Sunday, May 5, 2024
Homeस्वास्थ्यबहन ने की बड़े भाई की अंतिम इच्छा पूरी

बहन ने की बड़े भाई की अंतिम इच्छा पूरी

मृतदेह के.डी. हॉस्पिटल को देकर किया फर्ज पूरा

मथुरा। बहन ने अपने बड़े भाई की अंतिम इच्छा पूरी कर समाज के सामने एक नजीर पेश की है। 60 सेवा सदन, हिम्मतपुरा, मथुरा निवासी उमा शर्मा (73 वर्ष) ने अपने बड़े भाई तिलकेश्वर शर्मा (89) की मृतदेह के.डी. मेडिकल कॉलेज-हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेण्टर के एनोटॉमी विभाग को देकर उनकी अंतिम इच्छा पूरी की। स्वर्गीय तिलकेश्वर शर्मा ताउम्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे और उन्होंने राष्ट्रहित के लिए शादी भी नहीं की।
ज्ञातव्य है कि तिलकेश्वर शर्मा (89) पुत्र स्वर्गीय रामस्वरूप शर्मा निवासी सेण्ट्रल रेलवे वेस्टर्न कॉलोनी रोड, नियर न्यू बस स्टैंड, शांतिनगर मथुरा का विगत दिवस निधन हो गया। उनकी अंतिम इच्छा पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार करने की बजाय मृतदेह किसी चिकित्सालय को देने की थी। मृत्यु से पूर्व तिलकेश्वर शर्मा ने यह इच्छा अपनी बहन उमा शर्मा को जताई थी। बड़े भाई की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए उमा शर्मा ने के.डी. मेडिकल कॉलेज-हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेण्टर प्रबंधन से बात की। स्वीकृति मिलने के बाद उन्होंने भाई की मृतदेह के.डी. हॉस्पिटल को देकर समाज के सामने नजीर पेश की है।
दरअसल, चिकित्सा जगत के लिए मृतदेह अमूल्य है, सिर्फ जनरल पढ़ाई-लिखाई ही नहीं, आगे के शोध और जटिल ऑपरेशन में दिग्गज सर्जनों के लिए भी यह देह रोशनी का काम कर कई जिंदगियां बचाती है। फिलहाल हमारे देश में देहदान के बारे में विशेष जागृति नहीं है। मथुरा में के.डी. मेडिकल कॉलेज खुलने के बाद इस दिशा में जन जागरूकता बढ़ाने की कोशिशें की जा रही हैं। अब तक यहां एक दर्जन से अधिक लोग देहदान के प्रपत्र भर चुके हैं।
के.डी. मेडिकल कॉलेज के डीन और प्राचार्य डॉ. आर.के. अशोका का कहना है कि रक्तदान, नेत्रदान की तरह ही मृतदेह भी चिकित्सा क्षेत्र के लिए बहुत जरूरी है। पर्याप्त संख्या में मानव मृतदेह नहीं मिलने से मेडिकल छात्र-छात्राओं को मानव शरीर के अंगों के अध्ययन में काफी परेशानी आती है। डॉ. अशोका का कहना है कि देहदान के प्रति जागरूकता लाने के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास हुए हैं, लेकिन अभी भी समाज में जागरूकता की काफी कमी है। उन्होंने बताया कि देहदान की कमी का सीधा असर चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता पर पड़ता है।
डॉ. अशोका का कहना है कि मेडिकल ऑपरेशन में जब भी कोई नई तकनीक आती है, तो उसे सीखने और प्रैक्टिकल कर देखने के लिए कडैवेरिक वर्कशॉप (मानव शरीर पर प्रयोग) के लिए भी बॉडी का उपयोग किया जाता है। शरीर के मृत होने पर तीन घंटे में आंख के कॉर्निया का दान हो सकता है। डॉ. अशोका का कहना है कि बिना पोस्टमार्टम मृत देह एनोटॉमी विभाग में रसायनों के जरिए वर्षों तक सुरक्षित रखी जा सकती है लेकिन पोस्टमार्टम के बाद शव लम्बे समय तक सुरक्षित नहीं रखा जा सकता।
आर.के. एज्यूकेशन ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. रामकिशोर अग्रवाल का कहना है कि देहदान सबसे बड़ा धर्म है। यदि मृतदेह किसी के काम आए तो उससे अच्छा आखिर क्या हो सकता है। प्रबंध निदेशक मनोज अग्रवाल ने उमा शर्मा के साहसिक फैसले की सराहना करते हुए ब्रजवासियों से अधिकाधिक देहदान का आग्रह किया है।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments