Sunday, April 28, 2024
Homeविजय गुप्ता की कलम सेजब तुक्का तीर बनकर निशाने पर जा बैठा

जब तुक्का तीर बनकर निशाने पर जा बैठा

मथुरा। बात बारह वर्ष पुरानीं है। हमारे पिताजी स्व० लाला नवल किशोर जी का जयंती समारोह आने वाला था। मैंने उस समय फिरोजाबाद के जिलाधिकारी श्री दिनेश शुक्ला को भी फोन करके कार्यक्रम में भाग लेने का अनुरोध किया किंतु दिनेश शुक्ला जी ने कहा कि इस समय तो मैं बहुत ज्यादा व्यस्त हूं इसलिए आ नहीं पाऊंगा। उन्होंने यह भी कहा कि अगर मामला लोकल का होता तब तो जैसे तैसे समय निकाल भी लेता किंतु फिरोजाबाद से मथुरा जाने और फिर लौट कर वापस फिरोजाबाद आने में काफी समय लग जाएगा, इसलिए आप क्षमा कर दें।
दरअसल बात यह थी कि कुछ वर्ष पहले दिनेश शुक्ला जी मथुरा में अपर जिलाधिकारी रह चुके थे तथा उनसे मेरा अच्छा परिचय था, इसीलिए मैंने उन्हें फोन किया। जब शुक्ला जी ने कार्यक्रम में भाग लेने में अपनी असमर्थता जताई तो मेरे मुंह से अचानक निकल गया कि चलो ठीक है आपकी इतनी व्यस्तता है तो कोई बात नहीं अगर अगली बार आप मथुरा के ही जिलाधिकारी बन गए तब तो आओगे। इस पर उन्होंने हंसते हुए कहा कि पक्का वादा करता हूं चाहे जो भी परिस्थिति रहे मैं आऊंगा जरूर। संयोग ऐसा हुआ कि कुछ माह बाद शुक्ला जी मथुरा के जिलाधिकारी बन गए और मेरे मुंह से अचानक निकली बाद फिट बैठ गई। फिर हमारे पिताजी का जयंती समारोह का मौका आया और मैंने फोन करके उनके वायदे की याद दिलाते हुए कहा कि आप कार्यक्रम में पधारें। इस पर उन्होंने कहा कि जरूर आऊंगा।
अब आया कार्यक्रम वाला मौका किन्तु कोढ़ में खाज वाली बात यह हो गई कि कार्यक्रम से एक दिन पूर्व कोई बहुत बड़ा बवाल हो गया। यह तो याद नहीं कि क्या मामला था किंतु इतना याद है कि पूरे जिला प्रशासन की नींद हराम हो गई और जिलाधिकारी श्री शुक्ला बहुत बड़ी टेंशन में आ गए लेकिन उन्होंने अपना वचन निभाया तथा जैसे भी हो समय निकालकर सुबह ठीक समय पर घर आकर पिताजी की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित कर मन्नत मांगी कि ऐसा आशीर्वाद दो जो इस समस्या का समाधान निकल आये। भगवान की ऐसी कृपा हुई कि कुछ ही घंटों में समस्या सुलट गई और मामला शांत हो गया।
उसी समय कार्यक्रम के दौरान एक बड़ा रोचक और मजेदार किस्सा हुआ जिसे बताए बगैर नहीं रहा जा रहा। बात यह थी कि कार्यक्रम के दौरान शुक्ला जी कुर्सी पर बैठ कर बात चीत कर रहे थे कि बीस पच्चीस लोगों की भीड़ के साथ सांसद जयंत चौधरी भी आ पहुंचे। जैसे ही जयंत चौधरी आये तो अन्य सभी लोग जो कुर्सियों पर बैठे थे उनके अभिवादन में उठ खड़े हुए।
जब जयंत जी शुक्ला जी के सामने आये तो उन्हीं के मुंह पर शुक्ला जी मुझसे पूंछ बैठे कि ये कौन हैं? यह बात जयंत जी को बड़ी नागवार गुजरी और उन्होंने नहले पर दहला जड़ते हुए तपाक से शुक्ला जी की ओर इशारा करके मुझसे पूछा कि “आपकी तारीफ” मुझे बड़ी जोर की हंसी छूटी और मेरे साथ साथ और सब लोग भी हंस पड़े। मैंने उस समय जयंत जी से कहा कि वाह जयंत जी वाह मान गए आपको, आपकी हाजिर जवाबी ने सिद्ध कर दिया कि आप हाजिर जवाब चौधरी चरण सिंह के पक्के नाती हैं। इस रोचक वाकये को समाचार पत्रों ने भी चुटकी लेते हुए छापा।
मजेदार बात तो यह थी कि लगभग रोजाना ही जिलाधिकारी दिनेश शुक्ला व सांसद जयंत चौधरी में फोन पर बातचीत होती रहती थीं किंतु तब तक आमने सामने मिलना नहीं हो पाया था। उस समय शुक्ला जी कुछ समय पहले ही जिलाधिकारी बने थे तथा उसी प्रकार जयंत जी को भी सांसद बने बहुत ज्यादा दिन नहीं हुए थे, किंतु है बड़ी अचरज की बात कि एक ही जिले के कलेक्टर और सांसद एक दूसरे को न पहचानें जबकि अखबारों में फोटो तो देखते ही होंगे? जहां तक मेरा अनुमान है कि शुक्ला जी भ्रमित हो गए थे और नहीं पहचान पाये किंतु जयंत जी ने उन्हें पहचान लिया परंतु खुद को न पहचान पाने की झुंझलाहट “आपकी तारीफ” कहकर निकाल ही दी।
इस घटना के बाद शुक्ला जी थोड़े झेंप से गये और जयंत जी के चेहरे पर विजयी जैसे भाव देखने को मिले जैसे कह रहे हों कि लो मजा चाख लिया मुझे न पहचानने का।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments