Sunday, April 28, 2024
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रुलाई रोके नहीं रुक रही ऐसा मन कर रहा है कि धरती फट जाय और मैं उसमें समा जाऊं

विजय कुमार गुप्ता
    
मथुरा। पिछले दिनों मैंने फेसबुक पर एक लेख लिखा जिसका शीर्षक था “जब मैं आसमान में उड़ने लगा” यह लेख यमुना पर बने रेल के पुल पर कई दशक तक अनवरत चले कत्लेआम की दुख भरी दास्तानों की जानकारी देने वाला था। चार दशक पूर्व तक हुए इन हादसों की जानकारी शायद बहुत कम लोगों को होगी। जब मैंने अपने बाल्यकाल से लेकर युवावस्था तक चले इस खौफनाक मंजर की रोंगटे खड़े करने वाली सच्चाई को लोगों तक पहुंचाया तो बहुत से अनजान लोग सिहर उठे तथा फेसबुक पर लाइक कमेंट और शेयर के अलावा फोन द्वारा भी मेरा उत्साहवर्धन किया कि आपसे हमें दुर्लभ जानकारियां मिली। इनके द्वारा दी गई प्रतिक्रियाओं से उत्साहित होकर विगत दिवस मैंने पुल पर पैदल रास्ते के निर्माण वाली चालीस पचास साल पुरानी फाइलों के गठ्ठर को संदूक से निकाल कर उन पत्रावलियों का अवलोकन किया। अनगिनत कागजों के मध्य श्रद्धेय कन्हैया लाल गुप्त द्वारा मुझे लिखे कुछ पोस्ट कार्डों के ऊपर भी मेरी नजर गई जैसे ही एक पोस्टकार्ड को मैंने पढ़ना शुरू किया तो मेरी रुलाई रोके नहीं रुकी तथा ऐसा मन हुआ कि धरती फट जाय और मैं उस में समा जाऊं।
     कन्हैया लाल जी के पत्र को मैं ज्यों का त्यों आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं। “चि० विजय खुश रहो तुम्हारे पत्र मिले मुझे इधर लखनऊ आगरा आना जाना पड़ा तथा कुछ अपरिहार्य कार्यों में व्यस्त भी बहुत रहा। गैलरी निर्माण में मैं जो तुम्हारी मदद कर सका उसकी मुझे सच्ची प्रसन्नता इसलिए है कि अब और निरीह लोगों की जान पहले की तरह नहीं जायगी। मुझे इस प्रसंग में तुम्हारे निस्पृह और तल्लीन सेवा समर्पित नौजवान व्यक्ति का स्वरूप देखने को मिला। यह भी प्रसन्नता की बात रही”।


