Saturday, April 27, 2024
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बड़े ही अजब गजब के दमदार नेता थे मनीराम बागड़ी

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विजय कुमार गुप्ता
   
     मथुरा। इस नगरी में एक से बढ़कर एक बढ़िया और एक से बढ़कर एक घटिया जनप्रतिनिधि हुए हैं किंतु एक सांसद ऐसे अजब गजब के दमदार नेता थे जिनकी विलक्षणता के बारे में शायद आज की नई पीढ़ी को कुछ अता पता भी नहीं होगा। इनका नाम था मनीराम बागड़ी। बागड़ी जी मथुरा से दो बार चुनाव लड़े थे। पहली बार हारे और दूसरी बार जीते।
     उनकी सबसे बड़ी और चौंकाने वाली बात तो यह थी कि पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रधान मंत्रित्व काल में जब वे हरियाणा के हिसार से सांसद हुआ करते थे, तब उस सोशलिस्ट पार्टी के संसदीय दल के नेता थे, जिसमें डॉ राम मनोहर लोहिया भी एक सांसद थे। कहने का मतलब है कि डॉ राम मनोहर लोहिया जैसी महान हस्ती ने संसद में उन्हें अपना नेता बनाया। शायद ऐसी मिसाल देश की अन्य किसी राजनैतिक पार्टी में देखने को नहीं मिलेगी।
     जब वे लोकसभा में भाषण देते थे तो ऐसा लगता था जैसे कोई सिंह दहाड़ रहा हो। जब उन्हें गुस्सा आता था तब तो उनका रौद्र रूप देखकर पंडित जवाहरलाल नेहरु की भी घिग्घी बंध जाती थी और वे हाथ जोड़ जोड़ कर बागड़ी जी से शांत होने की अपील करते किंतु बागड़ी जी कहां रुकने वाले थे वे कहते कि “ओ भारत के बुझदिल प्रधानमंत्री तू मेरे सामने से हट जा” लोकसभा के स्पीकर की अपील भी बेकार जाती।
     ऐसा धुआंधार और दबंग नेता मैंने आज तक नहीं देखा। उस जमाने के मुस्लिम नेता स्व० इश्हाक भाई कुरैशी जो बागड़ी जी के अति निकटस्थ थे, ने मुझे एक किस्सा उस दौरान सुनाया जब बागड़ी जी मथुरा से सांसद हुआ करते थे। इश्हाक भाई ने बताया कि एक बार मैं दिल्ली स्थित उनके निवास पर गया तो देखा कि बागड़ी जी चारपाई पर तकिया लगा कर लेटे थे तथा उनके पैरों की ओर उसी चारपाई एक तरफ देवीलाल (ओम प्रकाश चौटाला के पिता) तथा दूसरी तरफ भजनलाल बैठे थे।
     भजनलाल और देवीलाल में किसी बात को लेकर वाद विवाद चल रहा था। वे दोनों तो बागड़ी जी के सामने सहमे सहमे थे तथा बागड़ी जी बागड़ी जी कहकर सम्बोधन कर रहे थे और बागड़ी जी उनसे डांट डपट के लहजे में “ओ भजना, ओ देवी” कहकर बोल रहे थे। जहां तक मुझे अंदाज है उस समय देवीलाल उप प्रधानमंत्री थे और भजनलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री।
     मेरा यह बड़ा सौभाग्य है कि बागड़ी जी मुझसे बेहद स्नेह मानते थे। उन दिनों में किशोरावस्था पार कर युवावस्था में था तथा अपने घर के पास बने रेल के पुल पर पैदल चलने वालों के लिए गैलरी बनवाने की मुहिम में जुटा हुआ था। इसी चक्कर में उनसे संपर्क हुआ तथा बागड़ी जी ने मेरा भरपूर सहयोग किया। एक बार वे इश्हाक भाई के साथ अचानक हमारे घर पर आ गये। खूब मेरी पीठ थपथपा कर शाबाशी दी और बोले कि बेटा मुझे भूख लगी है घर में जाकर चार चपाती बनवा दे और साथ में कोई सब्जी हो तो वह भी लेकर मेरे क्वार्टर पर आ जाना। सब्जी न हो तो आम का अचार ही ले आना। तुम लोग अगर प्याज खाते हों और घर में रखी हुई हो तो वह भी ले आना। इसके बाद वे हमारे घर के पास तिलक नगर कॉलोनी स्थित अपने क्वार्टर पर चले गये जहां उन्होंने अपना अस्थाई निवास बना रखा था।
     मैंने फटाफट घर में रोटियां बनवाईं, सब्जी और आम का अचार लिया तथा बाजार जा कर दो चार प्याज खरीदीं और झटपट बागड़ी जी के क्वार्टर पर जा पहुंचा। प्याज को देखकर इश्ताक भाई बोले कि “विजय बाबू क्या तुम्हारे घर में प्याज खाई जाती है? इस पर मैंने कहा कि नहीं मैंने उन्हें बताया कि मैं तो बाजार से लेकर आया हूं। इस पर बागड़ी जी और इश्हाक भाई अचरज से एक दूसरे का मुंह देखने लगे।
