Sunday, May 5, 2024
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पूर्वांचल का फेमस व्यंजन दही-चूड़ा का अलग ही है स्वाद

जब बात पूर्वांचल की होती है तो जेहन में कुछ खास त्योहार और कुछ खास पकवानों का स्वाद आ ही जाता है। यहां छठ की छटा निराली है, तो मकर सक्रांति भी अनोखी है, लिट्टी चोखा में अजब बात है और ठेकुआ का अलग ही स्वाद है।
आज हम पूर्वांचल के उस व्यंजन की बात करेंगे जिसे लोग अपनी डाइट में शामिल करते हैं । एक ऐसा व्यंजन जिसे न तो पकाने की जरुरत होती और न ही गर्म करने की। यह व्यंजन न केवल स्वाद में बेहतर होता है, बल्कि सेहत के लिहाज से भी इसके कई फायदे हैं, जिसे खाकर लोग तरोताजा महसूस करते हैं।

हम बात कर रहे है पूर्वांचल फेमस व्यंजन दही चूड़ा की। आम तौर पर यह व्यंजन बिहार, यूपी, झारखंड के साथ ही नेपाल में लोगों के द्वारा काफी पसंद किया जाता है। वहीं अगर बिहार की बात करें तो बिहार का मिथिला क्षेत्र दही चूड़ा के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहां के लोग दही चूड़ा इतना पसंद करते हैं कि इनके हर भोज में इस व्यंजन को शामिल किया जाता है। बता दे कि पूर्वांचल इस व्यंजन को सबसे ज्यादा पसंद मकर सक्रांति के त्योहार पर किया जाता है।
पौराणिक कहानियों से लेकर पारंपरिक कर्मकांड में दही चूड़ा का जिक्र है । पूरे मिथिला में कोई शुभ काम विशेषकर संस्कार, पूजा और दावत तब तक पूरी नहीं होती जब तक दही चूड़ा न परोसा जाए । यह भोजन हाई फाइबर और लोदृकैलोरी से भरा हुआ है । वैसे तो मकर संक्रांति पर इसका खास महत्व है लेकिन मिथिला के कई परिवार दैनिक तौर पर बतौर नाश्ता इसे लेते हैं ।


वहीं अगर इसके इतिहास को देखें तो मान्यताओं के अनुसार पूर्वांचल में दही चूड़ा खाने की परंपरा में वैदिक कथाओं का असर है। कहते हैं की जब मनु ने पृथ्वी पर बीज रोपकर खेती की शुरुआत की थी तब अन्न उपजे, जिससे सबसे पहले खीर बनाया गया, जिसे क्षीरपाक कहा गया । इसके बाद दूध से दही बनाने की परंपरा विकसित हुई तो धान के लावे को इसके साथ खाया गया । भोजन को तले जाने की व्यवस्था की शुरुआत तब नहीं हुई थी । महर्षि दधीचि ने सबसे पहले दही में धान मिलाकर भोजन की व्यवस्था की थी।
मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि इसका साक्षी सारण जिला है । बता दे कि बिहार के सारण जिले में माँ अम्बिका भवानी का मंदिर स्थित है जो की सतयुग के समय ऋषि दधीचि की तपस्थली हुआ करती थी । एक बार अकाल के समय ऋषि दधीचि ने माता को दही और धान का भोग लगाया था, तब देवी अन्नपूर्णा रूप में प्रकट हुई और अकाल समाप्त हो गया । जैसा की मैंने आपको पहले बताया था कि बिहार के मिथिला जिले में दहीदृचूड़ा को लोगों के द्वारा काफी पसंद किया जाता है ।


मान्यताओं की मानें तो उनके अनुसार दहीदृचूड़ा खाने की परंपरा मिथिला से भी जुड़ी हुई है । धनुष यज्ञ के समय मिथिला पहुंचे ऋषि मुनियों ने दही चूड़ा का भोज किया था । इतने बड़े आयोजन में ऋषियों के भोजन से इसे प्रसाद के तौर पर लिया गया और फिर दही चूड़ा की परंपरा चल पड़ी ।


