेवा के क्षेत्र में संलग्न हुए। वर्ष 2017 में पारिवारिक लोगो को आर्य समाज से जुड़े रहने के कारण कोसी कलां आर्य समाज के प्रधान चुने गए। जिन्होंने कोसी कलां आर्य समाज मे सिलाई केंद्र, महिला सशक्तिकरण, आर्य समाज का प्रचार, जैसे कार्याे पर कार्य किया। इसी दौरान शहर में महिला आर्य समाज का गठन कराया। इसी माह की 15 तारीख को उनका निधन हो गया।

उनके निधन के छह दिन बाद आज 20 सितंबर को उनकी यह डायरी उनके पुत्र सोनू को उनकी अलमारी से मिली। जिससे उनके कवि होने की जानकारी सामने आई। और उनकी कविताएं पढ़ने का संयोग बना। दमव न्यूज के पत्रकार एवं ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के तहसील अध्यक्ष छोटे पुत्र सोनू बताते हैं कि पापा ने अपने नोकरी के समय मे कई कविताएं जैसे युवाओं का आवाह्न, भारत माता के लिए, भूमि संरक्षण, बेरोजगारी, मेंड़बंदी, गणतंत्र दिवस, ओ मुलायम, लुढ़कना लोटा आदि शीर्षकों से कविताएं लिखी हैं। जैसे जैसे उनकी डायरी के पन्ने खुलेंगे उनकी कविताओं के बारे में और अधिक जानने को मिलेगा। आशा है कि पुत्र सोनू उनका काव्य संग्रह प्रकाशित करा पाएं!

  • श्री राजेंद्र प्रसाद जी को श्रद्धांजलि!

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