     जब कभी वे मथुरा आते और इसकी भनक लगते ही मैं तुरंत उनके क्वार्टर पर पहुंचकर पुल पर गैलरी वाले मामले में क्या प्रगति हुई? की मालूमात करने पहुंच जाता तो वे बड़े खुश हो कर कहते कि बेटा मैंने तेरे जैसा लगनशील लड़का नहीं देखा। कभी-कभी तो वे मुझे अपने साथ गाड़ी में बैठाकर कार्यक्रमों में भी ले जाते। जब कभी मौका मिलता तो मैं दिल्ली पहुंच जाता न उन्हें घर पर छोड़ता और न संसद में। मुझे वे संसद भवन के अंदर तक ले जाते तथा टाइपिस्ट लड़कियों से कहते, ये लड़का जैसे जैसे बताये वैसे कर्री सी चिट्ठी रेल मंत्री और मुख्यमंत्री को लिख देना।
     मुझे संसद भवन की कार्यवाही देखने का बड़ा शौक चर्राता था। मैं बागड़ी जी से कहता कि ताऊजी संसद की कार्यवाही दिखवादो। इस पर वह खुद ही फॉर्म लेकर फॉर्म देने वाले अधिकारी से भरवाते तथा मेरा नाम लिखवाकर मुझसे कहते कि बाप का नाम व पता भी बता और फिर उस फॉर्म को लेकर खुद ही दर्शक दीर्घा तक मुझे छोड़ कर आते। एक बार ऐसा हुआ कि फॉर्म भरवाने के बाद उन्होंने किसी भी सुरक्षा अधिकारी के हस्ताक्षर नहीं कराए तथा फटाफट मुझे ऊपर दर्शक दीर्घा के गेट तक ले जाकर एक सुरक्षा अधिकारी को वह फार्म देकर कहा कि इस बच्चे को अंदर ले जाकर बिठादे। उस अधिकारी ने फॉर्म देखा तो उस पर किसी के भी हस्ताक्षर नहीं थे, तो उसने बागड़ी जी से कहा कि “सर इस पर किसी के हस्ताक्षर तो हैं ही नहीं” उसका इतना कहना था कि बागड़ी जी ने उसे बहुत बुरी तरह डपटा और बोले कि तू देख नहीं रहा कि मैं खुद दस्तखत खड़ा हुआ हूं। इतना सुनते ही उसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई और बुरी तरह से सहम गया। बागड़ी जी ने चलते चलते कहा कि “जाते समय इस लड़के को बाहर तक छोड़ कर आना”
     एक रोचक बात मुझे और याद आ रही है। बागड़ी जी का मथुरा में जो अस्थाई निवास तिलक नगर कॉलोनी में था उसके जंगले की एक दो मोटी मोटी लोहे की पत्तियां टूट गई थी। उन्होंने एक दिन मुझसे कहा कि बेटा जरा किसी वेल्डिंग वाले को बुलाकर इसकी झलाई करवा दे, उसके बाद वे दिल्ली चले गए। दूसरे दिन ही मैं आर्य समाज रोड स्थित अजीज पहलवान, जिनकी वेल्डिंग की दुकान थी के पास गया और सारी बात बताई। इस पर अजीज पहलवान ने बागड़ी जी का नाम सुनते ही गैस सिलेंडर आदि लेकर अपना आदमी भेज दिया।
     जिस समय लोहे की पत्तियों पर वेल्डिंग हो रही थी अचानक बागड़ी जी भी दिल्ली से आ गए। जब यह सब नजारा उन्होंने देखा तो हक्के बक्के से रहे और बोले कि बेटा मैंने इस कार्य के लिए कईयों से कहा किंतु किसी ने नहीं कराया। इसके बाद मुझे पीठ थपथपा कर शाबाशी दी तथा वेल्डिंग वाले को पैसे दिए और हरियाणवी अंदाज में मुझसे बोले की गड्डी में बैठ और चल मेरे साथ हरिदास सम्मेलन में वृंदावन घुमा लाऊं। इसके बाद मैंने अपनी साइकिल बराबर में भाई जी नमकीन वालों के घर में पटकी और ठाठ से बागड़ी जी के साथ बैठकर स्वामी हरिदास संगीत समारोह का लुफ्त लिया। वे मुझे लाड़ प्यार से बेटा कह कर संबोधित करते और मैं भी उन्हें ताऊजी कहता था।
      वैसे तो बागड़ी जी के बारे में लिखने को बहुत कुछ है यदि उनके अद्भुत व्यक्तित्व और जुझारू पन के बारे में लिखा जाए तो शायद कई पुस्तकें भी कम पड़ जाएंगी। किंतु फिर एक बार और इतना जरूर कहूंगा कि मैंने अपने जीवन में इतना धाकड़ नेता कोई नहीं देखा। वे बातचीत में बड़े-बड़े धुरंधर नेताओं तक से तू तड़ाक की भाषा में बोलते और सामने वाले के मुंह से सिर्फ बागड़ी जी के आलावा और कुछ नहीं निकलता। एक बार तो मैंने अपनी आंखों से एक सिटी मजिस्ट्रेट एस.एन. पांडे की ऐसी दुर्गति करते देखा कि उसकी सारी सिटी मजिस्ट्रेटी धूर में मिलादी। बस मार लगाने की कसर बाकी छोड़ी मुझे बागड़ी जी की बहुत याद आती है। उनका स्नेह आज भी मेरी अमूल्य धरोहर है। उनके प्रति मेरा सादर नमन।

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