आपको यह जानकर हैरानी होगी की मान्यता के अनुसार दहीदृचूड़ा की आधुनिक परम्परा को लाने का श्रेय बंगाल के गौड़ सिद्धों को भी दी गयी है । यह कहानी तब की है जब उस समय यहां चौतन्य महाप्रभु के शिष्य रघुनाथ दास ने बड़े पैमाने पर दही चूड़ा का प्रसाद बंटवाया था । उन्होंने यह उत्सव सजा के तौर पर किया था क्योंकि उन्होंने छिप कर सतसंग सुना था । इसके बाद बंगाल में दही चूड़ा की एक परंपरा बन गयी, जो हर उत्सव की साक्षी है। मिथिला निवासी इस व्यंजन को अपने सभी त्योहारों जैसे- जितिया, नवरात्र, तिला सक्रांति, सामा चकेबा, दुर्गा पूजा में शामिल जरुर करते हैं।
आम तौर पर इस भोजन को ब्राह्मण जाति के साथ एक लोकप्रिय संबंध सौंपा गया है।


आपकी जानकारी के लिए बता दे कि इस भोजन को न तो पकाया जाता है और न ही गर्म किया जाता है, जिस वजह से इसके पोषक तत्वों में कमी नहीं आती है । और इसे खाने वाले लोगों के सेहत बने रहते हैं ।


तो आइये जानते हैं दही – चूड़ा खाने से होने वाले स्वास्थय से जुड़े फायदों के बारे में –
1.जो लोग वजन कम करने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं तथा नाश्ते में एक हेल्दी ऑप्शन की तलाश में हैं, वे लोग दहीदृचूड़ा का सेवन कर सकते हैं क्योंकि इसमें कैलोरी की मात्रा कम होती है साथ ही पोषक तत्वों से भरपूर दहीदृचूड़ा लंबे समय तक आपके पेट को भरा हुआ रखता है, जिससे आप अनावश्यक खाने से बच पाते हैं इसलिए वजन कम करने वाले लोग अपने आहार में दहीदृचूड़ा को शामिल कर सकते हैं।

  1. पेट की खराबी या फिर दस्त, कब्ज जैसी समस्या से परेशान लोगों के लिए भी दहीदृचूड़ा खाना फायदेमंद हो सकता है। लेकिन ध्यान रखें कि दही चूड़ा में शक्कर की बजाय गुड़ का इस्तेमाल करें। साथ ही आप इसमें एक केला मसलकर भी डाल सकते हैं इससे पेट की खराबी दूर होने के साथ ही आपका पाचन भी दुरुस्त रहेगा।
  2. दही चूड़ा में पर्याप्त मात्रा में आयरन मौजूद होने के कारण यह आयरन की कमी वाले लोगों के लिए फायदेमंद हो सकता है क्योंकि इससे एनीमिया रोग होने का खतरा टाला जा सकता है । इसके अलावा गर्भावस्था में महिलाओं को दही चूड़ा का सेवन लाभ दे सकता है क्योंकि इसके सेवन से उन्हें कोई भी नुकसान नहीं पहुंचता है और शरीर में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी की पूर्ति भी हो जाती है ।
    दही चुड़ा के गुणों से तो आप परिचित हो ही गए। आपको बता दें कि इस व्यंजन का सबसे खास बात यह है कि यह मिनटों में तैयार हो जाता है और वह भी बिना किसी झंझट के। तो अगर आपके पास सुबह कम वक्त है तो इससे बेहतर नाश्ता कुछ नहीं हो सकता । पूर्वान्चल के इस व्यंजन को पूर्वान्चलवासी आलू गोभी की सब्जी के साथ भी खाना पसंद करते हैं।
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