     कन्हैयालाल जी के जिन शब्दों ने मुझे रुला दिया तथा ऐसे भाव आये कि धरती फट जाय और मैं समा जाऊं। वे शब्द ये थे “तुम नहीं मानोगे पर मैंने तुमसे कुछ सीखा है मेरे पास तुम्हारे जैसे होनहार बालक के लिए सिवाय शुभ कामनाओं के और क्या है? प्रभु से मांगता हूं कि मथुरा में अनेक विजय बनें ताकि नगर की स्थिति सुधरे। हार्दिक शुभाशीष सहित तुम्हारा कन्हैया लाल”।
     दरअसल कन्हैया लाल जी ने पुल पर गैलरी निर्माण के प्रयासों के चलते शायद मुझे कई दर्जन पत्र जो सभी पोस्ट कार्ड के रूप में थे, लिखे। मैं उन्हें पत्र लिखता और उसका वे जवाब देते। एक बार मैंने उनके लिखे ढेरों पोस्टकार्डों को यमुना में जाने वाली पूजा की सामग्री के साथ विसर्जित भी कर दिया। उनके लगभग सभी पत्रों में मेरी बहुत ज्यादा प्रशंसा होती साथ ही कन्हैयालाल जी की राइटिंग खराब होने के कारण उन्हें आसानी से पढ़ने में मुझे बहुत दिक्कत भी होती थी। अतः अधिकांश पत्रों को मैं सिर्फ एक झलक देखकर ही छोड़ देता था।
     अब जब मेरी लगभग आधी शताब्दी पुरानी फाइल से अचानक आठ पोस्टकार्ड और निकल आये उनमें एक पोस्टकार्ड की बानगी मैंने आपको बताई। इसके अलावा एक अन्य पोस्ट कार्ड को मैंने चश्मा लगाकर बड़ी मुश्किल से पड़ा क्योंकि एक तो उनकी राइटिंग खराब और दूसरे स्याही भी हल्की पड़ गई किंतु फिर भी मैंने एक लाइन जो अंत में लिखी थी को गौर से पढ़ा उसमें उन्होंने लिखा कि “बेटा तुम तुम्ही हो और धन्य हो तुम्हारे लिए मेरे पास तो सिवाय मूक आशीर्वाद के और कुछ है ही नहीं। प्रभु तुम्हें खूब प्रसन्न और सफल बनावैं”। कन्हैया लाल जी के द्वारा मुझे जो कुछ लिखा जाता रहा उससे मैं अब ऐसा महसूस करता हूं कि शायद यह मेरे पूर्व जन्मों के पुण्य हैं जो उनके द्वारा आशीर्वाद के रूप में मिले।
     अब मैं आपको बताता हूं कि इन पूरी फाइलों की गठरी में कन्हैया लाल जी के पोस्ट कार्डों का मूल्य कितना कीमती है। कन्हैयालाल जी शिक्षक प्रतिनिधि के नाते दो बार एम.एल.सी. रहे और एक बार एम.एल.ए.। प्रदेश सरकार का नियम था कि दो बार के बाद फिर कोई तीसरी बार एम.एल.सी. नहीं बन सकता। चूंकि सरकार नहीं चाहती थी कि कन्हैया लाल जी एम.एल.सी. पद से हटें। इसलिए उसने पुराने नियम को बदल कर दो की जगह तीन बार का नियम बना दिया किंतु कन्हैयालाल जी ने तीसरी बार एम.एल.सी. बनने से यह कहकर साफ इंकार कर दिया कि नियम तो नियम है मैं क्या नियम से ऊपर हूं?
     दूसरी बात यह कि मुख्यमंत्री सी.बी. गुप्ता तथा बनारसी दास गुप्ता ने भी इन्हें शिक्षा मंत्री बनाना चाहा किंतु मुख्यमंत्रियों के मनाने के बावजूद ये तैयार नहीं हुए तथा कह दिया कि यदि मैं शिक्षा मंत्री बन गया तो फिर शिक्षकों के साथ अन्याय होगा क्योंकि मैं उनकी आवाज को बुलंद नहीं कर पाऊंगा। इसके बावजूद भी बनारसी दास द्वारा अपने मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह में उन्हें ससम्मान बुलाया किंतु फिर भी ये नहीं गये क्योंकि इन्हें मालूम था कि यदि मैं शपथ ग्रहण समारोह में पहुंच गया तो जबरदस्ती शिक्षा मंत्री शपथ दिला दी जायगी।
     वे शिक्षक होते हुए भी ता जिंदगी विद्यार्थी बने रहे अस्सी बसंत पार करने के बाद भी लाठी टेकते हुऐ अपने गुरु जी के घर संस्कृत पढ़ने जाया करते थे। श्री कन्हैया लाल जी गोवर्धन वाले महान संत गया प्रसाद जी के प्रिय शिष्य थे। जब आपातकाल में उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजा गया तो सबसे पहले उन्होंने मांग रखी कि मेरे पढ़ने के लिए गीता का इंतजाम किया जाय। जेलर द्वारा जेल मैनुअल का हवाला देकर मना करने पर उन्होंने आमरण अनशन शुरू कर दिया। उनके आमरण अनशन से केंद्र सरकार तक हिल गई और उन्हें न सिर्फ तुरंत गीता उपलब्ध कराई गई बल्कि बिना शर्त रिहा भी करना पड़ा। उनकी गिरफ्तारी को विदेशी मीडिया ने भी खूब उछाला तथा बी.बी.सी. लंदन ने अपने ब्रॉडकास्ट में कहा कि मथुरा वृंदावन का गांधी गिरफ्तार। उस समय ये चंपा इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य थे।
     श्री कन्हैया लाल जी को इसलिए गिरफ्तार किया गया क्योंकि उन्होंने शिक्षकों को इस बात के लिए बाध्य करने से इंकार कर दिया कि वे अपने छात्रों के अभिभावकों को नसबंदी के लिए प्रेरित करें। यदि मैं कन्हैयालाल जी के बारे में अपने पास जो कुछ अध कचरी जानकारियां हैं उन्हें लिखूंगा तो शायद एक ग्रंथ बन जायगा। अपने से जुड़ा एक प्रसंग बताना चाहता हूं। जब हमारे दिवंगत पुत्र विवेक का जन्म हुआ तो मैं सबसे पहले साइकिल के द्वारा भागा भागा वृंदावन स्थित उनके निवास पर पहुंचा तथा खुशखबरी देकर मात्र चार रसगुल्ले दे आया। दूसरे दिन ही कन्हैया लाल जी खुद हमारे घर आये और पुत्र के लिए एक सूट आशीर्वाद स्वरुप दे गये।
     अब मुझे इस बात का बड़ा मलाल हो रहा है कि इनके द्वारा मुझे लिखे गये ढेरों पोस्ट कार्डों को आखिर मैंने क्यों यमुना जी में विसर्जित कर दिया? वे मात्र पोस्टकार्ड नहीं थे वे तो मेरे जीवन की सबसे कीमती धरोहरों में से भी नंबर एक की धरोहर थे। अब जो आठ पोस्ट कार्ड जो भूल चूक में बच गये हैं वे तो शायद ता जिंदगी मेरे कलेजे से लग कर ही रहेंगे।
     मैं उनके श्री चरणों में बारंबार नमन कर हृदय के अंतः करण से हार्दिक श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं। अंत में एक बात और बताऊं कि श्री कन्हैया लाल जी ने शिवरात्रि के दिन अपनी देह त्यागी तथा उनके दुर्लभ गुरु गया प्रसाद जी ने कुछ ऐसी विशेष कृपा कर रखी थी कि उन्हें सामने वाले के मन की बातें भी पता चल जाती थीं। मैं स्वयं इस बात का गवाह हूं। मुझे आज भी यदा-कदा स्वप्न के द्वारा उनके दर्शन हो जाते हैं। एक बात में और कहना चाहूंगा कि जैसे गया प्रसाद जी ग्रहस्थ के दुर्लभ संत थे ठीक उसी प्रकार कन्हैयालाल जी भी ग्रहस्थ के सच्चे संत थे। कन्हैया लाल जी जैसी दिव्य आत्मा को मेरा कोटि-कोटि नमन।

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