Monday, April 29, 2024
Homeविजय गुप्ता की कलम सेएक बार मैंने चौधरी चरण सिंह पर स्याही छिड़की

एक बार मैंने चौधरी चरण सिंह पर स्याही छिड़की

विजय कुमार गुप्ता

     मथुरा। बात उन दिनों की है जब उत्तर प्रदेश में भारतीय क्रांति दल की सरकार थी और चौधरी चरण सिंह मुख्यमंत्री थे। एक बार मैंने हस्ताक्षर न  देने पर उनके ऊपर पैन से स्याही छिड़क डाली।
     दरअसल उन दिनों मुझे नेताओं के हस्ताक्षर संग्रह करने का बहुत शौक था बल्कि यौं कहा जाय कि जुनून सवार रहता था तो गलत नहीं होगा क्योंकि उस समय मैं बगैर हस्ताक्षर लिए किसी को भी आसानी से नहीं छोड़ता भले ही अड़ियल टट्टू की तरह अड़ना क्यों न पड़े। इस अड़ियलयल पन के साथ-साथ मेरा दुस्साहसीपन भी मिल जाता था यानी फिर तो एक और एक मिलकर ग्यारह हो जाते।
     मेरे किशोरावस्था के दिन थे चौधरी चरण सिंह भगत सिंह पार्क में चुनावी सभा को संबोधित करने आऐ। चौधरी साहब का भाषण समाप्त होते ही मैंने अपनी हस्ताक्षर पुस्तिका (ऑटोग्राफ बुक) उनके आगे बढ़ा दी किंतु उन्होंने दो टूक मना कर दिया। इसके बाद मंच से उतरकर वे जैसे ही गाड़ी में बैठने को हुए तब पुनः मैंने हस्ताक्षर देने का अनुरोध किया किंतु फिर वही ढाक के तीन पात यानी कि उन्होंने झटक कर मना कर दिया तथा गाड़ी के अंदर बैठने लगे।
     इसके बाद भारी भीड़ व उनकी व्यस्तता की परवाह किए बिना मैंने उनके हाथ जोड़े और फिर रिरिया कर कहा कि चौधरी साहब आपकी बड़ी कृपा होगी, मैं बड़ी उम्मीद से आया हूं मुझे अपने ऑटोग्राफ दे दीजिए और कार का दरवाजा बंद न हो इसलिए उसे कसकर पकड़ लिया। चारों और अधिकारियों, नेताओं, पुलिस तथा पार्टी कार्यकर्ताओं व जनता की भीड़ का दबाव साथ में चौधरी चरण सिंह जिंदाबाद के नारे और धक्का-मुक्की के मध्य चौधरी साहब ने अपना पिंड छुड़ाने की गरज से मुझ पर दया कर ही दी और कहा कि बड़ा जिद्दी और लड़का है, यह कहकर उन्होंने मेरे हाथ से पैन और डायरी ले ली। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह रही कि पैन के निव और जीव के मध्य स्याही तेज गर्मी के कारण सूख गई थी और वह चला ही नहीं। बस फिर क्या था चौधरी साहब एकदम उखड़ गए और गुस्से से आगबबूला होते हुए पता नहीं क्या क्या बड़बड़ाऐ तथा झटक कर मेरी डायरी व पैन मुझे वापस दे दिया। जहां तक मुझे याद है शायद उन्होंने यह कहा था कि तेरे पैन में स्याही तक तो है नहीं और चला आया हस्ताक्षर लेने जबकि मैं अपने पैन में स्याही भरकर चला था।
     दरअसल उन दिनों बॉल पैन का चलन नहीं था पैन इस्तेमाल किए जाते थे जिनमें स्याही भरनी पड़ती थी तथा निव व जीव दोनों एक दूसरे से चिपके रहते थे जीव से होकर शाही निव के द्वारा कागज पर लकीर खींचती रहती। अब मैं निव, जीव व स्याही के चक्कर में न पड़कर आगे की बात बताता हूं।
     गुस्सैल स्वभाव के चौधरी साहब का यह रौद्र रूप मुझे बेहद नागवार गुजरा क्योंकि मैं भी तो उन्हीं की बिरादरी का था इसलिए मैंने भी बिना समय गंवाए क्षण भर में अपनी खिसियाहट निकाल डाली यानी कि पैन को बड़े जोर से उनके ऊपर झटक डाला और थोड़ा उकड़ू होकर भीड़ में पार हो गया। जहां तक मुझे अंदाज है कि चौधरी साहब की टोपी से लेकर मुंह और कुर्ते तक होते हुए धोती तक स्याही के छींटे जरूर गए होंगे। मैंने मुड़ कर तो देखा नहीं था कि कहां कहां तक स्याही के छींटे गए किंतु अंदाज से बता रहा हूं। घर आकर मैंने पैन खोल कर देखा तो उसके अंदर आधी स्याही बची हुई थी तथा जीव और निव स्याही से तर बतर थे।
     यदि मैं पकड़ा जाता तो शायद चौधरी साहब अपने मुख्यमंत्री के पद और बुर्जुगीयत की परवाह किए बिना खुद ही मुझे लात घूंसे व थप्पड़ों से इतना मारते कि छटी का दूध याद आ जाता और भूल जाता सारी ऑटोग्राफ बाजी। अब मुझे अपने कृत्य पर बड़ी शर्मिंदगी होती है कि इतने बुजुर्ग और मुख्यमंत्री जैसे सम्मानित पद पर बैठे चौधरी साहब पर मैंने स्याही छिड़की। यह उनका निजी मामला था कि अपने हस्ताक्षर दें या न दें। जैन समाज के लोग तो वर्ष में एक बार क्षमा पर्व मनाते हैं किंतु में जब कभी अपनीं गलती महसूस करता हूं तभी क्षमा पर्व मना डालता हूं। इसी श्रंखला में मैं आज चौधरी साहब की आत्मा से अपनी अक्षम्य गलती के लिए करबद्ध क्षमा प्रार्थना करता हूं।
     आशा है मेरी नाबालिगी की वजह से चौधरी चरण सिंह जी की आत्मा ने जरूर क्षमा कर दिया होगा और यदि नहीं भी किया हो तो मैं न सिर्फ हाथ जोड़ कर वरन उनके पैर छूकर अपने दुष्कृत्य की पुनः क्षमा प्रार्थना करता हूं। अब तो मुझे पक्का विश्वास हो गया है कि चौधरी साहब कह रहे हैं कि कर दिया, कर दिया, कर दिया और इसके बाद उन्होंने मेरे सिर पर हाथ भी रख दिया अब तो मेरी अंतरात्मा से चौधरी चरण सिंह जिंदाबाद की आवाज स्वत: ही निकल रही है।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments